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रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा   :  मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।

जून 30, 2010

नक्सली आतंक और अधिकारियों के काहिलपन से शर्मसार है छत्तीसगढ़ , 27 जवान और हुए शहीद

रायपुर .30 जून . छत्तीसगढ़ के राज्यपाल  शेखर दत्त, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और गृह मंत्री  ननकी राम कंवर ने रायपुर  माना कैम्प में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के उन शहीद जवानों को विनम्र श्रध्दांजलि अर्पित की, जो नारायणपुर जिले में धौड़ाई के पास कल नक्सलियों का मुकाबला करते हुए शहीद हो गए थे। श्रध्दांजलि कार्यक्रम में प्रदेश सरकार के अनेक मंत्री, विधायक तथा राज्य शासन और पुलिस और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए।

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में धौड़ाई के पास नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में मंगलवार २९ जून को   "सी आर पी एफ़ " एवम जिला पुलिस   के 26  जवान शहीद हो गए । नक्सलियों ने यह हमला दोपहर 1.30 बजे के आस-पास किया । तीन माह में नक्सलियों के द्वारा किया गया यह तीसरा बड़ा हमला है । इस बार घात लगाकर बैठे लगभग 600 नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 70 जवानों पर हमला किया ।अप्रैल से जून के बीच यह नक्सलियों का तीसरा बड़ा हमला है। चिंतलनार के पास किए गए हमले में नक्सलियों ने 76 जवानों की हत्या कर उनके सारे हथियार लूट लिए थे। सुकमा के पास नक्सलियों ने एक यात्री बस को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया था, जिसमें गश्त से लौट रहे एसपीओ काफी संख्या में बैठे थे। हमले में 31 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें एसपीओ 15 और 16 सिविलियंस थे।छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में नक्सली हमले के बाद से लापता केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान का शव पुलिस ने बरामद कर लिया है। इस घटना में अब शहीदों की संख्या बढ़कर 27 हो गई है।
      शर्मनाक एवम बेहद खेदजनक विषय यह है कि करोड़ों रुपये फ़ूंक कर भी हमारा गुप्तचर विभाग क्या करता है किसी के भी समझ नहीं आता है । ऐसा शायद ही कभी हुआ हो हमारी इस सरकारी एजेंसी की खबर से किसी की जान बची हो । नक्सली    समस्या    से निबटते हुए  एक ओर जहां जवान बस्तर के बीहड़ वनों में अपनी जान से हांथ धो रहे हैं वहीं दुसरी ओर आला अफ़सर राजधानी में बेशर्मी के साथ ए सी चला कर चैन की नींद सो रहे हैं । शर्म आनी चाहिए अधिकारियों को । पुलिस कब -कहां से आ जा रही है ,नक्सलियों को इसकी खबर हो जाती है और वो हमला करने में सफ़ल हो जाते हैं , लेकिन  खुफ़िया तंत्र के नाम पर करोड़ो रुपये खर्च करने वाली हमारी पुलिस को यह भी नहीं मालुम हो पाता है सैकड़ों की संख्या में नक्सली कहां आ जा रहे हैं ,कितनी शर्मनाक बात है यह ?
नक्सलियों ने राज्य में एक बार फिर बड़े हमले को अंजाम देकर हम सभी की नींद उड़ा दी है ।  नारायणपुर जिले में दोपहर करीब डेढ़ बजे 500 से भी अधिक  नक्सलियों ने घात लगाकर गश्त पर निकले जवानों पर हमला कर दिया, जिसमें 26 जवान शहीद हो गए। नक्सली हमले में 12 से भी ज्यादा जवान बुरी तरह से घायल बताए जा रहे  हैं । मृतकों की संख्या और बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। घायलों को जगदलपुर अस्पताल लाया गया है । यह  घटना नारायणपुर से 32 किमी दूर सीआरपीएफ के धौड़ाई कैम्प के पास हुई। सीआरपीएफ के 70 जवानों की टीम आज सुबह कैंप से रोड ओपनिंग के लिए निकली थी। उसके साथ नारायणपुर जिला पुलिस और एसपीओ के जवान भी थे। काम खत्म करने के बाद पूरी टीम दोपहर को पैदल वापस लौट रही थी।
कैंप से करीब साढ़े तीन किमी दूर महिमागावाड़ी के पास नक्सली घात लगाकर बैठे थे। पुलिस को संदेह है कि नक्सलियों को पहले ही भनक लग गई थी कि जवानों की एक टुकडी  सुबह से  रोड ओपनिंग के लिए निकली है जिस  पर नक्सली दूर से नजर रखे हुए थे। रेंज में आते ही एके 47 जैसे हथियारों से लैस नक्सलियों ने उन पर बेहिसाब  फायरिंग शुरू कर दी। बताया गया है कि ज्यादातर  जवानों की मौतें नक्सलियों की तरफ से हुई पहली फायरिंग से ही हुईं। सीआरपीएफ और जिला पुलिस के जवानों ने भी जवाबी हमला  किया। सीआरपीएफ के आईजी आरके दुआ ने बताया कि मुठभेड़ करीब ढाई घंटे तक चली। डीजीपी  छत्तीसगढ़  विश्वरंजन ने  इस मुठभेड़ में 26 जवानों के मारे जाने की पुष्टि कर दी है। घायलों में से चार की हालत चिंताजनक बताई जा रही है। घायलों को सड़क के रास्ते जगदलपुर के महारानी अस्पताल लाया गया।
लचर संचार व्यवस्था होने के कारण  प्रशासन को हादसे की सूचना में देरी हुई। शाम तक सूचना थी कि मुठभेड़ में सीआरपीएफ के चार जवान घायल हुए हैं। रात करीब साढ़े आठ बजे स्थिती साफ हुई कि फायरिंग में काफी संख्या में जवान शहीद हुए हैं। घायलों को लाने के लिए वायुसेना का हेलिकॉप्टर भी भेजा गया था, लेकिन कुछ कारणों से वह घटनास्थल के पास नहीं  उतर  पाया।
मुख्यमंत्री ने बुलाई आपात बैठक
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य के नारायणपुर जिले में धौड़ाई के पास नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले की तीव्र निंदा की है। डॉ. सिंह ने इस वारदात के दौरान नक्सलियों का मुकाबला करते हुए सुरक्षा बलों के अनेक जवानों की शहादत पर गहरा दु:ख व्यक्त किया है और शहीद जवानों के शोक संतप्त परिवारजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट की है। मुख्यमंत्री ने घायल जवानों के जल्द स्वास्थ्य लाभ की कामना की है और अधिकारियों से कहा है कि उनका बेहतर से बेहतर इलाज सुनिश्चित किया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा है कि नक्सलियों में इतना नैतिक साहस नहीं है कि वे हमारे बहादुर जवानों से आमने-सामने मुकाबला कर सके, इसलिए उन्होंने कायरता का परिचय देते हुए छुपकर वार किया है और हमारे वीर जवानों की हत्या की है। मानव अधिकारों में आस्था रखने वाले सभी शांतिप्रिय नागरिकों और संगठनों को हर प्रकार के वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर नक्सलियों की इस शर्मनाक हरकत की एक स्वर से निंदा करनी चाहिए। डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने आम जनता और सुरक्षा बलों के जांबाज जवानों के सहयोग से बस्तर संभाग सहित राज्य के अन्य नक्सल पीड़ित जिलों को भी नक्सल हिंसा और आतंक से मुक्त करने का संकल्प लिया है। हमारे जवानों का मनोबल बहुत ऊंचा है और वे पूरी दृढ़ता के साथ नक्सलियों का मुकाबला कर रहे हैं। डॉ. सिंह ने कहा कि आज की इस घटना में सुरक्षा बलों के जवानों ने बस्तर संभाग और नारायणपुर जिले की जनता को नक्सल आतंक से मुक्त करने के अभियान में अपने प्राणों की आहुति दी है। उनकी यह शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी।
आपात बैठक
डॉ. रमन सिंह ने इस वारदात की जानकारी मिलते ही आज रात यहां अपने आवासीय कार्यालय में प्रदेश सरकार के गृह मंत्री ननकी राम कंवर, मुख्य सचिव  पी. जॉय उम्मेन, गृह विभाग के प्रमुख सचिव  एन.के. असवाल और पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की आपात बैठक लेकर स्थिति की पूरी जानकारी ली और उन्हें जरूरी दिशा-निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने इस घटना के बारे में केन्द्रीय गृह मंत्री  पी. चिदम्बरम् से भी टेलीफोन पर विचार-विमर्श किया। श्री चिदम्बरम् ने भी घटना की तीव्र निदां की और जवानों की शहादत पर गहरा दु:ख प्रकट किया। चिदम्बरम् ने मुख्यमंत्री को छत्तीसगढ़ में नक्सल हिंसा से निपटने के लिए केन्द्र की ओर से निरन्तर सहयोग जारी रखने का भरोसा दिलाया।        
वैसे तो यह खबर आज सभी अखबारों में प्रकाशित हो जायेगी , पर शायद इस अन्दाज में न हो पाए । मजबूर हैं हमारे साथी भी । यहां यह खबर हम अपने ब्लॉगर साथियों के लिए लिख रहें हैं वो भी रात को करीब जब सवा बज चुके हैं । निःसंदेह यह घटना निदंनीय है । कायराना है । लेकिन उनके बारे में क्या कहेंगे जिन्हें  सम्हालने का जिम्मा मिला है और जो राजधानी की राजनीति से उबरना नहीं चाहते , पी एच क्यू से बाहर झांकना नहीं चाहते ? कौन कसेगा इन अधिकारियों पर सिकंजा ? ये जंगलों में जा कर क्यों काम नहीं करेंगे ? कब तक चलेगा ऐसा ही ?
अहम सवाल यह है कि आखिर और कब तक मारे जायेंगे जवान ?  कब तक यूं ही जाती रहेगी हमारे जवानों की जानें ?  और क्या देखना -  दिखाना चाहती है ,केन्द्र और राज्य की सरकारें ?  

अब तक की प्रमुख घटनायें _

  • 08 मई 2010 को बारुदी सुरंग विस्फ़ोट , बीजापुर कोडेपाल में  में 08 जवान शहीद
  • 06 अप्रैल 2010 को बारुदी सुरंग विस्फ़ोट और मुठ्भेड, ताड़मेटला में 76 जवान शहीद
  • 12 जुलाई 2009 को मदनवाड़ा राजनांदगांव में सीधा हमला कर पुलिस अधीक्षक (एस  पी) वी के  चौबे समेत 29 पुलिस कर्मी शहीद हुए ।
  • 20 जून 2009 को कोकावाड़ा तोंगपाल में बारूदी सुरंग विस्फ़ोट ,   09 जवान शहीद
  • जवाबों मई को रिसगांव धमतरी में हमला किया ,13 जवान शहीद अनेक घायल
  • 10 अप्रैल  2009 को जगरगुण्ड़ा चिन्तागुफ़ा में पुलिस से मुठभेड़ हुई 09 जवान शहीद हुए
  • 25 नवम्बर 2008 को मर्दापाल में बारुदी सुरंग विस्फ़ोट  06 जवान शहीद हुए
  • 20 अक्टूबर 2008 को बीजापुर कोंगुपल्ली में बारुदी सुरंग विस्फ़ोट ,12 जवान शहीद
  • 29 सितम्बर 2008 को मारीकोडेर में बारुदी सुरंग विस्फ़ोट में 04 जवान शहीद
  • 29 अगस्त 2008 को छेरीबेडा बेनूर में बारुदी सुरंग विस्फ़ोट  ,06 जवान शहीद
  • 18 मार्च 2008 को धरमावरम पामेड में मुठभेड़ हुई 17 नक्सली मारे गए थे
  • 18 फ़रवरी 2008 को तड्केल में  मुठभेड़ हुई 06 जवान शहीद हो गए थे
  • 09 जुलाई 2008 जगरगुण्डा उपलमेटा में मुठभेड़ हुई 24 जवान शहीद हो गए थे
  • 15 मार्च 2007 को रानी बोदली कुटरू में पुलिस के कैम्प पर हमला किया गया 55 जवान शहीद,18 घायल
  • 18 जुन 2006 को बन्डा कोंटा में बारुदी सुरंग विस्फ़ोट कर 04 जवानों को शहीद किया
  • इसी माह (जून 2006) में नक्सलियों ने  दंतेवाडा के एर्राबोर राहत शिविर में हमला कर 33 आदिवासियों की निर्मम हत्या की 
  • नक्सलियों द्गारा मारे गये एस  पी ओ , गला रेत कर मारे गये  बेकसूर ग्रामीण  जनों की संख्या हजारों में  बताई जाती है । 

जून 29, 2010

ये अखबार वाले

राजधानी बनने के बाद से रायपुर में मानो अखबारों की बाढ़ सी आ गई है । दूर देश बैठे लोग भी मानो सूंघ-सूंघ कर चले आ रहे हैं यहां । नित्य  नये अखबार खुलने लगे हैं यहां ।  एक अखबार और आया है शहर में । स्वागत है । अखबार शुरु होने में अभी समय है । यहां हमें किसी अखबार से कुछ लेना - देना नहीं है  , लेकिन बिक्री के उसके तौर-तरीके ने आज हमें इस विषय  पर आपके साथ जरूर थोड़ा बात करेंगे को मजबूर किया है । तरीका कोई ज्यादा नया भी नहीं है , हाल के ही कुछ वर्षों में अख्तियार किया गया है ।सभी नें किया है । अब चलन सा बन गया है ।
हमको लगता है अब शायद ही कोई अखबार बिना किसी सहारे के बिक पायेगा ,  तभी शायद  इसे बेचने  निकलने वाले  अखबार के साथ स्टील या कांच  के बर्तन , चटाई या फ़िर पूजा का आसन  या फ़िर प्लास्टिक की बाल्टी , सोडा , सर्फ़ साबुन जैसे तरह-तरह के अन्य होम एप्लायसेंस  के सहारे अखबार का ग्राहक बनाने गली-गली घूमते दिख जाया करते हैं । सवाल यह है कि ऐसा क्यों होने लगा है  ?   अखबार अपने नाम , अपने काम की वजह  से बिकेंगे ,ऐसा अखबार निकालने -चलाने वालों को क्यों नहीं लगता ? उनको अपने अखबार  की गुणवत्ता से कहीं ज्यादा भरोसा बाज़ार की घरेलू सामग्री पर और लोगों को लालच देने , भरमाने पर भला क्यों रहता है ?  लगता है कहीं न कहीं  वो भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि जो आम पाठकों  को चाहिए  वह सब  अब वो उन्हें उपलब्ध नहीं  करा पायेंगे । अखबार अब बिना किसी सहारे नहीं बिक पायेंगे , शायद । इसीलिए बीच का रास्ता अख्तियार करना पढ़ रहा है । लालच देकर ग्राहक पटाओ और सच्चाई ,सही- सही खबरें ना छाप कर  ,जन समस्याओं को न छाप कर उनको खुश रखो , उपकृत करो जिनसे पैकेज या विज्ञापन आदि मिलते हों । कुछ अखबारों ने तो बाकायदा ऐसे कुछ फ़ॉर्मेट तय कर लिये हैं कि चाहे जो हो जाये पर वो किस -किस के खिलाफ़ नहीं जायेंगे  या फ़िर किस-किस से समर्थन में कुछ नहीं लिखेंगे ।  इसके दिशा - निर्देश   " ऊपर " से होते हैं , जिसके लिए सड़कों पर गाली खाते हैं अखबारों के फ़ील्ड वर्कर , रिपोर्टर , मार्केटिंग  का  काम देखने वाले लोग । अंधी और दिशा हीन  दौड़   , सिर्फ़ और सिर्फ़ पैस कमाने की  होड़  में लगे  ये धन पिशाच से लोगों ने  कलंकित कर दिया है अखबार जगत को । अब भला इन्हें कोई कैसे यह समझा  सकता है कि   यार अपना उत्पाद ही ईमानदारी के साथ निकालें तो इन्हें किसी भी  दूसरे के उत्पाद का सहारा नहीं लेना पड़ेगा । लेकिन इनको तो कारपोरेट जगत में ऐनकेन प्रकारेण अपने आपको लेजाने  की सूझ रही है न । लोग क्या चाहते हैं ? इसकी चिंता भला ये क्यों करने लगे ?  कुछ भी छाप दो , अखबार बिकेगा  शैम्पू  ,तेल टेबल-कुर्सी , सी डी , डी वी डी ,  टी वी , घड़ी और पंखे  के सहारे । गया वो जमाना जब अखबार निकालना और उसे चलाना एक '" मिशन " हुआ करता  था ।  आज जमाना हुआ है " कमीशन " का । अखबार को धंधा बना , पैसे के लिए  अपने हांथों में फ़ूलों का गुलदस्ता लिए इसके - उसके दरवाजे घूमने वाले अब शायद ही जल्दी सुधर पायेंगे । जब तक कोई बड़ी घटना नहीं होगी ,ये शायद ही चेत पायेंगे ।Technorati tags:

अच्छा होगा यदि ऐसे बच्चों के प्रति स्कूल प्रशासन संवेदनशील रहे ,


अंतर्राष्ट्रीय डायबिटिक फेडेरेशन (आई.डी.ऍफ़.) के अनुसार ‘मधुमेह एक जानलेवा बीमारी (डिसॉर्डर) है जिसके घातक प्रभावोंके कारण प्रति वर्ष लगभग ४० लाख व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अनेक बच्चों का जीवन भी इस रोग के कारण खतरे में पड़ जाता है ,  विशेषकर उन देशों में जहाँ मधुमेह से बचाव हेतु साधनों की कमी है। आई.डी.ऍफ़. के २०० सदस्य संगठन हैं जो १६० देशों में फैले हैं।
मधुमेह बच्चों में लंबे समय तक चलने वाली एक आम बीमारी( डिसॉर्डर) है। प्रतिदिन २०० से अधिक बच्चों में टाइप मधुमेह की पहचान की जाती है, जिसके चलते उन्हें रोज़ इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं तथा रक्त में शर्करा की मात्रा को भी नियंत्रित करना पड़ता है। बच्चों में यह रोग ३% वार्षिक की दर से बढ़ रहा है तथा बहुत छोटे बच्चों में यह दर ५% है। आई.डी.ऍफ़. के अनुसार विश्व भर में १५ वर्ष से कम आयु के ५००,००० बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं। निम्न एवं निम्न-मध्यमवर्गीय आय के देशों के लगभग ७५,००० बच्चे मधुमेह से पीड़ित होने के साथ साथ इस रोग की उचित देखभाल से भी वंचित हैं। वे अत्यन्त शोचनीय स्थितियों में जी रहे हैं। उन्हें इंसुलिन की आवश्यकता है, नियंत्रण उपकरणों की आवश्यकता है एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है ।  ताकि वे मधुमेह की बीमारी को काबू में रख सकें और इस रोग की गंभीर जटिलताओं से मुक्त हो सकें।

ऐसे बच्चों को जिन्हें बार बार पेशाब के जाना पड़ता हो ,उनके प्रति स्कूल प्रशासन को भी सजग  रहना चाहिए , बच्चों के अभिभावकों से इस विषय में चर्चा करनी चाहिए ।  बच्चों को टायलेट जाने से मना नहीं करना चाहिए ।  टीचर्स को ऐसे मामलों में  आवश्यक रूप से अति संवेदन शील होना ही चाहिए । देखा गया है बहुत जगहों पर  अनावश्यक का डिसिप्लीन ,बच्चों को शारीरिक - मानसिक यातना देता है  , जो अक्षम्य अपराध करने  जैसा है  । 
  मधुमेह ( डायबिटीज ) होने के कई लक्षण रोगी को स्वयं अनुभव होते हैं। इनमें बार-बार पेशाब आते रहना (रात के समय भी), त्वचा में खुजली होना, धुंधला दिखना, थकान और कमजोरी महसूस करना, पैरों का सुन्न होना, प्यास अधिक लगना, कटान/घाव भरने में समय लगना, हमेशा भूख महसूस करना, वजन कम होना और त्वचा में संक्रमण होना आदि प्रमुख हैं। उपरोक्त लक्षणों के साथ-साथ यदि त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन दिखे, कोई चोट या फफोले ठीक होने मं सामान्य से अधिक समय लगे, कीटाणु संक्रमण के प्रारंभिक चिह्न जैसे कि लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो, उरुमूल, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता है या कोई न भरने वाला घाव हो तो रोगी को चाहिये कि चिकित्सक से शीघ्र संपर्क करे।
मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है । यह बीमारी में हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है  । रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं । धमनियों में बदलाव होते हैं। इन मरीजों में आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है । मधुमेह होने पर शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सामान्य प्रक्रिया तथा होने वाले अन्य परिवर्तनों का विवरण इस प्रकार से है । किया गया भोजन पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है। अग्नाशय ( पेंक्रीयास ) वह अंग है जो रसायन उत्पन्न करता है और इस रसायन को इंसुलिन कहते हैं। इनसुलिन भी रक्तधारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है। ग्लूकोज से मिलकर ही यह कोशिकाओं तक जा सकता है। शरीर को ऊर्जा देने के लिए कोशिकाएं ग्लूकोज को उपापचित (जलाती) करती है। ये प्रक्रिया सामान्य शरीर में होती हैं।
मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण - इंसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।
इंसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।
पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।
अधिकांश ग्लूकोज रक्तधारा में ही बना रहता है। यही हायपर ग्लाईसीमिया (उच्च रक्त ग्लूकोज या उच्च रक्त शर्करा) कहलाती है। कोशिकाओं में पर्याप्त ग्लूकोज न होने के कारण कोशिकाएं उतनी ऊर्जा नहीं बना पाती जिससे शरीर सुचारू रूप से चल सके।
आग्रह   है स्कूल प्रशासन ऐसे बच्चों को पहचाने उन्हें उनके इस  डिसॉर्डर की वजह से  उनमें उपजी सुस्ती या बहुमुत्र की शिकायत की वजह से प्रताडित न करे । अभिभावकों  को भी बच्चों के ऐसे लक्षण पर नजर रखनी चाहिए और ईलाज के साथ-साथ स्कूल प्रसाशन को भी अपने बच्चे के इस   डिसॉर्डर की जानकारी देना चाहिए ।
  राजधानी के कुछ स्कूलों में ऐसी शिकायतें सुनने में आईं हैं कि वहां बच्चों को बारबार पेशाब करने जाने नहीं दिया जाता । बच्चों  में इस रोग के बढ़ने के लिए  ऐसी स्थिती ओर भी खतरनाक साबित होगी , अतः सचेत रहें , बच्चों को पेशाब के लिए जाने से न रोकें। 
स्कूल शिक्षा विभाग और राज्य मानवाधिकार आयोग को भी स्कूलों को इस संबंध में दिशा- निर्देश देने का काम स्वस्फ़ुर्त ही करना चाहिए और इस आशय को अखबारों के माध्यम से प्रसारित - प्रचारित करते रहना चाहिए । यह करना जन आकांक्षाओं के अनुरूप होगा ।

जून 27, 2010

अल्ला मेघ दे , पानी दे . . .


रायपुर सम्भाग में अब तक बारिश नहीं हो पाई है . शहरी इलाके अब भी गरमी और उमस से परेशान हैं . तो वहीं दूसरी ओर संभाग के ग्रामीण  इलाकों  में  किसान  खेती का  कामकाज  शुरू करने के लिए बारिश  की  बाट  जोह रहे हैं .  मौसम विभाग के बताए अनुसार इस वर्ष बारिश १५ जून के आसपास आ जानी चाहिए थी , लेकिन बारह-तेरह दिनों के बीत जाने के बाद भी बारिश का रायपुर संभाग में तो कहीं भी नामो निशान  नहीं दिखाई पड रहा है .क्या शहर और क्या गाँव  दोनों ही जगह रहने वाले लोग अब परेशान दिखने लगे हैं .   खबर है की रायपुर शहर में ही अलग -अलग दिनों में अलग -अलग मोहल्लों में हल्की फुल्की बारिश हुई है ,जिसकी वजह से राहत नहीं बल्कि  लोगों की परेशानी ऊमस की वजह से और बढ़ी है . संभाग के गाँवों  में खेती का काम शुरू नहीं हो पाया है . आसपास में बस्तर , बिलासपुर  संभाग में थोडा बहुत पानी बरसने की खबर जरूर है . समूचा  प्रदेश  मानसून  की  अच्छी  बारिश  का  इंतजार  कर  रहा  है  .  इस वर्ष अच्छी खासी गरमी पड़ने की वजह से भी लोगों को उम्मीद थी की जल्दी ही अच्छी बरसात आ जायेगी  . लेकिन ऐसा कुछ  भी नहीं हुआ .  एक बड़ी विडम्बना यह है जून माह में गंगरेल बाँध का जल  स्तर बढने की बजाय  घट गया  है  . " पानी "  मानों लोगों की उम्मीदों  पर  फिर  गया  है . पिछले आठ -दस  वर्षों  में अकेले  रायपुर  शहर  में  ही  विकास  करने -कराने   के नाम  पर  हजारों  बड़े-बड़े    पेड़  काटे  गए  हैं  .  प्रदेश  के जंगलों  में  चल  रही   अवैध   लकड़ी   कटाई   की   कहानी  ही अलग  है .  छत्तीसगढ़  में सही मायने प्रजा का नहीं बल्कि अधिकारियों का जंगल राज चल रहा है  . पौलीथीन  उद्योग  देखते  ही देखते यहाँ   का   बड़ा   उद्योग   बन   बैठा  है  .  हर  आदमी  को  हर  छोटे  से  छोटे    सामान    को  लाने  ले  जाने  के  लिए  पौलिथिन  बैग  चाहिए  ही  चाहिए  .  जब  शासन  प्रशासन  की प्राथमिकतायें  ही कुछ और हों  और  लोग  अपने भविष्य  के साथ खिलवाड़  करने से ना डरते हों  तो  ऐसी  जगह  मानसूनी   या किसी भी अन्य सिस्टम  से बारिश  हो भी तो कैसे  हो  ?  अपनी इन गलतियों  से परे  अब लोग कर भी क्या सकते हैं भला  ?  सिवाय इसके की आसमान की ओर अपने दोनों हाँथ और निगाहें उठा कर कहें - "  अल्ला मेघ दे , पानी दे , छाया दे , रे    रामा  मेघ  दे . .  . |   हम  सुधर जाएं ऐसा कोई  सिस्टम  बनते  तो दिखता नहीं  , ऊपर वाला ही शायद अपना  सिस्टम  हमारे  लिए  सुधार ले  और  हमेशा  की तरह  हमारा  भला  कर  दे  .
 आइये  जहां  इतना  इन्तजार  किया   ,  वहां  थोडा  इन्तजार  और  सही  |  आशा  से  ही  तो  ये   आकाश  भी टिका  है  |  हम  आप  भी  टिक  कर  देखते  हैं   थोड़े  दिन |  

इंतहां हो गई लालच की

बिहार में भू माफ़िया संस्कृति किस कदर लोगों के सर चढ़ कर बोलने लगी है , इसका सबसे बड़ा और इसकी इंतहाँ को दर्शाने वाला  एक औत उदाहरण पिछले दिनों देखने - सुनने को मिला । ढ़ंग जरूर थोड़ा सोफ़ेस्टिकेडेड सा है । मगर  मामला जमीन हथियाने का ही है , जिसके लिए बिहार का पूरे देश -  दुनियाँ  में  काफ़ी नाम है । एक कहानी सामने आई है जो भू-माफ़ियाओं की लालच की इंतहां बयां करती है  ।
देश के प्रथम राष्ट्रपति  को  भी  नहीं बख्शा बिहारी बाबुओं नें ।राजनीति में मूल्यों को तिलांजलि दी जा चुकी है ,इसे कोई और नहीं बल्कि बिहार में कांग्रेसी ही प्रमाणित करते दिखते हैं ।डॉ बाबु ने  शायद यह सोचा भी नहीं होगा कि कांग्रेस के नेता उन्हें  शिक्षण संस्था चलाने  के लिए   मिली जमीन पर अवैध कब्जा कर लेंगे। लेकिन सच यही है। शर्मनाक स्थिति से पार्टी को बचाने के लिए इस मामले में  प्रधानमंत्री कार्यालय को हस्तक्षेप करना पड़ा है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस  मामले में झारखंड सरकार को कार्रवाई करने को कहा हैं। खबरों की दुनियाँ में वर्षों बाद याद आए देश के प्रथम राष्ट्रपति  डा. राजेंद्र प्रसाद जी कुछ इस तरह ।
 डा. राजेंद्र प्रसाद  को दुमका के एक व्यवसायी रामजीवन हिम्मत सिंह ने  सन 1940  में  करीब साढ़े तीन एकड़ जमीन शिक्षण संस्था खोलने के लिए दान में दी।  हाईवे पर स्थित इस जमीन की कीमत आज करोड़ो रूपये हो गई है ,तमाम लोगों की नजर इस जमीन पर लगी हुई थी ।
कांग्रेस नेताओं की नजरें भी लम्बे समय से  इस जमीन पर थी।  डा. राजेंद्र प्रसाद जी 1963 में इस संसार से विदा हो गये । सन 1970 में कांग्रेस ने इस कीमती जमीन पर कब्जे की कोशिशें शुरू कर दी थी ।  नेताओं का मानना था कि डॉक्टर साहब  कांग्रेस के ही तो  थे,  इसीलिए, उनकी यह जमीन भी कांग्रेस पार्टी की तो हुई ना । कांग्रेस ने 19 अप्रैल 1976 को दुमका के सरकारी दफ़्तर में एक अर्जी लगा कर जमीन को पार्टी के नाम पर चढ़ाने की मांग की।
जमीन के दानदाता परिवार को  इस बारे में आपत्ति थी उन्होने अपनी आपत्ति दर्ज  भी की। लेकिन दानदाताओं की आपत्ती को नजर अंदाज कर प्रशासन ने जमीन कांग्रेस के नाम कर दी।   डा. राजेंद्र प्रसाद  मेमोरियल ट्रस्ट ने 2007 में दुमका की राजस्व संबंधी मामलों वाली अदालत में इस मामले को लेकर  दोबारा  अपील की। फ़ैसला सुनाते हुए इस  अदालत ने कांग्रेस को दी गई जमीन के आदेश को निरस्त कर दिया। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने डिप्टी कमिश्नर आफिस में 2008 में फैसले के खिलाफ अपील की जिस पर न्याय आना शेष है । हमार मकसद है हमारे वो भाई जो इस खबर को ना पढ़ पायें हों यहां पढ़ लें  । जान - समझ लें कि आज लोग राजनीति में क्या-क्या कर रहे हैं ।
यह खबर देश के अनेक अखबारों में प्रकाशित भी हुईं ,लेकिन शायद ही किसी संबधितों को शर्म आई हो , क्यों की जमीन के मामले में सभी में राष्ट्रीय एकता जो है । इसमें कोई मतभेद नहीं है । शर्मसार तो देश है । नेता और पार्टियां तो अपने आप को इन सब से उपर मानते हैं , तभी तो कुछ भी करने से न तो झिझकते हैं और ना ही उसे गलत मानते हैं । गलत मानते हैं उसे जो टोकता है । कहां ले जाएगी ये लालच हमें ?

जून 26, 2010

लो एक नई मुसीबत और आ गई

प्रयोग धर्मी राजधानी रायपुर में नित्य नई मुसीबतें जनसामान्य के सामने आ खड़ी होतीं हैं । अब एक  नई  मुसीबत का सामना करहे  हैं राजधानी  वासी  ,  इस  मुसीबत  का नया नाम है विद्युत  विभाग  का     नया   और अनोखा  प्रयोग , " स्पॉट बिलिंग " सेवा ।                                  
 बताया जा रहा है कि यह काम भी अब ठेका प्रथा से कराया जायेगा ।
 वह भी एक निजी ठेकेदार के द्वारा किया जाना है ।
राजधानी रायपुर में एक साल के अंदर लगातार तीसरी बार ऐसा हो रहा कि तमाम कालोनियों में बिना किसी  पहचान पत्र के , बगैर किसी पूर्व सूचना  के कोई भी आदमी
आकर आपका दरवाजा खट्खटाता है और सीधे अंदर घुसा चला आता है ,कहता है वह मीटर रीडर है , मीटर रीडिंग लेने आया है ,अगले महिनें से स्पॉट बिलिंग होगी ।  याने कि मीटर रीड़िंग के बाद आपके घर पर ही वह बिजली का बिल थमा देगा ,  आप चाहें तो उसी
वक्त बिल का भुगतान  कर सकते हैं । साल भर से भी ज्यादा हो गया ऐसा होते हुए लेकिन इस योजना का कहीं कोई अता-पता नहीं है । खैर यहां बात वह नहीं है कि यह योजना कब शुरू होगी ? होगी भी या नहीं ?  यहां कहने का सीधा सा मतलब यह है कि आखिर ये हो क्या रहा है ? कैसे कोई भी बिना किसी निर्धारित ड्रेस कोड़ के , बगैर किसी विभागीय पहचान पत्र , बगैर शासन की किसी योजना के लागू हुए बिना , लोगों के घर पहुंच रहे है वह भी सरकारी काम का हवाला देकर  । बहुत ही गंभीर और आपराधिक किस्म का मामला है यह । यह  मामला तब और भी गंभीर  हो जाता है जब यह विभाग सीधे प्रदेश के मुख्यमंत्री के अधीन हो । जब उनके विभाग में ऐसा कुछ चल रहा हो तो सोचिए दूसरे विभागों का क्या हाल होगा प्रदेश में । लोगों के रीडिंग के पहुंचने वाले लोग अपने आप को हैदराबाद का बताते हैं - कहते हैं छत्तीसगढ़ में मीटर रीडिंग का ठेका  "अन्ना" ने लिया है । सवाल है कौन है यह अन्ना ?  इसका और इसकी कम्पनी का कोई नाम तो होगा ? विद्युत विभाग का मुख्यालय रायपुर में है , क्यों इस बात की  जानकारी  या पूर्व सूचना  लोगों नहीं दी जा रही है  ?  क्यों जरूरी नहीं है मीटर रीडर के लिये विभागीय पहचान पत्र  ?  क्यों जरूरी नहीं है उनके लिए एक  यूनीफ़ॉर्म  ?  क्यों जरूरी नहीं है कि जन मानस को ऐसा कुछ होने जा रहा है , इसकी सूचना पहले से दी जाय ?   लोग किसे सही और किसे गलत मानें ? हर काम के लिए यह सरकार प्रदेश से बाहर वालों को ही सबसे योग्य आखिर क्यों मानती है ? सर्वाधिक धोखाधड़ी - चोरी , लापरवाही इसी एक विभाग में आखिर क्यों होती है ? कब तक चलेगा यह सब  ?  क्यों सरकार को अपने ही प्रदेश के सरकारी विद्युत कर्मियों पर भरोसा नहीं है ? क्यों चाहिए उसे दूसरे राज्यों से आदमी  ?  क्या गारंटी है कि ये बाहरी लोग छत्तीसगढ़ियों से ज्यादा विश्वसनीय हैं - भरोसे के लायक हैं ? क्या है इनकी पृष्ठ भूमि  ?  कहां से आ रहे हैं ये लोग  ? वहां कैसा  है इनका पुलिस में रिकॉर्ड  ?  कहां  और किसके पास है यह सब ब्योरा ? कैसे ये किसी  के  भी  घर घुस सकते हैं ? किसनें और क्यों दिया इन्हें यह अधिकार  ?  ऐसा सब करने के पीछे निहित मंशा आखिर क्या है ? मीडिया मौन क्यों रहने लगा है ? पहले तो यहां ऐसा कभी नहीं होता था । कौन है इस लचर और बेहद खतरनाक व्यवस्था  के लिए जिम्मेदार ?   मंत्री  या उनके अधीनस्थ कोई देंगे इन सवालों का जवाब ? ? ?  अरे भाई साहब अकेले के फ़ीलगुड के लिए  नहीं ,प्रदेश की जनता के फ़ीलगुड के लिए होता है शासन तंत्र , समझिए भी ।

मुंगेरी लाल के हसीन सपने , कभी न होंगे आपके अपने

अब नयनों का सपना नहीं है "नैनो" । वर्ष के आरंभ में " नैनो "  लखटकिया कार चर्चा और आकर्षण का विषय रही है । लेकिन बाज़ार में आते-आते  टाटा की यह कार लाख टके की  नहीं रही । कारण चाहे जो  भी  ,  एक लाख रुपयों में कार खरीदने का सपना दिखाया गया था । मध्यम वर्गीय परिवारों में छोटे-बड़े सब लोगों ने मिल कर  एक - सवा लाख रुपया सहेजना शुरू कर दिया था और दिखाये गये सपने को दिन-रात जिंदा रख इसे पाने की चाहत को मानो ललक में तब्दील कर लिया था । इसे जिंदा रखा था । रोज एक एक कर दिन गिना करते थे । फ़िर क्या हुआ ?
      होना  क्या था , सपने कभी पूरे होते हैं ?  बढ़ती मंहगाई का हवाला देते हुए नैनो भी मंहगी हो गई । वे लोग निराश होने लगे जो ले-देकर लाख सवा लाख रुपये जोड़ पाये थे । क्योंकि नैनो अब इनके दरवाजे एक लाख रुपयों में नहीं आना चाहती थी ।  अब यह कार   ड़ेढ़-दो और सवा दो लाख रुपयों में आपके घर तक आने को तैयार थी । पर इतने दामों पर आप तैयार नहीं थे ,शायद ,क्यों ठीक है न ?  ठीक भी तो है ना यार कोई महीनों से लाख रुपयों मे कार का सपना दिखाए  और फ़िर देने के वक्त दाम डबल बताने लगे तो बुरा लगना बल्कि गुस्सा आना स्वाभाविक लगता है । कुछ ऐसा ही नहीं हुआ आम आदमी-मध्यम वर्गीय लोगों के साथ । वह तो एक लाख का सीधा सा मतलब एक लाख ही समझता है ,न । कार के पीछे से उसकी आवाज सुनो तो आटो रिक्शे की सी घर्राने की आवाज आती है , ऊपर से दाम डबल  अब कैसा करें ? यह सवाल  भी  उठने लगे । अब क्या करें , इसका उत्तर तलाशने - सलाह लेने  के लिए दोस्तों - रिश्तेदारों के पास जाना पडा । दो लाख वाला मामला आते ही तरह-तरह की सलाहें मिलनें लगीं , कोई समझाने लगा इतना खर्च करना ही तो  फ़िर नैनो ही क्यों ? फ़र्स्ट क्लास कोई सेकेण्ड हैण्ड ,और ज्यादा सी सी (पावर) की कार क्यों न लें ?  फ़िर 800 क्या बुरी है ?  ऐसी ही तमाम और सलाह जो एक लाख से ज्यादा खर्च की होतीं थीं ,मिलने लगीं । कोई भी उन लोगों के दिल का दर्द ना समझ सका कि इतने में ही (एक लाख रू,) कैसे मिल सकती है कार ?
  इसमें सबसे दर्दनाक पहलू जो होता था कोई उसे समझना या उस पर बात ही नहीं करना  चाहता   था  । अरे जरा सामने वाले की मनोदशा को भी तो समझिए हुजूर  वह  गरीब न जाने कैसे कैसे कर  ,कहां-कहां से  एक लाख रुपया जोड़ पाया है और अब कैसा करे इतने मे उसके सपनों की नैनो तो नहीं आ रही है, यह बताने आया है आपके पास और आप भी रतन टाटा की तरह उसे बता रहे हैं - अब तो इतने में नहीं मिलेगी  "कार"  ।  ठगा सा रह गया न नया-नया लखपती । है ना मुंगेरी लाल के   हसीन सपनों की जैसी बात ? 
  लोग अभी भी इस सदमें से नहीं उबर पा रहे हैं कि एक नयी पैंतरे बाजी और आ गई बाज़ार में - अब बजाज वाले " रेनो " उतने ही सस्ते मे देना  चाहने लगे हैं जितने मे शुरु-शुरू में  टाटा  नैनो  दे  रहे थे । हो ना गया देश की भोली भाली जनता का दोबारा कल्याण ?  दूर बैठ कर चीन  इस विषय में अपनी  अलग ही खिचड़ी पका रहा है , उसका कहना है वह 2011 के अंत तक 60 हजार में यहां कार उपलब्ध करा देगा ।  हम तो कहेंगे  सचमुच गालिब ये ख्याल कहीं ज्यादा अच्छा है । गर कार हुई  आपके नसीब में तब चीन दे या जापान , आपको इससे क्या   ?  आप तो मजे कीजिएगा ।
        नहीं तो जागते हुये किसी के दिखाने से  सपने   देखना छोड़िये और अपने नैनो ( नयन ) को थोड़ा आराम दीजिए । आगे और भी बहुत से हसीन सपने जो देखने हैं आपको ।    जय हिन्द ।

जून 25, 2010

जमीन ही नहीं जिंदगियाँ बेंच दी इन दलालों ने


दोस्त बन - बन के मिले हमको मिटाने वाले


हाँ कुछ ऐसा ही हाल है समुचे रायपुर जिले का । शहरी क्षेत्रों में तो बाहर से चले आए हैं इसे मिटाने वाले । शहर के चारो तरफ़ 20 किलो मीटर  व्यास से हरियाली खतम कर इन्होने यहां कांक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया है  विकास के नाम पर । लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वहीं के चंद लोगों ने मानो अपने-अपने इलाके को मिटा देने की कसमें खा रखीं हैं और कसमें पूरी निभाते भी दिख रहे हैं। बलौदा बाज़ार बेल्ट इसका जीता जागता उदाहरण है।
मैं बात कर रहा उस क्षेत्र की जहां अभी अम्बूजा , ग्रासिम , एल एण्ड टी , लाफ़ार्ज जैसे सीमेंट प्लांट लगे हुए हैं । इन्हीं प्लांट्स के आसपास अभी 7 (सात) और सीमेंट प्लांट्स लगने हैं । इन सभी को हजारों एकड़ जमीन चाहिए । सरकार के पास इतनी खाली जमीन नहीं है। जिन इलाकों में ये सीमेंट प्लांट्स लगने हैं उनके आसपास लोग रहते हैं , दर्जनों गांव बसे हुए हैं । इन्हीं ग्राम वासियों की खेतिहर जमीनों को खरीद कर बनाए जायेंगे ये कारखाने । देखते ही देखते यहां से किसानों के घर - खेत ,बाग - बगीचे , खेतों मे खड़े हजारों पेड़ सब कुछ गायब हो जायेंगे । नामो निशान भी नहीं  रह जायेगा ,किसी चीज का । किसानों को हर हाल में अपनी जमीनें बेचनी ही होगी । इन्हें कोई बाहरी व्यक्ति यहां आकर मजबूर नहीं करेगा , जमीन बेचने को मजबूर करेगा वो जो निहायत ही अपना लगता - दिखता है ; जिससे गांव वाले दुःख - सुख में साथ की उम्मीद रखते हैं । कोई कहानी नहीं कड़वी सच्चाई है यह सब ।
  संयंत्र लगाने वालों ने स्थानीय स्तर पर अच्छा प्रभाव रखने वालों को जमीन खरीदी में अच्छा मुनाफ़ा  देने का प्रलोभन देकर इन्हें अपना दलाल बनाया है ।
  बलौदा बाजार में , भाटापारा मे , अर्जुनी में , रवान में , और ना जानें कहां-कहां बैठे धनाड्य लोग विशुद्ध रूप से द्लाल की भुमिका निभाएगें बडी शान से और मिट्टी के मोल किसानों की खेतिहर जमीनों को खुद खरीद-खरीद कर सम्बंधित कम्पनियों को अपने मनचाहे दामों में बेच देंगे । उस क्षेत्र में ऐसा होता आया है , और ऐसा ही होगा , किसी माई के लाल में इतनी ताकत नहीं है कि इसे रोक ले ,शासन - प्रशासन चाहे किसी का भी , सब माया के सामने नतमस्तक दिखाई देते हैं । पिछले दो वर्षों से ऐसे कामों का बोलबाला उन क्षेत्रों मे बहुत बढ़ भी गया है । बढ़े-बढ़े नामी गिरामी लोग इस धन्धे में बड़ी सक्रीयता से लगे हुये हैं । दिन-रात एक कर बस इसी काम में लगे रहते हैं । लोगों उनकी जमीनें बेचने में भलाई समझा रहे हैं । खुद को जनहित के काम में लगा बता रहे हैं । बयाना देकर जमीनों को कब्जे में ले लेने की होड़ सी लगी है। खबर है कि हजारों एकड़ जमीनों का सौदा , हस्तांतरण हो चुका है , दलाल लालम लाल हो चुके हैं । अब बारी है खाली हो चुके ग्रामीण जनों की जो प्लांट शुरु हो जाने के कुछ ही महीनों बाद उसकी धूल और गर्द से लाल हो जायेंगे , बचे-खुचे खेतों की फ़सलें लाल हो जाया करेंगी ,फ़िर थक हार कर ये किसान भी गरजू हो कर जितना भी , जो भी मिलेगा उस दाम पर अपनी जमीनें इन प्लांट वालों को ही बेच कर इधर-उधर जीवकोपार्जन के लिए चले जाऐंगे ।
आने वाले कुछ ही सालों में बलौदा बाजार - भाटापारा के आसपास के गांवों में दर्जन भर से भी अधिक सीमेंट प्लांट्स बेखौफ़ धूल उड़ाएंगे । आदमी और फ़सलों मे भरपूर बीमारियाँ फ़ैलायेंगे तब शायद लोगों को आज के ये भगवान जैसे लगने वाले मातृभूमि के दलाल इलाके की बरबादी के
बदनियत सौदागर नजर आयेंगे । लेकिन तब होगा क्या ? तब तक तो गधे सारा खेत ही चर जायेंगे । क्या किसान और क्या स्थानीय वासी सभी पछ्तायेंगे । शायद तब समझ भी पायें कि अपने - अपने बच्चों के कैसे किया था इस विषैले वातावरण का इंतेजाम ?
नये रोजगार और विकास के जामे इस आपराधिक कृत्य को ढ़कने - मूंदने के लिये किये जायेंगे जिसमें फ़िर एक बार माया के दम पर कुछ अपने - अपनों के बच्चे जरूर रोजगार पा जायेंगे । लेकिन इतना सब करने के बाद भी हम खेती के लिए और जमीन शायद दोबारा नहीं ला पायेंगे , जितना अन्न आज अपने क्षेत्र में उगा रहे हैं ,शायद फ़िर कभी भी ना उगा पायेंगे । कितना मंहगा है यह सौदा क्या कभी हम इसे समझ भी पायेंगे ? यदि समय रहते समझे तो शायद ठीक , वरना आने वाली पीढ़ी को सैसे मुंह दिखा पायेंगे ? कैसी - क्या विरासत दी है ,यह बच्चों को उनके बड़े हो जाने के बाद भला कैसे समझा पायेंगे ?  मगर अफ़्सोस यह सब कुछ हम  लोग खुद ही कर रहे हैं , कोई सरकारी अधिकारी या बाहरी आदमी नहीं करवा रहा है , लालच जो तात्कालिक है बस उसके वशीभूत हो कर अपनी जमीन - जमीर बेचे जा रहे हैं हम लोग ।

जून 24, 2010

मानों प्रार्थना सुन ली गई

 " खबरों की दुनियाँ " ब्लॉग लिखने से पहले हमने रेडिफ़ पर " हल्ला बोल "  के नाम से रोमन में ब्लॉग लिखना शुरु किया था , एक शुभ चिंतक  और छोटे भाई संजीत त्रिपाठी की सलाह पर गुगल में हिन्दी में लिखना प्रारंभ किया । अच्छा लगने लगा । संजीत को धन्यवाद ।
 " हल्ला बोल " में हमने रातो रात करोड़पति -  अरबपति बनने वालों की ओर आयकर विभाग की नजरें होंगी या नहीं जानना चाहा था ,लगता है सुन ली गई हमारी भी । कल  23 जून 2010 को ही आयकर वालों रायपुर बसाने वाले तीन अत्याधुनिक विश्वकर्माओं ( बिल्डरों ) के घर व तमाम अन्य ठिकानों पर छापा मार दिया है । यदि समझौता नहीं हुआ तो करोड़ों की बेनामी सम्पत्ति मिलेगी । हमने लिखा था इनमें से एक तो   भा ज पा के जिला अध्यक्ष  भी रहा  हैं । इनके  घर भी दबिश दी है  आयकर विभाग के अफ़सरों ने । इनके अलावा इसी पार्टी के महामंत्री रहे और उनके पूर्व पार्ट्नर के  घर  और   ठिकानों पर भी छापे की कार्यवाही चल रही है । कांग्रेस की सक्रिय राजनीति  से जुड़े बड़े बिल्डर एवम मारुति कारों के विक्रेता के भी घर - दफ़्तरों पर छापे की कार्यवाही चल रही है । परिणाम अच्छे ही होने की उम्मीद है । छापे की इस कर्यवाही से लगता है , मानों हमारी प्रार्थना सुन ली गई हो । धन्यवाद ।    इसी तरह आयकर विभाग यदि सख्ती और मुश्तैदी  से अपना काम  करता रहा तो रायपुर में ही छापे की कार्यवाहियां करने में उसे महीनों लग जायेंगे  ,  क्योंकि यहां ऐसों की संख्या दो - चार  नहीं , सौ से भी ज्यादा है । एक पुर्व मंत्री ही अकेले अरबों रुपयों  का जमीन का कारोबारी है ।  दूसरे एक मंत्री के पास हजारों करोड़ रुपयों की जमीन जायदाद होना बताया जाता है । इन्हें भी विभाग को छापे के दायरे मे लेना चाहिए ।  लोगों को इंतजार र्है -  रहेगा । ग्रामवासी से अचानक मंत्री बने और मंत्री रहते हुए होटल " ताज " का मजा ले चुके नेता जी जो अब खुद ही ताज सा एक होटल बनाने का सपना संजोए बैठे हैं  रायपुर में एक आलीशान कोठी के मालिक हैं , इन पर भी नजरें इनायत हों विभाग की , तभी तो जनता को फ़ीलगुड़ होगा ।

जून 23, 2010

गटर अच्छा है "लापतागंज" का

लचर व्यवस्था और तंत्र पर करारा व्यंग्य है " लापतागंज " ।  "सब" टी वी पर देखा जा सकता है । बारिश के मौसम में आम आदमी कैसे- कैसे परेशान रहता है । नेता और नगरीय प्रशासन क्या करता है , ऐसी मुसीबतों में । इस पर बुधवार 23  जून 2010 को दिखाया गया एपीसोड यह बताता है कि मौजूदा प्रशासन और नेताओं से कहीं बेहतर है लापतागंज  का " गटर " । क्योंकि वहां नरक  निगम के अधिकारी और नेतागिरी करने वाले दोनों  ही नहीं पाए जाते । तेज बारिश में गुम हुए लापतागंज वासियों का तो यही अनुभव है । गटर से  बाहर निकले लोगों ने बताया कि गटर कहीं ज्यादा साफ़ है  बाहर की दुनियाँ से क्योंकि वहां नेता जो नहीं हैं । शरद जोशी जी की कहानियों पर आधारित यह सीरियल सचमुच घर-परिवार के साथ बैठ कर देखने लायक है । दरअसल,लापतागंज सिर्फ एक कॉमेडी सीरियल नहीं है,ये उससे कहीं आगे का धारावाहिक है। आखिर,व्यंग्य को सामाजिक आक्रोश की परीणिति कहा गया है, और इस सीरियल के बहाने शरद जोशी की कलम से निकले कटाक्ष एक बार फिर दर्शकों को सोचने को मजबूर करेंगे कि कुछ भी तो नहीं बदला।

तबादला बड़े साहबों का - ये क्या हुआ , कैसे हुआ , क्यों हुआ ?

छत्तीसगढ़ शासन ने  आई जी ,  डी आई जी और एस पी साहबानों के  तबादला कर  दिया है । मुख्यमंत्री की सूझबूझ से ये अधिकारी तो भौंचक हैं ,  राजनीतिक गलियारे के चक्कर लगाने वाले भी चकराए घूम रहे हैं । कुछ अधिकारियों के तो मानों चारो खाने चित्त हो गये हैं । किसी ने सोचा भी नहीं  था उसे यह मिलेगा । एक साहब पिछ्ले सात सालों से मानों  सी एम साहब की नाक के बाल की तरह काम  कर रहे थे । हर गोपनीय काम उन्हीं के जिम्में  था ।   अक्सर कानों में जा कर ही अपनी बात कहा करते थे । ये साहब चाहते थे यदि इन्हें हटाया जाता है तो पूरी तरह से ,स्वतंत्र रूप से परिवहन विभाग ही दिया जाए ,  उनके सिर पर किसी को भी न बिठाया जाए । मलाई को लेकर कोई अन्य दावेदारी न हो ,  लेकिन उनका दुर्भाग्य कि ऐसा इसलिए ना हो सका क्योंकि  यह प्रस्ताव  उन्हें  कतई भी मंजूर नहीं  था जिनकी कम्पनी अंग्रेजों के जमाने से सही मायने में राज करती आ रही है । भारत का प्रशासन चला रही है । अपने अलावा शेष सारी दुनियाँ को दोयम दर्जे का मानती आ रही है । और इस झगड़े के बाद उन साहब को  मिला है लूप लाईन जैसा विभाग  । बड़ी निराशा हांथ लगी । इतने लम्बे समय की वफ़ादारी का उन्हें यह सिला मिला । वहीं दूसरी ओर जोगी जी के जमाने में खूब नाम कमाने वाले साहब ने  मानो  अपनी योग्यता फ़िर  साबित की है  और  हथिया लिया है एक ऐसा विभाग जिससे वह अब मुख्यमंत्री के  और  भी करीब हो  गये हैं । तमाम लोगों की परेशानी की एक बड़ी वजह यह  भी है ।  मैदानी  रणबांकुरों को  मुख्यालय बैठने के आदेश मानों सजा के तौर पर मिले हैं । जिनसे किसी भी तरह का खतरा नहीं हो सकता है उनको गाड़ी-मोटर  का काम देखने को कहा गया  है । मुख्यालय में इस विभाग के तमाम दावेदारों के चेहरे तो उतरे हुये देखे जा सकते हैं । चर्चा भी सुनी जा सकती कि भी आखिर क्या कमी थी हममें ?  हम भी वह सब करते  जो ये करेंगे ।  वैसे लोगों को अब भी अपने अपने उचित माध्यमों पर भरोसा है , जिनके जरिए वो अभी भी अपना - अपना  प्रयास जारी रखे हुए हैं । देखना है आगे  होता है क्या ?

क्या यही सही तरीका है शिक्षकों के सम्मान का ?

गुरूर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात परमब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥ 


जिस देश में गुरू की महिमा का बखान सदियों से कुछ ऐसा किया जाता रहा हो उसी देश मे सरकारी स्कूल के गुरू जनों को शनैः शनैः अध्ययन - अध्यापन के कार्य से विमुख करते जाना  और उनके आत्म सम्मान -  स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ करना कहां तक उचित होगा ?
अब देखिए स्कूल खुले अभी चार दिन भी नहीं हुए हैं  सरकारी स्कूल के गुरूजनों को राशन कार्ड की जांच में लगा दिया गया है । अब गुरू जी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना छोड़ कर गली-गली घूम कर , घर-घर जा कर लोगों का राशन  कार्ड चेक करेंगे । राशन कार्ड , चूल्हा-चौका , परिवार के सदस्यों की संख्या आदि चेक करेंगे । गर्मी की छुट्टियों में इन्हीं गुरू जनों ने जनगणना का काम पूरा किया है । इससे पहले पल्स पोलियो की अनिवार्य सी ड्युटी तो करते ही आ रहे हैं । इसके अलावा पशु गणना ,  टीका करण कराना । मतदाता सूची सुधारना , लोगों की आपत्तियाँ सुनना ,  दावा प्रपत्र भरवाना  । इस तरह के ढ़ेर सारे काम इन गुरू जनों को  बारहों महीनें करना पडता है । जिला मुख्यालय मे कलेक्ट्रेट और नगर पालिका निगम  , निचले स्तर पर अनुविभागीय अधिकारी ,  तहसीलदार ,  नायाब तहसीलदार छोटे-छोटे गांवों में कोट्वार स्तर के लोग भी गुरू जनों की ड्युटी लगाते रहते हैं । क्या ऐसे ही सम्मान - स्वाभिमान के साथ जीने की तमन्ना संजोए लोग गुरू जी की नौकरी करने की चाहत  रख कर इस फ़ील्ड में आए होंगें  ?
 भला कैसे होगी इन गुरु जनों के सम्मान की रक्षा ?  किस पर होगा इसका जिम्मा ?  कैसे पढ़ाई होगी सरकारी स्कूलों में ?  गुरू जन अपने स्कूलों में ध्यान केन्द्रित करें या  फ़िर नौकरी बचाने के लिए स्कूल छोड़ कर गली-गली घूमें  , सर्वे करें  ?  नेता अपने भाषणों में यह कहते नहीं थकते कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है । देश की 80 %   आबादी  आज  भी  भारत के गावों में रहती है । और इन्हीं गावों में स्कूल भवनों की कमी है  , अधिकांश जगह तो है ही नहीं । इन्हीं गांवों में गुरू जनों की कमी है । ये कैसी राजनीति कर रहे हैं  आजाद भारत के नेता ?
 क्या होगा उस बड़ी आबादी का  जो गावों में ही इस  विश्वास  के साथ बसती है  कि  उसके अगुआ , उसके नेता उसके गांवों का  कल्याण करेंगे । उनके नौनिहालों का भविष्य  संवरेगा । लेकिन जमीनी सच्चाई लोगों के इस विश्वास पर घात की तरह प्रतीत होती है । क्या हो रहा है  सरकारी स्कूलों पर विश्वास रखने वाली देश की 80 % आबादी  के इस विश्वास के साथ  ? ? ? कोई देगा जवाब देश को ?

जून 22, 2010

ये क्या हो रहा है ? क्यों होता है ?? कौन है जिम्मेदार ???


हमारे देश में शिक्षा शुरू से ही बदहाली का शिकार रही है । आज हालात और भी ज्यादा बदतर हैं ।     स्कूल खुल गये हैं । हर माँ - बाप को यही सही समझ आता है कि सरकारी स्कूलों में न तो ठीक से बैठने की जगह है और ना ही पढ़ाई , अच्छा हो यदि उनका बच्चा किसी प्राइवेट     स्कूल में पढ़े । मुझे ऐसा क्यों लगता है इस सोच का फ़ायदा प्राइवेट     स्कूल तो उठा ही रहे हैं , सरकार में बैठे लोग भी उठा रहे हैं । शायद इसीलिए सरकारी स्कूलों की इमारतें नष्ट होते दिख रहीं हैं ,स्कूलों के खिड़की - दरवाजे गायब हो रहे हैं।     स्कूल भवनों का रख-रखाव नहीं हो पा रहा है । जो सरकारी उदासीनता का  द्योतक है । बच्चों को मुफ़्त पुस्तकें हमारे प्रदेश में दी जा रही हैं , जिनकी गुणवत्ता और प्रकाशित विषय-वस्तु   पर लगने वाले सवालिया निशान को लेकर आये दिन अखबारों में कुछ न कुछ छपता ही रहता है । इस बात से इतर मूल बात तो यह है की निजी     स्कूलअब पूरी तरह व्यावसायिक हो गये हैं । स्कूल खोलने के पीछे निहित उद्देश्य भी केवल पैसा कमाना रह गया है । इन बिगड़े हुए हालात में जब भी कोई छात्र संगठन  , मंहगी होती - आम आदमी की पकड से दूर होती शिक्षा प्रणाली का विरोध करने सड़क पर उतरता है तो उसे आम आदमी का आन्दोलन बनने से पहले ही राजनैतिक स्वरूप दे कर कुचल दिया जाता है  , परिणाम स्वरूप साल दर साल स्थिती बद से बद्तर होती देखी जा रही है । क्या बच्चों के ऐसे आन्दोलनों को बड़ों का नैतिक सहारा नहीं मिलना चाहिए ?  क्या ऐसे प्रयास सिर्फ़ राजनीतिक छात्र संगठनों को ही , वो भी विपक्षी दल के , को ही करना चाहिए ? गंभीर मुद्दों को लेकर , अपनी पढ़ाई  भूल कर  बच्चों के ऐसे आन्दोलनों को राजनीति के चश्में से देखा जाना कहां तक उचित होगा ?  लेकिन दुर्भाग्य जनक पहलू यह है कि आज तक सिर्फ़ और सिर्फ़ यही होता आया है । जिस तरफ़ सरकारों की सजगता प्रदर्शित होनी चाहिए, नहीं होती है , बाद में अगर बच्चे उस ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहें तो वह बात  राजनीति कह कर सदैव दूसरी दिशा में मोड़ दी जाती है । समस्या और बड़ा रूप लेकर समाज के सामने खड़ी मुंह चिढ़ाती खड़ी रहती है । आज स्कूलों की बढ़ी हुई फ़ीस , बस्तों का बढ़ा हुआ वजन , निजी प्रकाशकों से उनके मुंह मांगे दामों पर पुस्तकों के खरीदने का  अभिभावकों को होने वाला तनाव   और स्कूलों के बताये स्थान से मंहगे दामों पर यूनीफ़ार्म -जूतों के खरीदे जाने की मजबूरी , तमाम ऐसे अन्य उदाहरण हैं जो लोगों को      स्कूल की वजह से एक अतिरिक्त तनाव में रखते हैं । जिन विषयों की पुस्तकें एन सी ई आर टी  30  से 50  रुपये के दामों पर उपलब्ध कराता हैं  , उन्हीं विषयों को दिल्ली के ही निजी प्रकाशक 375  रुपयों के दाम से लेकर ऊंचें दामों पर स्कूली बच्चों को बेचते हैं ।  बच्चे और उनके अभिभावक मजबूर हैं , उन्हें तो वही खरीदना होगा और वहीं से खरीदना पड़ेगा जहां से खरीदने को  स्कूल प्रशासन कहेगा ।  यही हाल युनीफ़ार्म और शूज की खरीदी- बिक्री का है । शर्मनाक बात तो यह है कि सब कुछ जानने - समझने के बाद भी अति जिम्मेदार लोग यह कहते हुए नहीं झिझकते कि - मत पढ़ाओ प्रायवेट     स्कूल में अगर हैसियत नहीं है तो , हमने क्या सारे लोगों का जिम्मा ले रखा है ?
        इन्हें कोई कैसे समझाए कि व्यवस्था का  जिम्मा कुर्सी पर बैढ़े होने की वजह से आपका ही है जनाब । छोड़ दीजिए कुर्सी , अलग हो जाईये सार्वजनिक जीवन से  कहीं एक किनारे बैठ कर आप भी अपनी रोजी- रोटी चलाईये , कोई नहीं आयेगा आपके पास कुछ कहने - बोलने । अरे कुर्सी की जिम्मेदारियों को तो समझिये , निभाईये । अपने विभाग में जन आकांक्षाओं के अनुरूप अपनी मजबूत पकड़ तो दिखाईये जनाब , और कब तक यूं ही परेशान करते रहेंगे लोगों को  ? ? ?  कुछ समय के लिये लक्ष्मी जी से ध्यान हटा कर सरस्वती माँ  के  साधक बच्चों की ओर भी ध्यान दीजिए । 

बाबा औघडऩाथ का ‘प्राकट्य दिवस’ 23-24 को

"बाबा औघडऩाथ का ‘प्राकट्य दिवस’ 23-24 को  "
 यह जानकारी  मनीष वोरा ने दी है ।  मनीष ने बताया है कि -  
अघोर पंथ और उसकी गुरू-शिष्य परंपरा पर आस्था रखने वालों को जल्द ही बाबा औघडऩाथ के दर्शन का लाभ उठाने का मौका मिल सकेगा. अवसर संजोया है प्रोफेसर कॉलोनी स्थित सुमेरू मठ ने, जहां हर वर्ष की तरह इस साल भी 23 एवं 24 जून को बाबा औघडऩाथ जी का ‘प्राकट्य दिवस’ मनाया जायेगा. अघोर पंथ पर आधारित पूजन-अभिषेक, भजन-संगीत, कव्वाली-महफिल और सामूहिक प्रसादी का लाभ श्रद्धालु उठा सकेंगे. पारद निर्मित रसेश्वर शिवलिंग का अभिषेक विशेष आकर्षण लिये होगा.

सुमेरू मठ के स्वामी प्रचंड वेगनाथ ने बताया कि औघडऩाथ जी के ‘प्राकट्य दिवस’ की शुरूआत 23 और 24 से होगी. 23 की संध्या रात आठ बजे पारद निर्मित रसेश्वर शिवलिंग का अभिषेक होगा. उसके बाद बाबा औघडऩाथ की गद्दी के दर्शन किये जा सकेंगे. श्रद्धालुओं को यह मौका वर्ष में एक बार ही मिल पाता है. रात में प्रसिद्ध भजन गायक मदन चौहान की स्वरलहरियां गूंजेंगी.

प्राकटय दिवस का दूसरा दिन धार्मिक एकता का संदेश देती सूफियाना कव्वाली, महफिलें और विशाल भंडारा के नाम रहेगा. उत्तर प्रदेश से आई देशप्रसिद्ध मोईन निजामी एण्ड पार्टी, कव्वाली पेश करेंगी वहीं भजन और गीत के कार्यक्रम होंगे. दिनभर प्रसादी का प्रतीक बने विशाल भंडारे का आयोजन भी रखा गया है. पिछले छह सालों से आयोजित हो रहे इस धार्मिक आयोजन का एक उद्देश्य यह है कि अघोर पंथ को लेकर जो भ्रांतियां आमजनों के मन में हैं, उनका निराकरण हो सके. आयोजन स्थल सुमेरू मठ की खासियत यह है कि यहां नाथ सम्प्रदाय के अघोर पंथ से संबंधित मंदिर है जिसका गुम्बद श्रीयंत्र की आकृति का है और मंदिर में पारद निर्मित शिवलिंग स्थापित है जो सिर्फ अमरकंटक में ही स्थित है. मंदिर की मुख्य पुजारी एक स्त्री है. स्वामी प्रचंड वेगनाथ के मुताबिक कई भ्रांति और धारणाओं से ग्रसित मानव स्वभाव अघोर पंथ को श्मशान साधना, चमत्कारिक साधुओं या जीवन की समस्याओं का निराकरण करने तक ही सीमित रखता है जबकि यह जात-पात और धार्मिक भेदभाव से दूर सभी मजहबों का आश्रय-स्थल भी है, आयोजन के माध्यम से यही संदेश दिया जाना है. अधिक जानकारी के लिये सुमेरू मठ, अघोडऩाथ दरबार, सेक्टर-3, प्रोफेसर कॉलोनी, मनसा तालाब के पास, रायपुर से संपर्क कर सकते हैं.

जून 21, 2010

बारिश का मौसम और हम


सुहानी बारिश आ ही गई । तपती धूप से राहत मिली , लेकिन ऊमस का दौर अभी बाकी है । बारिश के मौसम में क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिए  आईए  इन पर कुछ बातें  कर लेते हैं ।   यह तो सभी जानते हैं की मौसम का हम सब  बड़ा प्रभाव पड़ता है । मन और शरीर दोनों  पर ही  इसका असर देखा जा सकता  है । शरीर  की पाचन क्रिया  हर मौसम में अलग-अलग होती है ,   इसीलिए हमें मौसम का ध्यान रख कर ही भोजन करना चाहिए  , ताकि वह सही समय और सही तरीके से पच जाए । यदि हम ऐसा करने मे सफ़ल होते हैं तो न तो हमें कोई बीमारी होगी और ना अपने रोजमर्रा के  कार्यों  को पूरा करने में कोई दिक्कत पेश आएगी ।    बारिश के मौशम में बहुत सावधान रहने की सलाह दी जाती है । जानकारों का कहना है कि इस मौसम में जठराग्नि मंद पड़ जाती है । इस मौसम में भूख भी कम ही लगती है । मुख्य आहारों में पुराना चावल , मूंग की दाल , गेंहू का आटा ,  बैंगन का प्रयोग करने की सलाह जानकार लोग देते हैं । इस मौसम में नए अनाज का उपयोग करने से मना किया जाता है । साथ ही सड़े गले फ़ल -सब्जियों  , बासी अन्य भोज्य पदार्थों , चाट - पकौड़ी , शीतल पेय पदार्थों  से भी परहेज करने की सलाह दी जाती है । इस मौसम में कच्चा दूध , लस्सी पीना भी वर्जित किया जाता है । यह सब आयुर्वेद के हिसाब से उसे मानने वाले सही बताते हैं ।
 यह  सब बातें आप भी अच्छी तरह से जानते हैं  ।   मैंने इन्हें कहीं पढ़ा था । आज समय अनुकूल देख इन बातों को आप के साथ शेयर कर रहा हूं  ,  भावना यही है कि आप - हम सभी अच्छी जानकारियाँ  एक - दूसरे को याद दिलाकर  स्वस्थ्य - प्रसन्न रखने का प्रयास करते रहें ।  धन्यवाद ।

जून 20, 2010

परम पूज्य बाबा जी का आशीर्वाद

परम पुज्य ,श्रद्धेय बाबा जी का संदेश , एक  टिप्पणी के रूप मे मिला । परम  पूज्य  जी को प्रणाम । पोस्ट का उद्देश्य एक नेता के विषय में कुछ कहना - बताना था  ।   परम पूज्य भगवान अघोरेश्वर जी के पुत्र  एवम शिष्य के विषय में कुछ  कहना इस पोस्ट का उद्देश्य कतई  भी नहीं था  ।  मेरे जैसा तुच्छ प्राणी क्या लिख पाएगा परम पूज्य बाबा जी  के विषय में । लगता है मेरा पोस्ट किसी भाई ने बाबा जी तक पहुंचाते-पहुंचाते उसमें अपनी अगाध   श्रद्धा भी शामिल कर दी थी और  एक नया अर्थ निकल गया ।

 परम पूज्य बाबा जी को कोटिशः प्रणाम ।

आपके शुभ आशीर्वचन के लिये मैं आभार प्रकट करता हूँ । सदैव आपका आभारी रहुंगा ।              ॐ तत्सत ।

जून 19, 2010

एक डॉक्टर ऐसा भी

ब्लॉग पर अपने साथियों को यह खबर देते हुए खुशी हो रही है , खबर अच्छी है न शायद इसीलिए खुश हो रहा हूं । हमारे शहर रायपुर में एक  डॉक्टर  ऐसा भी है , जो न तो लोगों को गुमराह करता है और ना ही लूटता है , किसी तरह से डराता भी नहीं है । सिर्फ़ और सिर्फ़ ईलाज करता है । है न  अजब-गजब  सी बात ? आपको लगे न लगे , भई मुझे तो यही लगता है ,क्यों कि हमारे शहर में इस बिरादरी की क्या दशा है ? हम यहां कह कर आपका और अपना समय खराब नहीं करेंगे ।
 हां तो आप जानिए इन  डॉक्टर साहब के बारे में , इनका नाम है डॉ सुरेश श्रीवास्तव , होम्योपैथी के डॉक्टर हैं , पंडरी मार्ग पर छोटी रेल लाईन के समीप अमर कॉम्पलेक्स में नीचे एक बहुत ही छोटे से कमरे मे बगैर किसी तामझाम के सीधे अपने मरीजों से हंसते हुए अभिवादन स्वीकार करते हुए देखे जा सकते हैं डॉक्टर साहब । रविवार को छोड़ कर बाकी दिनों में सुबह   9  से 11 बजे तक और शाम को कों 6 से 9 बजे तक मिलते हैं डॉक्टर साहब ।यह सब कुछ आपकी सुविधा के लिए बता रहा हूं ।
अब बताने लायक बडी बात यह है कि इन साहब के हांथ में मानो यश है , मरीजों हर तकलीफ़ को मुस्कुरा कर सुनते हैं , बीमारी के तमाम लक्षण जो आप बताना भूल जाते हैं ,  डॉक्टर  साहब आपको बताते जाते हैं , बात करते-करते अपने हांथ से आपको दवा की दो-चार बूंदें पिलाते हैं । फ़िर शुगर बॉल पर दवा की कुछ बूंदें टपका कर एक छोटी सी प्लास्टिक की बोतल में आपको देते हैं । अब बात आती है कुछ लेने-देने की ,सच मानिये ये डॉक्टर साहब  लेते कुछ  भी नहीं हैं । एक पैसे भी नहीं लेते किसी भी मरीज या उनके परिजनों से । इनके ईलाज से लोगों को इतना फ़ायदा होता है कि शहर के लोगों की भीड़ तो लगी ही रहती है ,लोग दूर - दूर से लोग अपने पहचान वालों को , रिश्तेदारों को लेकर यहां आते हैं और इनके ईलाज का फ़ायदा पाते हैं । ड़ॉक्टर साहब  का बनाया टाईम टेबल धरा का धरा रह जाता है,  भीड उनको समय का भान नहीं होने देती है । अब आप की जिज्ञासा होगी कि आखिर दवाईयां कहां से आतीं होंगी /  डॉक्टर  साहब का खर्चा कैसे चलता होगा ? तो पहले तो यह जानिए कि डॉक्टर साहब घर- परिवार से सम्पन्न हैं  खानदानी हैं  और बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी  भी  नहीं हैं । सीमित साधनों में बहुत खुश रहना जानता है आपका परिवार , अब बात दवाईयों की तो उसे स्व स्फ़ुर्त लाने वाले लोगों की कमी नहीं है । कुछ तो मेडिकल स्टोर्स वाले ही दवाइयां पंहुचाते रहते हैं कुछ इन्के लिए बेहद रियायती दरों पर दवाएं उपलब्ध कराते हैं । अमर कॉम्प्लेक्स के मालिक स्वयं  भी दवाईयां ला - लाकर देते देखे जाते हैं ।  डॉक्टर  साहब के चाहने वालों ने उन्हें सलाह दी कि इस पुनीत कार्य में यदि कोई मरीज या उसके परिजन अंशदान करना चाहें तो उनके लिए भी कोई सरल सहज रास्ता होना चाहिए , कम से कम एक छोटी सी पेटी ही टेबल पर रखी जाय और यह कहते हुए एक पेटी अब रखी गई है ,जिसमे जिसकी जो इच्छा होती है  सहयोग राशि डाल देता है ।
     इस पूरी कहानी को बताने के पीछे मेरी मंशा है , जरूरत मंद लोगों को स्वास्थ्य लाभ हो , मुफ़्त मे मिल रही दवा की वजह से नहीं बल्कि एक नेक दिल इन्सान के हांथों से नेकी से दी गई दवा से । वर्ना  आप भी यह भलीभाँति जानते ही  हैं कि  आज मर्ज, मरीज और ईलाज का क्या हाल है। हमारा शहर तो मानों इस पेशे की व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे रहना चाहता है । सर्दी -  खांसी और बुखार से पीडित लोगों को भी नर्सिग होम में भर्ती होना पड्ता है क्योंकि शहर से छोटी - छोटी डिस्पेंसरियाँ तो अब गायब हैं ।  नर्सिंग होम का रूम रेंट और वार्ड का खर्चा किसी बड़े होटल से कम नहीं है और ईलाज का खर्चा तो पूछिए ही मत । आम आदमी - मध्यम वर्गीय इंसान को जहां तक सम्भव हो बचाया जा सके इन झंझावातों से इसी उद्देश्य के साथ यह खबर आप तक सादर सम्प्रेषित है । लाभ दिलाइये जरूरत मंदों को । धन्यवाद । 

शहर में जोरों का हल्ला है कि कई खोखे गायब हो गये हैं सूनें बंगले से !!!


राजधानी में इस आशय का शोर तेज हो रहा है कि सिविल लाईन इलाके में एक तगड़ी सुरक्षा वाले  बहुत बड़े बंगले से कुछ "खोखे" गायब हो गये हैं । खोखे की संख्या कहीं 12 तो कहीं 16 बताई जाती है । बंगले में रहने वाले उस दौरान शोक संतप्त थे । लिहाजा अपने छोटे से परिवार सहित पैतृक निवास पर थे । इसी बीच किसी निहायत ही अपने कहे जाने वाले ने अपना यह काम पूरा कर लिया ।सही समय जान कर  बड़ी ही  सफ़ाई से खोखे गायब कर दिये । बताते हैं ये श्री मान उन्हीं अपने लोगों में से  हैं जो खोखे सहेजने का काम देखते थे । रोजाना खोखे लाया - ले जाया करते थे ,दूसरे शब्दों में कहें तो केवल इसी काम के लिए यहां तैनात रहते थे । माना जा रहा है कि बहुत दिनों से ये लोग साहब के लिए काम कर रहे थे , मौका मिला तो एक दिन अपने लिये काम कर लिया । खबर पर सहसा विश्वाश नहीं हुआ  तभी यह बात भी हो गई कि धूआं उठा  है तो कहीं  ना कहीं तो आग लगी होगी ।  कहां और कितनी यह बात अलग है  ।  सूत्र कहते हैं कोई बड़ी बात नहीं है भाई ,आप लोग क्यों परेशान हो रहे हैं ?  भरी बाल्टी से एक चम्मच निकल भी गया तो क्या फ़र्क पड़ेगा ?  एक मग लाकर और डाल दिया जायेगा । ऐसे मामलों में हल्ला नहीं किया जाता ,समझे । फ़िर दुनियाँ जानती है यह तो हांथ की मैल है , कभी कहीं एक जगह टिकती है क्या भला ?  आखिर आप ये क्यों भूल जाते हैं कि वो भी बड़े लोग ही हैं कुछ काम आया होगा तो ले गये होंगे  , अरे भई आप ये क्यों भूल जाते हैं कि आने का रास्ता  भी तो वे लोग ही बनाते हैं , आगे भी उन्हीं लोगों को यह काम देखना है । कौन हम -  आप को देखना है । बड़े लोगों की बड़ी बातें होतीं हैं । अब चलिये भी  अपना -अगर आप तक यह खबर  पहुंच   ही  गईं हैं तो  एक कान से सुनिए और दुसरे से निकाल दीजिए , भूल जाईए , आपको क्या करना है ?  वैसे आपको बता दें इस मामले सर से  ज्यादा  मैड्म  जी पूछताछ कर रहीं हैं ,पता कर लेंगे । याद नहीं पहले वाले साहब के भी कई सूट्केश यहीं से गायब हुए थे । जाते - जाते साहब ने तीन सूमो भर कर मंगवाया था सूट्केश । उन साहब को कोई फ़र्क पडा था  क्या , जो इन साहब को पड़ेगा । आप लोग भी बिना मतलब की बातों पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देते हैं । ठीक है  अपना काम कीजिए

जून 17, 2010

मरते हो तो मरो , हम राजनीति करना नहीं छोड़ेंगे

भोपाल गैस काण्ड़ का भूत मानो पूरे देश में नेताओं के साथ-साथ घूम रहा है । नेता जहां भी जा रहे हैं -मानो भूत को साथ साथ ले जा रहे हैं ।भारतीय जनता पार्टी के एक राष्ट्रीय नेता रवि शंकर प्रसाद जी ने 16,जून 2010 को राजधानी रायपुर में पत्रकारों से चर्चा की , कहा कि भोपाल गैस काण्ड़ के बाद यूनियन कारबाईड़ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वारेन एडरसन को भोपाल से बाहर सुरक्षित निकाले जाने के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह कुछ बोलते क्यों नहीं हैं ?  मौन क्यों हैं ?  इसका क्या मतलब समझा जाना चाहिए ?
इसके बाद भी अर्जुन सिंह तो कुछ नहीं बोले , मगर यह बात हमारे स्थानीय कांग्रेस नेताओं को जमीं नहीं , चुप रहना भी नागवार गुजरने लगा । राजधानी में कांग्रेस के नेता - पूर्व मन्त्री मोहम्मद अकबर से चुप रहा नहीं गया ।
दूसरे ही दिन उन्होंने शहर स्थित अपने दफ़्तर में पत्रकारों को बुलाया और`रवि शंकर प्रसाद के उक्त कथन पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा - भोपाल गैस काण्ड़ की चिन्ता जताने वाले श्री प्रसाद जी को यह मालूम होना चाहिए कि छत्तीसगढ़  के कोरबा में चिमनी गिरने से बड़ी संख्या में श्रमिक मारे गये हैं , यह भी एक बड़ी औद्योगिक घटना है इसमें भा द वि की उसी धारा के तहत अपराध पंजीबद्ध हुआ है जैसा कि भोपाल के मामले में दर्ज है । श्री प्रसाद जी को छ्त्तीसगढ़ के मुख्यमन्त्री जी से यह पूछ्ना चाहिये था कि कोरबा के इस अति संवेदनशील मामले में वे क्या कर रहे हैं ? क्यों उस कम्पनी के मालिक अनिल अग्रवाल को बचाने की कोशिशें की जा रही है ?
क्यों इस मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिशें की जा रहीं हैं ? भा ज पा के नेता इस मसले पर मौन क्यों हैं  ? आदि ।
इस खबर का यहां उल्लेख कर यह बताना चाहता हूं कि एक बार फ़िर यह बात सच साबित हो रही है , कि ये सभी नेता एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं , और ये खुद ही साबित करने में भी लगे दिख रहे हैं कि  मरने वाले मरते रहें , राजनीति करने के लिये उनकी लाशें ही काफ़ी हैं । मुद्दा अच्छा है जनता के बीच हो - हल्ला करने-कराने के लिये । भोपाल में आज से पच्चीस साल पहले हुआ मौत का ताण्ड़व अब जब नई पीढ़ी को भी असह्य दर्द दे गया है  तब  भला उस पर मरहम लगाना छोड राजनीति करना कितना उचित है ? मगर नेताओं को क्या हर गरम तवे पर उन्की रोटी सिंकनी चाहिए बस ।  मगर हमार मानना तो यह  है कि काण्ड चाहे भोपाल का हो या फ़िर कोरबा का , न्याय और मानवीय संवेदनाएं तो कम से कम दोहरी नहीं होनी चाहिए । ना जाने नेता बन जाने के बाद इनकी संवेदनाएं कहाँ मर जातीं हैं ? राजनीति ही सर चढ़कर क्यों बोलती  है ?  बुद्धी-विवेक कहां चला जाता है ? लोगों की मौतें मानो इनकी किस्मत से हुई हों , मुख्य मुद्दा छोड ये आपस में  ही  तू-तू   मैं-मैं  करने लगते हैं और मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने में सफ़ल भी हो जाते हैं । समर्थक आपसी झगड़ों में सिर फ़ुटव्वल करते नजर आने लगते हैं ।  बड़ी ही दुर्भाग्यजनक बात है यह । शर्म आनी चाहिये  नेताओं को ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर आरोप - प्रत्यारोप  और दलगत  राजनीति करने करते हुए । आखिर कहाँ  जाकर  और कब जा कर सुधरेंगे आदमी से नेता बने ये लोग ???

जून 16, 2010

पानी बरसा नहीं कि बिजली गुल


गांवों में आज भी ऐसा होता है कि बारिश कि बूंदें टपकी नहीं कि बिजली गुल । लेकिन अब यह बात गांवों तक ही सीमित नहीं रहीं । यह बीमारी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी आ पंहुची है । मानसून की पहली बारिश कल पन्द्रह जून की शाम हुई । राजधानी में सभी खुश थे कि चलो अब गर्मी से कुछ राहत  मिलेगी । लेकिन शायद यह बिजली के  बेजान तारों को मंजूर नहीं था , शहर का आधे से ज्यादा हिस्सा अंधेरे में ड़ूब गया और आधी रात तक डूबा रहा । क्या आप जानना चाहेंगे कि ऐसा क्यों हुआ और क्या आगे भी ऐसा ही होगा ?  तो जानिये -
नया राज्य बनने के बाद हमारे नेताओं ने विकास का संकल्प लिया । छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मण्डल में बिहार से आये राजीब रंजन जी अध्यक्ष नियुक्त किये गये । इस विभाग में "विकास" का जिम्मा अब उनके पास आ गया , जिसमें उन्हें किसी का भी हस्तक्षेप पसंद नहीं था । वो साहब अपनी मर्जी के इकलौते मालिक थे । एक छत्र राज्य करते हुए आप साहबान ने विकास का काम शुरु किया और प्रदेश मे 400 से भी ज्यादा सब स्टेशन बनवाए ,यह उनका एक उत्कृष्ट  उपक्रम था जो औसत खर्चे से लगभग दो-ढ़ाई गुना ज्यादा खर्चे में बन कर तैयार हुआ । इनमें लगे उपकरण  इतने  नाजुक और उमदा कि बारिश की बूंदें भी नहीं सह पाते  हैं बेचारे और बारिश - तेज हवा के आते ही अपनी पहचान बताना नहीं भूल पाते । ये तो हुई उपकरणों की बात । इससे भी बदतर हाल है मरम्मत की व्यवस्था का । आपको लगता होगा इतने सारे सब स्टेशन बनाये गये हैं तो इनके लिये इतने ही सब इंजीनियर्स भी होंगें  , अन्य टेक्निकल स्टॉफ़ भी होगा । नहीं जनाब ऐसा कुछ भी नहीं है । ये सारा काम ठेकेदारों के हवाले है हर काम के पीछे पैसा है और इस पैसे के पीछे कौन है ? इतना तो आपको समझदार होना ही होगा ,  यह मजबूरी है आपकी । विकास की राह पर चलते हुए  प्रदेश के बेरोजगार इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों को रोजगार दिया जाना-सब स्टेशनों को   सुव्यवस्थित बनाये रखने की मंशा नहीं थी ,शायद या भूल गये होंगे । ठेके का भूत सवार था ।राजधानी का जब यह हाल है तो सोचिए राज्य के दूसरे शहरों -  कस्बों - गांवों में बिजली का क्या हाल होगा । हर जगह लोगों की नाराजगी शिकायत केन्द्रों में तोड़फ़ोड़ के रूप में दिखाई दे जाती है , जिससे विभागीय  वरिष्ठ अधिकारी जन  जरा भी सबक लेना नहीं चाहते ।
हे सरप्लस बिजली वाले राज्य के प्राणियों क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे विकास के पीछे की मंशा कुछ और ही रही होगी ?  क्या आपको नहीं समझ आ रहा होगा कि " विकास " आखिर किसका हुआ होगा ? मगर आप कर भी क्या सकते हैं सिवाय सब कुछ सहने के ?  आदत जो पड गई है , तो सहते रहिये , क्योंकि बरसात तो अभी शुरु ही हुई है । बारिश का होना और बिजली का गुल होते रहना जारी रहेगा । आप तो मोम-माचिस और हाथ पंखा लेकर अपनी तैयारी कर लीजिए , जागने-सोने का समय तय कर लीजिए । और आप कर भी क्या सकते हैं ? अध्यक्ष रहे राजीब जी से मिल भी तो नहीं सकते क्योंकि अब साहब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नहीं , देश की राजधानी दिल्ली में रहते हैं । आज भी वो हमारे उर्जा विभाग में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी ( ओ एस डी )  हैं । आपके ही खर्चे में ( छत्तीसगढ़ शासन के)  पर वहां आराम से हैं । अपने घर-दफ़्तर में ।
चैन से तो वो सो रहे होंगे जिन्होंने आपके विकास की कल्पना की  थी आपके  सरप्लस पावर के लिये कुछ सोचा- किया था ।                     जय छ्त्तीसगढ़

बधाईयाँ सिसोदिया जी बधाईयाँ , गेंद उछल कर आपके कोर्ट में जो आई

छत्तीसगढ़ लॉन टेनिस एसोसिएशन ने इस बार विक्रम सिसोदिया को अपना नया अध्यक्ष चुना है । खोखा - खोखा भर के बधाईयाँ सिसोदिया जी । (पाटक समझें न समझें , सिसोदिया जी समझते हैं खोखे की भाषा )  ।  सिसोदिया , मुख्यमंत्री डॉ रमण सिंह के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी ( ओ एस डी ) हैं । सेंट्रल एक्साईज डिपार्ट्मेंट में अधिकारी हैं ।
मुख्यमंत्री जी के पुराने और काफ़ी करीबी माने जाते हैं , आप साहबान !
इंदौर से यहां आकर छत्तीसगढ़ लॉन टेनिस एसोसिएशन का सर्वोच्च पद सुशोभित करना हमें ( स्थानीय लोगों को ) कई संदेश देता है , लिहाजा निःसन्देह  आप बधाई के पात्र हैं ।
 लगता है इस बार टेनिस बॉल में अच्छी उछाल थी , तभी तो उस ऊंचाई तक उछल गई जहां पर आप विराजमान थे । यह खेल भी तो ऊचें लोगों का ही  है न सिसोदिया जी  , तो इस लिहाज से गेंद  ठीक जगह ही पंहुची है ,  न ।  हम छत्त्तीसगढ़ के लोग तो मुंह बाये ये उछाल देखते ही रह गये। अब ज्यादा कुछ समझ भी तो नहीं आता है ,  हम लोगों को , वो कहते हैं ना बड़े लोगों की बड़ी बातें । बस ऐसा ही है कि हर रोज कुछ न कुछ ऐसा होता जा रहा है और हम सब देखते रह  जा रहे हैं । वो तो अच्छा हुआ कि आप जैसे योग्य लोग हमारे प्रदेश में मौजूद हैं नहीं तो ना जाने क्या होता हमारे प्रदेश के खेल संघों का ? आपने लाज रख ली है , बस यही बहुत है ,अब आपके आशीर्वाद से यह खेल और भी अधिक समृद्ध - सम्पन्न हो जायेगा , पद ग्रहण किया बड़ी मेहरबानी । आजादी से पहले भी भारतीय लोग अंग्रेज अफ़सरों के गेंद के एक खेल को बड़ी हैरत अंगेज नजरों से , दूर से देखा करते थे , अब भी उतनी ही दूरी से अपने देशी अफ़सरों के खेल देखगें , वैसे भी ये खेल मंहगा है , गेंद मंहगी , रैकेट मंहगा , लॉन मंहगी , ड्रिंक मंहगा , सब कुछ तो मंहगा है ना,भला हम लोग कैसे - कहां से खेलेंगे ये खेल  ?  क्यों ठीक कहा ना ? खैर छोड़िए ये सब बेकार की बातें , आपको तो मुबारक  हो  छत्तीसगढ़ की  " लॉन "  और उसमें उछलने वाली " बॉल " । लॉन भी   " हरी-भरी "  है और बॉल भी  " हरी-हरी "  है ।

जून 15, 2010

श्रद्धांजलि

ख्याति लब्ध पत्रकार कमलाकर खेर जी हमारे बीच नहीं रहे । आपकी कमी कभी पूरी नहीं होगी । आपने देश के अनेक प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में मार्ग दर्शक लेख लिखे । सादगी भरा जीवन जिया । ऐसी पुण्यात्मा को सत सत प्रणाम । ईश्वर से प्रार्थना है दिवंगत आत्मा को सदगति प्रदान करें ,परिजनों को इस असह्य दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करें ।

ॐ शांति   ॐ शांति ॐ शांतिः

नेतागिरी हमारे छत्तीसगढ़ की

छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना सन 2000 में की गई । बिना किसी प्रयास के आसानी से बन गया था यह राज्य । राज्य बनते ही राजनीति ने यहां नई करवट ली। दिल्ली से फ़रमान आया और अजीत जोगी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैढ़ गए । इन्फ़्रास्ट्रक्चर ड़व्लपमेंट के साथ - साथ शुरु हो गया, गोरी चमड़ी और काली चमड़ी वालों की पहचान का सिलसिला , बेहद दुर्भाग्यजनक बात यह थी की इस वर्णभेद की राजनीति की शुरुआत किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं अजीत जोगी ने की थी , इस बात को छत्तीसगढ़ की जनता अच्छी तरह से जानती है। समूचे प्रदेश मे भय का वातावरण बन गया था, अगड़े-सवर्णों में भय ज्यादा था और राजनीति से परे रहने वाले दूसरे लोग अचरज मे थे क्योंकि घर बैठे - बिठाए  ही ये बेचारे सवर्णों के दुश्मन कहे जा रहे थे । वैमनश्य का यह बीज गांव - गांव बोए जाने का प्रयास किया जा रहा था।  वो तो अच्छा हुआ की विधान सभा का चुनाव आ गया और तीसरी राजनैतिक पार्टी एन सी पी लेकर विद्याचरण शुक्ल चुनावी मैदान पर आ गये ।उनकी पार्टी ने 7% वोट हासिल किये एक सीट भी मिली लेकिन इस झगड़े में भारतीय जनता पार्टी को फ़ायदा हुआ ज्यादा सीटें जीत कर उसने अपनी सरकार बना ली।
लोगों ने मानो राहत की सांस ली । एक अध्याय समाप्त हुआ ।नई शुरुआत हुई ।
 भाजपा शासनकाल का पहला दौर प्रदेश मे सभी के लिए  मानो फ़ीलगुड़ का सा दौर रहा है।इसमें वो कांग्रेसी भी शामिल थे जिनकी जोगी काल में घोर उपेक्षा हुई थी। क्या जनता क्या नेता सभी खुश थे ,बद्लाव से । इसी बीच शुरु हो गया जमीन की दलाली का धंधा और खूब फ़लने-फ़ूलने लगा ,जिसका दौर अभी जारी है । इस धंधे ने यहां हमारे सभी राजनैतिक दलों के नेताओं को प्रभावित किया ,अपनी ओर आकर्षित किया ।यहां से राजनीति ने फ़िर एक बार करवट बदली और जो करवट बदली की आज भी उसी करवट में नेताओं को राजनीति रास आ रही है। अब जनता जाये भाड में , फ़िर कौन सा अभी सामने कोई चुनाव है कि उसकी परवाह की जाए । अब तो हमारे यहां राजनीतिक इच्क्षा शक्ति से मॉल - शॉपिंग कॉम्प्लेक्स  बनते हैं , पुराने आशियाने उजाडे जाते हैं । जमीनें सरकारी हों या निजी उन पर बेधड़क कब्जे किये जाते हैं। और बेचारी बनी पुलिस भी वही करती जैसा इशारा होता है।  कुछ चुनिंदा सड़कें साल में दो-चार बार बनाई जातीं हैं ।भाजपा के जिला अध्यक्ष बहुत बडे बिल्डर हैं जैसी बडी बिल्डिंग वो बनना चाह्ते हैं बनतीं हैं। गृह निर्माण मण्डल  अब गरीबों के लिये नहीं वरन करोड़ों की कीमत के घर अमीरों के लिये बनाता है। हमारे प्रदेश का अधिकारी बेखौफ़ विदेश धूमने जाता है ,पत्रकार कुछ ना कहें इसलिये उन्हें भी विदेश के नाम पर बैंकाक- पटाया घुमाया जाता है। बदले हुए परिवेश मे अब हमारे यहां प्रतिष्पर्धा इस बात की है कि कितने कम समय मे कौन कितना ज्यादा कमा कर दिखा सकता है।किसके पास कितनी ज्यादा जमीन है ? इस प्रतिष्पर्धा में बिना किसी भेद-भाव के वर्तमान और पूर्व दोनो मन्त्री लगे हुए हैं।महाराष्ट्र में इन्वेस्ट करने में भी इन सभी की रुचि समान रूप से देखी जा सकती है।
यह सब जानकर कैसा लगा आपको ? बताईएगा ।

जून 14, 2010

आओ मॉल-मॉल खेलें…

आओ मॉल-मॉल खेलें… रायपुर में यह खेल बच्चों के खेल की ही तरह खेला जा रहा है। फ़र्क केवल इतना है कि यह खेल यहां बच्चे नहीं ,बड़े खेल रहे हैं। जो जितना बड़ा है, वो उतना बड़ा मॉल बना रहा है। राजधानी बनने के बाद यहां पैसों की तो कोई कमी नहीं रही । कमी है तो मॉल के लिये जगह की। लेकिन अब यह कमी भी नहीं रहेगी । शहर में हर वो जगह जिस पर किसी बड़े आदमी की नजर है ,खाली करा दी जायेगी।  शहर के सारे तालाब पाटे जा रहे हैं, पेड़ एक-एक कर काटे जा रहे हैं। नहरें पहले ही पाट दी गई हैं। अब बारी है पुरानी गंज मन्डी की फ़िर गोल बाज़ार की फ़िर बूढ़ा तालाब की ।यानि कि कुछ सालों बाद हमारा शहर मॉलों का शहर हो जायेगा। हम चुपचाप यह सब देखते रह जायेंगे । हम आम लोग विरोध भी नहीं करेंगे , जैसी की हमारी आदत पड गई है । और शायद इसी कमजोरी का फ़ायदा उठाते आ रहे हैं लोग । खेती की जमीन - मध्यम वर्गीय लोगों के मकान-दुकान बिक रहे हैं ।इस खेल में बड़े मालामाल हो रहे हैं,छोटे और मध्यम वर्गीय लोग बेहाल हो रहे हैं।
कोई इन मालदारों से पूछ सकता है कि भैया जी ,सौ - पचास  सालों से बैठ्ते आ रहे छोटे-छोटे व्यवसायी जिनकी पीढ़ियां यहां इन्हीं छोटे से धन्धे के सहारे पली - बढ़ी है ,वो कहां जायेगी ? उनका क्या होगा? आपके मॉल मे वो दुकानें भला कैसे खरीद पायेंगे ? वहां वो क्या धंधा-पानी करेंगे ?अनके परिवार का क्या होगा? फ़िर सीधी और सरल बात यह कि आप उनका धंधा उजाड़ कर अपनी दुकान क्यों और कैसे सजायेंगे ? केवल पैसा है आपके पास इस बिना पर कुछ भी कर जायेंगे आप ?
खेद की बात तो यह भी है कि इस अन्धी दौड़ मे खुद प्रदेश की सरकार भी एक प्रतिद्वन्द्वी  की तरह लगी हुई है,फ़िर किससे समझदारी की उम्मीद की जाय ? आम आदमी का हित कौन सोचेगा ? ? ?
क्या सारे छोटे - छोटे बाज़ार उजाड कर मॉल बना देना ही उचित होगा ? क्या विकास के नाम पर सारे शहरों की मौलिकता मिटा देने के लिये हमने बनाई है सरकार ? क्या यही है हमारे कथित नेताओं की दूरदर्शिता ? क्या हांथ पर हांथ धरे बैठे रहना हम सभी की मजबूरी है ? सोचिए ।

जून 13, 2010

मन्त्री जी पहुँचे अघोरी बाबा की शरण में

खबर कहीं और की नहीं बल्कि छ्त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की है।प्रदेश के एक बहुचर्चित मन्त्री एक अघोरी बाबा जी की शरण में पिछ्ले कुछ वर्षों से पड़े हैं।मन्त्री जी चाहते हैं बाबा जी उन्हें अपने  तन्त्र के प्रभाव से छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बना दें । ये मन्त्री जी अपने धनबल और बोलीबानी की वजह से केवल राजधानी में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में  जाने-पहचाने जाते हैं ।छात्र राजनीति से मुख्यधारा में पहुंचे इन मन्त्री जी को पहले-पहल तलाश थी राजनीतिक जमीं की , जो उन्हें मुकम्मल हो गई , लेकिन अब उनके पास जमीन ही जमीन है   छत्तीसगढ़ से लेकर महाराष्ट्र तक  । बस गर कुछ नहीं है तो वो है मनचाहा पद ।धनबल पर इक्छित पद मिल नहीं पा रहा है , दिल्ली वाले मान नहीं रहे हैं । अब यह कुर्सी तन्त्र के दम पर मिलने की थोड़ी बहुत उम्मीदें जरूर दिख पड़ती है।  लेकिन सब कुछ इतना आसां भी तो नहिं है ना बाबा जी भी बहुत पहुँचे हुये हैं , सब कुछ भलीभांति जानते हैं । इन दिनों बाबा जी भी मन्त्री जी के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं । मन्त्री जी भी यथासंभव सब कुछ उपलब्ध कराने की चेष्टा करते देखे जा सकते हैं । बाबा जो चाहो लेलो ,बस एक बार मुख्यमंत्री बना दो ,बन गया तो आपको राजकीय अतिथी का दर्जा भी दे दूंगा , रुपयों से लाद दूंगा ,कभी कोई कमी न होगी। मगर बाबा भी जानते हैं कि ऐसा गर हो गया तो राज्य की प्रजा का , लोगों की जमीन-जायदाद का क्या हाल होगा ? बाबा जी किसी एक के नहीं वरन समुचे भारत वर्ष से प्रेम रखने वालों मे से हैं। भूमि(धरती-जमीन ) को अपनी माँ का दर्जा देते  हैं । फ़िर भला कैसे वो अपनी  धरती माँ  को  छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सौदागर के हांथों (राज्य की बागडोर) सौंपने के लिए तन्त्र का उपयोग होने देंगे ?  इस अति महत्वाकांक्षी राजनेता से शहर तो वाकिफ़ है ही समूचा प्रदेश भी इन्हें इनके स्वभावगत कारणों से जानता है । आप भी समझ ही गये होंगे । हमारा मानना है भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं ।ऊपर वाले को अगर आप भी  मानते हों तो प्रार्थना कीजियेगा कि हे नीली छ्तरी वाले छ्त्तीसगढ की रक्षा कीजियेगा ।  इनके और भी कारनामें पढ़ने मिलेंगे आपको ।


फ़िल्म दिल्ली 6 का गाना 'सास गारी देवे' - ओरिजनल गाना यहाँ सुनिए…

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