अब नयनों का सपना नहीं है "नैनो" । वर्ष के आरंभ में " नैनो " लखटकिया कार चर्चा और आकर्षण का विषय रही है । लेकिन बाज़ार में आते-आते टाटा की यह कार लाख टके की नहीं रही । कारण चाहे जो भी , एक लाख रुपयों में कार खरीदने का सपना दिखाया गया था । मध्यम वर्गीय परिवारों में छोटे-बड़े सब लोगों ने मिल कर एक - सवा लाख रुपया सहेजना शुरू कर दिया था और दिखाये गये सपने को दिन-रात जिंदा रख इसे पाने की चाहत को मानो ललक में तब्दील कर लिया था । इसे जिंदा रखा था । रोज एक एक कर दिन गिना करते थे । फ़िर क्या हुआ ?
होना क्या था , सपने कभी पूरे होते हैं ? बढ़ती मंहगाई का हवाला देते हुए नैनो भी मंहगी हो गई । वे लोग निराश होने लगे जो ले-देकर लाख सवा लाख रुपये जोड़ पाये थे । क्योंकि नैनो अब इनके दरवाजे एक लाख रुपयों में नहीं आना चाहती थी । अब यह कार ड़ेढ़-दो और सवा दो लाख रुपयों में आपके घर तक आने को तैयार थी । पर इतने दामों पर आप तैयार नहीं थे ,शायद ,क्यों ठीक है न ? ठीक भी तो है ना यार कोई महीनों से लाख रुपयों मे कार का सपना दिखाए और फ़िर देने के वक्त दाम डबल बताने लगे तो बुरा लगना बल्कि गुस्सा आना स्वाभाविक लगता है । कुछ ऐसा ही नहीं हुआ आम आदमी-मध्यम वर्गीय लोगों के साथ । वह तो एक लाख का सीधा सा मतलब एक लाख ही समझता है ,न । कार के पीछे से उसकी आवाज सुनो तो आटो रिक्शे की सी घर्राने की आवाज आती है , ऊपर से दाम डबल अब कैसा करें ? यह सवाल भी उठने लगे । अब क्या करें , इसका उत्तर तलाशने - सलाह लेने के लिए दोस्तों - रिश्तेदारों के पास जाना पडा । दो लाख वाला मामला आते ही तरह-तरह की सलाहें मिलनें लगीं , कोई समझाने लगा इतना खर्च करना ही तो फ़िर नैनो ही क्यों ? फ़र्स्ट क्लास कोई सेकेण्ड हैण्ड ,और ज्यादा सी सी (पावर) की कार क्यों न लें ? फ़िर 800 क्या बुरी है ? ऐसी ही तमाम और सलाह जो एक लाख से ज्यादा खर्च की होतीं थीं ,मिलने लगीं । कोई भी उन लोगों के दिल का दर्द ना समझ सका कि इतने में ही (एक लाख रू,) कैसे मिल सकती है कार ?
इसमें सबसे दर्दनाक पहलू जो होता था कोई उसे समझना या उस पर बात ही नहीं करना चाहता था । अरे जरा सामने वाले की मनोदशा को भी तो समझिए हुजूर वह गरीब न जाने कैसे कैसे कर ,कहां-कहां से एक लाख रुपया जोड़ पाया है और अब कैसा करे इतने मे उसके सपनों की नैनो तो नहीं आ रही है, यह बताने आया है आपके पास और आप भी रतन टाटा की तरह उसे बता रहे हैं - अब तो इतने में नहीं मिलेगी "कार" । ठगा सा रह गया न नया-नया लखपती । है ना मुंगेरी लाल के हसीन सपनों की जैसी बात ?
लोग अभी भी इस सदमें से नहीं उबर पा रहे हैं कि एक नयी पैंतरे बाजी और आ गई बाज़ार में - अब बजाज वाले " रेनो " उतने ही सस्ते मे देना चाहने लगे हैं जितने मे शुरु-शुरू में टाटा नैनो दे रहे थे । हो ना गया देश की भोली भाली जनता का दोबारा कल्याण ? दूर बैठ कर चीन इस विषय में अपनी अलग ही खिचड़ी पका रहा है , उसका कहना है वह 2011 के अंत तक 60 हजार में यहां कार उपलब्ध करा देगा । हम तो कहेंगे सचमुच गालिब ये ख्याल कहीं ज्यादा अच्छा है । गर कार हुई आपके नसीब में तब चीन दे या जापान , आपको इससे क्या ? आप तो मजे कीजिएगा । नहीं तो जागते हुये किसी के दिखाने से सपने देखना छोड़िये और अपने नैनो ( नयन ) को थोड़ा आराम दीजिए । आगे और भी बहुत से हसीन सपने जो देखने हैं आपको । जय हिन्द ।
कारपोरेट के मार्केटिंग स्टैटजी और बाजार हर मुंगेरीलाल को ऐसे ही लुभाते हैं, नयनों में सपना, नैनों में सजना ....
जवाब देंहटाएंवैसे मेरा भी मानना है कि दो, सवा दो लाख खर्च कर आटो-टैम्पू के आवाज वाला नैनो लेने के बजाय टीपटाप कंडीशन में सेकैन्ड हैन्ड कार लेना ज्यादा उचित है.
AAta, Bata aur Tata sabhi pahuch ke bahar hote jaa rahe hai.
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