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रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा   :  मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।

सितंबर 30, 2010

लखनऊ बेंच का बहुप्रतीक्षित फैसला : रामलला की मूर्ति हटाई नहीं जाएगी :

अयोध्‍या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का बहुप्रतीक्षित फैसला सामने आ गया है। कोर्ट ने विवाद से जुड़े सभी केसों पर फैसला सुनाते हुए सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है।
तीन जजों ने की पीठ ने 2-1 से सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज किया। सूट नंबर चार भी खारिज कर दिया गया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित स्‍थान से रामलला की मूर्ति हटाई नहीं जाएगी। मूर्ति पर किसी का अधिकार नहीं रहेगा और वह आमजन की होगी।
जजों ने माना कि विवादित जगह भगवान राम की जन्‍मभूमि है और वह जगह हिन्‍दुओं की दी जाएगी।
कोर्ट ने तीनों पक्षों को बराबर-बराबर हिस्‍सेदारी देने की बात कही है. एक हिस्‍सा निर्मोही अखाड़े को, दूसरा मुसलमानों को और तीसरा हिस्‍सा हिंदुओं को देने की बात कही गई है।
पीठ के तीन जजों में से एक धर्मवीर शर्मा ने माना कि पूरा परिसर रामलला का है. जस्टिस अग्रवाल ने रामलला का परिसर माना। राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़े की होगी।  कोर्ट का पूरा फैसला 10 हजार पन्‍नों का है।

पत्रकारों की आवाज


मेल कराती मधुशाला …।

महानायक अमिताभ बच्चन ने आज दोपहर ट्विटर पर लिखा है - 1935 में उनके पिता द्वारा रचित 'मधुशाला'   आज 75 वर्षों बाद भी सामयिक है   -                                                           मुसलमान और हिन्दू हैं दो , एक मगर उनका प्याला ,
एक मगर उनका मदिरालय , एक मगर उनकी हाला .
दोनों रहेते एक न जब तक , मंदिर मस्जिद में जाते ,
बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद , मेल कराती मधुशाला !

सितंबर 29, 2010

Ishwar Allah Tere Naam Mohd Rafi Saab

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान …

                           ईश्वर अल्लाह तेरो नाम  सबको सन्मति दे भगवान

पुलिस जवानों को छोड़ा नक्सलियों ने ...???

एक निजी टेलीविजन चैनल को एस एम एस  कर नक्सलियों ने बताया है कि  बीजापुर से बंधक बनाए गये सभी जवानों को छोड़ दिया गया है । कब और कहाँ यह अभी स्पष्ट नहीं है ।प्रदेश की पुलिस अभी भी इस विषय में कुछ आधिकारिक तौर पर बोलने की स्थिति में नहीं है । नक्सली समर्थक कवि वरवर राव (आंध्र प्रदेश) ने कल ही नक्सलियों से इस आशय की अपील की थी कि बंधक बनाये गये जवानों की हत्या न की जाये , उन्हें छोड़ दिया जाय। बंधक बनाये गये जवानों के परिवारजनों ने दो दिन पहले ही      हैदराबाद पंहुच कर वरवर राव से गुहार की थी । दुसरी तरफ़ देर रात तक एक हिन्दी न्यूज चैनल में नक्सलियों के बीच बंधक बना कर रखे गये चार पुलिस जवानों का हाल दिखाया गया । बंधक बने जवानों ने कहा कि उन्हें रोज यहाँ-वहाँ घुमाया जा रहा है , छोड़ने की कोई बात नहीं हुई है । 

जवानों का अपहरण _____ पुलिस कहती है …

छत्तीसगढ़ पुलिस ने कहा है कि बीजापुर जिले से अपहृत सभी चार जवान सुरक्षित हैं तथा उम्मीद है कि वे जल्द ही रिहा कर दिए जाएंगे।
राज्य के सूचना ब्यूरो के पुलिस उप महानिरीक्षक विवेकानंद सिन्हा ने आज यहां संवाददाताओं को बताया कि पुलिस को जानकारी मिली है कि नक्सलियों के कब्जे में सभी चारों पुलिसकर्मी सुरक्षित हैं और उम्मीद है कि वे जल्दी ही रिहा कर दिए जाएंगे।
सिन्हा ने कहा कि पुलिसकर्मियों के अपहरण के बाद राज्य में पुलिस ने उनकी खोज में लगातार कार्रवाई की है। नक्सलियों द्वारा उनका अपहरण करने और मांगों के संबंध में पर्ची मिलने के बाद पर्ची के बारे में पूरी जांच कराई गई। पुलिस प्रशासन अपहृत जवानों को छुड़वाने के लिए सभी ओर से लगातार प्रयास कर रहा है। पुलिस को अपने सूत्रों से जानकारी मिली है कि सभी जवान सुरक्षित हैं।
जवानों को रिहा कर दिया गया है क्या ?  यह पूछे जाने पर श्री सिन्हा ने बताया कि अभी तक पुलिस के पास ऐसी जानकारी नहीं आई है। इस संबंध में जानकारी ली जा रही है। नक्सलियों द्वारा की गई मांगों को मानने के संबंध में उन्होंने कहा कि नक्सलियों की मांग सामान्य है तथा उनके द्वारा किसी एक मुद्दे पर मांग नहीं की गई है। राज्य सरकार उनकी मांगों पर विचार कर रही है।
राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अनुसार स्थानीय मीडियाकर्मियों और समाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से नक्सलियों से हो रही बातचीत सकारात्मक रही तथा पुलिस को उम्मीद है कि अपहृत जवान जल्द रिहा हो जाएंगे।

सितंबर 27, 2010

शायद सस्ती है जवानों की जान छत्तीसगढ़ में

हमारा छत्तीसगढ़ समूचे देश में ही नहीं , पूरी दुनियाँ में  नक्सलवाद  से घिरा प्रदेश माना जाता है । आये दिन यहाँ नक्सल आतंक देखने-सुनने को मिलता है । हमारे अफ़सर - नेता राजधानी में बैठ कर इस पर नियंत्रण पाने की कवायत करते हैं । बीते रविवार 19 सितम्बर को नक्सल प्रभावित बीजापु्र क्षेत्र के भद्रापाली थाने में पदस्थ सात जवानों को नक्सलियों ने भोपालपटनम से भद्रापाली के बीच अगवा कर लिया । इसी जंगल में तीन शव भी मिले ,जिनकी शिनाख्त नहीं हो पाई । इन जवानों की रिहाई के बदले नक्सली कुछ शर्तें रख रहें हैं जो केवल सरकारी नुमाइंदें जानते हैं । यह पूरा प्रकरण ठीक बिहार में हुई घटना की मानो पुनरावृति है । अंतर केवल इतना है कि तब झारखण्ड में शासन-प्रशासन और वहाँ के आम लोगों की इस प्रकरण पर चिंता समुचा देश-विदेश देख-सुन रहा था , सब इसी कोशिश में थे कि जवानों की हर हाल में रिहाई हो । एक मंत्री को नक्सलियों से चर्चा करने भेजा गया और अंततः अपहृत पुलिस जवानों की रिहाई हुई भी , लेकिन ऐसा कुछ क्या उसका दस फ़ीसदी प्रयास हमारे यहाँ होता हुआ न तो आप देख पा रहे हैं और ना ही सुन सकते हैं । हमारे नेता - अधिकारी एक उपचुनाव में व्यस्त हैं , दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों की मानों प्रतिष्ठा दांव पर लगी है भटगाँव के उपचुनाव में । अभी फ़ालतु कामों के लिए किसी को फ़ुर्सत कहाँ है ? मीडिया के भी मानों हाँथ बधें है । विज्ञापनों का बंधन उनकी भी चीखने-चिल्लाने की - छापने की सीमा तय करता है । जो अच्छा लिखने के लिए कभी सराहे गये वैसे लोगों ने अपने आप को सरकारी उपक्रमों में एक अदना सा किन्तु उनके लिए शायद अदद सा पद पाने के लिए गिरवी रख दिया । कौन कहे-सुने ? किसके लिए ? कोई मंत्री -विधायक य आला अधिकारी का भाई य बच्चा हो तो फ़िर बात कुछ और हो , ये बेचारे ठहरे गरीब-बेरोजगार ,जरूरतमंद परिवार के बच्चे जो पुलिस में भर्ती होकर अपने प्राणों की आहूति देने ही आते हैं नेताओं के लिए । नक्सली भी ऐसे कमजोर लोगों को पकड कर अपनी बहादुरी का परिचय देते शर्म नहीं महसूस करते । हमारे छत्तीसगढ़ में कौन लड़ेगा इन बेचारों के लिए ?   मुखयमंत्री जी ने एकाध चैनल वालों को पूछे जाने पर कह दिया है कि उनके अधिकारी कोशिश कर रहे हैं , बस । और भला वे कर भी क्या सकते हैं ? सच ही तो कहा है मुखयमंत्री  ने, यहाँ जो भी करते हैं कुछ एक श्रीमान अधिकारी गण ही तो करते हैं । यहाँ के लोग मानो लचार हैं । नियती है जो हो रहा है होने दो , हम क्या करें ?  दूसरी ओर अपहृत जवानों के परिजनों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं । इनकी सुध लेने वाला भी यहाँ कोई नहीं है । ये तो हाल है मेरे प्रगतिशील - समृद्धशाली प्रदेश का , जहाँ सबको अपनी-अपनी समृद्धि पर गर्व है । देश-दुनियाँ को भरमाने नित्य नए पैंतरेबाजी वाले विज्ञापन छापे- छपवाये जाते हैं और छापने वाले सब कुछ जानसमझ कर भी चुप रहने का वादा निभाते हैं ।

सितंबर 25, 2010

कन्हैयालाल नंदन का निधन


हिंदी के जाने माने साहित्यकार और पत्रकार कन्हैयालाल नंदन का शनिवार तड़के यहां  नई दिल्ली में निधन हो गया। वह 77 वर्ष के थे।
नंदन के परिवारिक सदस्यों ने बताया कि उन्हें बुधवार शाम ब्लडप्रेशर कम होने और सांस लेने में तकलीफ होने के बाद रॉकलैंड अस्पताल में भर्ती कराया गया था।  जहाँ शनिवार तड़के तीन बजकर 10 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह काफी समय से डायलिसिस पर थे। उनके परिवार में पत्नी और दो पुत्रियां हैं।
नंदन का जन्म उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक जुलाई 1933 को हुआ था। डीएवी कानपुर से ग्रैजुएट करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएट किया और भावनगर यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। पत्रकारिता में आने से पहले नंदन ने कुछ समय तक मुम्बई के कॉलेजों में अध्यापन कार्य किया। वह वर्ष 1961 से 1972 तक धर्मयुग में सहायक संपादक रहे। इसके बाद उन्होंने टाइम्स ऑफ इडिया की पत्रिकाओं पराग, सारिका और दिनमान में संपादक का कार्यभार संभाला। वह नवभारत टाइम्स में फीचर संपादक भी रहे। नंदन को पद्मश्री, भारतेंदु पुरस्कार, अज्ञेय पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
उन्होंने विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं। वह मंचीय कवि और गीतकार के रूप में मशहूर रहे। उनकी प्रमुख कृतियां लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि हैं।   अंतिम संस्कार रविवार(आज) को लोदी श्मशान घाट पर किया जाएगा। आईये उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करें
                                                                                                                                                                 

सितंबर 24, 2010

क्या होगा मंदिर या मस्जिद बनाने से …???

हम भारत मूल के रहने वाले विकास क्रम से एक दौर से गुजर रहे हैं । हमारी प्राथमिकताएं शिक्षा , स्वास्थ्य आर्थिक-सामाजिक समपन्न्ता जैसी तमाम बातें हैं । फ़िर क्यों हम आम लोगों को देश के दो बड़े राजनीतिक दल अपने निहित स्वार्थों में घसीट कर मरवाना चाहते हैं , मंदिर-मस्जिद का मुद्दा लोगों की आध्यात्मिक भावना से जुड़ा है बस इस बिना पर ही लोगों के प्राणों की आहूति ले कर देश में राज करना-अपनी झोलियाँ भरना चाहते हैं हमारे कथित नेता गण ? और आम आदमी भी भावावेश में आकर दंगा-फ़साद करता, अपने-अपनो को मारता-काटता चला जाता है ,भला कैसी समझदारी है यह ? कोई बताएगा ? ऐसा करने से हम आम लोगों का क्या और कैसे भला होगा ? भला तो उनका होगा जो बड़ी-बड़ी एयर कंडीशन्ड कोठियों में रहते हैं , बिना किसी रोजी - रोजगार के बैठे-बिठाए ही करोड़पति , अरबपति बन बैठते हैं । क्या लोगों को जागरुक नहीं होना चाहिए ? क्या मीडिया को इस दिशा में जागरण का कार्य नहीं करना चाहिए ? क्या आपस की बोलचाल , भेंट-मुलाकात में , बैठकों में यह चर्चा का , जन जागरण का विषय नहीं होना चाहिए ? या फ़िर पुलिस की लाठियाँ - गोलियाँ इस विषय का जवाब है ? आम हिन्दु-मुसलमानों की सरेआम हत्या , लूट , आगजनी इसका जवाब है ? क्या अब भी आम लोगों को नहीं समझना चाहिए कि क्या कौन और क्यों करवा रहा है ? समझने की बात तो यह भी है कि ईश्वर-अल्लाह किसी पत्थरों के बीच नहीं बल्कि आस्थावान लोगों के हृदय में होते हैं।अयोध्या मामला फ़िर डरा रहा है ,आम भारतियों को । फ़ैसला आने से पहले ही एहतियातन समूचे देश भर में की गई पुलिस गस्तें , अघोषित फ़्लैग मार्च से जनमानष में भय व्याप्त है । कौन है जिम्मेदार इन परिस्थितियों के लिए , उसे सजा क्यों न दी जाए ? जाति और धर्म की आड़ में राजनीति करने वालों को चिन्हित किया जाना क्या जरूरी नहीं हो गया है ?
क्या सुप्रीम कोर्ट आम आदमी की आवाज सुनेगी  ?
एकता का प्रयास चाहें तो इनसे सीखें । नीचे दी गई पोस्ट पर वीडिओ देखें  - 

सितंबर 23, 2010

संदर्भ 24 सितम्बर : अफ़वाहों से दूर एक सच्चाई यह भी , अयोध्या मामला अब 28 के बाद सुनाया जायेगा फ़ैसला

                             आग्रह : - अफ़वाहों और बहेलियों (आज के नेताओं ) से बचें , अपनों को बचाएं , अपने देश को बचाएं । जय हिन्द  ॥ टिप्प्णी को क्लिक कर राष्ट्रीय एकता - अखण्डता के लिए अपना संदेश दें ।         साथियों की टिप्पणियाँ भी जरूर पढ़ें ।   सुप्रीम कोर्ट 28 को सभी पक्षों को सुनेगा । मध्यस्तता को लेकर सभी पक्षों की राय क्या है ? यह जानने का प्रयास होगा । यदि सुलह की कोई गुंजाईस हो तो उसे भी सुना-समझा जायेगा ,फ़िर कोई तिथी तय होगी अयोध्या मामले पर फ़ैसला सुनाने के लिए  । रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज इस आशय के नए निर्देश जारी किए  ।    हमारा मानना तो यह भी है कि शायद कॉमन वेल्थ गेम्स करा लिए जाने तक देश में शांति कायम रखने की पुरजोर कोशिशें दिल्ली   सरकार  करती रहेगी । सरकार चाहेगी कि कोई भी फ़ैसला इसके बाद हो ।  अयोध्या मामले पर कल साढ़े तीन बजे के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला आना था ।                                       

सितंबर 21, 2010

क्या हो रहा है छत्तीसगढ़ में …???

आपको शायद मेरा यह कहना अच्छा न लगे कि छत्तीसगढ़ पिछले कुछ सालों से माफ़िया की गिरफ़्त में है । यहाँ सत्ता के संरक्षण में भू-माफ़िया , अनाज माफ़िया , कपड़ा व्यापार माफ़िया , जंगल माफ़िया सक्रिय नहीं बल्कि अतिसक्रिय है । आम जनता परेशान है । मंहगाई का ठीकरा केन्द्र सरकार के सिर फ़ोड़ कर मस्ती में चूर है सत्ता । विपक्ष की भुमिका भी कम संदिग्ध नहीं है । मीडिया तो अब ऊंगली उठाने लायक भी नहीं रह गया । इसकी प्राथमिकताएं भी जग जाहिर हैं ।
 शहर हो या आसपास का कोई गाँव , जहाँ तक निगाहें जाएं देखिए जमीनों पर कांग्रेस और भाजपा के नेताओं , उनके अपने अतिविश्वास प्राप्त धन कुबेरों का कब्जा है , खेती की जमीनें खरीदी और औद्योगिक घरानों को अनाप- सनाप दामों पर बेची जा रहीं है । नई कॉलोनियाँ बनाई-बेची जा रही है । यह है छत्तीसगढ़ का विकास , ग्रामीण जनता का विकास । शहर की जमीनों के झगड़े ऐसे बड़े हैं कि मंत्री , सांसद , विधायकों , अन्य तमाम जनप्रतिनिधियों के नाम सीधे या फ़िर उनके परिजनों के नाम प्रकरण दर्ज हैं । यहाँ इस व्यवसाय के लिए गुण्डों से भरे दफ़्तर चलते हैं , जबरिया आम आदमी के मकानों - जमीनों पर कब्जा किया जाता है । क्या यही उम्मीद की थी आम लोगों ने छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के शासन से ? दो मंत्रियों को छोड़ शेष पर अधिकारी हावी हैं । अनाज माफ़िया का नाम भी एक मंत्री से जुड़ता है , प्रशासन मौन है । चांवल , शक्कर , दालों की कालाबाजारी - जमाखोरी डंके की चोट पर होती है । मीड़िया मौन है।  शिशु मंदिरों के यूनीफ़ॉर्म बदलवा कर एक बड़ा कपड़ा व्यापारी जो वर्षों से एक हिन्दू संगठन पर कब्जा जमाए बैठा है , खुद कपड़े की सप्लाई में मस्त है । तेंदूपत्ता संग्रहकों को मुफ़्त जूता बांटने के पीछे रुपयों का बड़ा खेल वर्षों से जारी है। छत्तीसगढ़ से करोड़ों - अरबों रुपयों की काली कमाई  छत्तीसगढ़ के साथ-साथ महाराष्ट्र , उड़ीसा और राजस्थान में जा कर खपाई जा रही है । छत्तीसगढ़ मौन है , भाजपा के साथ कांग्रेस का मानो अघोषित गठबंधन हो गया है । पिछले दस सालों में विकास की आड़ में प्रदेश का केवल विनाश ही किया गया है  , जिसे भी मौका मिला सबने केवल अपनी- अपनी जेबें गर्म की हैं । प्रदेश के संसाधनों को बेचने , गिरवी रखने का ही काम किया है । नदियों का पानी हो या फ़िर भु - गर्भ में दबा हीरा , कोयला , लोहा , एल्युमिनियम , टिन , सबका स्वहित साधन  के लिये दुरुपयोग किया गया है , सतत किया जा रहा है , जंगलों की अन्धाधुंध कटाई की जा रही है  देवभोग क्षेत्र से हीरे की तस्करी बे रोकटोक की जा रही है  और मौन हैं इस अमीर धरती के गरीब लोग । आखिर कब तक ???

सितंबर 19, 2010

अवसरवाद का जीवंत उदाहरण

                                                                                         साभार : नवभारत 


सरगुजा जिले में भटगाँव विधान सभा सीट के लिए चुनाव हो रहा है । प्रथम चरण में भाजपा अपने निष्कासित सांसद शिव प्रताप सिंह को जनसंघ का बताते हुए वापस पार्टी में लेने की घोषणा कर दी है । सांसद शिव प्रताप सिंह सचमुच पार्टी के लिए इतने ही महत्वपूर्ण समझे जाते तो क्या निलंबित होते ? यह तो साफ़-साफ़ अवसर वादी प्रवृति का खुल्लम खुल्ला प्रदर्शन है कि आज भटगाँव के चुनाव में सांसद शिव प्रताप सिंह की जरूरत है नहीं तो पार्टी को यह सीट खोनी भी पड़ सकती है , तो अब जब अपनी जरूरत आ पड़ी तो निलंबित - निष्कासित व्यक्ति अचानक महान बता कर वापस पार्टी में ले लिया गया ।                                                     ठीक ऐसा ही हाल कांग्रेस का है इसने भी सरगुजा क्षेत्र  के अपने पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह समेत कुल 11लोगों को पार्टी में वापस लिया है । यह अवसरवाद नहीं है तो भला और क्या है ?                                                      

सितंबर 17, 2010

सावधान ! आपके रुपयों पर किसी और की नजर है…

आप तिनका-तिनका एकत्र  कर जोड़ते और एकाएक कोई बहुत बड़ा आदमी बन कर आपके बैंक में आता है और आपके ही जोड़े पैसों में से एक बड़ा सा हिस्सा ले भागने में कामयाब हो जाता है । कहानी नहीं हकीकत है यह ।
गलत पता और गारंटी देकर रायपुर के सदर बाजार स्थित इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक से 18 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का एक और घोटाला सामने आया है। रिजर्व बैंक के निर्देश पर जब 28 बड़े कर्जदारों से पैसा वसूलने की कोशिश हुई, तो एक को छोड़ सभी के नाम - पते और सब कुछ फर्जी पाया गया। इनमें से आधा दर्जन से ज्यादा कर्जदार  छत्तीसगढ़ से बाहर दूसरे प्रदेशों के हैं। प्रशासन को अंदेशा है कि बैंक के कतिपय डायरेक्टर और अधिकारियों की  मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया है। मामले की जांच-पड़ताल नए सिरे से की जा रही है। इस सहकारी बैंक में सात साल पहले घोटाला सामने आया था। रिजर्व बैंक ने एक लाख से कम डिपाजिट वाले करीब पांच हजार लोगों को तो भुगतान करवा दिया। यह तय किया गया कि  बड़े - छोटे कर्जदारों से लोन की राशि वसूल कर बड़े खातेदारों को भी उनकी जमा राशि लौटाई जा सके। नियमों को ताक पर रखकर अपने करीबियों को कर्ज दिया गया। खुलासे के बाद विवाद बढ़ा और अगस्त 2006 में बैंक बंद हो गया । 6500 खातेदारों के करोड़ों रुपए बैंक में फंसे थे।  उपपंजीयक सहकारी संस्था की अदालत ने बकायादारों से पैसा वसूलने के आदेश जारी किए। रायपुर कलेक्टर को पंजीयक ने करीब आठ महीने पहले 28 बड़े कर्जदारों की सूची दी थी। तहसीलदार पलक भट्टाचार्य और उनकी टीम ने जब वसूली का काम शुरू किया तो पता चला कि 27 कर्जदार बोगस हैं। बताए गए पते पर न तो उस नाम का कोई व्यक्ति मिला, न फर्म। कर्ज वसूली के लिए जारी हुए तामीली आदेश फर्जी नाम-पतों की वजह से तहसीलदार के पास वापस आ रहे हैं। सात कर्जदार कोलकाता, मुंबई और अन्य शहरों के हैं। इन सातों को कलेक्टर के माध्यम से नोटिस भेजी जा रही है।
एक का ही पता मिला । लोन की वसूली के दौरान अर्चना चौबे का ही पता राजस्व अधिकारी को मिला है। चौबे ने 12 लाख 27 हजार 52 रुपए का लोन मंजूर कराया था।  ये तो बात हुई एक ऐसे बैंक की जिसका भ्रष्टाचार उजागर हो गया था और जिसे बैंक के खातेदारों ने ही उजागर किया था । लेकिन यह बात यहीं खतम हो ऐसा नहीं है ,रायपुर शहर ही नहीं बल्कि समुचे छत्तीसगढ़ में मारवाड़ और उड़ीसा से आये तमाम लोगों ने, पाकिस्तान से आये तमाम लोगों ने बड़े-बड़े लोन इसी तरह ले रखे हैं और गायब हैं । तमाम राष्ट्रीयकृत बैंक इनके शिकार हैं , बैंक के अधिकारी खुद भी मुसीबत में न फ़ंस जाएं इस डर से इन प्रकरणों को दबाए बैठे हैं , तैयारी है डूबत खाता में ऐसे नामों के समायोजन की । यहाँ से करोड़ों रुपये हजम करने वालों की लम्बी फ़ेहरिस्मत है । समय आने पर इसका भी भांडा फ़ूटेगा ।  बड़े बैंकों यह खेल बदस्तूर जारी है।


सितंबर 15, 2010

मित्रों का दुख


मित्र हैं और उनका गर कोई दुख है तो वह अपना दुख है ।कॉफ़ी हाऊस में रोज ही जमा होती है मित्रों की टोली ,तमाम विषयों पर खुल कर चर्चा भी होती है । अधिकांश मित्र नौकरी पेशा या फ़िर व्यवसायी हैं , बताने का मतलब कि ये पत्रकार नहीं हैं । दिन भर के अपने-अपने काम - काज के बाद यहाँ आकर एक -एक कॉफ़ी से थकान उतारना शुरु करते हैं ।पिछले कुछ दिनों से हमारे बीच चर्चा का विषय है प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों , अस्पतालों और मंदिरों के समीप खुलती "शराब दुकानें" । मित्र चर्चा करते - एक दूसरे को पूछते-बताते हैं कि इन सभी (स्कूलों , अस्पतालों और मंदिरों) के 100 मीटर के आसपास की परिधि में तो नियमानुसार शराब दुकानें नहीं खुलनी चाहिए , और बिना सरकारी अनुमति के इनके लिए स्थल चयन भी नहीं किया जाता , फ़िर भला कैसे जगह-जगह स्कूलों , अस्पतालों और मंदिरों के समीप ये शराब दुकानें खुलती हैं ? एक बार खुलने के बाद इसे बगैर धरना - प्रदर्शन ,आंदोलन किए बगैर नहीं हटवा पाता कोई भी । पुलिस प्रताडना के भय से कोई माई का लाल इनके खिलाफ़ शिकायत तक नहीं कर पाता । शराब के कारोबार को शासन-प्रशासन के खुले सपोर्ट की बातें और हो रहीं थीं कि तभी एक मित्र ने बड़ी ही सहजता के साथ बीच में बात काटते हुए समझाया , चलो हो भी गया न यार, सरकार ध्यान देती है वह ऐसी जगहों से स्कूलों , अस्पतालों और मंदिरों को ही हटा देती है । हो गया न । मेरी बात समझ न आ रही हो तो याद करो कितने मंदिर तोड़े गये हैं , पिछले कुछ ही सालों में । मजे कि बात तो यह है कि यह सब उन्हीं के शासन काल में हो रहा है जो अयोध्या में मंदिर बनाने की बात कह-कह कर यहाँ तक का सफ़र तय कर चुके हैं । सबसे ज्यादा मंदिरें इन्हीं ने तोड़ीं हैं , सबसे ज्यादा पेड़ भी इन्हीं ने काटे हैं , सबसे ज्यादा नहरें भी इन्हीं ने पाटीं हैं ,और तो और गरीबों का झोपड़ा - गुमटियाँ खेत-खलिहान तोड़ कर सबसे ज्यादा कॉम्पलेक्स, मॉल और मल्टीप्लेक्स भी इन्हीं ने बनाए हैं । लोग
सब कुछ देख रहे हैं । साफ़-साफ़ कहूं तो अजीत जोगी की गलती को आज तक समूचा प्रदेश भुगत रहा है । कांग्रेस खुद तो गई तेल लेने , अब प्रदेश भी जा रहा है । तुम तो फ़ोकट का टेंशन मत ही बढ़ावो ,चलो एक-एक कॉफ़ी और मंगावो । कॉफ़ी आई ,बातें बदलीं , आपस की चर्चाएं हुईं , बारिश - उमस को याद किया कराया गया और फ़िर कॉफ़ी खतम कर हम सब बाहर आ कर रैलिंग के पास खड़े हो गये ।क्या मैं सरकार मे बैठे जिम्मेदार लोगों से अपने दोस्तों की चिंता के  विषय में कुछ पूछ सकता हूं ? कोई देगा सही जवाब , बगैर लफ़्फ़ाजी के ? क्या सच नहीं कहा है, मित्रों ने ?  क्या मित्रों का यह दुख जनता का दुख नहीं है ???

सितंबर 14, 2010

हिन्दी दिवस : अंग्रेजी आतंक से आहत है हमारी हिन्दी


प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। १४ सितंबर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि "हिन्दी" ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् १९५३ से संपूर्ण भारत में १४ सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है : -
"संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा । "
   यह हमारा दुर्भाग्य कहें या दुर्बलता कि आज हमारी केन्द्र सरकार , राज्य सरकारें सभी हिन्दी की जगह अंग्रेजी में कामकाज करना क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना अपना प्राथमिक कार्य मानती हैं । हिन्दी अनिवार्य नहीं औपचारिकता की भाषा बन कर रह गई है। अब यह पिछड़ों की , अंग्रेजी न जानने वाले पिछड़ों की भाषा बनने को मजबूर है । अंग्रेजी आतंक से आहत है हमारी हिन्दी । कभी यही भाषा देश को जोड़ने का काम करती थी , जिसे गुलामी पसंद हमारे नौकरशाहों ने अब मानो दोयम दर्जे की भाषा बन कर रख दिया है । मैकाले की शिक्षा प्रणाली से फ़ली-फ़ूली हमारी शिक्षा ने अब तक हमें इतना तो तैयार कर दिया है कि अंग्रेजी को ही सब कुछ समझें और हिन्दी को भूल जायें । आगे बढ़ने का मतलब है आओ ग्लोबल - ग्लोबल खेलें । हिन्दी जो कभी हमारी मातृभाषा थी अब मात्र भाषा रह गई है ।                                                                                                                                                   आज मुझे इस बात का गर्व जरूर है कि मैं " खबरों की दुनियाँ"  में अपनी 100 वीं पोस्ट हिन्दी दिवस पर लिख रहा हूँ और हिन्दी विषय पर हिन्दी में ही लिख रहा हूँ ।  जय हिन्द ।

सितंबर 13, 2010

देखिए क्या कहते हैं अखबार…

                                                                                                साभार : नवभारत

क्या हाल है देश में गरीबी का , जानना चाहें तो प्रदर्शित समाचार पर  क्लिक करें ।                                                                                                              ----------------------------------------------------------------------------------------------------------

सितंबर 12, 2010

संत घिरे स्टिंग ऑपरेशनों में


एक बार फिर संत आसाराम बापू विवादों के घेरे में नजर आ रहे हैं। अकेले बापू ही नहीं कुछ और भी नामी प्रवचनकारों का स्टिंग किया गया और लगातार दिखाया जा रहा है ।
एक टीवी न्यूज चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में बापू को अमेरिका से फरार एक महिला अपराधी को शरण देने का आश्वासन देते हुए दिखाया गया है। इस महिला अपराधी को अमेरिका की गुप्तचर संस्था एफबीआई खोज रही है । यह पता होने के बावजूद बापू युवती को शरण देने को तैयार है। टीवी न्यूज चैनल रिपोर्टर एक व्यवसायी के प्रतिनिधि की तरह बापू से 3 जून 2010 को उनके हरिद्वार स्थित आश्रम पर मिले। स्टिंग में बापू को कई संगीन अपराधियों को शरण देने की बात कहते हुए भी देखे-सुने जा सकते हैं ।
इस स्टिंग में सुधांशु महाराज और शनि साधक दात्री महाराज की भी क्लीपिंग्स दिखाई जा रही हैं ,जिसमें ब्लैक मनी के उपयोग पर विस्तार से चर्चा होती देखी-सुनी जा सकती है ।

कौन हैं भगवान श्री विश्वकर्मा …? पढ़िए भाग्योत्कर्ष में ।


सितंबर 11, 2010

ॐ गं गणपतये नमः




सितंबर 10, 2010

श्री गणेश चतुर्थी 11 को ; शुभ कामनाएँ


                                       श्री गणेश चतुर्थी  11 को  ,  पढ़िए   -    भाग्योत्कर्ष

सितंबर 09, 2010

हरितालिका व्रत पूजन 11 सितम्बर को क्यों ?

                            


                          हरितालिका व्रत पूजन  11 सितम्बर को क्यों ?  पढ़िए  भाग्योत्कर्ष  में ।    

ईद मुबारक



सितंबर 08, 2010

आपको भी शायद गुस्सा आना चाहिए


चीन की हरकतें चिंता का विषय होना ही चाहिए ,लेकिन यह हमारा भी दुर्भाग्य ही है कि हमारे नेतागण अपने निहित स्वार्थों से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं ,देश का भला ये क्या खाक सोच पायेंगे !

चीन ने दक्षिण एशिया में अपना वर्चस्‍व बढ़ाने को पूरी तरह जायज ठहराया है। उसका कहना है कि वह एशिया का ‘अहम सदस्‍य’ है और एशिया में शांति व स्थिरता कायम रखना उसकी जिम्‍मेदारी है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्‍ता जियांग यू ने भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान को हल्‍के में लिया कि बीजिंग दक्षिण एशिया में वर्चस्‍व हासिल करने के लिए काम कर रहा है।
ड्रैगन की करतूतों से हाल के दिनों में चीन की ऐसी कई गतिविधियों का खुलासा हुआ है, जो भारत के लिहाज से सही नहीं मानी जा सकतीं और भारत-चीन तनाव को हवा दे सकती हैं। चीन ने पहली बार म्‍यांमार में अपने दो जंगी पोत तैनात किए हैं। गुलाम कश्‍मीर में वह करीब डेढ़ दर्जन परियोजनाओं पर काम कर रहा है। अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक उसने गुलाम कश्‍मीर के गिलगिट और बा‍लटिस्‍तान में अपने 11000 सैनिक तैनात कर रखे हैं। कश्‍मीर को विवादित क्षेत्र बता कर उसने भारतीय सेना के वरिष्‍ठतम अफसरों में से एक को वीजा देने से मना कर दिया। साथ ही, यह भी कहा कि कश्‍मीर के लोगों को वज अलग पन्‍ने पर वीजा देने की नीति जारी रखेगा। प्रशांत महासागर में 20000 किमी के दायरे में युद्धपोत को मार गिराने की क्षमता वाली मिसाइल तैयार करने संबंधी उसकी योजना भी जगजाहिर हो गई है। और तो और, नेपाल में माओवादियों को सांसदों की खरीद-फरोख्‍त के लिए पैसे देकर मनमाफिक सरकार बनवाने की उसकी चाल भी सामने आ चुकी है। नेपाल सरकार ने इसकी जांच के आदेश दिए हैं। वैसे, चीन की ऐसी कोशिशों की खबरों के बीच मंगलवार को सातवें दौर के चुनाव में भी प्रधानमंत्री पद के चुनाव में नेपाल में माओवादियों को हार ही हाथ लगी।
भारत विरोधी गतिविधियों की खबरों के मद्देनजर सोमवार को भारतीय संपादकों ने मनमोहन सिंह से चीन से संबंधित एक सवाल पूछा था। इसी के जवाब में उन्‍होंने कहा था कि चीन किसी न किसी तरह दक्षिण एशिया में प्रभुत्‍व बनाना चाहता है, जिस बारे में भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। मंगलवार को बीजिंग में नियमित प्रेस ब्रीफिंग में पत्रकारों ने यू से मनमोहन के बयान पर चीन की प्रतिक्रिया पूछी थी। यू ने कहा कि चीन, दक्षिण एशिया में प्रभुत्‍व बनाने के लिए काम नहीं कर रहा, बल्कि भारत के साथ मिल कर शांतिपूर्ण तरीके से दक्षिण एशिया में शांति, स्थि‍रता और विकास लाना चाहता है। पर उसकी हरकतें ऐसी नहीं हैं, जिनसे शांति आ सके।

सितंबर 07, 2010

"निनो" दुनियाँ का सबसे छोटा व्यक्ति



दुनियाँ का सबसे छोटा आदमी होने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कोलंबिया का 24 वर्षीय डांसर एडवार्ड निनो हर्नाडेज खुद को अद्भूत व्यक्ति मानता है।
एडवार्ड की लंबाई मात्र 27 इंच है और उसकी ख्वाहिश फास्ट कार खरीदने और दुनिया की है। एडवार्ड जिन हस्तियों से मिलने की हसरत रखता है, उनमें जैकी चान, सिल्वेस्टर स्टालान और पूर्व कंबोडियाई राष्ट्रपति एल्वरो यूराइब शामिल है। एडवार्ड का वजन 10 किलो है और दुनियाँ का जीवित वह सबसे छोटा व्यक्ति है। पार्ट टाइम डांसर एडवार्ड का कहना है कि मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मेरे जैसा और कोई नहीं। वह यह भी खुलासा करता है कि उसकी एक गर्लफ्रेंड भी है जिसकी लंबाई 5 फीट से कम है। हालांकि एडवार्ड के दोनों आंखों में कैट्रेक्ट्स है जिससे उसे धुंधला दिखता है और परिवार के पास उसका इलाज कराने के लिए पैसे नहीं है, इसके बावजूद उसे एक फिल्म में बतौर ड्रग चोर का रोल मिल गया है। एडवार्ड की 43 वर्षीय मां नोएमी हर्नाडेज के मुताबिक वह पांच बच्चों में सबसे बड़ा है और जब वह दो साल का था, तब से उसका बढना रूक गया। डॉक्टर कभी इसका जवाब नहीं दे सके कि वह क्यों इतना छोटा है। जन्म के समय उसका वजन 1.5 किलो और लंबाई मात्र 15 इंच थी। डॉक्टर भी इस बात को लेकर हैरान थे कि वह इतना छोटा क्यों है। दुनिया का सबसे छोटा आदमी होने और गिनीज बुक में नाम दर्ज होने के बाद चर्चा में आना एडवार्ड को अच्छा लगता है लेकिन उसकी एक पीडा भी है। वह कहता है कि - "लोग हमेशा मुझे छुना चाहते है और गोद में उठाना चाहते है। इससे मुझे बहुत दुख होता है ।"

सितंबर 06, 2010

आप बुद्धिमान हैं , अनुभवी हैं , दूरदृश्टा हैं , कोई बात नहीं


आप बुद्धिमान हैं , अनुभवी हैं , दूरदृश्टा हैं , कोई बात नहीं ,क्या आप अंग्रेजी जानते हैं ? धाराप्रवाह बोल पाते हैं ? लिख-पढ़ पाते हैं ? यदि हाँ तो ठीक और नहीं तो सॉरी , आपके लिए अब हमारे पास कोई काम नहीं है । कुछ ऐसा हाल होता जा रहा है हमारे देश का भी ।
कॉफ़ी हाऊस में यह चर्चा शुरु हुई कुछ ऐसे कि एक बड़े हिन्दी अखबार ने एक अधिकारी की ऐसी  बेटी को सम्पादकीय विभाग में 45 हजार की मासिक पगार पर नौकरी दे दी है जिसे हिन्दी लिखना भी नहीं आता है । वहीं वर्षों के अनुभवी-वरिष्ठ लोग महज 20 - 25 हजार की पगार पर काम करने को मजबूर हैं ।क्योंकि ये हिन्दी को ही अच्छा जानते-समझते आ रहे हैं ,अंग्रेजी का इन्हें उतना ज्ञान नहीं है जितना आज के बच्चों को है। जय हो ।
क्या है ये अंग्रेजी भाषा -
अंग्रेजी एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है ,जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी । संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से -
अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेकों बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है । वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है. नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ । वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेकों भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है।
अंग्रेजी का महत्व -
आधुनिक अंग्रेजी, जिसको कभी कभी प्रथम वैश्विक सामान्य भाषा के तौर पर भी वर्णित किया जाता है, संचार, विज्ञान, व्यापार,विमानन, मनोरंजन, रेडियो और कूटनीति के क्षेत्रों की प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय भाषा है । ब्रिटिश द्वीपों के परे इसके विस्तार का प्रारंभ ब्रिटिश साम्राज्य के विकास के साथ हुआ, और 19 वीं सदी के अंत तक इसकी पहुँच सही मायने में वैश्विक हो चुकी थी। यह संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रमुख भाषा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका की एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में पहचान और उसके बढ़ते आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के कारण अंग्रेजी भाषा के प्रसार में महत्त्वपूर्ण गति आयी है।अंग्रेजी भाषा का काम चलाऊ ज्ञान अनेकों क्षेत्रों, जैसे की चिकित्सा और कंप्यूटर, के लिए एक आवश्यकता बन चुका है; परिणामस्वरूप एक अरब से ज्यादा लोग कम से कम बुनियादी स्तर की अंग्रेजी बोल लेते हैं। यह संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाओं में से भी एक है।
डेविड क्रिस्टल जैसे भाषाविदों के अनुसार अंग्रेजी के बड़े पैमाने पर प्रसार का एक असर, जैसा की अन्य वैश्विक भाषाओँ के साथ भी हुआ है, दुनिया के अनेक हिस्सों में स्थानीय भाषाओँ की विविधता को कम करने के रूप में दिखाई देता है, विशेष तौर पर यह असर ऑस्ट्रेलेशिया और उत्तरी अमेरिका में दिखता है, और इसका भारी भरकम प्रभाव भाषा के संघर्षण (एट्ट्रीशन) में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निरंतर अदा कर रहा है। इसी प्रकार ऐतिहासी भाषाविद, जो की भाषा परिवर्तन की जटिलता और गतिशीलता से अवगत हैं, अंग्रेजी भाषा द्वारा अलग भाषाओँ के एक नए परिवार का निर्माण करने की इसकी असीम संभावनाओं के प्रति हमेशा अवगत रहते हैं।

इंग्लिश एक वेस्ट जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एन्ग्लो-फ्रिशियन और लोअर सेक्सन बोलियों से हुई है. इन बोलियों को ब्रिटेन में 5 वीं शताब्दी में जर्मन खानाबदोशों और रोमन सहायक सेनाओं द्वारा वर्त्तमान के उत्तर पश्चिमी जर्मनी और उत्तरी नीदरलैण्ड के विभिन्न भागों से लाया गया था। इन जर्मेनिक जनजातियों में से एक थी एन्ग्लेजी, जो संभवतः एन्गल्न से आये थे. बीड ने लिखा है कि उनका पूरा देश ही, अपनी पुरानी भूमि को छोड़कर, ब्रिटेन आ गया था.'इंग्लैंड'(एन्ग्लालैंड) और 'इंग्लिश ' नाम इस जनजाति के नाम से ही प्राप्त हुए हैं।
एंग्लो सेक्संस ने 449 ई. में डेनमार्क और जूटलैंड से आक्रमण करना प्रारंभ किया था, उनके आगमन से पहले इंग्लैंड के स्थानीय लोग ब्रायोथोनिक , एक सेल्टिक भाषा, बोलते थे। हालाँकि बोली में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन 1066 के नॉर्मन आक्रमण के पश्चात् ही आये, परन्तु भाषा ने अपने नाम को बनाये रखा और नॉर्मन आक्रमण पूर्व की बोली को अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है।

शुरुआत में पुरानी अंग्रेजी विविध बोलियों का एक समूह थी जो की ग्रेट ब्रिटेन के एंग्लो-सेक्सन राज्यों की विविधता को दर्शाती है। इनमें से एक बोली, लेट वेस्ट सेक्सन, अंततः अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हुई. मूल पुरानी अंग्रेज़ी भाषा फिर आक्रमण की दो लहरों से प्रभावित हुई. पहला जर्मेनिक परिवार के उत्तरी जर्मेनिक शाखा के भाषा बोलने वालों द्वारा था; उन्होंने 8 वीं और 9 वीं सदी में ब्रिटिश द्वीपों के कुछ हिस्सों को जीतकर उपनिवेश बना दिया. दूसरा 11 वीं सदी के नोर्मंस थे, जो की पुरानी नॉर्मन भाषा बोलते थे और इसकी एंग्लो-नॉर्मन नमक एक अंग्रेजी किस्म का विकास किया। (सदियाँ बीतने के साथ, इसने अपने विशिष्ट नॉर्मन तत्व को पैरिसियन फ्रेंच और ,तत्पश्चात, अंग्रेजी के प्रभाव के कारण खो दिया। अंततः यह एंग्लो-फ्रेंच विशिष्ट बोली में तब्दील हो गयी.) इन दो हमलों के कारण अंग्रेजी कुछ हद तक "मिश्रित" हो गयी (हालाँकि विशुद्ध भाषाई अर्थ में यह कभी भी एक वास्तविक मिश्रित भाषा नहीं रही; मिश्रित भाषाओँ की उत्पत्ति अलग अलग भाषाओँ को बोलने वालों के मिश्रण से होती है. वे लोग आपसी बातचीत के लिए एक मिलीजुली जबान का विकास कर लेते हैं)।

स्कैंदिनेवियंस के साथ सहनिवास के परिणामस्वरूप अंग्रेजी भाषा के एंग्लो-फ़्रिसियन कोर का शाब्दिक अनुपूरण हुआ; बाद के नॉर्मन कब्जे के परिणामस्वरूप भाषा के जर्मनिक कोर का सुन्दरीकरण हुआ, इसमें रोमांस भाषाओँ से कई सुन्दर शब्दों को समाविष्ट किया गया. यह नोर्मन प्रभाव मुख्यतया अदालतों और सरकार के माध्यम से अंग्रेजी में प्रविष्ट हो गया. इस प्रकार, अंग्रेजी एक "उधार" की भाषा के रूप में विकसित हुई जिसमें लचीलापन और एक विशाल शब्दावली थी।

ब्रिटिश साम्राज्य के उदय और विस्तार और साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका के एक महान शक्ति के रूप में उभरने के परिणामस्वरूप अंग्रेजी का प्रसार दुनिया भर में हुआ ।अब देखते ही देखते यह हमारे देश में भी सरकारी कामकाज की भाषा बनती जा रही है , प्रायवेट सेक्टर ने तो इसे पूरी तरह से मानो आत्मसाथ ही कर लिया है । अब उनका भारत , भारत नहीं रहा ,बल्कि INDIA (इंडिया) बन गया है । रही बात हिन्दुस्तान की तो वह पुराने जमाने की बात हो गई है । यह तो हाल है आज ENGLISH इंग्लिश का ।

सितंबर 05, 2010

15अक्टूबर को अब "वर्ल्ड स्टुडेंट डे" डॉ कलाम के नाम

आज शिक्षक दिवस है । नमन गुरुजनों को । साथ ही एक शुभ समाचार भी _ संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति -ख्याति लब्ध वैज्ञानिक डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के जन्म दिवस 15 अक्टूबर को " WOLRD STUDENT DAY"   वर्ल्ड स्टूडेंट डे   (विश्व विद्यार्थी दिवस)  के रूप मे मनाए जाने का निर्णय लिया है । बधाई ।  हमें गर्व होना चाहिए  अपने इन दोनो शीर्ष नेताओं पर जिनके नाम पर "गुरू-शिष्य" दोनो के लिए विश्व दिवस मनाता है ।

अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम (जन्म 15 अक्टूबर, 1931, रामेश्वरम, तमिलनाडू, भारत), जिन्हें आमतौर पर डाक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम से जाना जाता है वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता हैं।
जीवनचरित
धनुषकोडी गाँव जो कि तमिलनाडू में है के एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में जन्मे कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेकनालजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एस एल वी-3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। अवुल पकीर जैनुलबीदीन अब्दुल कलाम को भारत सरकार द्वारा 1981 में प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान "गाइडेड मिसाइल" के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल और पृथवी मिसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को है। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ।
डाक्टर कलाम को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1997 में सम्मानित किया गया। 18 जुलाई, 2002 को डाक्टर कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया और उन्होंने 25 जुलाई को अपना पदभार ग्रहण किया। इस पद के लिये उनका नामांकन उस समय सत्तासीन राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन की सरकार ने किया था जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन हासिल हुआ था। उनका विरोध करने वालों में उस समय सबसे मुख्य दल भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और अन्य वामपंथी सहयोगी दल थे। वामपंथी दलों ने अपनी तरफ से 87 वर्षीया श्रीमती लक्ष्मी सहगल का नामांकन किया था जो सुभाषचंद्र बोस के आज़ाद हिंद फौज में और द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने योगदान के लिये जानी जाती हैं।
डाक्टर अपने व्यक्तिगत जीवन में पूरी तरह अनुशासन शाकाहार और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों में से हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे क़ुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्यन करते हैं। कलाम ने कई स्थानों पर उल्लेख किया है कि वे तिरुक्कुराल का भी अनुसरण करते हैं, उनके भाषणों में कम से कम एक कुराल का उल्लेख अवश्य रहता है। राजनैतिक स्तर पर कलाम की चाहत है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका का विस्तार हो और भारत ज्यादा से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाये। भारत को महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढाते देखना उनकी दिली चाहत है। उन्होंने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की है और वे तकनीक को भारत के जनसाधारण तक पहुँचाने की हमेशा वक़ालत करते रहे हैं। बच्चों और युवाओं के बीच डाक्टर क़लाम अत्यधिक लोकप्रिय हैं।

गुरु जनों को नमन

शिक्षक दिवस कार्ड्स



सितंबर 04, 2010

दुनिया भर में अलग-अलग दिन मनाया जाता है शिक्षक दिवस


भारत में शिक्षक दिवस पांच सितम्बर को है जबकि अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस का आयोजन पांच अक्टूबर को होता है। रोचक बात यह है कि शिक्षक दिवस दुनिया भर में एक ही नहीं मनाया जाता। अलग-अलग देशों में गुरूओं के सम्मान के लिए अलग-अलग दिन निर्धारित हैं। आईएएनएस ने विश्वभर में मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस पर नजर डाली। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तो कहीं-कहीं यह अन्य दिनों की तरह ही एक कामकाजी दिन ही रहता है। यूनेस्को ने पांच अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस घोषित किया था।
वर्ष 1994 से ही इसे मनाया जा रहा है। शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढि़यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से इसकी शुरूआत की गई थी। भारत में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के द्वितीय राष्ट्रपति रहे राधाकृष्णन का जन्मदिवस होता है। चीन में 1931 में नेशनल सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षक दिवस की शुरूआत की गई थी। चीन सरकार ने 1932 में इसे स्वीकृति दी। बाद में 1939 में कन्फ्यूशियस के जन्मदिवस, 27 अगस्त को शिक्षक दिवस घोषित किया गया लेकिन बाद में 1951 में इस घोषणा को वापस ले लिया गया। वर्ष 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया। अब चीन के ज्यादातर लोग फिर से चाहते हैं कि कन्फ्यूशियस का जन्मदिवस ही शिक्षक दिवस हो। रूस में 1965 से 1994 तक अक्टूबर महीने के पहले रविवार के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता रहा। वर्ष 1994 से विश्व शिक्षक दिवस पांच अक्टूबर को ही मनाया जाने लगा। अमेरिका में मई के पहले पूर्ण सप्ताह के मंगलवार को शिक्षक दिवस घोषित किया गया है और वहां सप्ताहभर इसके आयोजन होते हैं। थाइलैंड में हर साल 16 जनवरी को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यहां 21 नवंबर, 1956 को एक प्रस्ताव लाकर शिक्षक दिवस को स्वीकृति दी गई थी। पहला शिक्षक दिवस 1957 में मनाया गया था। इस दिन यहां स्कूलों में अवकाश रहता है। ईरान में वहां के प्रोफेसर अयातुल्लाह मोर्तेजा मोतेहारी की हत्या के बाद उनकी याद में दो मई को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। मोतेहारी की दो मई, 1980 को हत्या कर दी गई थी। तुर्की में 24 नवंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वहां के पहले राष्ट्रपति कमाल अतातुर्क ने यह घोषणा की थी। मलेशिया में इसे 16 मई को मनाया जाता है, वहां इस खास दिन को "हरि गुरू" कहते हैं

सितंबर 02, 2010

पुलिस का यह काम …आखिर उद्देश्य क्या है ?

पुलिस ने हमारे शहर में यातायात सुधार का जिम्मा उठाया है । यह प्रयास सुधार की दिशा में कम, रकम वसूली की दिशा में कहीं ज्यादा कारगर साबित होता दिख रहा है । समझने के रेल्वे स्टेशन के बाहर का हाल कहना ही बहुत है । यहाँ रेल्वे प्रबंधन ने बाकयदा पार्किंग बनाई है । चार पहिया वाहन की ही बात करें ,तो जानिये कि यहाँ हर रोज एक हजार से भी ज्यादा कारें आतीं हैं , जिनमें से लगभग आधी गाड़ियाँ निर्धारित पार्किंग में खड़ी होती हैं ,जिनका 10 रुपये किराया वसूल किया जाता है ,और इसकी रसीद के पीछे छपी तमाम लाईनों में एक लाईन यह भी लिखी होती है कि यदि निर्धारित स्थल पर गाड़ी पार्क नहीं की गई तो रेल्वे प्रशासन 100 रुपये तक का जुर्माना वसूल सकता है । लेकिन यहाँ जिला पुलिस के अधिकारी-कर्मचारी जिनकी ड्युटी प्री पेड ऑटो के लिए बूथ पर लगी होती है ,वे लोग 6 - 7 बिहारी - झारखण्डी लड्कों को अवैध रूप से यहाँ तैनात रखते हैं और इनकी मदद से एक कार से 500 रुपये से 1000 रूपये तक की वसूली करते हैं । क्या यही है पुलिस का मूल काम ? क्या रेल्वे ने जिला पुलिस को यहाँ गुण्डागर्दी के लिए हायर कर रखा है ?  या फ़िर इसमें भी सबका हिस्सा है ?
शहर में आम आदमी जगह - जगह तंग है । कहीं भी यह स्पष्ट नहीं है कि वाहनों की पार्किंग कहाँ-कहाँ करना है और कहाँ-कहाँ नहीं । मामला स्टेशन का हो या फ़िर शहर का बगल में खड़ी पुलिस आपको वाहन खड़ा करता देख कुछ भी बोलने-बताने सामने नहीं आयेगी , जैसे ही आप वाहन खड़ा करेंगे ,वह एक चालान की पर्ची काट कर आपसे वसूली का जबरिया प्रयास करते दिखेंगे । सवाल है यह पुलिस जनता के भले के लिये है या जनता अवैध-बलात वसूली के लिए है ? है किसी अधिकारी के पास जवाब ?  क्या यही तरीका है सही पुलिसिंग का ? जब राजधानी में प्रदेश शासन की आखों में इस तरह के काम जायज ठहरा कर ये नौकरशाह कर गुजर रहे हैं तो दूर दराज में कैसा होगा इनका हाल ??? क्या ऐसा ही होता है संवेदनशील प्रशासन ??? क्या नेता और अधिकारियों की जेबें भर कर होगा पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय का अन्त्योदय ? क्या ऐसे ही हो इस आशा के साथ जनता ने दोबारा इस पार्टी पर अपना विश्वास व्यक्त किया था ? इन खबरों को शहर के लीडिंग अखबार भी लगातार प्रकाशित करते आ रहे है लेकिन शासन-प्रशासन अब मानो निर्लज्ज हो चुके हैं ,पैसा कमाने के आगे वह कुछ भी सुनना नहीं चाहते । मनमानी ही नहीं अंधेर की परकाष्ठा है यहां चहुँ ओर । आप कुछ नहीं कर सकते ।  

सितंबर 01, 2010

स्विस बैंक से नहीं मिल पायेगी जानकारी


 स्विट्जरलैंड के साथ हुए नए समझौते से भी भारत को स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के कालेधन का पता लगाने में ज्यादा मदद नहीं मिल पाएगी। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि स्विट्जरलैंड की कानूनी व्यवस्थाओं के कारण वहां से बैंकिंग लेनदेन के बारे में कोई सूचना मिलना मुश्किल है।
दोहरे कराधान को टालने के लिए सोमवार को नया समझौता हुआ था। इसके तहत भारत को स्विट्जरलैंड से सिर्फ कर संबंधी जानकारी व्यापक रूप में मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि समझौते के तहत स्विट्जरलैंड सिर्फ भविष्य में होने वाले लेनदेन से संबंधित सूचनाएं देगा।
पूर्व के लेनदेन से संबंधित सूचना इसके दायरे में नहीं आएंगी। मुखर्जी ने कहा कि दोनों संप्रभु राष्ट्र हैं और स्विट्जरलैंड भारत का मातहत नहीं। वित्त मंत्री ने यह बात भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के एक सवाल के जवाब में कही।

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