पुलिस ने हमारे शहर में यातायात सुधार का जिम्मा उठाया है । यह प्रयास सुधार की दिशा में कम, रकम वसूली की दिशा में कहीं ज्यादा कारगर साबित होता दिख रहा है । समझने के रेल्वे स्टेशन के बाहर का हाल कहना ही बहुत है । यहाँ रेल्वे प्रबंधन ने बाकयदा पार्किंग बनाई है । चार पहिया वाहन की ही बात करें ,तो जानिये कि यहाँ हर रोज एक हजार से भी ज्यादा कारें आतीं हैं , जिनमें से लगभग आधी गाड़ियाँ निर्धारित पार्किंग में खड़ी होती हैं ,जिनका 10 रुपये किराया वसूल किया जाता है ,और इसकी रसीद के पीछे छपी तमाम लाईनों में एक लाईन यह भी लिखी होती है कि यदि निर्धारित स्थल पर गाड़ी पार्क नहीं की गई तो रेल्वे प्रशासन 100 रुपये तक का जुर्माना वसूल सकता है । लेकिन यहाँ जिला पुलिस के अधिकारी-कर्मचारी जिनकी ड्युटी प्री पेड ऑटो के लिए बूथ पर लगी होती है ,वे लोग 6 - 7 बिहारी - झारखण्डी लड्कों को अवैध रूप से यहाँ तैनात रखते हैं और इनकी मदद से एक कार से 500 रुपये से 1000 रूपये तक की वसूली करते हैं । क्या यही है पुलिस का मूल काम ? क्या रेल्वे ने जिला पुलिस को यहाँ गुण्डागर्दी के लिए हायर कर रखा है ? या फ़िर इसमें भी सबका हिस्सा है ?
शहर में आम आदमी जगह - जगह तंग है । कहीं भी यह स्पष्ट नहीं है कि वाहनों की पार्किंग कहाँ-कहाँ करना है और कहाँ-कहाँ नहीं । मामला स्टेशन का हो या फ़िर शहर का बगल में खड़ी पुलिस आपको वाहन खड़ा करता देख कुछ भी बोलने-बताने सामने नहीं आयेगी , जैसे ही आप वाहन खड़ा करेंगे ,वह एक चालान की पर्ची काट कर आपसे वसूली का जबरिया प्रयास करते दिखेंगे । सवाल है यह पुलिस जनता के भले के लिये है या जनता अवैध-बलात वसूली के लिए है ? है किसी अधिकारी के पास जवाब ? क्या यही तरीका है सही पुलिसिंग का ? जब राजधानी में प्रदेश शासन की आखों में इस तरह के काम जायज ठहरा कर ये नौकरशाह कर गुजर रहे हैं तो दूर दराज में कैसा होगा इनका हाल ??? क्या ऐसा ही होता है संवेदनशील प्रशासन ??? क्या नेता और अधिकारियों की जेबें भर कर होगा पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय का अन्त्योदय ? क्या ऐसे ही हो इस आशा के साथ जनता ने दोबारा इस पार्टी पर अपना विश्वास व्यक्त किया था ? इन खबरों को शहर के लीडिंग अखबार भी लगातार प्रकाशित करते आ रहे है लेकिन शासन-प्रशासन अब मानो निर्लज्ज हो चुके हैं ,पैसा कमाने के आगे वह कुछ भी सुनना नहीं चाहते । मनमानी ही नहीं अंधेर की परकाष्ठा है यहां चहुँ ओर । आप कुछ नहीं कर सकते ।
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
सितंबर 02, 2010
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बहुत गुंडागर्दी मच रही है स्टेशन पर
जवाब देंहटाएंजबरदस्ती वसूली और लूट खसोट।
अच्छी पोस्ट-आभार
धन्यवाद ललितजी । लोग आखिर इसका विरोध क्यों नहीं करते ?
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