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रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा   :  मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।

जुलाई 28, 2010

एक दर्द जो शायद आपने भी यहाँ आ कर महसूस किया हो …

आज आप सभी से एक ऐसे विषय पर अपनी बात साझा करना चाहता हूँ , जिससे कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में आप भी जुड़े हैं ।   रायपुर आप में से बहुतों का आना-जाना लगा ही रहता होगा , बहुत से तो यहीं के मेरे मित्र हैं जो इस ब्लॉग में भी मिलते हैं । बाजार भी आना- जाना होता ही होगा । क्या अनुभव किया है, आपने   रायपुर   के बाजार का ? कपड़ा ,फ़ल , सब्जी , किराना , स्टेश्नरी , क्रॉकरी , बर्तन , जूता-चप्पल , बेकरी आईटम्स , यहाँ तक की चाट - पकौड़ी , टिक्की-छोले , नास्ता-पानी और भी बहुत कुछ हैं सूची में । ये सारे के सारे सामान यहाँ बिना किसी भाव ताव के ,मुहँमांगे दाम पर बिकते हैं । आप इनका मोलभाव करना भी चाहें तो नहीं कर सकते । विक्रेता या तो नाराजगी जाहिर करता है या फ़िर आपकी अनदेखी । नई राजधानी क्या बन गया   रायपुर  , मानो सारे रिवाज - रंगत ही बदल गए यहाँ के । अब हाल यह है कि अगर कुछ खरीदना है और बेचने वाला जो कह रहा है ,उसकी बात मानते हो खरीद लो वर्ना चलते बनो । पाँच का पच्चीस बोलता है तो भी ठीक है , चिल्हर नहीं है कहता हुआ वह जितना ज्यादा या कम देता है ,  फ़ल या सब्जी वाला दिखाने की और बेचने की चीजें अलग -अलग रखता है और जो दिखाता है ,उसे आपके मांगने पर भी नहीं देता है तो भी जो वह दे रहा है , चुपचाप लो । गया वह जमाना जब ग्राहक भगवान  कहा-समझा जाता था । आज का भगवान हरा-लाल पत्ता है , जिसके एक किनारे बापू मुस्कुराते हैं और दूसरे किनारे पर उसे लपक कर छीनने वाला ।  प्रेम से किसी ने बताया तो यही कि क्या करोगे महँगाई सभी जगह है । मगर मै यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि जितनी रायपुर में है उतनी लूट और कहीं नहीं है । भरोसा न हो तो आजमा कर अंतर महसूस करें । एक मित्र चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स में हैं । सोचा उनसे कहूं , फ़िर लगा अब तो भाई जी छोटा धंधा छोड़ कर राजनीति के बड़े धंधे में सक्रिय हैं ,इस बार उन्हें सरकार ने कोई जिम्मेदारी भी नहीं दी है , इस निराशा को दूर करने में उनका सारा समय बड़े नेताओं के चक्कर काटने में बीत जाता है ,वो भला अब ऐसी फ़ालतू बातों के लिए कहाँ वक्त दे पायेंगे ? जो मंत्री कुछ कर सकते हैं वो सभी जमीनी कारोबार में व्यस्त हैं । मुख्यमंत्री स्तर की बात यह है नहीं ,अधिकारी समझा देंगे उन्हें । फ़िर ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को भला कहाँ और कैसे समझ आयेगी महँगाई ? फ़िर यह तो कांग्रेस की बुराई करने का हथियार है ,और हमारे यहाँ भा ज पा की सरकार है , वह भला इस हथियार को क्यों नुकसान पहुंचायेगी ? रही लोगों की बात तो वो तो ऐसे भी मरते हैं वैसे भी मरेंगे , मरने दो सा… को । नेता ,मंत्री अधिकारी ,व्यापारी इन सब का फ़ील गुड चल रहा है न बस चलने दो ।   रायपुर  का -   छत्तीसगढ़  का विकास इसी में है । ऐसी व्यवस्था का विरोध केवल वे ही करते हैं जिनके पास कोई काम धाम नहीं है और जो केवल नकारात्मक सोच रखते हैं । यही जवाब है उन सक्रिय लोगों का जो चहुँ ओर केवल लूट-खसोट में लगे हैं । विकास की नित्य नई कहानी लिख रहे हैं । आपने यह तो सुना ही होगा - " राम नाम की लूट है , लूट सके तो लूट " बस यहाँ राम का मायने बदल गया है । "राम राज्य" में कुछ इस तरह से मची है हमारे यहाँ लूट । मुझे दर्द हुआ सो मैंने अपनो के साथ बांटने की कोशिश की । सही लगे तो इसे आगे बढ़ाईएगा , शायद कहीं से कुछ सुधार की पहल हो !

जुलाई 27, 2010

कब शुरु होगी इनकी सफ़ाई ???


  सावन माह  का स्वागत बरखा रानी ने किया है और क्या आप भी कर पा रहे हैं स्वागत  ? या फ़िर्…
जी हाँ इस वर्ष   सावन माह आते ही अच्छी बरसात हो गई । यह बरसात आती तो पहले जैसी ही है , लेकिन हम हर साल इसे कहर बरपाने वाली , और न जाने क्या-क्या नाम देने से नहीं हिचकते हैं । नदी - नालों से लगा कर झोपड़ियाँ बनाते हैं ,बह जाती तो इसे कहर बताते हैं । आम आदमी जब ऐसी कोई गलती करे तो हम उसे नासमझ- लालची,आत्मघाती कहते हैं । लेकिन यदि यही काम सरकार या उसकी कोई एजेंसी करे तो क्या कहेंगे ? आज मैं बात करुंगा छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर में बनी एक ऐसी कॉलोनी की जो हर साल पानी में डूबती है और आगे भी डूबती रहेगी । यह कॉलोनी है छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मण्डल द्वारा निर्मित सड्डू कॉलोनी ,जो बलौदा बाजार मार्ग पर है । यहाँ 1400 से भी ज्यादा परिवार रहते हैं ,हर साल इन परिवार वालों को अपने-अपने घर के सामने से बाढ़ जैसी भयावह स्थिति से निबटना पड़ता है । बीते वर्ष तो इस कॉलोनी में नाव का सहारा लेना पड़ा था । कई परिवार वालों को अपने मकान में ताला जड़कर अन्यत्र सहारा लेना पड़ता है । तरह तरह की परेशानियों का सामना करना पडता है । यहाँ सीधा सा सवाल यह है कि क्यों इस गहराई वाले क्षेत्र में छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मण्डल द्वारा कॉलोनी बनाई - बसाई गई , जबकि उनके इंजीनियर्स यह अच्छी तरह जानते थे कि जिस जगह पर सैकड़ों मकान बनाये जा रहे हैं वह जगह सड़क से बहुत नीचे है , वहाँ से छोकरा नाला , छोटा नाला और आमासिवनी नाला भी बीचो बीच से गुजरता है जहाँ से समूचा क्षेत्र शुरु से ही डूबान में आता है ? हाई फ़्लड लेवल (एच एफ़ एल) भी यहाँ कॉलोनी निर्माण की अनुमति नहीं देता है, लेकिन सारी बातों को बलाए ताक रख  लोगों के करोड़ों रुपये वसूल कर उन्हें जीवन भर के लिए मुसीबत में फ़ंसा कर निकल लिया   छत्तीसगढ़ गृह निर्माण  मण्डल । इसकी सजा किसे मिलनी चाहिए और कौन तय करेगा सजा ?
यह काम यदि कोई निजी क्षेत्र का आदमी करता तो शायद उसे सरकार सजा देने की बात सोचती , अधिकारी उसे बचाने के लिए अपनी जेबें गरम करने की जुगत भिड़ाते दिखते , लेकिन इनका (छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मण्डल) क्या करेगी संवेदनशील कहलाने का शौक रखने वाली राज्य सरकार ? क्यों इसके अध्यक्ष और अधिकारी सजा पाने के लायक नहीं हैं ,जिनकी वजह से आज हजारों लोगों की जान खतरे में है ? दिन का चैन रातों की नींद उड़ी हुई है यहाँ रहने वालों की। और वहीं दुसरी ओर इनके अपराधी चैन से ए सी चला कर सो रहे हैं । कैसा न्याय है यह ? ऐसे अप्राधियों को कैसे भूला जा सकता है , और क्यों ?
शहर के हर बड़े नालों पर दुकानें बनी हैं , पूरे साल भर ये नाले पॉलीथिन के कचरों से पटी रहती है ,फ़िर बारिश आते ही हर गली - मोहल्लों में , घरों में पानी भरने की शिकायतें होतीं हैं । कौन देता है इन नालों के ऊपर निर्माण की अनुमति ? क्या करता रहता है नगर निगम , नगर निवेश और रायपुर विकास प्राधिकरण इस दौरान ? नाले गंदे पानी की निकासी के लिए बनते हैं या कचरा फ़ेंकने-जमा करने के लिए ? क्यों नित्य प्रतिदिन इसकी सफ़ाई नहीं हो पाती , जबकि करोड़ो रुपये इसी मद में हर वर्ष होते हैं । आम आदमी के अरबों रुपयों पर ऐश करने वाले ये कथित जिम्मेदार लोग , आम आदमी को ही आखिर और कब तक तकलीफ़ देते रहेंगे ? ये कथित नेता और अधिकारी और कब तक ऐसे ही बयान बाजी कर लोगों को बेवकूफ़ बनाते रहेंगे ? कब तब ठगे जायेंगे लोग ?और ये आम आदमी भी कब तक अपने घरों के बाहर , कालोनियों में , शासन-प्रशासन में ऐसे ही कचरे फ़ैला कर जीता रहेगा ?  कब शुरु होगी इन कचरों की   सफ़ाई ???

जुलाई 25, 2010

94 लाख का नाश्ता - पानी , भई वाह !!!


केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय देश के साथ ही अपने स्वास्थ्य का भी पूरा ख्याल रखता है। इस मंत्रालय ने पिछले दो वर्ष के दौरान  जलपान  पर 94 लाख रुपए से से भी ज्यादा की राशि खर्च की जो प्रधानमंत्री कार्यालय की तुलना में आठ गुणा ज्यादा है।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस अवधि में   जलपान  पर 11,77,849 रुपए खर्च किए।
सूचना के अधिकार कानून के तहत आरटीआई के तहत माँगी गई जानकारी का उत्तर देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में अवर सचिव अनिल उनियाल ने बताया कि वित्त वर्ष 2008-09 में मंत्रालय में   जलपान पर 49,45,590 रुपए खर्च किए गए जबकि वित्त वर्ष 2009-10 में यह खर्च 44,62,375 रुपए रहा।
आरटीआई के तहत हिसार स्थित सामाजिक कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से पिछले दो वर्ष में सरकारी बैठकों के दौरान नाश्ते और बोतलबंद पेयजल पर होने वाले खर्च का ब्यौरा माँगा था।
प्रधानमंत्री कार्यालय में अनुभाग अधिकारी सुबीर नारायण ने कहा कि वित्त वर्ष 2008-09 में पीएमओ में सरकारी बैठकों के दौरान जलपान पर 5,51,146 रुपए खर्च किए गए जबकि 2009-10 में जलपान पर खर्च बढ़ कर 6,26,703 रुपए हो गया।
ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी, बेरोजगारी और विकास को मिटाने के लिए जिम्मेदार ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी पिछले दो वर्ष में सरकारी बैठकों में   जलपान एवं बोतलबंद पेयजल पर 41,42,357 रुपए खर्च किए है।
सरकारी बैठकों के चाय नाश्ते पर खर्च में जल संसाधान मंत्रालय भी बहुत पीछे नहीं है जिसने वित्त वर्ष 2008-09 तथा 2009-10 में 27,76,049 रुपए खर्च किए।
ग्रामीण विकास मंत्रालय में उपसचिव बी एस नेगी ने जानकारी देते हुए कहा कि मंत्रालय में वित्त वर्ष 2008-09 में जलपान पर 19,99,016 रुपए और बोतलबंद पेयजल पर 35,424 रुपए खर्च किए गए।
इसी प्रकार वित्त वर्ष 2009-10 में जलपान पर 19,83,568 रुपए और बोतलबंद पेजजल पर 1,24,349 रुपए खर्च किए गए। इन दो वर्ष में मंत्रालय ने जलपान पर कुल 41,42,357 रुपए खर्च किए।
जल संसाधन मंत्रालय में अवर सचिव पीसी राजगोपालन ने आरटीआई का उत्तर देते हुए कहा कि मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2008-09 में वरिष्ठ अधिकारियों और अन्य सरकारी बैठकों के दौरान जलपान पर 14,16,175 रुपए तथा 2009.10 में 13,59,874 रुपए खर्च किए। इन दो वर्ष में मंत्रालय ने जलपान पर 27,76,049 रुपए खर्च किए।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने इस अवधि में चाय, नाश्ते एवं बोतलबंद पेयजल पर 20,73,320 रुपए खर्च किए।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में अवर सचिव अरूणोदय गोस्वामी ने आरटीआई के उत्तर में बताया कि वित्त वर्ष 2008.09 में मंत्रालय में चाय-नाश्ते पर 8,65,759 रुपए और बोतलबंद पेयजल पर 61,581 खर्च किए गए। जबकि वित्त वर्ष 2009-10 में चाय-नाश्ते पर 9,93,490 रुपए और बोतलबंद पेयजल पर 1,52,490 रुपए खर्च हुआ।
उपभोक्ता एवं खाद्य मंत्रालय ने विगत दो वर्ष में नाश्ते और बोतलबंद पेयजल पर 14,23,277 रुपए खर्च किए।
उपभोक्ता मामलों एवं खाद्य मंत्रालय के उपसचिव जीपी पिल्लै ने जानकारी देते हुए कहा कि मंत्रालय में सरकारी बैठकों के दौरान वित्त वर्ष 2008-09 में नाश्ते पर 5,64,721 रुपए और बोतलबंद पेयजल पर 15,150 रुपए खर्च किए गए। जबकि वित्त वर्ष 2009-10 में नाश्ते पर 8,23,031 रुपए और बोतलबंद पेयजल पर 20,275 रुपए खर्च आए।
इस प्रकार मंत्रालय में दो वर्षों में कुल खर्च 14,23,277 रुपए आया, जिसमें नाश्ते का खर्च 13,87,752 रुपए और बोतलबंद पेयजल का खर्च 35,525 रुपए रहा।
सरकारी बैठकों में  जलपान  पर खर्च करने में प्रधानमंत्री कार्यालय भी पीछे नहीं है जिसने पिछले दो वर्षों में 11,77,849 रुपए खर्च किए।

दुनियाँ जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है…

अपनी आध्यात्मिक ऊंचाइयों और अल्हड़ मस्त फ़कीरी की वजह से सारी दुनियाँ में ख्यातिलब्ध हुए   शिरडी के सांई अब उनके खजाने के नाम से भी चर्चा में आने लगे हैं । प्रचारक बताते हैं बाबा जी की सवारी सवारी अब उस विशिष्ट रथ में निकलेगी, जिसे उनके एक मुस्लिम भक्त ने 140 किलोग्राम चाँदी से बनवाया है ।दूसरे एक भक्त ने आधा किलोग्राम सोना पानी चढ़ाया है। वहीं दूसरी ओर खजाने का हिसाब-किताब रखने वाले ट्रस्टी बताते हैं कि बाबा जी के खजाने में 230 किलो सोना और 2000किलो से भी ज्यादा चाँदी है। नगदी रुपये वही 450 करोड़ होंगे । यह सब कुछ बाबा जी के श्रद्धालु जनों ने बाबा जी के श्रीचरणों में अर्पित किया है । दुनियाँ जानती है कि अपना समूचा जीवन बाबा जी ने कितनी सादगी - सहृदयता -श्रद्धा और सबूरी के साथ बिताया और क्या संदेश दिया था । तब लोगों ने क्या- क्या न कहा - किया था उनके साथ , और आज…?
सच ही कहा है गालिब "  दुनियाँ  जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है,मिल जाए तो मिट्टी है,खो जाए तो सोना है ।"

जुलाई 23, 2010

एक अच्छी खबर है … मगर …

   पर्यावरण संरक्षण को लेकर हर जागरुक नागरिक चिंतित नजर आता है । अपने-अपने स्तर पर प्रयास करता भी देखा जा सकता है । बच्चों में भी जागृति लाने के प्रयास किये जा रहे हैं ।  पर्यावरण संरक्षण  के लिए लम्बे समय से शहर के वरिष्ठ पत्रकार सनत चतुर्वेदी जी भी सार्थक सुझाव देते रहे हैं । श्री चतुर्वेदी ने उनके द्वारा सम्पादित अखबारों में इस आशय के अनेक प्रेरक लेख भी छापे हैं । इस बार तो उन्होनें बाकायदा मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि पर्यावरण संरक्षण वरणको लेकर जागरुकता के " नदी महोत्सव " मनाने और नदियों के किनारे हरियाली के लिए वृक्षारोपण करने का कार्यक्रम प्रदेश के नदी क्षेत्रों में शुरु किया जाना जनहितकारी होगा. इससे आने वाली पीढ़ी जागरुक और सजग होगी ।पर्यावरण सुधरने लगेगा।नई पीढ़ी पेड़-पानी-पर्यावरण के महत्व से परिचित होगी । यद्यपि श्री चतुर्वेदी ने उनके द्वारा लिखे पत्र को सार्वजनिक नहीं किया है,सीधे मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को पत्र भेज दिया है । खबर है कि श्री चतुर्वेदी के सुझावों को मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने गंभीरतापूर्वक लिया है,फोन पर पत्रकार सनत चतुर्वेदी से चर्चा कर उन्हें यह बताया भी है कि वे इस दिशा में जल्दी ही काम करने भी जा रहे हैं । मगर हम तो इस बात को लेकर भी डरते हैं कि एक पत्रकार के सुझाव को मान कर मुख्यमंत्री कुछ करें यह हमारे लालफ़ीताशाहों को शायद ही मान्य होगा । मान्य केवल उन्हें जरूर हो सकता है जिन्हें वर्षों से वृक्षारोपण का गहरा अनुभव हैं ,जिन्होनें यहाँ-वहाँ न जाने कहाँ-कहाँ लाखों - करोंडों वृक्ष हर वर्ष रोपे हैं ,आगे भी रोपते रहने की उम्मीदें लिये जी रहे हैं । ये लोग हर बरस किसी मेले की ही तरह नदियों के किनारे - किनारे वृक्षारोपण कर को फ़िर साल दर साल नदियों के तेज बहाव में बहा देने को जरूर तैयार बैठे हैं । हर साल रोपे जाने वाले पौधों का हाल तो आपसे छुपा नहीं है , हाँ उनके आंकड़े जरूर फ़ाईलों को हरा-भरा रखे हुए हैं ।इस साल भी एक ही दिन में एक लाख पौधे रोपकर वृक्षारोपण की शुरुवात की गई है ,नई राजधानी से । बताईयेगा कितने बचे ? विभाग तो सागौन-शीशम-सरई के हिसाब किताब में पूरे समय मस्त रहता है उसके पास कहाँ है इतना फ़ालतू समय कि वह इन पिद्दी पौधों को बचाता घूमें । पत्रकार सनत चतुर्वेदी जी और मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह दोनो आम लोगों में से ही हैं , उनकी सोच अच्छी है मगर इस अच्छी सोच को सफ़लीभूत होने दिया जाय तब ना ? देखिए क्या होता है ? प्रदेश शासन की इच्छा यदि इस क्षेत्र में बलवती हो , नदी के किनारों को हरा-भरा बनाना सरल हो सकता है ।शासन चाहे तो इस काम में उन बड़े औद्योगिक घरानों की मदद लेकर किया जा सकता है ,जो यहाँ आ रहे हैं । बड़े उद्योगों के यह अनिवार्य किया जाए कि वे अमुख नदी का एक सुनिश्चित भूभाग हरा-भरा करके दें । मेरा मानना है ऐसा अनिवार्य किया जाना उन्हें भी खराब नहीं लगेगा बशर्ते हमारे वरिष्ठ अधिकारियों को मंजूर हो , वरना इस प्रदेश में उनकी मर्जी के खिलाफ़ कुछ भी हो पाना सरल नहीं है , शायद संम्भव भी नहीं । डॉ रमन सिंह जी दृढ़ इच्छा शक्ति प्रदर्शित कर पाएँ , प्रदेश हित में होगा ।  जंगल और नदी के इन मगरमच्छों की करतूतों को ,उनकी मंशा को पहले समझना होगा ।

क्या है छत्तीसगढ़ , जानिए सरकारी आंकड़े

संकलन उनके लिए जो जानना चाहते हैं नए राज्य छत्तीसगढ़ को
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राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत मध्यप्रदेश के पुनर्गठन के जरिए छत्तीसगढ़एक नवम्बर 2000 को नया राज्य बना।
छत्तीसगढ़का क्षेत्रफल लगभग एक लाख 35 हजार 361 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का 9वां और जनसंख्या की दृष्टि से 17 वां बड़ा राज्य है। इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत इलाका वनों से परिपूर्ण है। वन क्षेत्रफल के हिसाब से छत्तीसगढ़ देश का तीसरा बड़ा राज्य है।
छत्तीसगढ़ की सीमाएं देश के छह राज्यों को स्पर्श करती हैं। इनमें मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश शामिल हैं। छत्तीसगढ़ के सरहदी इलाकों में सीमावर्ती राज्यों की सांस्कृतिक विशेषताओं का प्रभाव देखा जा सकता है।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़की कुल जनसंख्या दो करोड़ 08 लाख 33 हजार 803 है। इसमें एक करोड़ चार लाख 74 हजार 218 पुरूष और एक करोड़ तीन लाख 59 हजार 585 महिलाएं हैं। प्रदेश की ग्रामीण आबादी लगभग एक करोड़ 66 लाख 48 हजार 056 और शहरी आबादी 41 लाख 85 हजार 747 है। प्रदेश की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जन-जातियों की आबादी 31.81 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों की आबादी 11.60 प्रतिशत है।छत्तीसगढ़ में जनसंख्या का घनत्व 154 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जबकि भारत में जनसंख्या का घनत्व 300 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक है। पुरूष और स्त्री जनसंख्या में लैंगिक अनुपात के मामले में छत्तीसगढ़ का स्थान देश में दूसरा है। यहां प्रतिएक हजार पुरूषों के बीच स्त्रियों की संख्या 989 है।
हमारा बिलासपुर रेलवे जोन देश का सबसे ज्यादा माल ढोने वाला रेलवे जोन है, जो भारतीय रेलवे को उसके कुल वार्षिक राजस्व का छठवां हिस्सा देता है।
खनिज राजस्व की दृष्टि से देश में दूसरा बड़ा राज्य है।वन राजस्व की दृष्टि से तीसरा बड़ा राज्य है।राज्य के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत हिस्सा बहुमूल्य वनों से परिपूर्ण है।देश के कुल खनिज उत्पादन का 16 प्रतिशत खनिज उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है।
छत्तीसगढ़ में देश का 38.11 प्रतिशत टिन अयस्क, 28.38 प्रतिशत हीरा, 18.55 प्रतिशत लौह अयस्क और 16.13 प्रतिशत कोयला, 12.42 प्रतिशत डोलोमाईट, 4.62 प्रतिशत बाक्साइट उपलब्ध है।
छत्तीसगढ़ में अभी देश का 38 प्रतिशत स्टील उत्पादन हो रहा है। सन 2020 तक हम देश का 50 फीसदी स्टील उत्पादन करने लगेंगे।छत्तीसगढ़ में अभी देश का 11 प्रतिशत सीमेन्ट उत्पादन हो रहा है, जो आगामी वर्षों में बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाएगा।राज्य में अभी देश का करीब 20 प्रतिशत एल्युमिनियम उत्पादन है, वह निकट भविष्य में बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाएगा।छत्तीसगढ़में भारत का कुल 16 प्रतिशत खनिज उत्पादन होता है, अर्थात साल भर में खनिज से बनने वाली हर छठवीं चीज पर छत्तीसगढ़ का योगदान होता है।छत्तीसगढ़में देश का लगभग 20 प्रतिशत आयरन ओर है, यानी हर पांचवें टन आयरन ओर पर छत्तीसगढ़ का नाम लिखा है।देश में कोयले पर आधारित हर छठवां उद्योग छत्तीसगढ़ के कोयले से चल सकता है। छत्तीसगढ़ में देश के कुल कोयले के भण्डार का लगभग 17 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में है।डोलोमाईट पर आधारित हर पांचवा उद्योग छत्तीसगढ़ पर निर्भर है, क्योंकि हमारे पास देश के कुल डोलोमाईट का लगभग 12 प्रतिशत भण्डार है।खनिज के राज्य में वेल्यू एडीशन की हमारी नीति के कारण देश का 27 प्रतिशत यानी एक तिहाई लोहा छत्तीसगढ़ में बनता है।हम देश में स्ट्रक्चरल स्टील के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। हर साल पांच मिलियन टन हम देश को देते हैं। आप कह सकते हैं कि आज भारत का हर तीसरा घर, तीसरा पुल, तीसरा स्ट्रक्चर छत्तीसगढ़ के लोहे से बनता है।हमारी धरती के बाक्साइट की बदौलत आज देश का सबसे बड़ा एल्युमिनियम प्लांट बाल्को, कोरबा में चल रहा है और इस तरह देश के सबसे बड़े एल्युमिनियम उत्पादक भी है।देश के हर बड़े उद्योग समूह का पसंदीदा स्थान छत्तीसगढ़ बन रहा है। इसलिए आज चाहे टाटा, एस्सार, जे.एस.पी.एल., एन.एम.डी.एस. स्टील प्लांट हों या ग्रासिम, लाफार्ज, अल्ट्राटेक, श्री सीमेंट जैसे सीमेंट कारखाने सब छत्तीसगढ़में हैं।छत्तीसगढ़ में इस समय स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम एवं ऊर्जा क्षेत्रों में लगभग एक लाख करोड़ रूपए का निवेश प्रस्तावित है।औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के साथ हमने ग्रीन टेक्नालाॅजी पर भी जोर दिया है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। इस धान के कटोरे में धान की भूसी से भी 220 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है।बायोडीजल उत्पादन और उसके लिए रतनजोत के वृक्षारोपण में छत्तीसगढ़ देश में अग्रणी है।
वनौषधियों के प्रसंस्करण तथ एग्रो इंडस्ट्रीज की स्थापना हेतु विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
बीते साल पूरे भारत में सीमेन्ट की औसत खपत 10 प्रतिशत बढ़ी है तो छत्तीसगढ़ में 12 प्रतिशत बढ़ी है। बीते पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में सीमेन्ट की खपत दोगुनी हो गयी है। इससे पता चलता है कि राज्य में अधोसंरचना निर्माण के काम की गति कितनी तेज हुई है।आज जब देश के अन्य राज्य भयंकर बिजली संकट और घण्टों की बिजली कटौती से जूझ रहे हैं, उस दौर मेंछत्तीसगढ़ देश का ऐसा अकेला राज्य है, जिसने आधिकारिक तौर पर बकायदा ‘जीरो पावर कट स्टेट’ होने की घोषणा की है।प्रदेश की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 1360 मेगावाट से बढ़कर 1924 मेगावाट हो गयी है। राज्य में नये बिजली घरों के निर्माण की कार्ययोजना प्रगति पर है। पिट हैड पर ताप बिजलीघर लगाने वालों का छत्तीसगढ़ में स्वागत है, लेकिन उसके लिए उन्हें 7.5 प्रतिशत बेरीएबल कास्ट पर पहले हमें बिजली देना होगा। उत्पादन पर पहला 30 फीसदी का अधिकार हमारा होगा। राज्य में 50 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली घरों हेतु एमओयू किए जा चुके हैं।आगामी 7-8 वर्षों में कम से कम 30 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली घरों से उत्पादन प्रारंभ हो जाएगा। उनसे मिलने वाली हमारे हिस्से की बिजली बेचकर हमें एक मोटे अनुमान के अनुसार 10 हजार करोड़ रूपए से अधिक की अतिरिक्त आय हर साल होने लगेगी। ऐसे उपायों से शायद हम छत्तीसगढ़ को टैक्स-फ्री राज्य भी बना सकेंगे।हमारे राज्य की ऊर्जा राजधानी कोरबा आने वाले दिनों में 10 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करने लगेगी, जिसके कारण कोरबा जिला देश का सबसे बड़ा ऊर्जा उत्पादक जिला और देश की ऊर्जा राजधानी बन जाएगा।छत्तीसगढ़ में सभी वर्गों के बिजली उपभोक्ताओं के साथ उद्योगों को भी देश में सबसे सस्ती दर पर बिजली मिल रही है।राज्य बनने के पहले छत्तीसगढ़ के किसानों का मुश्किल से पांच-सात लाख मीटरिक टन धान ही हर साल खरीदा जा सकता है। लेकिन अब हम 40-42 लाख मीटरिक टन धान हर साल खरीदते हैं। पिछले एक साल हमने किसानों को 4200 करोड़ रूपए धान की कीमत और बोनस के रूप में दिए थे।आजादी के बाद 56 सालों में सिर्फ छत्तीसगढ़ के किसानों को 72 हजार पम्प कनेक्शन मिले थे। लेकिन बीते छह सालों में एक लाख 40 हजार से अधिक पम्प कनेक्शन दिए गए हैं।
किसानों को साल भर में छह हजार यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही है।
किसानों को मात्र तीन प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण दिया जा रहा है। पहले किसान साल भर मे मात्र 150 करोड़ रूपए का ऋण ले पाते थे, वे अब 1300 करोड़ रूपए का ऋण एक साल में ले रहे हैं।जब राज्य बना था, यहां की सिंचाई क्षमता कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर लगभग 31 प्रतिशत हो गयी है।छत्तीसगढ़ गठन के वक्त, अविभाजित मध्यप्रदेश के हिस्से के रूप में छत्तीसगढ़ के भौगोलिक क्षेत्र के लिए कुल बजट प्रावधान पांच हजार 704 करोड़ रूपए था, जो अलग राज्य बनने के बाद क्रमशः बढ़ता गया और अब नौ सालों बाद 24 हजार करोड़ रूपए से अधिक हो गया है।प्रति व्यक्ति आय की गणना, वर्ष 2000-2001 में प्रचलित भावों में प्रति व्यक्ति आय 10 हजार 125 रूपए थी, जो वर्तमान में बढ़कर 34 हजार 483 रूपए हो गयी।
विकास का एक पैमाना राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ने को भी माना जाता है। विगत पांच वर्षों में लाखों लोगों को रोजगार मिला है।
हमने शासकीय नौकरियों में भर्ती से प्रतिबंध हटा दिया। विभिन्न विभागों में रिक्त पदों को भरने का समयबद्ध अभियान चलाया। इसके कारण करीब एक लाख लोगों की भर्ती विभिन्न विभागों में हुई है।करीब एक लाख शिक्षाकर्मियों और 25 हजार पुलिस कर्मियों की भर्ती की गयी। अनुकम्पा नियुक्ति के तहत हजारों पद भरे गए। करीब 20 हजार दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित किया गया।अनुसूचित जाति-जनजाति के युवाओं को रोजगार के नये अवसर देने के लिए निःशुल्क पायलट तथा एयर होस्टेस प्रशिक्षण योजना संचालित की जा रही है। इसके तहत पायलट प्रशिक्षण पर प्रति व्यक्ति 13 लाख रूपए तथा एयर होस्टेस प्रशिक्षण के लिए प्रति व्यक्ति एक लाख रूपए राज्य शासन द्वारा वहन किया जाता है।राज्य में स्थापित नए उद्योगों में करीब 50 हजार लोगों को रोजगार मिला। ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं में 25 लाख से अधिक परिवारों को रोजगार दिया गया है।बेरोजगार स्नातक इंजीनियरों को लोक निर्माण विभाग में बिना टेण्डर के ही निर्माण कार्य मंजूर करने की प्रक्रिया अपनाई गयी है।हम छत्तीसगढ़ के 37 लाख गरीब परिवारों को एक रूपए और दो रूपए प्रतिकिलो में चांवल दे रहे हैं।हर माह प्रति परिवार दो किलो आयोडाईज्ड नमक निःशुल्क दे रहे हैं।सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन दुकानों को निजी हाथों से वापस लेकर सहकारिता आधारित सस्थाओं को सौंपा गया है। हर माह की सात तारीख तक राशन बांटने की व्यवस्था, सम्पूर्ण प्रणाली के कम्प्यूटरीकरण, राशन सामग्री को दुकानों तक पहुंचाने के लिए द्वार प्रदाय योजना, एसएमएस, जीपीएस प्रणाली तथा वेबसाइट के उपयोग से निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की गयी है। छत्तीसगढ़ को केन्द्र व अन्य राज्यों ने रोल माॅडल के रूप में स्वीकार किया है।बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हाईस्कूल जाने वाली हर वर्ग की गरीब बालिकाओं को निःशुल्क सायकलें दी जा रही है। निःशुल्क कम्प्यूटर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है।कुपोषण दूर करने के लिए 35 हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों और 75 हजार महिला स्व-सहायता समूहों को भागीदार बनाया गया है। 13 हजार कुपोषित बच्चों को समाज सेवी संस्थाओं को गोद दिया गया है। पूरक पोषण आहार योजनाओं में महिलाओं को भागीदार बनाया गया है।विभिन्न प्रयासों से राज्य में कुपोषण की दर 61 से घटकर 52 हो गयी है।राज्य में शिशु मृत्यु दर सन 2000 में 79 प्रति हजर थी, जो घटकर 58 हो गयी है।राज्य में मातृ मृत्यु दर सन 2000 में 601 प्रति लाख थी, जो घटकर लगभग 300 हो गयी है।बच्चों को हद्यरोग से राहत दिलाने के लिए मुख्यमंत्री बाल हद्य सहायता योजना संचालित की जा रही है। जिसके तहत एक हजार से अधिक बच्चों का सफल आॅपरेशन किया जा चुका है, उन्हें एक लाख 80 हजार रूपए तक की सहायता प्रत्येक आॅपरेशन के लिए दी जाती है।मूक-बधिर बच्चों के उपचार के लिए नई योजना शुरू की गयी है, जिसके तहत काॅक्लियर इम्प्लांट हेतु पांच लाख रूपए से अधिक तक की मदद प्रत्येक व्यक्ति को दी जा सकती है।महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।महिलाओं के नाम से जमीन खरीदी करने पर रजिस्ट्री में दो प्रतिशत की छूट दी जा रही है।महिला स्व-सहायता समूहों को 6.5 प्रतिशत की आसान ब्याज दर पर ऋण दिया जा रहा है।34 हजार से भी अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को निःशुल्क सायकल दी जा रही है।
गरीब परिवारों की बालिकाओं, निःशक्त युवतियां को विवाह के लिए आर्थिक मदद की जा रही है।
शहरों की छोटी बस्तियों में रहने वाली महिलाओं को सार्वजनिक नलों में होने वाली दिक्कतों से बचाने के लिए भागीरथी नल-जल योजना के तहत उनके घर पर निःशुल्क नल कनेक्शन दिए गए।
12 लाख से अधिक गरीब परिवारों को प्रतिमाह 30 यूनिट तक निःशुल्क विद्युत आपूर्ति की सुविधा दी गयी है।नया राज्य बनने से ही नई राजधानी स्थापित करने का अवसर मिला है। इसके कारण हम छत्तीसगढ़में नया रायपुर नाम से एक ऐसा शहर बसा रहे हैं, जो दुनिया के सबसे सुविधाजनक और सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल होगा। इसे हम नगरीय विकास का एक आदर्श उदाहरण बनाना चाहते हैं। जहां पुरातन ओर नवीनता, संस्कृति और शोध, विकास और पर्यावरण सुरक्षा का साझा परिदृश्य होगा। यह शहर रोजगार के नए अवसरों और स्फूर्तिदायक जीवन के लिए भी एक आदर्श प्रस्तुत करेगा।

जुलाई 22, 2010

मुख्यमंत्री डॉ. रमन बने छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष

                                        खेल संघों ने सर्वसम्मति से मनोनयन किया
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को छत्तीसगढ़ओलंपिक संघ का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है। खेल संघों के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री से आज 22 जुलाई 2010 उनके निवास पर मुलाकात कर छत्तीसगढ़के अध्यक्ष पद का दायित्व ग्रहण करने का आग्रह किया और उन्हें बताया कि सभी खेल संघों ने सर्वसम्मति से उन्हें छत्तीसगढ़का अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया है। खेल संघों के आग्रह पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उनके इस प्रस्ताव पर सहमति प्रदान की।

गुलशन कुमार की हत्या का प्रमुख आरोपी बरी

मुंबई की एक अदालत ने कैसेट किंग गुलशन कुमार की    हत्या  के एक प्रमुख आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।आरोपी अब्दुल कयूम शेख को वर्ष 2007 में दुबई से यहां लाया गया था।उस पर 12 मार्च 1997 को गुलशन कुमार की हुई    हत्या और 12 मार्च, 1993 को मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में शामिल होने का आरोप था। वकील राम पावडे ने ने कहा कि ""शिव़डी त्वरित अदालत के न्यायाधीश एस.जी.कानबरकर ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं पेश कर सका और इस आधार पर उसे बरी कर दिया।पावडे ने कहा कि जिस एक गवाह को पुलिस ने प्रस्तुत किया था, वह मर गया और उसके बाद अभियोजन पक्ष हत्या की साजिश में शेख की संलिप्तता साबित नहीं कर सकी। इस कारण उसे संदेह का लाभ मिल गया।   सुपर कैसेट इंडस्ट्रीज के मालिक गुलशन कुमार की 13 वर्ष पहले अंधेरी में एक मंदिर के बाहर गोली मार कर    हत्या  कर दी गई थी।

अमित की हत्या , छोड़ गई कई सवाल

अहमदाबाद में आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की    हत्या स्थानिय अदालत के सामने दिन दहाड़े कर दी गई अमित के पिता के बयान के बाद से हत्या का रहस्‍य और गहराता जा रहा है। अमित के परिवार वाले जिस भाजपा सांसद पर हत्‍या का आरोप लगा रहे हैं, आरोपी सांसद    हत्या  के बाद से ही गायब है।
हालांकि अभी पुलिस को कोई ठोस सुराग हाथ नहीं लग पाया है। सुबूत जुटाने के लिए पुलिस की टीम जूनागढ़ में है। अमित ने गिर वन इलाके में अवैध खनन में कथित रूप से सोलंकी के शामिल होने के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। गिर वन एशियाई शेरों की एक मात्र प्राकृतिक रिहाइश रह गई है। इसलिए इस इलाके में अवैध खनन से इसके वजूद को भी खतरा है। गिर वाइल्‍डलाइफ सैंक्‍चुअरी के पांच किलोमीटर के दायरे में सालाना कथित तौर पर 50 करोड़ रुपये मूल्‍य के खनिजों का अवैध खनन होता है। अमित ने इसी के खिलाफ आवाज उठाई थी। वह पहले भी जनहित के कई मामलों पर सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए आवाज उठाते रहे थे। अमित के पिता ने साफ कहा कि उनके बेटे को जूनागढ़ के भाजपा सांसद दीनू सोलंकी ने मरवाया है। उनके मुताबिक सांसद उन्‍हें और उनके बेटे को मरवाने की लगातार धमकी देते रहे थे। भीखू जेठवा ने कहा, ‘मुझे पूरा शक है कि मेरे बेटे की हत्‍या के पीछे दीनू सोलंकी ही है। वह मुझे फोन पर धमकी देता था। मेरे बेटे को तो उसने कई बार धमकी दी। अमित को हजार लोगों की भीड़ के सामने धमकी दी गई थी। पर किसी ने आवाज उठाने की हिम्‍मत नहीं की । यह दुर्भाग्य है हमारा ।

छत्तीसगढ़ में नागरिक सम्पर्क केन्द्र

  छत्तीसगढ़ शासन के प्रस्ताव पर भारत सरकार द्वारा   छत्तीसगढ़  में नागरिकों की सुविधा के लिए ' नागरिक सम्पर्क केन्द्र' परियोजना को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। इसके तहत नागरिकों की समस्याओं के निराकरण के लिए कॉल सेंटर स्थापित किया जाएगा। यह कॉल सेन्टर हिन्दी में कार्य करेगा। इसमें सम्पर्क के लिए टोल फ्री नम्बर होंगे।

  छत्तीसगढ़ इंन्फोटेक एंड बायोटेक प्रमोशन सोसायटी (चिप्स) के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि कॉल सेंटर में तीन तरह की सेवाएं प्रदान की जाएगी। इसमें आपातकालीन सेवाएं, जिसमें एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड, पुलिस सहायता आदि सेवाएं उपलब्ध होगी। नागरिक सेवाओं में विभिन्न विभागों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं तथा तीसरे तरह की सेवाओं में नागरिक अपनी शिकायत और समस्याएं काल सेंटर में दर्ज करा सकेंगे। चिप्स द्वारा इस संबंध में राज्य शासन के सभी विभाग प्रमुखों को पत्र जारी कर विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली नागरिक सेवाओं की जानकारी मांगी गई है।

जुलाई 21, 2010

अब कानून बचाएगा बच्चों को मारपीट से


स्कूल में     बच्चों  को शिक्षक नहीं पीट सकेंगे। शिक्षक ही नहीं अब माता पिता भी बच्चों की पिटाई नहीं कर सकेंगे। पड़ोसी और रिश्तेदार भी बच्चों पर बल प्रयोग नहीं कर सकेंगे। यदि ऐसा कोई करेगा तो जेल की हवा खाएगा और जुर्माना भी देना पड़ेगा। हर स्कूल में ऐसी व्यवस्था भी की जाएगी जहां बच्चे अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे। मतलब साफ है कि अब बच्चे चहुंओर से पूरी तरह से सुरक्षित रहें ऐसी व्यवस्था की जा रही है। केन्द्र सरकार प्रिवेंशन ऑफ ऑफेंसेस अगेंस्ट चाईल्ड 2009 बिल को अंतिम रूप देने में जुटी है। जल्दी ही इसे कैबिनेट में चर्चा के बाद मंजूरी के लिए संसद में पेश किया जाएगा। बिल पास हो गया तो कोई भी बच्चा अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के लिए अपने शिक्षकों और माँ-बाप को भी कोर्ट में घसीटने का अधिकार हासिल कर लेगा। इसमें सजा देने के लिए , की जाने वाली मार पीट को हिंसा की श्रेणी में डालने का प्रावधान है। सजा देने वालों की इस लिस्ट में माँ-बाप, भाई-बहन, रिश्तेदार, पड़ोसी, स्कूल, देखभाल करने वाले संस्थान और जेल सभी शामिल हैं।
बच्चों को सजा देने पर मिलने वाली सजा काफी सख्त है। पहली बार दोषी पाए जाने पर 5000 रुपए का जुर्माना और एक साल तक की कैद होगी। अगर दूसरी बार दोषी साबित हुए तो जुर्माना 25000 तक जा सकता है। अब सभी को बच्चों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना पड़ेगा। कानूनी बाध्यता के बावजूद इस मामले में बच्चे कितने सुरक्षित होंगे, यह तो कानून लागू होने के बाद ही पता चलेगा लेकिन एक बात तो स्पष्ट दिखायी देती हैं कि सरकार की मंशा स्पष्ट है और स्वागत योग्य है।हिंसा का दुष्प्रभाव   बच्चों  के मन पर गहरा उतरता है,फ़िर वह जीवन भर उसका पीछा नहीं छोड़ता। स्कूल जाने से कतराने के पीछे भी     बच्चों  के मन में जो शिक्षक और माता पिता की मार का भय होता है, वह असली कारण होता है। यह मारपीट वह कारण है जो     बच्चों  को स्कूल के प्रति निरुत्साहित करता है । मनुष्य के जीवन में सबसे कोमल और अच्छा समय बचपन का होता है। जिसे हम अनजाने में या फ़िर जानबूझकर दमित करते हैं । देखा यह भी गया कि आधुनिक शिक्षक वर्ग अपना फ़्रस्टेशन स्कूल में बच्चों कि बेरहमी से पिटाई कर उतारते रहे हैं । घर-परिवार का तनाव , तमाम अन्य बातों  की असफ़लताओं  से उपजी खीझ की     बच्चों  की पिटाई कर उतारने का अनजाने में ही प्रयास करते हैं । कमोवेश यही हाल कई अभिभावकों का भी देखा गया है ,  अब शायद सुधर जायें ,कानूनी कार्यवाही के डर से । डर तो यह भी रहेगा कि बदमाश बच्चे कहीं इस कानून का भयादोहन न करने लगें । दुधारी तलवार जैसा न हो  तो ही अच्छा होगा । अब     बच्चों  के मर्म को न समझने वालों की जरूर खैर नहीं है ।

डॉक्टर के नेतृत्व में ऑपरेशन शिवनाथ की शुरूआत

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने हेलीकाप्टर से शिवनाथ नदी का हवाई सर्वेक्षण किया। उन्होंने राजधानी रायपुर से रवाना होकर सर्वेक्षण के प्रथम चरण की शुरूआत राजनांदगांव जिले में मोंगरा जलाशय से की और रायपुर जिले के सिमगा से आगे नांदघाट तक नदी के हालात का जायजा लिया। डॉ. सिंह ने मोंगरा ने नांदघाट तक, दो घंटे तक पांच सौ फीट से भी नीचे उड़ान भरते हुए नदी की लगभग ढाई सौ किलोमीटर की सर्पाकार पट्टी का अवलोकन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि शिवनाथ नदी के संरक्षण के लिए विशेष कार्ययोजना तैयार करना उनके आज के इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य है। मुख्यमंत्री के साथ हवाई सर्वेक्षण में प्रमुख सचिव आवास एवं पर्यावरण एन.बैजेन्द्र कुमार, जल संसाधन विभाग के सचिव सी.के.खेतान और ऊर्जा विभाग के सचिव अमन कुमार सिंह भी थे। शिवनाथ नदी छत्तीसगढ़ की प्रमुख जीवन रेखा महानदी की सहायक है। राजनांदगांव जिले के अम्बागढ़ चौकी विकासखंड के ग्राम कोड़गुल से निकलकर शिवनाथ रायपुर जिले में धरसींवा के पास सोमनाथ में खारून नदी से मिलती है और वहां से सिमगा, नांदघाट होते हुए बिलासपुर तथा जांजगीर-चाम्पा जिले का सफरकरते हुए शिवरीनारायण में महानदी और जोंक नदी के साथ संगम में समाहित हो जाती है। शिवनाथ की कुल लम्बाई लगभग 364 किलोमीटर है। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि वे सर्वेक्षण के दूसरे चरण में निकट भविष्य में नांदघाट से आगे शिवरीनारायण तक हेलीकॉप्टर से इस नदी का अवलोकन करेंगे, जहां महानदी और जोंक नदी के साथ शिवनाथ का त्रिवेणी संगम बनता है। डॉ. सिंह ने कहा कि शिवनाथ न केवल राजनांदगांव जिले की बल्कि छत्तीसगढ़ के एक बहुत बड़े अंचल की भी प्राकृतिक जीवन रेखा है। इसमें जहां कहीं भी गहरीकरण और साफ-सफाई की जरूरत होगी, वह सबके सहयोग से किया जाएगा। इसके अलावा नदी के दोनों किनारों पर कटाव रोकने के लिए वृक्षारोपण करते हुए बाढ़ नियंत्रण की योजना भी क्रियान्वित की जाएगी। नदी में जहां कहीं भी लघु सिंचाई योजना के रूप में स्टाप डेम, एनीकट आदि की जरूरत होगी, उनके निर्माण के लिए भी प्रस्ताव तैयार किए जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि शिवनाथ के साथ-साथ प्रदेश में अन्य नदी-नालों के संरक्षण के लिए भी राज्य शासन द्वारा कदम उठाए जा रहे हैं। बिलासपुर जिले में अरपा नदी के लिए विशेष प्राधिकरण गठित किया जा चुका है। बहुत जल्द इस प्राधिकरण के जरिए अरपा के संरक्षण और विकास के लिए भी कार्ययोजना तैयार कर उस पर अमल किया जाएगा। कबीरधाम जिले में सकरी नदी को बचाने के लिए भी कार्य योजना तैयार की जा रही है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद यह पहला अवसर है, जब इस नये प्रदेश में नदी-नालों और तालाबों को बचाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में सामूहिक श्रमदान और जनसहयोग से एक विशेष अभियान इस वर्ष गर्मियों में शुरू किया गया है।

डी.टी.एच. अब मनोरंजन कर के दायरे में

छत्तीसगढ़ में डायरेक्ट-टू-होम (डी.टी.एच.) अब  मनोरंजन कर के दायरे मेंआ गया है। वाणिज्यिक कर (आबकारी) विभाग द्वारा पिछले जून माह में छत्तीसगढ़ मनोरंजन शुल्क एवं विज्ञापन कर संशोधन अधिनियम की आ गया है। वाणिज्यिक कर (आबकारी) विभाग द्वारा पिछले जून माह में छत्तीसगढ़ मनोरंजनशुल्क एवं विज्ञापन कर संशोधन अधिनियम की अधिसूचना जारी कर दी गई है। अधिसूचना जारी होने के दिनांक से यह संशोधन अधिनियम छत्तीसगढ़ में प्रभावशील हो गया है। वाणज्यिक कर (आबकारी) विभाग के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि इसके तहत डी.टी.एच. की सेवाएं देने वालों को अब केबल आपरेटरों की तरह  मनोरंजनशुल्क का भुगतान करना होगा। इस अधिनियम के तहत दस हजार तक आबादी वाले शहरों को शुल्क से छूट दी गई है। दस हजार से पचास हजार तक आबादी वाले शहरों के डी.टी.एच. उपभोक्ताओं को प्रति कनेक्शन दस रूपए और पचास हजार से अधिक आबादी वाले शहरों के उपभोक्ताओं को बीस रूपए प्रति कनेक्शन हर महीने शुल्क देना होगा। शुल्क डी.टी.एच. उपकरणों की बिक्री करने वाले डीलर से वसूला जाएगा।

जुलाई 20, 2010

तुम याद बहुत आते हो …

याद बहुत आते हैं आप स्वर्गीय प्रमोद महाजन जी , आपने ही इस देश के लिए "इंडिया शाईन" और "फ़ील गुड़" का  स्वप्न जो देखा था । आज आप होते तो हम आपको  इंडिया का तो नहीं लेकिन हाँ अपने प्रदेश छत्तीसगढ़ का हाल जरूर बताते । हमारे यहाँ जरूर शायनिंग आई है - फ़ील गुड है आपकी पार्टी में । आलम यह है कि हमारे यहां  सब के सब मस्त हैं , शाईन 
करने लगे हैं सभी के चेहरे , जो सायकलों से चलते थे वे भी इस आर्थिक मन्दी के दौर में मंहगी कारों में चलने लगे हैं । करोड़ नहीं,अरबों के मालिक हैं ऐसे लोग जिन्हें कल तक यह भी पता नहीं होता था कि कितने शून्य लगते ऐसी जमा पूंजियों में ।  क्या मंत्री और क्या अधिकारी सभी जगह है फ़ील गुड की बयार। एक चाय की गुमटी में खड़े कुछ निट्ठले लोग चर्चा 
कर रहे थे - यार देखो नये - नये अखबार वाले तो सरकार के खिलाफ़ खुल कर लिख रहे हैं । क्या इन्हें जरा भी डर - भय  नहीं है ? और ये मन्त्री अखबारों में छपी खबरो से भी नहीं घबरा रहें है। अधिकारी भी मानों निर्लज्ज हो गये हैं । क्या हो रहा है यह सब ? गाड़ी खड़ी करते - करते हमने भी इतना तो सुन लिया था। इन लोगों से परिचय तो था नहीं वरना इन्हें बताते कि भाईयों किस दुनियाँ में हो , तुम्हारे ये नेता और अधिकारी , तुम्हारा छत्तीसगढ़िया अखबार नहीं पढ़ते , पढ़ना भी हो तो दिल्ली - मुम्बई के चेन्नई के भोपाल के उन अखबारों को पढ़ते हैं जिनमें उनकी जय छपी होती है , प्रदेश की उन्नति की तेज रफ़्तार छपी होती है , यहां के बेशुमार विज्ञापन छपे होते हैं । यहां एक्का - दुक्का अखबारों को छोड़ कर भला और कौन उनके जैसा स्तुति गान कर सकता है ? इसीलिए यहाँ के भी उन्हीं अखबारों को पढ़ा जाता हो फ़ील गुड को समझते हों - जीना जानते हों । बाकि तो मानों भौं… हैं । फ़िर इतने अखबार हैं कि यदि उनमें से कुछ एक को भी पढ़ें तो दिमाग खराब होगानेताओं-साहबों का । सब कुछ तो छाप देते हैं ये छोटे अखबार वाले । अब अपना दिमाग खराब करें या फ़िर रोज मर्रा के फ़ील गुड के कार्यक्रमों  में लगें, जिसकी बदौलत रोज शाम तक साहबों सहित उनके परिजनों के चेहरे पर शायनिंग आती हैं । तो ये तो रिश्ता है हमारे यहाँ अखबारों और नेताओं-अधिकारियों का । अब रही बात प्रदेश के उन अखबारों का जिन्होने सरकार के खिलाफ़ छापना बन्द नहीं किया है । अब इनका भी ईलाज किया जा रहा है । ऐसे सभी अखबार अब बन्द कराने की मुहिम एक वरिष्ट अधिकारी को सौंपी गई है जो अपना काम कर रहे हैं । ये हाल है राज्य में प्रजातंत्र के चौथे खम्भे का । लुटेरों की बड़ी बस्ती है भला यहाँ ये चंद छोटे - छोटे प्रजातंत्र के रखवाले क्या और कैसे कर पायेंगे ? गर साथ ही रहने का शौक है तो  आओ लूटना सीखना होगा ,इन्हें भी  । लुटेरे नहीं तो कम से कम चोर बन कर तो दिखाना पड़ेगा । तब तो साथ रहने लायक बन पायेंगे , वरना मारे जायेंगे , लुटेरों की बस्ती में । नयी बस्ती है अभी जोश ज्यादा है । आप होते तो शायद इस आभा को 
समझ पाते , जनता को बचाने ,दुबारा सरकार को लाने का रास्ता बने ऐसा कोई उपाए जरूर बताते ,लेकिन यह तो शायद ऊपर वाले को भी मंजूर नहीं था ।            

ये क्या हुआ … ?


ये क्या हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? कब हुआ ?
जी हाँ किसी के समझ ना सका है , आज तलक । यहाँ तक की मनमोहन सिंह भी नहीं समझ पाये हैं । दरअसल हमें एक परिचित ने समझाने का प्रयास किया - " क्या प्रेस वाले हो यार ? देश  दुनियाँ  की तुम्हें कुछ  खबर  भी है या नहीं ?   हमनें उनकी नाराजगी शांत होने के बाद पूछने की हिम्मत की , कि भला अब आप बता भी दीजिये कि कहना क्या चाहते थे आप ? उन्होनें कहा - कुछ जानते भी हो  , क्या हो रह है  ? मेरे घर का वही किराना जो मैं आज से दो - ढ़ाई बरस पहले तक  मात्र हजार - बारह सौ रुपयों में ले आया करता था  , आज उतना ही बल्कि उससे भी कुछ कम ही बत्तीस सौ रुपये में ले कर आया हूँ । समझे कुछ की नहीं ?  मैने कहा हाँ मंहगाई बहुत बढ़ गई है  । वो सज्जन तुरंत बोल पड़े तो कुछ करो यार , तुम पेपर वाले रोज क्यों नहीं लिखते । रोज ही तो बढ़ रही है न ये मंहगाई । बिक गये हो क्या तुम भी  मंहगे दाम में ? कुछ तो करो यार । जीना दूभर हुआ जा रहा है हम आम लोगों का । हाँ तुम तो डॉ. रमन सिंह से मिलते होगे उसको क्यों नहीं बोलते कि आम मिडिल क्लास लोगों की हालत बहुत खराब है । शायद किसी की बात उसको समझ आ जाये । " हम पूरे समय हाँ-हाँ करते रहें । हमें तो यह अच्छी तरह मालूम है न कि कौन किसकी - कितनी सुनेगा ।  सोचा ब्लॉग में तो लिख ही सकते हैं ,सो लिख मारा ।

जुलाई 19, 2010

2000 करोड़ का बढ़िया जुगाड़ सरगुजा और बस्तर के नाम

पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री और सरगुजा जिले के प्रभारी रामविचार नेताम की अध्यक्षता में आज जिला मुख्यालय अम्बिकापुर के कलेक्टोरेट में जिला योजना समिति की बैठक आयोजित की गई। बैठक में सरगुजा जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यो के लिए 1107.93 करोड़ रूपए की एकीकृत कार्ययोजना का अनुमोदन किया गया. बैठक में सरगुजा जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यो के लिए 1107.93 करोड़ रूपए की एकीकृत कार्ययोजना का अनुमोदन किया गया। यह कार्ययोजना तीन साल के लिए बनाई गई है. यह कार्ययोजना तीन साल के लिए बनाई गई है। कार्ययोजना में सड़क निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा, क्षमता विकास, आजिविका के साधन, अधोसंरचना विकास और खेलकूद के क्षेत्र में एक लाख 78 हजार 410 कार्य शामिल किए गए है. कार्ययोजना में सड़क निर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा, क्षमता विकास, आजिविका के साधन, अधोसंरचना विकास और खेलकूद के क्षेत्र में एक लाख 78 हजार 410 कार्य शामिल किए गए है। बैठक में संसदीय सचिव श्री सिध्दनाथ पैकरा, केन्द्रीय योजना आयोग के निदेशक डॉ. बैठक में संसदीय सचिव  सिध्दनाथ पैकरा, केन्द्रीय योजना आयोग के निदेशक डॉ. ए.के. ए.के. पण्डा, प्रभारी कलेक्टर    धनंजय देवांगन, पुलिस अधीक्षक सरगुजा  एन.के. ठाकुर उपस्थित थे. पण्डा, प्रभारी कलेक्टर  धनंजय देवांगन, पुलिस अधीक्षक सरगुजा  एन.के.ठाकुर उपस्थित थे।
जिले के प्रभारी मंत्री श्री नेताम ने कहा कि बैठक में जिले के सर्वागीण विकास के लिए अनुमोदित कार्य योजना के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्राथमिकता से कार्य स्वीकृत किए जाएंगे. जिले के प्रभारी मंत्री श्री नेताम ने कहा कि बैठक में जिले के सर्वागीण विकास के लिए अनुमोदित कार्य योजना के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्राथमिकता से कार्य स्वीकृत किए जाएंगे। इन कार्यो के माध्यम से इन क्षेत्रों का तीव्रगति से विकास होगा. इन कार्यो के माध्यम से इन क्षेत्रों का तीव्रगति से विकास होगा। उन्होंने बताया कि जिले में आवागमन की सुविधा के लिए प्रभावित क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़को का विस्तार किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि जिले में आवागमन की सुविधा के लिए प्रभावित क्षेत्रों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़को का विस्तार किया जा रहा है। योजना आयोग के निदेशक डॉ. योजना आयोग के निदेशक डॉ. पण्डा ने बताया कि देश में नक्सल प्रभावित 33 जिलों में छत्तीसगढ़ के सात जिले शामिल है. पण्डा ने बताया कि देश में नक्सल प्रभावित 33 जिलों में छत्तीसगढ़ के सात जिले शामिल है। सरगुजा जिले में 11 क्षेत्र नक्सल प्रभावित है. सरगुजा जिले में 11 क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। उन्होंने अधिकारियों को अनुमोदित कार्ययोजना के अनुसार कार्य कराने के निर्देश दिए. उन्होंने अधिकारियों को अनुमोदित कार्ययोजना के अनुसार कार्य कराने के निर्देश दिए। डॉ. डॉ. पण्डा ने कहा कि बच्चे अच्छा पढ़े और उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहे, तो प्रदेश की प्रगति को कोई रोक नहीं पायेगा. पण्डा ने कहा कि बच्चे अच्छा पढ़े और उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहे, तो प्रदेश की प्रगति को कोई रोक नहीं पायेगा। उन्होंने राज्य में विकास कार्यो की प्रशंसा करते हुए कहा कि दूसरे प्रदेशों की तुलना में छत्तीसगढ़ में अच्छा कार्य हो रहा है. उन्होंने राज्य में विकास कार्यो की प्रशंसा करते हुए कहा कि दूसरे प्रदेशों की तुलना में छत्तीसगढ़ में अच्छा कार्य हो रहा है।
बैठक में अधिकारियों ने एकीकृत कार्ययोजना के जानकारी देते हुए बताया कि जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 120 सड़कों के विस्तार के लिए 304.51 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है. बैठक में अधिकारियों ने एकीकृत कार्ययोजना के जानकारी देते हुए बताया कि जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 120 सड़कों के विस्तार के लिए 304.51 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। के क्षेत्र में 9 हजार 9 कार्यो के लिए 93.60 करोड़ रूपए, शिक्षा के क्षेत्र में आठ 105 कार्यो के लिए 211.68 करोड़ रूपए, क्षमता विकास के क्षेत्र 15 हजार 12 कार्यो के लिए 12.69 करोड़ रूपए, आजीविका के क्षेत्र में एक 40 लाख में हजार स्वास्थ्य हजार 423 कार्यो के लिए व्यापार में 96.21 करोड़ रूपए, अधोसंरचना के क्षेत्र में चार 168 कार्यो के लिए 348.25 करोड़ रूपए और खेलकूद के क्षेत्र में हजार 8.55 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में 9 हजार 9 कार्यो के लिए 93.60 करोड़ रूपए, शिक्षा के क्षेत्र में आठ हजार 105 कार्यो के लिए 211.68 करोड़ रूपए, क्षमता विकास के क्षेत्र में 15 हजार 12 कार्यो के लिए 12.69 करोड़ रूपए, आजीविका के क्षेत्र में एक लाख 40 हजार 423 कार्यो के लिए 96.21 करोड़ रूपए, अधोसंरचना के क्षेत्र में चार हजार 168 कार्यो के लिए 348.25 करोड़ रूपए और खेलकूद के क्षेत्र में 8.55 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष सरगुजा श्रीमती पुष्पा नेताम, उपाध्यक्ष  ओम प्रकाश जायसवाल, विधायक  टी.एस. सिंहदेव, डॉ प्रेमसाय. सिंह, योजना समिति के सदस्यों सहित संबंधित विभागों के अधिकारी उपस्थित थे. बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष सरगुजा श्रीमती पुष्पा नेताम, उपाध्यक्ष  ओम प्रकाश जायसवाल, विधायक  टी.एस.सिंहदेव, डॉ.प्रेमसाय सिंह, योजना समिति के सदस्यों सहित संबंधित विभागों के अधिकारी उपस्थित थे।

खबर है उग्रवाद प्रभावित बस्तर को 871 करोड़ की योजना


 खबरहै कि छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद से पीड़ित बस्तर (जगदलपुर) जिले में आम जनता के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए 871 करोड़ रूपए की विशेष कार्य योजना का अनुमोदन जिला योजना समिति ने कर दिया है। समिति की बैठक में यह विशेष एकीकृत कार्य योजना जनप्रतिनिधियों से विचार-विमर्श के बाद अगले तीन वर्ष के लिए अनुमोदित की गयी है। इसके अन्तर्गत चालू वित्तीय वर्ष 2010-11 से वर्ष 2012-13 तक यह राशि विभिन्न प्रकार के एक लाख 08 हजार विकास और निर्माण कार्यों पर खर्च की जाएगी।
    अनुमोदित कार्य योजना में कृषि और उसके सहभागी क्षेत्रों सहित सिंचाई, सड़क, पेयजल, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास, रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कौशल उन्न्यन और महिला एवं बाल विकास तथा समाज कल्याण गतिविधियों को शामिल किया गया है। आदिम जाति और अनुसूचित जाति विकास मंत्री तथा बस्तर जिले के प्रभारी श्री केदार कश्यप की अध्यक्षता में कल जिला मुख्यालय जगदलपुर के कलेक्टोरेट में आयोजित जिला योजना समिति की बैठक में इस कार्य योजना का अनुमोदन किया गया। प्रभारी मंत्री ने बैठक में उपस्थित समिति के सदस्यों से आग्रह किया कि वे अपने और भी कोई प्रस्ताव यदि कार्य योजना में शामिल करना चाहें तो अगले दो-तीन दिनों के भीतर अवश्य भिजवा दें। उन्हें भी इसमें शामिल कर लिया जाएगा। अनुमोदित विशेष कार्य योजना के अनुसार जिले के वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में कृषि और उससे जुड़ी विभिन्न प्रकार की लगभग 82 हजार गतिविधियों के लिए करीब 138 करोड़ रूपए, सड़क निर्माण के 445 कार्यों के लिए 290 करोड़ 62 लाख रूपए, स्वास्थ्य सुविधाओं से संबंधी एक हजार 510 कार्यों के लिए 31 करोड़ 32 लाख रूपए, शिक्षा सुविधाओं से संबंधित तीन हजार 175 कार्यों के लिए 34 करोड़ 99 लाख रूपए, बिजली व्यवस्था के लिए 47 करोड़ 81 लाख रूपए, कौशल उन्न्यन के अन्तर्गत रोजगारमूलक प्रशिक्षण आदि से संबंधित 691 कार्यों के लिए 34 करोड़ रूपए, सिंचाई से संबंधित 812 कार्यों के लिए लगभग 150 करोड़ रूपए तथा महिला और बाल विकास तथा समाज कल्याण से संबंधित आठ हजार कार्यों के लिए चार करोड़ 68 लाख रूपए के प्रस्ताव शामिल किए गए हैं। इसके अलावा सरकारी भवनों और कर्मचारी आवास गृहों के निर्माण से संबंधित चार हजार 744 कार्यों के लिए करीब 114 करोड़ रूपए और कुछ अन्य महत्वपूर्ण 126 कार्यों के लिए 11 करोड़ 09 लाख रूपए के प्रस्तावों को भी उसमें शामिल कर लिया गया है। इस  खबर से आप सब भी हतप्रभ होंगे ।
    बैठक में महिला एवं बाल विकास और समाज कल्याण मंत्री सुश्री लता उसेंडी, बस्तर एवं दक्षिण क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री बैदूराम कश्यप, जिले के विधायकगण सर्वश्री संतोष बाफना, सेवक राम नेताम और डॉ.सुभाऊ कश्यप, जिला पंचायत अध्यक्ष श्री लच्छूराम कश्यप, उपाध्यक्ष श्री तरूण चोपड़ा, नगर निगम जगदलपुर के महापौर श्री किरण देव तथा जिले के कलेक्टर पुलिस अधीक्षक और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी सहित विभिन्न विभागों के जिला स्तरीय अधिकारी उपस्थित थे।  देखना यह होगा कि  इन कार्य योजनाओं का वास्तविक लाभ किसे मिल पाता है । बस्तर के आदिवासी या फ़िर हमेशा की ही तरह उनके नाम पर … जय छत्तीसगढ़

जुलाई 17, 2010

सचमुच सुरसा का मुंह ही है " मंहगाई "



हाय !     मंहगाई.. मंहगाई...     मंहगाई .... तू कहाँ से आई ? तुझे क्यों शर्म आई ..शायद आज से    26   साल पहले  तब भी बेतहासा यह " मंहगाई" बढ़ी होगी , तभी  तो 1974 में बनी फ़िल्म रोटी कपड़ा और मकान में पुरजोर कोशिश कर "मंहगाई" को चित्रण के माध्यम से प्रदर्शित किया गया । मगर कहीं भी , किसी को भी रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ा । मैं तो कहता हूं यदि कहीं  हद है बेशर्मी की , तो वह यहीं है, यहीं है और यहीं है । यहां मैं इस लेख के माध्यम से यह कहना चाहता हूं की सब कुछ उन पर ही निर्भर करता है जो हमारे ही बीच से निकल कर नेता और अधिकारियों की श्रेणी में आते हैं, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने यह कर के मानो दिखा ही नहीं दिया बल्कि मेरी सोच को सच साबित किया है । मेरा मानना है राजनीतिज्ञों में दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी , बढ़ती लालच और अधिकारियों में आई स्वेच्छाचारिता का , स्वच्छंदता का नतीजा है , मौजूदा लापरवाह - उत्श्रृंखल शासन - प्रशासन । इन सभी की लालच ने निरंतर पाला-पोसा है मंहगाई को । गरीबी हटाने की बात करने वालों ने गरीबी को नहीं ,गरीबों को हटा कर भरीं हैं अपनी-अपनी जेबें । दुर्भाग्य ही कहिये इस देश का , की रोकने वाला एक ना मिला , जो रोकने आगे बढ़ा वो भी जाकर उसी भीड़ का हिस्सा बन बैठा , वो भी लाल हो गया ।नेता आज जमीनों की सरेआम दलाली करते नहीं शर्माते हैं । क्या ऐसे होती है जनसेवा ?  बड़े कहे जाने वाले लोग ने शक्कर का जंगी स्टाक करके ,दालों का स्टॉक करके , तेलों का स्टॉक करके, और ना जाने किन-किन जिन्सों का स्टॉक करके बढ़ाई है मंहगाई और बकायदा सत्ताधीश बन कर किया है यह काम , कितना बड़ा दुर्भाग्य है इस देश की जनता का कि हर जगह जहां कहीं भी उसने रक्षक ढ़ूंढ़ा उसे भक्षक ही मिलते गये ।दिल्ली में वैट कम करके डीजल के दाम घटा कर     मंहगाई  पर आंशिक ही सही ,पर थोड़ा बहुत राहत तो पहुंचाई है मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने । ऐसे कदम हमारी राज्य सरकार और अन्य प्रदेशों की राज्य सरकारें क्यों नहीं उठा सकतीं ? डीजल - पैट्रोल के साथ - साथ और भी बहुत सी चीजें हैं जिन पर से वैट कम या फ़िर खतम किया जा सकता है । क्या ऐसा करना जनहितकारी कदम नहीं होगा ? मगर मानों हमारे नेता डरते हैं अपने व्यापारी मित्रों से, डरते है उन अधिकारियों से जो उन्हें उंगली पकड़ चलना सिखाते हैं । रंक से राजा बनाते हैं । कैसे भला होगा आम आदमी का जो इस समय बुरी कदर पिस रहा है ,इन अल्पबुद्धी नेताओं के फ़ैसलों तले । आय कर विभाग का छापा इन बातों की पुष्टि कुछ ऐसे करता है कि रायपुर शहर की सड़कों में सायकल से घूम-घूम कर डबल रोटी बेचने वाला आदमी करोड़ों रुपयों की आय कर की चोरी में पकड़ा जाता है । प्रेस में ही खाने-सोने का जुगाड़ खोजने वाला व्यक्ति साड़े तीन - चार सालों में 15 से 20 लाख की कार में घूमता है ,और अपने चहेतों को यह बताते नहीं थकता है कि उसने केवल 75 से 100 करोड़ ही कमाए हैं । अब जबकि दोबारा मौका मिला है चार गुना कर लेगा । तीन मंत्री तो ऐसे हैं जिनके पास कितना है मानो कोई हिसाब ही नहीं है । क्या ऐसे ही होते हैं जनसेवक ? जिनको अपने से ही फ़ुर्सत नहीं , उनसे  भला आप जनता के भले की क्या उम्मीद करेंगे ? और किस बिना पर करेंगे ?     मंहगाई  बढ़ती है तो बढ़े ,उन्हें या फ़िर उनके बच्चों को कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है । अब तो उनकी दसों पीढ़ियाँ  ,केवल जमाधन के ब्याज से घर बैठ कर ठात से खा सकतीं हैं । मरो आप ।

जुलाई 15, 2010

माँ की गोद में ही 48 साल ली गहरी नींद

भारत माता का एक सच्चा सपूत   माँ की गोद में ही 48 साल की गहन नींद में सोया रहा  । 48 वर्षों बाद इस   वीर सपूत  को इह लोक से ससम्मान विदाई दी गई ,पैतृक गांव की गोद में सुला कर ।
भारत चीन युद्ध के दौरान करीब 48 साल पहले चीन सीमा पर   शहीद हुये सेना के जवान   वीर करम चन्द कटोच के अन्तिम संस्कार हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिला के पालमपुर के पास उसके पैतृक गांव अगोजर में किया आज 15 जुलाई 2010 की सुबह पूरे सैनिक सम्मान कि साथ किया गया । भारत माता के इस   वीर सपूत  को हमारा कोटि-कोटि नमन। एक जुलाई, 2010 को वलोंग के समीप भारी भूस्खलन होने पर बीआरटीएफ के जवानों द्वारा जब सड़क पर से मलवा हटाया जा रहा था, उस समय अचानक शहीद के पहचान स्वरूप सेना की डिस्क तथा चांदी की अंगूठी मिली, जिसकी जांच करने पर 4-डोगरा रेजिमेंट के जवान   वीर करम चन्द कटोच के रूप में पहचान की गई। इसके उपरान्त इस क्षेत्र में तैनात सिक्ख रेजिमेंट के जबानों द्वारा भूस्खलन का जोखिम उठाते हुए 5 जुलाई, 2010 को शहीद करम चन्द के शव को बाहर निकाला गया,यह शव पिछ्ले 48 वर्षों से वहां बर्फ़ में दबा हुआ था । 48 वर्ष उपरान्त  शहीद  करम चन्द के शव उनके पैतृक गांव अगोजर लाया गया जहां पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। शहीद   वीर करम चन्द  कटोच एक बहादुर सिपाही थे , जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए प्रतिकूल मौसम के वावजूद चीन की सेना के साथ लोहा लेते हुए देश की रक्षा के लिये अपने प्राण न्यौछावर किये थे।   शहीद    वीर करम चन्द की शहादत को कृतज्ञ राष्ट्र कभी नहीं भुला सकेगा। हजारों की संख्या में लोगों ने, विशेषकर महिलाओं ने समाज की रूढ़िवादी परम्परा को दरकिनार करके शहीद  वीर करम चन्द कटोच को आज उनके पैतृक गांव अगोजर के समीप मच्छयाल खड्ड के किनारे अश्रुपूर्ण विदाई दी गई। शहीद का अंतिम संस्कार उनके भतीजे जसवन्त सिंह कटोच द्वारा चिता को मुखाग्नि देकर किया गया । आईये हम सब भी ,  अमर   शहीद  -  भारत माता के इस वीर सपूत को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करें।

एक बार फ़िर डराने आ गया स्वाईन फ़्लू

स्वाईन फ़्लू के नाम से काँपने वाली "दुनियाँ के लोगों सावधान ! फ़िर आ रहा है वही डरावना-जानलेवा वायरस जिसे आप साधारण भाषा में स्वाईन फ़्लू के नाम से जान चुके हैं । पहली दफ़ा भी आपने इसे मीडिया के माध्यम से जाना था ,अब भी आपकी जानकारी का माध्यम वही होगा । एक वायरस ने मानो थर्रा दिया था सारी "दुनियाँ को । छोटा सा वायरस , बड़ा प्रचार ,जिसे सुन - सुन कर काँपने लगा था खास पढ़े लिखों का संसार । देश के हर शहर ,बड़े कस्बों में मानों इस वायरस की खास पहुंच थी । यहां मर रहे थे डरे हुए लोग , मगर सच मानिए गाँवों में इसके खौफ़ से बेखर थे लोग । शहरी लोगों के दिलोदिमाग से इसका भय अभी गया ही था , कि आ गया इसका एक अनोखा रखवाला । अब मीडिया बता रहा है-यदि स्वाईन फ़्लू से एक साल तक बचना हो तो टीका लगवा लो , नया है , इसे लगवाने में दर्द नहीं होगा । कोई इंजेक्शन नहीं लगेगा । कोई सुई नहीं चुभोई जायेगी । बस एक पाउडर है जिसे सीरिंज में धोल कर भरा जायेगा और आपकी नाक में सुंघाया जायेगा । बस फ़िर नहीं आ पायेगा आपके पास स्वाईन फ़्लू का वायरस ,कहो कैसी रही ? प्रति व्यक्ति ड़ेढ़ से दो सौ रुपये का ही तो मामुली सा खर्च है, और फ़िर आपकी बेशकीमती जान के सामने ये कोई बड़ा खर्च थोड़े न है ? अरे साहब जान है तो जहान है । रुपया-पैसा क्या है हाँथ की मैल ही तो है । आप रहेंगे तो आतारहेगा यह सब । आईये जिस डर को आप भूल कर अच्छे से जी रहे थे , उसे एक बार फ़िर याद करें , डरें । डर-डर कर जियें । तभी तो बिकते रहेंगे नये - नये टीके ,नई-नई दवाईयाँ । तैयार रहिये , कभी भी जोर पकड़ सकता है इस नये टीके का मीडिया बाज़ार ।

रुपया अब ऐसा लिखा जायेगा , मिल गया नया चिन्ह

भारतीय रुपये को अब सारा संसार इस सिम्बल, चिन्ह से जान और लिख सकेगा ।मुम्बई आई आई टी के डी उदय कुमार की डिजाइन इस प्रतीक के लिये चुनी गई । भारत सरकार उन्हें इसके लिए ढ़ाई लाख रुपयों का ईनाम देगा और हम सब  भारतीय उन्हें बधाई तो  देंगे ही साथ ही   इस विशिष्ट कार्य के लिए युगों तक याद रखेंगे । बधाई डी उदय कुमार जी । अभी तक रुपए को आरएस (Rs) या आरई (Re) या आईएनआर (INR) लिखकर दर्शाया जाता रहा है । पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका में भी रुपए के लिए इन्हीं अक्षरों का इस्तेमाल होता है । भारतीय वित्त मंत्रालय एक ऐसा चिन्ह चाहती थी जिसमें भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यों की झलक हो और उन्होंने आम जनता से अप्रैल में इसके लिए सुझाव मांगा था। अंतिम फ़ैसले के लिए पाँच चिन्हों को चुना गया था , जिसमें से अपनी विशिष्ट पहचान के लिये डी उदय के द्वारा बनाये गये  सिम्बल को फ़ाईनल किया गया । इसकी खासियत यह है कि यह हमारी  भारतीय संस्कृति से मेल खाता है , देवनागरी और रोमन दोनों ही लिपियों का संगम है ।यूरो करेंसी की ही तरह इस सिम्बल के बीच में एक आडी लाईन भी है । अब जल्दी यह डिजाईन विश्व भर में कम्प्यूटर पर भी एप्लीकेबल हो जायेगा । कैबिनेट ने भी आज इस  रुपये के इस नए प्रतीक, पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी है । इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया डी उदय कुमार का नाम , बधाईयाँ ।

नक्सली समस्या : सनद रहे ताकि वक्त पर काम आये


छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने एक बार फिर कहा है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए  नक्ससली समस्या से आर-पार की लड़ाई अनिवार्य हो गयी है। डॉ.  रमन सिंह ने कहा कि जब तक नक्सलवादी बन्दूक छोड़ कर भारतीय संविधान पर आस्था नहीं जताते और लोकतांत्रिक तौर-तरीकों को नहीं अपनाते, तब तक उनसे बातचीत निरर्थक ही रहेगी। डॉ. रमन सिंह ने आज नई दिल्ली में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित  देश के नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की विशेष बैठक में यह भी दोहराया कि नक्सलवाद और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू है। डॉ. रमन सिंह ने बैठक में राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के दो नये जिलों बीजापुर और नारायणपुर तथा तीन नये पुलिस जिलों - बलरामपुर, सूरजपुर और गरियाबंद के लिए प्रत्येक जिले के हिसाब से दो सौ करोड़ रूपए के विशेष पैकेज की भी मांग रखी।

उतर चुका है नक्सलियों का मुखौटा

    मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने कहा कि नक्सलवादियों, उनके सहयोगियों और हमदर्दों की कथनी और करनी को जनता के समाने लाने का जो सिलसिला छत्तीसगढ़ में छह साल पहले शुरू हुआ था, उसके कारण अब नक्सलियों का मुखौटा पूरी तरह उतर चुका है। उनकी हिंसक गतिविधियों से यह स्पष्ट हो गया है कि  नक्ससली समस्या द्वारा आम आदमी के हित में बातें करना एक छलावा है। हकीकत यह है कि उनके द्वारा आम आदमी ही मारा जा रहा है। विकास की हर इकाई को ध्वस्त किया जा रहा है। इसलिए हमने नक्सलियों सख्ती से निपटने की नीति बनायी है। हमने सरकार में आते ही यह मन बना लिया था कि उनसे आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। देश को, उसके संवैधानिक ढांचे को, लोकतंत्र को और लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने के लिए यह अनिवार्य है। डॉ. रमन सिंह ने यह भी कहा कि अब देश को इस दुविधा से उबरना होगा कि यह किसी राज्य विशेष अंदरूनी मामला है। प्रधानमंत्री ने भी इसे देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है और हमने भी इससे निबटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित रणनीति की जरूरत बतायी है।

नक्सल हमदर्दों के दुष्प्रचार का जोरदार खण्डन

    मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने प्रधानमंत्री की बैठक में अपनी बात रखते हुए नक्सलियों और उनके हमदर्द कुछ बुद्धिजीवियों के इस दुष्प्रचार का जोरदार शब्दों में खण्डन किया कि बस्तर में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और निजी उद्योगपतियों को मूल्यवान खनिजों से भरी जमीनें दी जाती है। डॉ. रमन सिंह ने बैठक में कहा कि वस्तु स्थिति यह है कि पिछले 50 साल में कोई भी बहुराष्ट्रीय कम्पनी एक किलो लौह अयस्क भी नहीं ले गयी है। लगभग 40 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले बस्तर अंचल में सिर्फ एक प्रतिशत जमीन खनिजों के उत्खनन और प्राॅसपेक्टिंग के लिए दी गयी है, वह भी सिर्फ राष्ट्रीय खनिज विकास निगम, भारतीय इस्पात प्राधिकरण और छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम जैसे सार्वजनिक उपक्रमों को। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि वास्तव में यह दुःख का विषय है कि नक्सलियों की हिंसक और अराजक पृष्ठभूमि के बावजूद आज भी कुछ लोग उनकी मंशा को लेकर भ्रम की स्थिति में है। प्रजातंत्र में आस्था रखने वाले कुछ ऐसे लोगों और संगठनों की व्यक्तिगत राय में भी नक्सलियों के प्रति सहानुभूति का भाव समय-समय पर उजागर होता रहता है। कई बार तो मुझे लगता है कि कुछ प्रभावशाली प्रबुद्ध लोग जाने-अनजाने, राजनीतिक परिपक्वता के अभाव में भी नक्सलियों के हमदर्द बन जाते हैं और दूरगामी परिणामों को नजरअंदाज कर उनके हाथों की कठपुतली बन जाते हैं और उनके दुष्प्रचारों से प्रभावित हो जाते हैं। इस समस्या से लड्ने के लिए पूरे देश को एकजुट होने की जरूरत है।
 मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने कहा कि नक्ससली समस्या से निबटने के लिए छत्तीसगढ़ के साथ पूरे देश को बहुआयामी और बहुस्तरीय प्रयासों के लिए एकजुट होने की जरूरत है। यह एक बहुत बड़ी चुनौती और जिम्मेदारी हम सबके सामने है। मुख्यमंत्री ने नक्सल समस्या के बारे में छत्तीसगढ़ सरकार के नजरिए को स्पष्ट करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ एक नया राज्य है, जिसके संसाधनों की अपनी सीमा है। एक ओर नक्सलियों ने अपनी सारी ताकत छत्तीसगढ़ में झोंक रखी है, वहीं दूसरी ओर हमारा नया राज्य नक्सलवाद के खिलाफ आज सबसे बड़ी लड़ाई लड रहा है। हम यह भली-भांति जानते हैं कि नक्सलियों से लड़ने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। डॉ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है, तो मैं यह स्पष्ट करना चाहता  हूँ कि हम नक्सल समस्या के निदान के लिए हर पहलू पर ध्यान दे रहे हैं। पिछड़े क्षेत्रों में अधोसंरचना विकास, बुनियादी सुविधाओं की पहुंच और सामाजिक-आर्थिक समाधानों के लिए हमने अनेक कदम उठाए हैं, जिसके बारे में हमने लगभग हर मंच-हर अवसर पर आपको को अवगत कराया है। मैं यह बताना चाहता हूं कि हमारे प्रयासों का असर वनांचलों की जनता के विश्वास के रूप में सामने आया है।
सड़क निर्माण का लक्ष्य पूर्ण होने तक बी.आर.ओ. की सेवाएं जरूरी
    मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने बैठक में यह भी कहा कि राज्य के  नक्ससली समस्या में विकास और निर्माण कार्यों के लिए विषम परिस्थितियों में भी काम करने में सक्षम सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ.) की जरूरत हमें अभी भी है। हम चाहेंगे कि जब तक इस क्षेत्र में सड़क निर्माण का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता, तब तक बी.आर.ओ. की सेवाएं हमें मिलती रहे। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि राज्य सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास की समन्वित रणनीति बनायी है। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया कि राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की जनसंख्या लगभग 44 प्रतिशत है, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार अपने वार्षिक बजट का करीब 45 प्रतिशत हिस्सा इन वर्गों के विकास के लिए खर्च कर रही है। इसके अलावा आदिवासी उप योजना क्षेत्रांें में स्थानीय जनता की मांगों और जरूरतों को पूरा करने के लिए दो विशेष प्राधिकरणों का गठन कर उनके माध्यम से बजट के बाहर भी लगभग छह सौ करोड़ रूपए के निर्माण कार्य कराए जा चुके हैं। बस्तर डेव्हलपमेंट ग्रुप का गठन किया गया है, ताकि नक्सली प्रभावित अंचलों की जरूरतों को पूरा करने और विकास कार्य कराने के लिए फैसले संबंधित जिलों में ही ले लिए जाएं और इनसे संबंधित नस्तियों को राजधानी रायपुर तक भेजने की जरूरत न पड़े।

नये जिलों के लिए विशेष पैकेज जरूरी: डॉ. रमन सिंह

   मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने कहा कि राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में अधोसंरचना विकास के कार्यों में तेजी आयी है, प्रशासन को आम जनता के और भी ज्यादा नजदीक लाने के लिए दो नए राजस्व जिलों नारायणपुर और बीजापुर का गठन किया गया है, वहीं तीन नए पुलिस जिले- बलरामपुर, सूरजपुर और गरियाबंद भी गठित किए गए हैं। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से इन जिलों में समुचित बुनियादी संरचनाओं के विकास के लिए प्रत्येक जिले को दो सौ करोड़ रूपए का विशेष पैकेज स्वीकृत करने का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को इस बात के लिए धन्यवाद भी दिया कि उनके सहयोग से छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए 4553 करोड़ रूपए की कार्य योजना स्वीकृत की जा रही है।

नक्सल क्षेत्रों में केन्द्रीय बलों के लिए भी जम्मू-कश्मीर की तरह विशेष भत्ते की मांग

    मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने प्रधानमंत्री को यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय पुलिस बलों के अधिकारियों और कर्मचारियों को अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है। इसलिए मेरा यह अनुरोध है कि इन्हें उन्हीं दरों पर भत्ते और अन्य सुविधाएं दी जानी चाहिए, जिस दर पर जम्मू और कश्मीर में दी जा रही है। डॉ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि नक्सल हिंसा में शहीद हुए आम नागरिकों और शासकीय कर्मचारियों के लिए भी दस लाख रूपए के मान से अनुग्रह राशि केन्द्र सरकार द्वारा दी जानी चाहिए। इसके अलावा नक्ससली समस्यामें शहीद होने वाले शासकीय कर्मचारियों के परिजनों को केन्द्रीय सेवाओं और संगठनों में नियुक्ति के लिए आरक्षण का प्रावधान भी किया जाना चाहिए। शहीदों के परिजनों और नक्सल प्रभावित जनता को स्नातक स्तर तक निःशुल्क शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी तमाम बुनियादी सुविधाएं देने के विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।  डॉ. रमन सिंह ने प्रारंभ में इस विशेष बैठक के आयोजसंभव प्रयास कर रहे हैं।मुख्यमंत्री डॉ सिंह ने प्रधानमंत्री और केन्द्रीय गृह मंत्री को इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि उन्होंने माओवादियों, नक्सलवादी तत्वों की मंशा के बारे में छत्तीसगढ़ के साथ देश के अन्य  नक्ससली समस्या राज्यों के दृष्टिकोण को सही परिपे्रक्ष्य में लिया है। डॉ रमन सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि इस मुद्दे पर आपने निरंतर संवाद की प्रक्रिया शुरू की है और उसी के परिणामस्वरूप आज हमें पुनः इस विषय पर अपना नजरिया सामने रखने का अवसर मिला है।

नक्सल सोच की जड़ें तानाशाही स्वरूप में

मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने कहा कि मेरी यह स्पष्ट धारणा है कि नक्सलवाद और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम निर्माण करते जाएं और नक्सलवादी विध्वंस करते रहे , तो सारा विकास कार्य बेमानी हो जाता है। सरकार जो सुविधाएं दूरस्थ गांव वालों के लिए जुटाए, उस पर नक्सली डाका डालते रहें तो हमारे प्रयासों का लाभ नक्सल प्रभावित गांवों के निवासियों को मिलना मुश्किल हो जाता है। हम यह जानते हैं कि माओवादी या नक्सलवादी सोच की जड़ें माओवाद के तानाशाही स्वरूप में है जिसे वह एक क्रूरतम हिंसात्मक युद्ध और आतंक के बल पर हासिल करना चाहते हैं। माओवादियों द्वारा आम आदमी के हित में बातें करना तो बस एक छलावा है, हकीकत यह है कि माओवादियों द्वारा आम आदमी ही मारा जा रहा है, उनके द्वारा विकास की हर इकाई को ध्वस्त किया जा रहा है। इसलिए हमने नक्सलवादियों से सख्ती से निबटने की नीति अपनाई। हमने सरकार में आते ही यह मन बना लिया था कि नक्सलियों से,  नक्ससली समस्या से आर-पार की लड़ाई लड़नी पड़ेगी क्योंकि यह लड़ाई न सिर्फ छत्तीसगढ़ को नक्सली आतंक से मुक्त करने के लिये अनिवार्य है बल्कि इस देश को, उसके संवैधानिक ढांचे  को, प्रजातांत्रिक सोच व प्रजातांत्रिक मूल्यों को बचाने के लिये भी अनिवार्य है। अब देश को इस दुविधा से उबरना होगा कि यह किसी राज्य विशेष का अंदरूनी मामला है। यही वजह है कि आपने भी इस नक्सलवादी समस्या को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है और हमने भी इससे निबटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित रणनीति की आवश्यकता प्रतिपादित की है।

सहयोग और संसाधनों को बढ़ाने की जरूरत

मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने यह भी कहा कि हम राज्य के संसाधनों और केन्द्र सरकार के सहयोग से जितने भी प्रयास कर रहे हैं, उन्हें समस्या की भीषणता के अनुरूप बढ़ाना होगा। यह बात स्पष्ट करने के लिए मैं बताना चाहूंगा कि नक्सली ताकतों में अब कितना इजाफा हो चुका है। हमारी जानकारी के अनुसार बस्तर में नक्सलियों की दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में कुल 7 डिवीजन, 32 एरिया कमेटी हैं, जिसके तहत करीब 50,000 नक्सली एवं जनमिलिशिया, प्रजातंत्र के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं। देश की 40 प्रतिशत से ज्यादा मुठभेड़ बस्तर में हुई है। नक्सली बस्तर को आधार क्षेत्र बनाना चाह रहे हैं। वहाँ पर नक्सलियों की बटालियन बन चुकी है और अब वे अपने ब्रिग्रेड भी बनाने की तैयारी में है। दूसरी ओर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हमने पुलिस का बजट 268 करोड़ से बढ़ाकर 1019 करोड़ रूपये कर दिया। पिछले छह सालों में पुलिस बल 22000 से बढ़ाकर 49000 कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार हर साल तीन-चार हजार लोगों की भर्ती पुलिस बलों में कर रही है। विगत वर्ष 6700 लोगों की भर्ती की गई थी और इस वर्ष फिर 4000 जवानों की भर्ती की जा रही है। इसके अलावा हमने सुरक्षाबलों को प्रशिक्षित, कुशल और सक्षम बनाने के लिए कांकेर में जंगल वारफेयर काॅलेज खोला। एस.टी.एफ. जैसे सक्षम बल का गठन किया, एन्टी-टेररिस्ट फोर्स का गठन किया, तीन सीएट (काउन्टर टेरेरिज्म एवं एन्टी टेररिस्ट) स्कूल हम केन्द्र सरकार के सहयोग से एक माह के अंदर खोलने जा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि समय-समय पर केन्द्र सरकार से मिलने वाली मदद से हमें काफी सहारा मिलता है। लेकिन अभी हमें लम्बी लड़ाई लड़नी है, इसके लिए हमें काफी संसाधनों की आवश्यकता होगी। हमारा अनुमान है कि नक्सलियों के विरूद्ध लड़ाई में कम से कम 10 बटालियनों की तत्काल जरूरत है।

पिछले वर्ष मारे गए 119 नक्सली

मुख्यमंत्री डॉ.  रमन सिंह ने कहा कि  नक्ससली समस्याके खिलाफ चल रही कार्यवाही और उसकी प्रतिक्रिया के तौर पर हालांकि छत्तीसगढ़ में कुछ बड़ी घटनाएं हुई हैं लेकिन यह भी बताना चाहूँगा कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2009 में 119 नक्सली मारे गए हैं, यह संख्या देश में सर्वाधिक है। साथ ही पकड़े और मारे गये नक्सलियों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। यह सब केन्द्रीय एवं राज्य सुरक्षा बलों के अथक परिश्रम एवं बलिदान से ही संभव हुआ है। इस लड़ाई को हमें राजनीतिक सामंजस्य और सामाजिक सहयोग के साथ लड़ना होगा। कुछ मानव अधिकारवादियों, छद्म प्रबुद्ध वर्ग के प्रोपोगेण्डा का सहारा नक्सलियों द्वारा लिया जा रहा है। इस मोर्चे पर भी कारगर जवाबी कार्यवाही करते हुए हमें जनता को सच्चाई बताना होगा। हमारा दृढ़ विश्वास है कि आम जनता के विश्वास और समर्थन से यह लड़ाई निश्चित तौर पर जीती जाएगी।

जुलाई 14, 2010

नक्सलवाद से निपटने छ्त्तीसगढ़ को मिले 130 करोड़

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 14 जुलाई 2010 को नई दिल्ली में हुई नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की विशेष बैठक में छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित विभिन्न जिलों के 65 पुलिस थानों के सुदृढ़ीकरण के लिए 130 करोड़ रूपए की राशि स्वीकृत की गई है। प्रत्येक थाने के लिए दो करोड़ रूपए मंजूर किए गए। छत्तीसगढ़ के "मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इन थानों के सुदृढ़ीकरण के लिए तत्काल राशि स्वीकृत करने की मांग बैठक में की थी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के विशेष आग्र्रह पर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में तीन हजार विशेष पुलिस अधिकारियों (एस.पी.ओ.) की भर्ती की मंजूरी भी बैठक में प्रदान कर दी गई ।
मुख्यमंत्री डॉ. सिंह ने बैठक में कहा कि छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत वन क्षेत्रों के अलावा आठ प्रतिशत ऐसी जमीन है, जिसे छोटे-बड़े झाड़ के जंगल बताकर उसे वन भूमि में शामिल कर लिया गया है। जबकि वास्तव में इस भूमि पर कोई जंगल नहीं है। इस भूमि पर आदिवासियों के लिए स्वास्थ्य केन्द्र, शाला भवन और अन्य विकास कार्य कराने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि केन्द्र जरूरी समझे तो केन्द्र और राज्य की संयुक्त निरीक्षण दल बनाकर इस भूमि का परीक्षण कराया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ में कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों द्वारा अर्जित किए जाने वाले राजस्व में से दस प्रतिशत हिस्सा स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए खर्च करने का प्रावधान किए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि ऐसा होने से पिछड़े क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकते हैं। डॉ. सिंह ने छत्तीसगढ़ में वनोपज के व्यापार को नियमित करने के लिए सभी प्रकार के वनोपजों का समर्थन मूल्य घोषित करने तथा समर्थन मूल्य पर उनकी खरीदी करने की मांग की।
बैठक में छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों के समग्र विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा भेजी गई 4553 करोड़ रूपए की कार्ययोजना पर भी विचार किया गया। मुख्यमंत्री ने इस कार्ययोजना को शीघ्र स्वीकृति प्रदान करने की मांग की। ज्ञातव्य है कि राज्य शासन द्वारा केन्द्र को भेजी गई इस प्रस्तावित कार्ययोजना में कुल तीन लाख 70 हजार 499 कार्य शामिल किए गए हैं। इनमें सड़क सम्पर्क के लिए 1545.30 करोड़ रूपए, शैक्षणिक विकास और स्कूल भवनों के निर्माण के लिए 544.30 करोड़ रूपए, स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के लिए 336.16 करोड़ रूपए, खाद्य एवं पोषण कार्यों के लिए 289.64 करोड़ रूपए, अधोसंरचना विकास के लिए 735.86 करोड़ रूपए, विद्युतिकरण् के लिए 167.32 करोड़ रूपए, कृषि एवं जीवकोपार्जन के कार्यों के लिए 873.21 करोड़ रूपए और सुरक्षा, राहत सहित अन्य विकास कार्यों के लिए 61.38 करोड़ रूपए का प्रस्ताव शामिल है।

'गोपाल मिश्रा की कृतियों का आलोचनात्मक अध्ययन'

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने रायपुर 13 जुलाई 2010 को अपने निवास पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शेषनारायण चंदेले के शोध ग्रंथ 'गोपाल मिश्रा की कृतियों का आलोचनात्मक अध्ययन' का विमोचन किया। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के प्रथम महाकवि गोपाल मिश्र पर केन्द्रित इस शोध ग्रंथ पर सन् 1974 में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने डॉ. चंदेले को पी.एच.डी. की उपाधि दी थी। लगभग 36 वर्ष बाद इस शोध ग्रंथ का प्रकाशन और विमोचन हुआ। डॉ. चंदेले ने मुख्यमंत्री को बताया कि श्री गोपाल मिश्र रतनपुर के राजाश्रित कवि थे। उन्होंने रीतिकाल के आरंभिक युग में हिन्दी साहित्य को दो महाकाव्य दिए। श्री गोपाल मिश्र के पांच काव्य-ग्रंथ उपलब्ध हैं। जिनका राष्टीय स्तर पर भी ऐतिहासिक महत्व है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर डॉ. चंदेले को अपनी बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह शोध ग्रंथ नयी पीढ़ी के लिए काफी उपयोगी होगा। डॉ. चंदेले ने अपनी कुछ साहित्यिक और आध्यात्मिक पुस्तकें भी मुख्यमंत्री को भेंट की। डॉ. चंदेले की अब तक 21 साहित्यिक और 8 आध्यात्मिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। मध्यप्रदेश से आये प्रसिध्द समीक्षक डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त 'बरसैंया' और 'विवरणी' पत्रिका के सम्पादक श्री शंकर प्रसाद श्रीवास्तव सहित सर्वश्री निलय चंदेले, प्रणय चंदेले और श्रीमती आशा चंदेले इस अवसर पर उपस्थित थीं। "खबरों की दुनियाँ"  की ओर से सभी महानुभावों को बधाईयाँ ।

फ़िल्म दिल्ली 6 का गाना 'सास गारी देवे' - ओरिजनल गाना यहाँ सुनिए…

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