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रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा   :  मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।

फ़रवरी 25, 2011

बदतमीजी और बेशर्मी की राजनीति से पीड़ित है समूचा देश




कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कहते हैं बाबा रामदेव को राजनैतिक बातें नहीं करनी चाहिए , राजनीति करना ही है तो वे एक राजनैतिक पार्टी बनाना चाहते हैं , बना कर  मैदान में आएं राजनीति में आएं फ़िर उनका मुकाबला करेंगे , उनकी बातों का जवाब दिया जायेगा … आदि आदि । मैं बाबा रामदेव का या दिग्विजय सिंह का ना तो समर्थक हूँ और ना ही विरोधी , पर दिग्विजय सिंह की बात मुझे गैर वाजिब लगी - अप्रजातांत्रिक लगी ,इसलिए मजबूर हुआ हूँ यहाँ कुछ लिखने को । कमोवेश  बदतमीजी और बेशर्मी की राजनीति से पीड़ित है समूचा देश ।
क्या मैं दिग्विजय सिंह जी से यह जान सकता हूँ कि उन्हें ऐसा कहने का यह अधिकार कौन सा संविधान देता है ? क्या भारत का कोई नागरिक राजनीति की बातें कहने के लिए किसी दल में हो , यह जरूरी है ? कहाँ लिखा है ऐसा कोई नियम या कानून बताईये ? आपका बाबा रामदेव से वाद-विवाद चल रहा है इसका यह मतलब तो नहीं है कि आप जो आपके मन में आए कह दें ? काला धन विवाद का विषय है - वह चाहे राजनीतिक लोगों के पास हो , बड़े औद्योगिक घरानों के पास हो या फ़िर बाबा रामदेव या कोई और बाबा , संत , प्रवचनकारों के पास हो सब गलत है ,इसकी जाँच ही होनी चाहिए , बल्कि तत्काल प्रभाव से ऐसे चोरों को सजा दी जानी चाहिए । क्यों डरती है सरकारें ऐसी कार्यवाहियाँ करने से ? क्यों सालों साल से ऐसे बड़े और आर्थिक अपराधियों को संरक्षण देतीं है भारत सरकार ? इसका जबाव सीधे सीधे देना छोड़ कर बेकार की बकवास कर रहें हैं नेता गण ।  मैं पूछना चाहता हूँ कि क्यों बनने देते हैं काले धन से किसी भी बाबा का आश्रम ? जब कहीं भी काला धन लग रह होता है तब क्या करता रहता है शासन - प्रशासन ? जिसे जनता की गाड़ी कमाई का करोड़ो - अरबों रूपया सिर्फ़ कानून - व्यवस्था को समय पर लागू करने के लिए हर माह बतौर वेतन - भत्ता  और सुविधाओं के रूप में दिया जाता है ? शर्म नहीं आती देश के कर्णधार बनने वालों को चोरी और सीना जोरी करते हुए ? अरे सा… कब तक सहेगी इस देश की जनता तुमको ? चोरी तुम करो , झूठ तुम बोलो , मक्कारी तुम करो , हत्याएं तुम करो , बलात्कार तुम करो , जनता के पैसों पर ऐय्याशियाँ तुम करो , काला धन देश के बाहर जमा कर देश द्रोह तुम करों , सत्ता पर कब्जा तुम करो , देश में जाति - धर्म , संप्रदाय को भड़का कर दंगा - फ़साद तुम करवाओ । देश को जगह जगह गिरवी रखते तुम घूमों , रक्षा सौदों  में दलाली तुम खा जाओ । अमेरिका के हाँथो अपनी देश की जनता का भविष्य तुम बेच ड़ालो - तमाम गुप्त समझौते तुम करो , हवाला काण्ड तुम करो , शक्कर - तेल के माफ़िया तुम बनो , क्या नहीं कर रहे हो तुम ? और जब कोई तुम्हें आईना दिखाए तो उसे भला - बुरा कहो । क्या यही है तुम्हारा राष्ट्रीय चरित्र ? शर्म करो यार - शर्म करो , सुधरो अति हो गई है , बड़े बड़े राजे - महाराजे , तानाशाह नहीं टिक पाए , तुम  क्या चीज हो सुधरो । भगवान से डरो । जनता से डरो  जो बेकारी - भुखमरी और तमाम तरह की बदहाली के बाद भी तुमको झेल रही है , कुछ कर नहीं रही है तुम्हारा … लेकिन कब तक ? पानी सर से ऊपर जाता जा रहा है ।      

फ़रवरी 21, 2011

छतीसगढ़ संदर्भ - 2011




प्रदेश का मौजूदा स्वरूप चिंता जनक है । यह प्रदेश के लोगों का मानना है लेकिन सरकार बड़ी
ही सहजता से इसे इंकार करती है । 18 जिलों वाले इस राज्य के सत्रह जिलों में नक्सलियों का
सिकंजा कसा हुआ है - अच्छा नेटवर्क है , यह स्वंय प्रदेश सरकार कहती है , कब ? जब
प्रदेश के मुख्यमंत्री , मुख्य सचिव , गृह सचिव और ऐसे ही महत्वपूर्ण पदों की शोभा बढ़ाने
वाले नेता और अधिकारी नई दिल्ली में प्रधान मंत्री , गृह मंत्री की बैठकों में पैसा और पैकेज
मांगने के लिए बोलते हैं । इन्हें प्रदेश के हर थाना क्षेत्र की सुरक्षा के लिए केंद्र से 200करोड़
रुपया चाहिए । राजनीति शास्त्र कहता है - " राज्य एक लोकतांत्रिक संस्था है। " लेकिन हमारे
राज्य में आकर देखिए तो एहसास होगा यह एक वर्ग विशेष की बेहद नीजि सी संस्था है ।
 यहाँ अमीरी और गरीबी की खाई बेहद तेजी से बढ़ रही है । गरीबों की जमीनें धनवानों को
और अधिक धनवान बना रहीं हैं , वहीं गरीबों को न केवल गरीब वरन  आगे चल कर
भूमिहीन और निकम्मा बनाने की बहुत ही सोची-समझी साजिश का आसान शिकार बना रहीं है
। सबका मुंह बंद रखने के लिए निम्न आय वर्ग के लिए सस्ता चांवल देकर । ऐसा होने से
ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों में काम के प्रति उदासीनता बढ़ी देखी जा रही है , खतरा उनकी अगली
पीढ़ी को ज्यादा दिखता है , सरकार इसे अपनी सफ़लता बताने करोड़ों रूपयों के विज्ञापन देश
भर में छपवा कर एक तीर से दो निशाने कर रही है , अखबार भी खुश हैं कि उन्हें अच्छा
बिजनेस मिल रहा हैं छत्तीसगढ़ से और इसी बीच सरकार से जुड़े कथिपत लोग अपना उल्लू
सीधा करने में मस्त हैं । इन्हें मालूम है कि सदा चलने वाली योजना नहीं है यह , जब तक
चल रही तब तक निम्न आय वर्ग की जनता इस एक छोटे से ही सही मगर स्वार्थवश उनके
(सरकार) साथ है , विरोध नहीं करेगी , इस बीच जो करना है कर गुजरो कौन सा जीवन भर
सत्ता सुख भोगा है कोई , लेकिन आज जब मौका है तब तो पीढ़ियों के कमाया ही जा सकता है
।  कोई भी यदि इस ओर ध्यान दिलाना चाहे तो शासन - प्रशासन में बैठे सूरमा आक्रामक हो
उठते हैं जबकि नीति कहती है कि राज्य के संचालन से जुड़े इस वर्ग को आक्रामक होने का
अधिकार नहीं है । जिन शोषकों के विरूद्ध राज्य को आक्रामक होना चाहिए , उनके प्रति उनका
नम्र और अपनेपन का व्यवहार देखते ही बनता है । राज्य की  -  गरीब किसानों  की स्थाई
संपत्तियों का हस्तानांतरण इस बात के दस्तावेजी साक्ष्य हैं - ऐतिहासिक गवाही बन पड़े हैं ।
 बेहद ही अफ़सोस के साथ यहाँ यह कहना पड़ रहा है कि यह राज्य अपने निर्माण काल से
अब तक बीते दस वर्षों में अपने यहाँ ऐसा वातावरण तैयार करने में पूर्णतः असफ़ल रहा है
जिससे कि राज्य में अपराध को रोका - नियंत्रित किया जा सके । उल्टे रसूकदार अपराधियों
को पकड़ने वालों को सजा मिलती है यहाँ , ए एस पी शशिमोहन इसका जीवंत उदाहरण हैं ,
जिन्होने दूसरा कारण बना कर दो साल की छुट्टी पर रहना ,नौकरी करने से कहीं ज्यादा सही
समझा और किया । अच्छा होता यदि यहाँ लोकतांत्रिक प्रणाली को इतना कुशल बनाया जाता
जिसके सहारे अपराध पर अंकुश लगाने में मदद मिल सके ,लेकिन ऐसा होने नहीं दिया गया ,
क्योंकि अपराध में इनके ही लोग जो शामिल हो गये । यहाँ झूठ और मक्कारी की मदद से
आर्थिक अपराध ने अपनी खासी पैठ बना ली है ।
 संक्षेप में यह कहना गलत नहीं होगा कि शोषण के मामले में यहाँ किसी एक राजनीतिक दल
को दोषी नहीं ठहराया जा सकता , सभी के नेता जिन्हें जैसा मौका मिल रहा है दोनो हाँथों से
लूटने में लगे हैं , मौसेरे भाईयों की ही तरह  और जनता है कि ठगी सी बैठी खुद को लुटता
देख रही है । अराजकता का इससे ज्यादा शालीन स्वरूप शायद ही किसी देश - दुनियाँ मे
देखने - सुनने को मिले । जहाँ नदी , नाले , तालाब , पोखर , पहाड़ , बेश्कीमती हीरों की
खदानें , यूरेनियम से समृद्ध टिन की खदानें सब अंदर ही अंदर बिक रहीं हैं  वहीं नहीं बिक
रहा है तो कवर्धा के किसानों का गन्ना , प्रदेश के किसानों का अच्छा धान - ओन्हारी । कौन
है इन तमाम दुर्दशा का जिम्मेदार ? मैं कहुंगा प्रजातंत्र की आड़ लेकर किया जा रहा तानाशाही
का शासन ही है जिम्मेदार , जो अभी और बढ़ेगा , अति होगी , शायद तभी अंत आएगा ।
मगर  आज एक आम मध्यम वर्गीय व्यक्ति का जीवन दूभर हो चला है यहाँ । उच्च वर्ग पंच
मेवा की खीर खा रहा है - निम्न वर्ग चांवल - नमक और सस्ती शराब में खुश है । मध्यम
वर्ग को दो समय का खाना कमाना यहाँ दुष्कर हो रहा है । यह तो हाल है अमीर धरती के
गरीब लोगों का ।



फ़रवरी 14, 2011

मिस्र की जनता को मुबारक बाद


                                        मिस्र की जनता को   "गांधीगिरी" मुबारक 

अलविदा , होस्नी मुबारक
दुनिया भर से मिस्र की जनता को सराहा जा रहा है । उसकी एकजुटता जनित क्रांति की अप्रत्यासित सफलता पर बधाइयां - शुभकामनाएं मिल रही हैं । तहरीर चौक पर मिस्र की जनता ने एक तरह से सत्याग्रह के जरिए ही आंदोलन छेड़ा और जीत हासिल की। यह जनक्रांति इतनी जल्दी अपने उद्देश्य में सफ़ल साबित हो जाएगी, इसका अनुमान तो था , पर इतनी जल्दी , इसका अनुमान शायद किसी को भी नहीं रहा होगा । मिस्र में आए इस ऐतिहासिक बदलाव के पीछे इंटरनेट पर चलने वाली फेसबुक जैसी कई सोशल नेटवर्किंग साईट की भी बहुत अहम भूमिका रही। यही वजह थी कि आम जनता एक दूसरे के सीधे संपर्क में आकर सड़कों पर निकल आई। विश्व के राजनैतिक इतिहास में सत्ता परिवर्तन के लिए जितनी भी क्रांतियां हुई हैं, उनमें नेतृत्व व्यक्ति या दल आधारित रहा है। लेकिन मिस्र में मुबारक की तानाशाही के खिलाफ जनता का स्वत:स्फूर्त आंदोलन था। हांलाकि मुस्लिम ब्रदरहुड की अग्रणी भूमिका इस आंदोलन में रही । होस्नी मुबारक के लगातार 30 सालों के शासन के दौरान देश में जहां भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी , भूखमरी और गरीबी ने जहाँ पूरे मिस्र में पैर पसारा वहीं राष्ट्रपति मुबारक स्वयं दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बनने में पूरी तरह सफल रहे । मुबारक के धन कुबेर होने का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे इस समय लगभग 70 अरब डालर की संपत्ति के स्वामी हैं।  तीन हफ्तों के संघर्ष के बाद यह प्रश्न अपनी जगह कायम है कि मिस्र में सत्ता की कमान कौन संभालेगा ? फिलहाल सेना इस भूमिका को निभा रही है। और उसने आश्वस्त किया है कि जल्द ही नागरिक सत्ता स्थापित की जाएगी।  अन्यथा पूर्व के अनुभव यह बताते हैं कि जब सेना के हाथों देश की सत्ता आती है, तो फिर सैन्य तानाशाही का रास्ता ही प्रशस्त होता है। मुबारक का बेटा, जिसे वे अपने बाद सत्ता सौंपने के इच्छुक थे, पहले ही देश छोड़कर जा चुका था और जब होस्नी मुबारक को यह अहसास हो गया कि वे किसी भी तरह आंदोलनकारियों को झुका नहीं सकते, तो उन्हें पद छोड़ना ही पड़ा।  मिस्र में लोकतंत्र की स्थापना में सेना किस तरह से सहयोग करेगी,  अब यह बड़ा सवाल है। समुचे विश्व को संदेश देने में सफ़ल हुआ यह आंदोलन मिस्र की जनता आगे कितना सफ़ल जीवन दिला पाता है इस ओर समूचे संसार की निगाहें हैं । तमाम तानाशाहों को अब सावधान हो जाना चाहिए । नैतिकता की ताकत कितनी अक्षुण्य है संसार ने देखा और सीखा है । जनता अब तानाशाहों के द्वारा विश्वस्तर पर आंख मूंद कर मचाई जाने वाली लूट-खसोट तथा धन-संपत्ति के अथाह संग्रह को भी और अधिक सहन करने के मूड में हरगिज़ नहीं है । दुनिया के लोग अब जागरुक हैं, अपने व अपनी आने वाली नस्लों के भविष्य को लेकर वे चिंतित हैं ।
 साथ ही एक सवाल यह भी है कि क्या भारत की जनता भी कभी जागेगी जमाखोरी , मुनाफ़ाखोरी ,भ्रष्टाचारियों और भूमाफ़ियाओं के खिलाफ़ ?  इन तमाम बुराईयों की जड़ राज नेताओं के खिलाफ़ ??  भ्रष्ट और तानाशाह सरकारी अफ़सरों की मनमानी के खिलाफ़ ???

फ़रवरी 11, 2011

छत्तीसगढ़ का एक त्योहार (छत्तीसगढ़ी तिहार) "छेरछेरा पुन्नी"

छेरछेरा मांगने निकले बच्चे । फोटो  साभार : तेजेन्द्र ताम्रकार फ़्लीकर्स

धान का कटोरा
छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति यहाँ के लोकमानस मे लोक रंगों की अनेक विधाएं है जो यहाँ  के  लोकजीवन का सहज चित्रण करती है| छत्तीसगढ़ मे वर्ष भर तरह - तरह के जनश्रुति से जुड़े त्योहार मनाये जाते है | पूष माह की पूर्णिमा को यहाँ समूचे प्रदेश में  "छेरछेरा" का त्योहार पारम्परिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है , यह छत्तीसगढ़ की कृषि प्रधान संस्कृति और  ग्रामीण जनजीवन में सम्पन्नता और समानता में समन्वय की भावना को प्रकट करता है | "छेरछेरा ,माई कोठी के धान हेर हेरा " के सामुहिक घोष के साथ बच्चे-बड़े मनना आरंभ करते हैं इस त्योहार को मनाना । गाँव ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी मनाया जाता है यह त्योहार । समूचे देश में छत्तीसगढ़ को " धान का कटोरा " के नाम से जाना जाता है । Bowl of Rice( paddy ) .


   छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर लोग धान जो इस प्रदेश की मुख्य फ़सल है , वह मुट्ठी भर माँगते हैं । जिसकी जितनी समाई होती होती है वह अपने द्वार आने वाले को उतना धान दान देता है । यहाँ यह दान सभी छोटे-बड़े , सभी वर्ग के लोग देते - लेते हैं । इसके पीछे की कथा रतनपुर के महाराजा कल्याण साय के इस दिन अपने राज्य वापस लौटने की खुशी से जुड़ी है । आठ वर्षों बाद महाराज दिल्ली से वापस अपनी राजधानी रतनपुर (अब बिलासपुर जिला में )लौटे थे , जिसकी खुशी में राज्य में धन-धान्य लुटाया गया था । राज कोष के अलावा प्रजा ने भी अपना धन-धान्य , कोठियों में रखा - जमा किया हुआ धान दान कर खुशी का इजहार किया था । इस सब को देखकर प्रसन्न हो कर महराज ने यह घोषणा की थी कि अब से हर वर्ष इसी तिथी को "छेरछेरा" पर्व मनाया जाएगा । तभी से प्रतिवर्ष यह त्योहार लोक परंपरा के अनुसार पौष माह की पूर्णिमा को  " छेरछेरा पुन्नी " के नाम से  मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियाँ हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा माँगते हैं। वहीं युवकों की टोलियाँ डंडा नृत्य कर घर-घर पहुँचती हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा माँगने वालों को मुक्त हस्त दान देते हैं। इसी त्योहार में छत्तीसगढ़ के तमाम जमीदारों - दाऊ कहे जाने वाले सम्पन्न लोगों ने जरूरतमंदों - ब्राह्मणों को जमीन -जायदाद आदि भी दान दिया है । मंदिर-देवालय बनवाये हैं ।बहुत ही समृद्धशाली है छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पुन्नी का इतिहास । इस दिन लोग इतने प्रसन्न बदन देखे जाते कि वे इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहते हैं - पूरे दिन इस त्योहार की उमंग - तरंग में खोए रहते हैं । इस दिन लोग प्रायः गाँव छोड़कर बाहर नहीं जाते ।

फ़रवरी 07, 2011

" ब्रह्मकमल "

ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है । तालाबों या पानी के पास नहीं बल्कि ज़मीन पर होता है। ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। और इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं।
ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौंधा है। इसका नाम स्वीडर के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है।
ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है।
इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है।
इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है । इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।

फ़रवरी 04, 2011

आखिर कब तक चूड़ी पहनी बैठी रहे जनता …?


मंहगाई की मार ने किसी को भी नहीं छोड़ा है । रोटी , दाल और सब्जी की जद्दोजहद इस दशा में दोहरा सरदर्द बन गया है । हमारे देश में अभी मंहगाई दर 17.7% है । आम आदमी का बजट शक्कर , प्याज , टमाटर और आलू जैसी रोजमर्रा की चीजों ने बिगाड़ रहा है । मंहगाई और मनमोहन सरकार का मानो चोली दामन का साथ हो गया है । दु:खद है  विश्व के एक जानेमाने अर्थ शास्त्री के प्रधान मंत्री रहते हुए अर्थ से जुड़े मुद्दे में उसका अपने ही  देश के सामने असफ़ल सिद्ध होना ।
इससे भी कहीं ज्यादा दु:खद है बेकाबू मंहगाई पर देश के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का बेतुका बयान - यह कहना कि " मंहगाई को कम करने के उनके पास कोई जादू की छड़ी या अलादीन का चिराग नहीं है । " मैं इसे सरकार की नाकामी ही नहीं बल्कि बेशर्मी भरा कथन मानता हूँ । किसने कहा है कि आपके पास जादू की छड़ी है , या आपको जादू की छड़ी हाँथ में ले कर शासन चलाना है  , किसने कहा है या आपसे ऐसा बेतुका सवाल किया है , जो आप समूचे  देश के सामने ऐसा सीना तानकर कह रहे हैं ? आपको सत्ता क्या केवल सुख भोगने और भौंकने के लिए दी गई है क्या ? अरे समूचे देश के सामने बोलने का सहूर तो होना चाहिए । क्यों भूलते हो कि तुम कहीं के राजा या फ़िर तानाशाह नहीं हो , फ़िर ऐसी भाषा कैसे बोलने का साहस कर गुजरते हो ? अच्छे - अच्छे राजा और तानाशाह तो धूल चाट गये और चाट रहें है । मिश्र की राजधानी काहिरा का ही हाल देख लो । तमाम तानाशाहों और उनके अरबी मुल्कों का हाल देख कर भी नहीं सीखना चाहते , प्रजातंत्र के हिमायती बनते हो , शर्म करो - जनता से डरो , अपने देश की माटी से डरो , जमीन में ही रहो और मर्यादित रहो वर्ना यहाँ भी वह दिन दूर नहीं जब घर- दफ़्तर में घुस कर जनमानस तुमको कुर्सी से उठा बाहर फ़ेंक देगा , धरा का धरा रह जाएगा तुम्हारा सारा धन और घमण्ड । बेकारी - बेबसी में वर्षों से जीती आ रही जनता और कितने दिन क्या-क्या सहेगी ? तुम बैठे हो समस्या सुलझाने की जगह पर समस्या सुलझाने की वजाय उलझाने और भड़काने वाली बातें करते हो अपने बयानों में क्या यही है तुम्हारी राजनीतिक दूर दर्शिता- दक्षता ? यही है देश का भविष्य संवारने वाला बयान ? अरे नहीं सम्हलती है कुर्सी तो छोड़ो - हटो । 70-70 वर्ष के हो रहे हो , चलते फ़िरते नहीं बन रहा है , बोलते नहीं बन रहा है , अपने पैरों पर चल नहीं पा रहे हो , व्हील चेयर चाहिए सबको वह भी जनता के पैसों से , कोई मौलिक सोच नहीं है साहस नहीं है फ़िर भ्रष्टाचार करना है करके बने हुए हो पूरी बेशर्मी के साथ , क्या है यह सब  ? है कोई जवाब ?
इतनी ही बेशर्म हैं तमाम राज्य सरकारें मंहगाई की बेकाबू चाल पर ये बेशर्म सरकारें खुश हैं , जनता को बताना चाहती हैं मंहगाई तो केन्द्र सरकार की गलत नीतियों की वजह से बढ़ रही है । ये राज्य सरकारें यदि अपने ही प्रदेश की जनता की हिमायती हैं तो क्यों नहीं ये अपने अपने राज्यों में  मंहगाई पर काबू पाने - अपनी जनता को राहत देने ये मंडी टैक्स , तमाम तरह के अन्य स्थानीय (Local) टैक्स , ऑक्ट्रॉय कम या माफ़ कर देतीं ? ऐसा करने से उन प्रदेशों में तो मंहगाई कम होगी । केन्द्र हो या राज्य की सरकारें सब केवल जनता को ही बेवकूफ़ समझें और उसी से बेतुकी - बदमिजाजी की बातें करती रहें कब तक चलेग यह सब ? अखिर कब तक ??? आखिर कब तक भारत का बेरोजगार - किसान - आम आदमी - बेबस महिलाएं , नेताओं की हवस का शिकार महिलाएं - बच्चियाँ आत्महत्या का , हत्या का शिकार होती रहें ? कब तक आम जनता चूड़ी पहनी बैठी रहे ???

फ़िल्म दिल्ली 6 का गाना 'सास गारी देवे' - ओरिजनल गाना यहाँ सुनिए…

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