सऊदी अरब के एक परिवार ने दरिंदगी की सारी हदों को पार करते हुए अपनी नौकरानी के शरीर में 23 कीलें ठोंक दीं। अमानवीय यातनाएं झेलने के बाद श्रीलंका की यह नौकरानी अपने देश लौट गई है, जहां उसका इलाज चल रहा है। नौकरानी की पहचान आरियावथी (50) के रूप में हुई है।
श्रीलंका के न्यूज चैनल ‘न्यूजफस्र्ट सिरासा’ पर प्रसारित फुटेज में नौकरानी ने उन जख्मों के निशान दिखाए, जहां वक्त-वक्त पर कीलें ठोंकी गई थीं। उसने बताया कि उसे दिनभर काम करना पड़ता था। यदि वह थकान के बाद सुस्ताने की कोशिश करती तो दंड देने के लिए शरीर में कील ठोंक दी जाती।
उसके मालिकों ने धमकी दी थी कि यदि उसने इसका खुलासा किया तो उसे जान से मार दिया जाएगा। रियाद स्थित श्रीलंकाई दूतावास के एक अधिकारी ने कहा कि नौकरी दिलवाने वाले एजेंट ने इस बारे में दूतावास को कोई जानकारी नहीं दी। और महिला को स्वदेश भेज दिया। उन्हें विदेश मंत्रालय से इस बारे में शिकायत मिली है। इस बारे में जल्द कार्रवाई की जाएगी ।दरिदंगी के आगे मानवता फ़िर एक बार हुई है शर्मसार ।
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
अगस्त 26, 2010
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Saudi Arabia me jisi kathoretam saja aise mamlon me di jati hai, is case me bhi milni chhahiye.
जवाब देंहटाएंAage se koi aisa dussahas na kar sake.
Ye to A-manviyata ki parakashtha hai.
हमारीवाणी, इन्डली और अपनीवाणी पर रजिस्टर न करें. ये एग्रेगेटर जेहादी फंडिंग से चल रहे हैं और इनके संचालकों का परिचय भी संदिग्ध है. इन एग्रेगेटरों के पीछे काम कर रहे लोग आपका ब्लॉग और ईमेल आसानी से हैक कर सकते हैं. सावधान रहें.
जवाब देंहटाएंमैं केरल में था तब हमारे मित्र ने कहा कि केरलियन लोग केरला में रह के कुछ काम नहीं करते। बाहर जाकर झाड़ू लगा लेंगे और यहां आएंगे तो कलफ़ वाली लुंगी पहन के घुमते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंखाड़ी के देशों में यहां के मजदूरों को बहुत ही ज्यादा प्रताड़ना दी जाती है। सहते हैं और पड़े रहते हैं। कीलें ठोक देना तो अमानुषिकता की पराकाष्ठा है, ऐसा लग रहा है कि ये लोग अभी भी ग्लेडियेटर युग में जी रहे है।
इन पर जितना थूका जाए उतना कम है।
हमेशा से वहां मानवता शर्मसार ही हुई है।
जवाब देंहटाएंथुकते हैं ऐसे लोगों की संसकृति पर।
पधारिये और इस कविता पर नज़र किजिये:
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html
घटना को किसी वर्ग विशेष के चरित्र के रूप में देखा जाना उचित नहीं, यह व्यक्ति विशेष के मानसिक विकार का ही परिणाम जान पड़ता है.
जवाब देंहटाएंहद है दरिन्दगी की भी.
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