केंद्र सरकार ने जाति, धर्म और आर्थिक स्थिति के आधार पर जनगणना के प्रस्ताव को आज गुरुवार 19मई2011 को हरी झंडी दे दी। आजादी के बाद पहली बार ऐसी जनगणना होने जा रही है । इससे गरीबी रेखा के नीचे तथा उसके ऊपर जीवनयापन कर रहे लोगों और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में सही जानकारी मिल सकेगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इसे मंजूरी दी गई।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, जनगणना के लिए सर्वेक्षण जल्द ही शुरू हो जाने की उम्मीद है। जाति तथा धर्म के बारे में जानकारी से इस बात के मूल्यांकन में मदद मिलेगी कि सामाजिक तथा धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण देश के बहुत से नागरिकों के लिए आर्थिक अवसर कहां तक सीमित होते हैं।
जनगणना करने वाले कर्मचारी लोगों के बीच धर्म और जाति से संबंधित प्रश्नावली बांटेंगे । लोगों को सिर्फ दो सवालों के जवाब देने होंगे कि उनकी जाति क्या है और उनका धर्म क्या है? लेकिन गरीबी रेखा के संबंधित सवाल पर कई प्रश्न पूछे जाएंगे, जैसे- परिवार के सदस्यों की संख्या, रोजाना की आय तथा खर्च।
गरीबी से संबंधित जनगणना इससे पहले 2002 में कराई गई थी, लेकिन जाति और धर्म को जनगणना में पहली बार शामिल किया जा रहा है। यह गणना जून से शुरु हो कर दिसम्बर 2011 तक पूरी की जायेगी ।
Approvel of caste and BPL census is wrong step of Cabinet
देश में जाति आधारित जनगणना , मंत्रिमंडल का गलत कदम , देश नुकसान उठाएगा !
भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में जाति, धर्म और आर्थिक स्थिति के आधार पर जनगणना कराना आत्मघाती कदम है , समय इसे प्रमाणित करेगा । यह एक ओर जहाँ राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित है तो वहीं दूसरी ओर नेताओं के मानसिक दिवालियेपन परिचायक है ।
विकास एक बहाना है । अब तक इस देश मे किसी भी योजना का ठीक-ठीक क्रियान्वयन नहीं हो सका है , कदम कदम पर केवल बदनियति ही झलकती दिखी है , इस गणना के बाद नया क्या और किनके सहारे कर लेगी कोई भी सरकार ? प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति भी इस देश की दुर्दशा और यहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त दिखता है , वह अपने एक मंत्री को नहीं सम्हाल पाता है तो लाखों अधिकारियों - कर्मियों की क्या गारंटी ?इस गणना के परिणाम स्वरूप देश में वर्ग संघर्ष बढ़ेगा , राजनेता इसका लाभ लेते दिखेंगे ।
अराजकता और आतंक बढ़ेगा , सरकार पंगु साबित होगी ।देश , आजादी के 65 वर्षों बाद भी आज तक हिन्दु - मुसलमान के झगड़े से तो उबर नहीं पा रहा है , नये नये और झगड़ों की शुरूआत होगी ।देश का दुर्भाग्य ही है कि जब समूचा संसार जाति और धर्म से ऊपर उठ कर विकास के नित्य नये सोपान गढ़ रहा है तभी हम जिसे जाति - धर्म का कड़वा अनुभव भी है , उससे उबरना छोड़ इसकी खाई और गहरी करने चले हैं । यहाँ यह कहना कतई भी गलत नहीं होगा कि यह केन्द्र सरकार की सोची-समझी और ऐतिहासिक भूल साबित होगी । देश विरोध करने की ताकत नहीं रखता तो तैयार रहे भुगतने को । अंग्रेजों ने भारत में सन 1931 में कराई थी ऐसी ही जनगणना और नतीजा भारत - पाकिस्तान के रूप में समूचे विश्व के सामने है ।
जाति आधारित जनगणना का विरोध महात्मा गांधी सहित पंडित जवाहर लाल नेहरू , सरदार वल्लभ भाई पटेल यहाँ तक कि डॉ भीमराव अम्बेडर ने भी किया था । इतिहास और संसदीय दस्तावेज आज भी इस बात के साक्ष्य हैं कि - इनके समकालीन तमाम दिग्ग्ज कांग्रेसी और गैर कांग्रेसियों ने इसका विरोध किया था । लेकिन दुर्भाग्य देखिए देश का कि उन्हीं के अनुयायी अब जब अपनी तमाम गलत नीतियों की वजह से राजनीति में चंहुओर पिटने लगे हैं तब उन्होंने फ़िर एक बार एक देश का बेड़ा गर्क करने वाला आत्मघाती हथकंडा अपनाया है । इसका विरोध राजनीति से ऊपर उठ कर जन-जन को करना चाहिए ।
इस गणना को अगर देश के दूरगामी हितों से जोड़ कर देखा जाय तो बहुत देश हित में होगा. इससे अभी सही परिणाम ही प्राप्त हो जाएँ तो बड़ी बात है. ऐसे निर्णय अगर ek बार में कर लिए जाते तो अभी जनगणना के लिए लगी मानव शक्ति का और भी सदुपयोग हो जाता और फिर उतनी ही कवायद क्या सिर्फ समय और पैसे की बर्बादी नहीं है.
जवाब देंहटाएंपता नही इस से लाभ होगा या नही, लेकिन सरकार अगर सही जन गणा करती ओर इस देश मे कितने गरीब हे कितने भिखारी हे, कितने मध्यवर्गी हे कितने अमीर हे तो शायद बात बनती.....ओर इस गरीबो ओर भिखारियो के लिये योजनाये बनाती तो कहते कि अब ठीक हे, कितने दलित हे कितने हिंदु कितने मुस्लिम हे यह तो हर बार गिनती मे आते हे, यह कोई नयी बात नही
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेखा जी , राज भाटिया जी । मेरा मानना है - जाति आधारित जनगणना का विरोध महात्मा गांधी सहित पंडित जवाहर लाल नेहरू , सरदार वल्लभ भाई पटेल यहाँ तक कि डॉ भीमराव अम्बेडर ने भी किया था । इतिहास और संसदीय दस्तावेज आज भी इस बात के साक्ष्य हैं कि - इनके समकालीन तमाम दिग्ग्ज कांग्रेसी और गैर कांग्रेसियों ने इसका विरोध किया था । लेकिन दुर्भाग्य देखिए देश का कि उन्हीं के अनुयायी अब जब अपनी तमाम गलत नीतियों की वजह से राजनीति में चंहुओर पिटने लगे हैं तब उन्होंने फ़िर एक बार एक देश का बेड़ा गर्क करने वाला आत्मघाती हथकंडा अपनाया है । इसका विरोध राजनीति से ऊपर उठ कर जन-जन को करना चाहिए ।
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