कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कहते हैं बाबा रामदेव को राजनैतिक बातें नहीं करनी चाहिए , राजनीति करना ही है तो वे एक राजनैतिक पार्टी बनाना चाहते हैं , बना कर मैदान में आएं राजनीति में आएं फ़िर उनका मुकाबला करेंगे , उनकी बातों का जवाब दिया जायेगा … आदि आदि । मैं बाबा रामदेव का या दिग्विजय सिंह का ना तो समर्थक हूँ और ना ही विरोधी , पर दिग्विजय सिंह की बात मुझे गैर वाजिब लगी - अप्रजातांत्रिक लगी ,इसलिए मजबूर हुआ हूँ यहाँ कुछ लिखने को । कमोवेश बदतमीजी और बेशर्मी की राजनीति से पीड़ित है समूचा देश ।
क्या मैं दिग्विजय सिंह जी से यह जान सकता हूँ कि उन्हें ऐसा कहने का यह अधिकार कौन सा संविधान देता है ? क्या भारत का कोई नागरिक राजनीति की बातें कहने के लिए किसी दल में हो , यह जरूरी है ? कहाँ लिखा है ऐसा कोई नियम या कानून बताईये ? आपका बाबा रामदेव से वाद-विवाद चल रहा है इसका यह मतलब तो नहीं है कि आप जो आपके मन में आए कह दें ? काला धन विवाद का विषय है - वह चाहे राजनीतिक लोगों के पास हो , बड़े औद्योगिक घरानों के पास हो या फ़िर बाबा रामदेव या कोई और बाबा , संत , प्रवचनकारों के पास हो सब गलत है ,इसकी जाँच ही होनी चाहिए , बल्कि तत्काल प्रभाव से ऐसे चोरों को सजा दी जानी चाहिए । क्यों डरती है सरकारें ऐसी कार्यवाहियाँ करने से ? क्यों सालों साल से ऐसे बड़े और आर्थिक अपराधियों को संरक्षण देतीं है भारत सरकार ? इसका जबाव सीधे सीधे देना छोड़ कर बेकार की बकवास कर रहें हैं नेता गण । मैं पूछना चाहता हूँ कि क्यों बनने देते हैं काले धन से किसी भी बाबा का आश्रम ? जब कहीं भी काला धन लग रह होता है तब क्या करता रहता है शासन - प्रशासन ? जिसे जनता की गाड़ी कमाई का करोड़ो - अरबों रूपया सिर्फ़ कानून - व्यवस्था को समय पर लागू करने के लिए हर माह बतौर वेतन - भत्ता और सुविधाओं के रूप में दिया जाता है ? शर्म नहीं आती देश के कर्णधार बनने वालों को चोरी और सीना जोरी करते हुए ? अरे सा… कब तक सहेगी इस देश की जनता तुमको ? चोरी तुम करो , झूठ तुम बोलो , मक्कारी तुम करो , हत्याएं तुम करो , बलात्कार तुम करो , जनता के पैसों पर ऐय्याशियाँ तुम करो , काला धन देश के बाहर जमा कर देश द्रोह तुम करों , सत्ता पर कब्जा तुम करो , देश में जाति - धर्म , संप्रदाय को भड़का कर दंगा - फ़साद तुम करवाओ । देश को जगह जगह गिरवी रखते तुम घूमों , रक्षा सौदों में दलाली तुम खा जाओ । अमेरिका के हाँथो अपनी देश की जनता का भविष्य तुम बेच ड़ालो - तमाम गुप्त समझौते तुम करो , हवाला काण्ड तुम करो , शक्कर - तेल के माफ़िया तुम बनो , क्या नहीं कर रहे हो तुम ? और जब कोई तुम्हें आईना दिखाए तो उसे भला - बुरा कहो । क्या यही है तुम्हारा राष्ट्रीय चरित्र ? शर्म करो यार - शर्म करो , सुधरो अति हो गई है , बड़े बड़े राजे - महाराजे , तानाशाह नहीं टिक पाए , तुम क्या चीज हो सुधरो । भगवान से डरो । जनता से डरो जो बेकारी - भुखमरी और तमाम तरह की बदहाली के बाद भी तुमको झेल रही है , कुछ कर नहीं रही है तुम्हारा … लेकिन कब तक ? पानी सर से ऊपर जाता जा रहा है ।