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रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा   :  मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।

दिसंबर 31, 2010

शुभ कामनाएं …


सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
और ...
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्‌ दुःखभाग्भवेत्‌॥
सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।

दिसंबर 30, 2010

धन्य हो गया छत्तीसगढ़ अपने इन नेताओं से…



अब तक आपने सुना होगा बैंक के रिकवरी एजेंट क्लाइंट से जबरिया पैसा वसूल करते हैं । इस मामले को लोगों ने सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया और सुप्रीम कोर्ट ने सभी बैंकों को इस आशय के निर्देष दिये कि जबरिया या दादागिरी के तौर तरीके गलत ही नहीं गैर कानूनी भी हैं ऐसा करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए । किसी भी ॠण की वसूली कानूनी प्रावधान के अन्तर्गत ही की जानी चाहिए , इसके बाद से बैंकों ने थोड़ी नरमी के साथ काम करना शुरु किया । लेकिन यहाँ छत्तीसगढ़ में अभी भी हालात बदतर ही हैं बैंक तो बैंक यहाँ तो सरकारी महकमा भी प्रायवेट गुण्डो का सहारा नियम बना कर ले रहा है । यह अफ़सोस जनक हाल किसी और का नहीं बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का विभाग (बिजली/सी एस ई बी) कर रहा है , वह भी केवल आम नागरिकों के साथ ,जिनका बिजली बिल कुछ दो-चार सौ रुपये का बकाया रह जाता है , उनके साथ , आम लोगों के साथ हो रही इस सरकारी गुण्डागर्दी की खबरें अब बकायदा शहर के अखबार छापने लगे हैं । लेकिन सरकारी महकमें को ऐसी खबरों से कोई फ़र्क नहीं पड रहा है । जिन लोगों ने भी किसी भी कारण से दो -तीन माह से अपना बिजली बिल नहीं जमा कराया ऐसे लोगों के घर दादागिरी करने वालों की , बिजली काटने वालों की एक टीम आ धमकती है , वसूली के लिए बकायदा चमकाती- धमकाती है और बिजली के सर्विस वायर को कहीं से भी काट कर चलते बनती है , मतलब जो कर सकते हो कर लो , जितना बिल दिया है पटाना ही होगा ,भले ही वह एक काम वाली बाई के दो कमरों के घर का बिल ग्यारह हजार रुपया हो , या फ़िर किसी पान की दुकान वाले का एक माह का बिल सोलह हजार रुपया आया हो , नहीं पटाया तो लाईन काटी जायेगी , वह भी दादागिरी से । गलत बिलिंग क्यों होती है ? इसके लिए दोषी कौन हैं ? दोषियों के लिए कोई सजा का प्रावधान भी है क्या ? इसका कोई जवाब नहीं है सरकार के पास । सच पुछें तो तानाशाही जैसा माहौल है यहाँ सरकारी महकमों में , और विभाग यदि माननीय मुख्यमंत्री जी का है तो फ़िर क्या कहनें । कोई कुछ नहीं कह सकता । आम जनता का बुरा हाल है । वहीं दूसरी ओर बड़े कारखानों या उन बड़े लोगों का जिनका बिजली बिल लाखों-करोड़ो रूपयों में बकाया है , उनकी लाईनें काट्ना तो दूर उनकी ओर कोई नजर उठा कर भी नहीं देखेगा । अकेले राजधानी रायपुर में लगे उद्योगों -अन्य कारोबारियों का हजारों करोड़ रुपयों का बिजली बिल बाकी है , मंत्रियों बड़े अधिकारियों के बंगलों इनके निजी आवासों का करोड़ों रूपयों का बिजली बिल बाकी है , किसी की हिम्मत नहीं है बकाया का कागज भी देने की , दादागिरी सिर्फ़ औए सिर्फ़ आम आदमी के साथ , गरीब और निरीह लोगों के साथ होती देखी जा सकती है । समूचे प्रदेश का यह हाल है कि जिन लोगों के यहाँ  ए सी चलते हैं उनके यहाँ उनकी इच्छानुसार - सुविधानुसार बिजली का बिल आता है , सारी सेटिंग घर बैठे हो रही है और जिनके घरों एक पंखा या कूलर है वह मजबूर है हजारों में बिल पटाने को ।
इससे भी बड़ी विड़म्बना यहाँ यह है कि जनता के बीच से निकल कर नेता और मंत्री बने स्वनामधन्य लोग यह भूल जाते हैं वो क्या हैं ? क्यों हैं ? और कितने दिनों के लिए हैं ? कुर्सी पाते ही ऐसे लोग अधिकारियों के हाँथों खेलना शुरु हो जाते हैं । अधिकारी इनकी जी हुजूरी नहीं बल्कि ये अधिकारियों की जी हुजूरी करते नजर आते हैं । कहने में खराब जरूर लगता है पर यहाँ सच्चाई यही है । सभी विभागों का मानो यही हाल है  - "अंधा बांटे रेवड़ी - चीन्ह चीन्ह के दे ।" क्या होगा छत्तीसगढ़ का ?

दिसंबर 26, 2010

कर्ज में डूबे पिता ने तीन बच्चों सहित खुद को लगाई आग

 यह घटना घटी , अखबारों में छपी , लोगों ने पढ़ा और भूल गए । शासन - प्रशासन मौन ! क्योंकि उसकी नजर में यह सामान्य या फ़िर रोज घटने वाली घटना है और शायद शासन - प्रशासन की प्राथमिकता सूची में यह विषय नहीं है । सच ही है 'मर्म' से नहीं 'माल' से चल रहा है छत्तीसगढ़ का शासन ।
कोई माने ना माने पर हकीकत यही है कि प्रदेश में अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है , गरीबों की जमीनें जबरिया खरीदी जा रही है ,कर्ज देने वालों का जंजाल बुरी कदर फ़ैला हुआ है , इस पर किसी का भी नियंत्रण नहीं है ,रोज मरते हैं कर्ज में लोग लेकिन शासन की बला से । क्योंकि कर्जदाताओं के लम्बें हाँथ नेताओं के गिरेबाँ तक जो हैं ।
पढ़िए हाल की ही एक घटना ---
रायपुर । कर्ज में डूबे राजधानी रायपुर के एक राजमिस्त्री ने शुक्रवार 24दिसम्बर की रात को अपने तीन बच्चों सहित खुद भी आग लगा ली। चारों को अम्बेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ दो बच्चों ने दम तोड़ दिया , एक बच्ची सहित बाप  जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। जिनकी हालत बेहद चिंता जनक बताई जाती है ।
बजरंग चौक आजादनगर रावांभाठा निवासी गब्बर (37) राजमिस्त्री है। रात करीब साढ़े आठ बजे उसने मिट्टी तेल डालकर दस वर्षीय बेटी श्वेता, आठ वर्षीय प्रिया और दो वर्षीय मयंक को आग लगा दी। इसके बाद खुद भी मिट्टी तेल डालकर आग लगा ली। चीखें सुनकर पत्नी सुनीता पड़ोसियों के साथ घर पहुंची। पड़ोसियों ने आग बुझाई और उन्हें अस्पताल पहुंचाया। 
सुनीता का कहना है कि 11 दिन पहले उसकी डिलीवरी के लिए गजानन ने कर्ज लिया था। अभी वह 15 हजार रूपए के कर्ज में डूबा हुआ था। इससे वह चिड़चिड़ा हो गया। शुक्रवार रात को काम से लौटा तो सुनीता से उसका विवाद हो गया। उसने सुनीता को बच्चों को लेकर मायके जाने के लिए कहा। सुनीता 11 दिन के बच्चे को लेकर घर से चली गई। इसके बाद गजानन ने तीन बच्चों और खुद को आग लगा ली। 
गुस्से में उठाया कदम
टीआई खमतराई विरेंद्र चतुर्वेदी ने बताया कि गजानन शराब का आदी था। शुक्रवार रात भी वह नशे में धुत घर पहुंचा। उसका पत्नी के साथ विवाद हुआ। वह सबसे छोटे बच्चे को साथ लेकर घर से निकल गई। इसके बाद गुस्से में गजानन ने तीन बच्चों को जलाया और खुद को भी आग लगा ली। 
(_कुल मिला कर बात यहाँ खत्म करने की चीर परिचित शैली की शराबी ने नशे में ऐसा किया , सारा दोष शराब और शराबी होने का , हालात को मारो गोली और बंद करो फ़ाईल , पता करो किससे कर्ज लिया था , बुलाओ उसे थाने , कुछ भेंट-पूजा ले लो और छोड़ दो उसे ,उसका भी धंधा है -अपना भी  । शासन को विधानसभा में जवाब देते बने ऐसी एक शानदार रिपोर्ट तैयार करवा कर रखो । बस हो गया काम । यही तो है शायद संवेदनशील प्रशासन  !!! )

दिसंबर 24, 2010

डा. विनायक सेन, नक्सली नेता नारायण सान्याल और पीयूष गुहा राजद्रोही करार

 रायपुर की एक स्थानीय अदालत ने डा. विनायक सेन, नक्सली नेता नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को राजद्रोह और छत्तीसगढ जन सुरक्षा अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया ।
डा. विनायक पर छत्‍तीसगढ़ जनसुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दायर किया गया है ।
माओवादियों का मददगार करार देकर उन्‍हें मई 2007 में गिरफ्तार किया गया था । दो साल जेल में बीताने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन्‍हें जमानत दी थी । डा. विनायक पर आरोप लगाया गया था कि बिलासपुर जेल में बंद माओवादी नेता नारायण सान्‍याल की चिट्ठियां वे अन्‍य माओवादियों तक पहुंचाते थे । आसित सेन पर नक्‍सली साहित्‍य छापने का आरोप है । जेल में सजा काट रहे पीयूष गुहा पर भी माओवादियों को मदद पहुंचाने का आरोप लगाया गया है । 2007 में रायापुर रेलवे स्‍टेशन पर गिर फ्तार किये जाते वक्‍त इनके पास से नारायण सान्‍याल की लिखी चिट्ठी मिली थी । पीयूसीएल नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. बिनायक सेन देशद्रोह के मामले में दोषी ठहराए गए हैं । शुक्रवार को रायपुर सेशन कोर्ट ने बिनायक सेन को देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, लोगों को भड़काने और प्रतिबंधित माओवादी संगठन के लिए काम करने के आरोप में दोषी करार दिया है। इस मामले पर बिनायक सेन के वकील ने कहा कि वह सेशन कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे । 
गौरतलब है कि डॉ. विनायक सेन को पुलिस ने छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून के अंतर्गत 14 मई 2007 को गिरफ्तार किया था । उन पर नक्सलियों के साथ संबंध रखने का आरोप लगा था। हाई कोर्ट ने डॉ. सेन को जमानत देने से इनकार किया इसके बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने उनके खिलाफ चार्ज शीट दायर की । 
दिसंबर 2007 ने सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. सेन की जमानत को निरस्त कर दिया। स्वास्थ्यगत कारणों से मई 2009 में डॉ. सेन को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी । 
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 जनवरी 2011 तक इस मामले का फैसला देने की आखिरी तारीख निश्चित की  थी ।

दिसंबर 19, 2010

बहादुर बिटिया

बहादुर शीतल


कहानी नहीं बल्कि सच्ची घटना है यह रायपुर की , जहाँ बड़े बड़े मारे डर के काँप उठते हैं वहीं एक दस वर्षीय बच्ची शीतल की हिम्मत ने न केवल अपनी माँ को लुटने से बचाया बल्कि लुटेरों को भी पुलिस के हवाले करा दिया ।
शीतल की माँ रंजीता शनिवार 18दिसम्बर की दोपहर  स्कूटर से शैलेन्द्र नगर से टाटीबंध जा रही थी । अपनी दोनो बेटियों शीतल (10 वर्ष) , जया (07 वर्ष) भी माँ के साथ ही स्कूटर पर सवार थे , टाटीबंध पहुंचने से पहले ही बाईक सवार दो लड़कों ने रंजीता के स्कूटर के समीप अपनी बाईक सटा कर रंजीत के गले से सोने की चैन खींच ली , इसी बीच गुस्साई शीतल ने लुटेरे युवक की शर्ट का कॉलर पकड़ लिया , बैलेंस बिगड़ा और दोनो ही वाहनों पर सवार चार के चारों सड़क पर गिर गये , आसपास के लोगों ने इस वाकये को देखा उन्हें माजरा क्या है यह समझने में देर न लगी और लोगों ने लपक कर उन दोनों लुटेरों को पकड़ लिया , माँ बेटी भी उठ खड़ी हुईं । अब क्या था लोगों ने दोनों लुटेरों की जम कर धुनाई की और पुलिस के हवाले कर दिया ।
चित्र : साभार पत्रिका रायपुर
रायपुर में चैन खींचने की ऐसी घटनाएं आम हो चली हैं । हर महीनें पन्द्रह - बीस घटनाओं की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज भी होती है , अनेक लोग पुलिस थाना जाना - रिपोर्ट लिखाना , फ़िर थाना -कचहरी के चक्कर काटने के झंझट से बचना चाहते हैं जो रिपोर्ट ही नहीं लिखाते हैं , ऐसों की संख्या भी कम नहीं है । लेकिन "शीतल"जैसे कम ही हैं जिनका आक्रोश बचाता है अपनों को रोकता है अपराध को । शीतल राजधानी रायपुर के नामी स्कूल होलीक्रॉस में कक्षा चौथी की छात्रा है । अब प्रेरणा भी बहुतों की , कि यार हिम्मत दिखाओ - सही वजह के गुस्सा दिखाओ । गलत करने वालों को रोकने का साहस कर दिखाओ तो सही । शाबाश शीतल तुम गर्म जोश भी , बधाई बच्चे , हम सब को तुम्हारी हिम्मत - सूझबूझ पर गर्व है बच्चे ।

दिसंबर 16, 2010

तंग आ चुके लोगों ने भिखारी को ही बनाया नेता


नेताओं के झूठे वायदों से तंग आ चुकी उत्तर प्रदेश के एक गाँव की जनता ने इनसे निपटने का एक अनोखा तरीका निकाला । उत्तरप्रदेश के शहावर शाह में की बात है जहाँ गांव के लोगों ने कोरे वादे करने वाले नेताओं को ठेंगा दिखाते हुए ऐसे नेताओं की बजाय एक भिखारी को अपना नेता चुनना कहीं ज्यादा अच्छा समझा और ऐसा कर दिखाया है । मजे की बात तो यह है कि  चुनाव जीतने के एक महीने बाद भी यह नया "नेता" भीख  ही मांग रहा है , लेकिन अब भीख अपने साथ-साथ जनता के लिए भी । इस गाँव के मतदाताओं को कुल आठ उम्मीदवारों में से एक का चयन करना था। लेकिन उन्होंने सभी को नकारते हुए 70 वर्षीय नारायण नट को अपना नेता चुना। यह नट पिछले 40 बरसों से गांव में भीख माँग रहा हैं । चुनाव लड़ने और जीतने के बाद वह कहता है कि उसने सपने में भी कभी ऐसा नहीं सोचा था कि नेतागिरी भी करनी पड़ेगी , उसका मानना है कि अब तो ग्राम विकास के लिए आगे भी  उसे भीख मांगना जारी रखना होगा । भीख में मिले सारे पैसों का उपयोग वह गांव के विकास के लिए करेगा । अभी तक  आजकल के नेता भिखारी कहे जाते थे अब भिखारी भी नेता हैं , धन्य है समय की लीला । आगे-आगे देखिए और क्या-क्या देखने-सुनने को मिलता है ।

दिसंबर 14, 2010

वरदान माँगूँगा नहीं

शिव मंगल सिंह ' सुमन '

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।
                                                                                            - शिव मंगल सिंह ' सुमन '

दिसंबर 10, 2010

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है …


छत्तीसगढ़ की जनता का दर्द कुछ अनोखा ही है । जिस-जिस को और जब-जब यहाँ लोगों ने सर आँखों पे बिठाया, उसने चार दिन बाद उसी जनता से बड़ी ही ढ़िठाई से पूछा है - कि तू क्या है … ? और ठगी सी रह गई जनार्दन कही जाने वाली जनता । देश के परिप्रेक्ष्य में भी यही देखा - महसूस किया जा रहा है । जिसे भी हम अपना नेता चुनते वह नमक हलाल न होकर चंद दिनों में ही लाल हो कर दिखाता है ।हम सब इन दिनों नेता और अधिकारियों के "भ्रष्ट आचरण" से परेशान हैं । भारतीय नागरिक इन दिनों दोहरा दर्द झेल रहे हैं । बेकाबू - बेलगाम "मंहगाई" की मार समानान्तर चल ही रही है , ऊपर से एक के बाद एक नित्य नए "घोटालों" की खबर , वह भी करोड़ों - अरबों रुपयों की । ऐसी खबरों ने मानो आम लोगों का दर्द बढ़ा दिया है ।  पहला दर्द यह कि इन प्रतिस्पर्धी भ्रष्टाचार और घोटालों पर काबू करने वाला कोई दिखता नहीं है । दूसरा पकड़े जाने के बाद भी ऐसे अपराधी समाज में सिर उठाए घूम रहे हैं । सैर - सपाटे पर सपरिवार विदेशों की यात्राएं कर रहे हैं । नित्य नये बंगले - नई देशी-विदेशी कारें खरीद कर लोगों को चिढ़ाते खुली सड़कों पर मौज-मस्ती करते दिख रहे हैं । यह कहते भी नहीं शर्माते हैं कि अच्छा है सस्पेंड कर दिया , घूम घाम लें । लौटकर सब ठीक कर लेंगे , तब तक मामला भी ठण्ढ़ा पड़ जायेगा , लोग भूल जायेंगे । और हो भी यही रहा है। छत्तीसगढ़ में कुछ ज्यादा ही ,लेकिन लोग भूल नहीं रहे हैं बल्कि और अधिक आक्रोशित हैं ।  हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने आधा दर्जन बड़े अधिकारियों को  और उनके अपराधों को माफ़ कर दिया बिना इस बात की परवाह किये कि इसका जनमानस पर क्या असर होगा । मिर्जा गालिब की गज़ल की चंद वो लाईनें बरबस ही याद आतीं है कि - "हए एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है  ? तुम्ही कहो कि ये अंदाज - ए - गुफ़्तगु क्या है , रगों में दौड़ते फ़िरने के हम नहीं कायल , जब आँख ही से न टपका तो फ़िर लहू क्या है … " यहाँ कुछ इसी अंदाज में सरकार अपनी जनता को और जनता सरकार को यहाँ देख रही है । सरकार की  इसके पीछे छिपी सोच शायद यही होगी कि जनता का क्या है वह तो बिकाऊ है ,चुनाव के समय फ़िर खरीद लेंगे , उन्हीं के बीच से तमाम एजेंट भी हैं उसके पास । लेकिन  कहीं जनता को खुश करने की सोच में दोषी अधिकारियों को सजा दे दी , अधिकारियों को माफ़ नहीं किया तो हमारी पोल खुल जायेगी और हम मुसीबत में पड़ जायेंगे । इन्हें सब मालूम ही नहीं है बल्कि सारी फ़ाईलें भी इन्हीं अधिकारियों के बस्तों में रहती है । इन्हें माफ़ करना जरूरी है , जनता का क्या ? वह मरती रहेगी सड़क , पानी, बिजली, मंहगाई , स्कूल अस्पताल और राशन-पानी के बोझ तले , मरने दो । छत्तीसगढ़ पिछले दस सालों से  इसे लूटने वालों की नजर में आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है । दिल्ली , कोलकता ,  हरियाणा , जयपुर , जोधपुर , ओड़िसा काटाभांजी , मुम्बई नागपुर और न जाने कहाँ-कहाँ से बड़े व्यापारी यहाँ आकर सत्त्ता के गलियारों से चिपके हैं ,सारा कामकाज सम्हाल रहे हैं । भ्रष्टाचार का आलम यहाँ यह है कि इनमें से कोई भी हजारों करोड़ रुपयों से नीचे की सम्पत्ति की बात नहीं करता है । मुख्यमंत्री बनने का सपने देख रहा एक मंत्री (भाईबंद सहित)और कांग्रेस के आधा दर्जन पूर्व मंत्री - विधायक जमीन के कारोबार में खुलेआम गुण्डागर्दी करते देखे-सुने जा सकते हैं । तमाम एन जी ओ अधिकारियों की गिरफ़्त में हैं , लेकिन इनके विरूद्ध कार्यवाही तो दूर कोई मुँह खोलने की हिम्मत नहीं कर रहा है । सत्तारूढ़ भाजपा का काँग्रेस के साथ इस मसले पर मानो खुल्लमखुल्ला गढ़बंधन जैसा है । यहाँ इस सफ़लता का श्रेय भाजपा को देना ही पड़ेगा ,जिसने काँग्रेस को उसके साथ प्रेम संबंध बनाने मजबूर कर दिया और आज यहाँ दोनो को फ़ील गुड है अब ऐसे में यदि यहाँ करप्शन का ग्राफ़ बढ़ता है,तो बढ़ने दो , फ़िर भला अधिकारी इस बहती गंगा में हाँथ धोने से क्यों चूकें ? बिहार का सोफ़ेस्टिकैटेड स्वरूप निर्मित किया है जमीन दलालों-लुटेरों ने यहाँ । सरकार भी सब कामकाज भूल कर बिल्डर की भूमिका में देखी जा रही है , जबरिया लोगों की जमीनें लेकर मकान, दुकान, मल्टिप्लेक्स, मॉल ,रेसिडेंसियल सिटीस बनाने में मस्त है। यदि आपके पास भी ऐसा कुछ करने का माद्दा है आईये छत्तीसगढ़ , आपका भी स्वागत है इस सरकार के रहते रहते आप भी लूट जाइये इस प्रदेश को । भोले-भाले आदिवासियों और  सीधे-साधे छत्तीसगढ़ियों का  राज्य है यह ।

विध्वंस के इस युग में भी इन हांथों ने केवल सृजन करना ही सीखा है ।

विध्वंस के इस युग में भी इन हांथों ने केवल सृजन करना ही सीखा है ।

दिसंबर 07, 2010

फ़िर आ गया खाना फ़ेंकने का समय , कृपया इसे रोकने का प्रयास करें


दोस्तों शादीयों का सीजन आ गया । हम आप बहुत सी शादीयाँ अटेंड करेंगे । पार्टियाँ अटेंड करेंगे और देखेंगे कि कैसे लोग असत्तियों की तरह गिरते तक लबलबा कर अपनी खाने की प्लेट भरेंगे ,जैसे कि पहली बार पार्टी का खाना खा रहे हैं या फ़िर उन्हें दुबारा कोई खाना लेने से रोकेगा या खाना ही खत्म हो जायेगा । और शायद इसी डर से वे लोग अपनी - अपनी खानें की प्लेटें इतनी भर  लेंगे कि उसे खा भी नहीं पायेंगे और बेझिझक बड़ी बेशर्मी के साथ बचा हुआ खाना ड्स्टबीन में डाल कर चलते बनेंगे ।
सच मानिये भारतीय विवाह वस्तुत: अब पारिवारिक आयोजन न रहकर सामाजिक एवं आर्थिक हैसियत और पारिवारिक शक्ति प्रदर्शन का भौण्डा हथियार बन गये हैं। यही कारण है कि वे सार्वजनिक मेलों की तरह आयोजित होते हैं । विवाह स्थल पर लोग एक दूसरे को धक्का देकर खाना खाते हैं। समारोह स्थल पर थर्मोकोल और प्लास्टिक के गिलासों के पहाड़ बन जाते हैं। हर आदमी थाली में बड़ी मात्रा में झूठन छोड़ता है।
एवरेज हजार लोगों की पार्टी में लगभग 250 - 300 लोगों के खाने लायक का खाना बेकार कर यूं ही फ़ेंका जाता है । यह हम सभी आये दिन शादी - पार्टियों मे देखते हैं । अन्न की इस बरबादी को कैसे रोका जा सकता है , हम सब को मिलकर ही सोचना होगा । समझना ही होगा कि हम सब मे से ही बहुतों से यह गलती होती है । अन्न की ही तरह पानी की भी बरबादी को भी समझबूझ कर रोकना होगा । इस जरूरत को प्राथमिकता के आधार पर समझना होगा । कैसे इस सवाल का जवाब भी अपने आपसे ही पूछ्ना और अपनी  आवाज सुन कर समझना होगा । क्या हम अपने आप को , अपने मित्रों को , अपने रिश्तेदारों को इस दिशा में सहयोग देने की समझाईस दे सकते हैं ?

दिसंबर 06, 2010

बढ़ी मानव तस्करी ; छत्तीसगढ़ एक बड़ा बाजार


पत्रिका के रायपुर संस्करण ने अपने सोमवार 06 दिसम्बर 2010 के अंक में संजीत कुमार की चौंकाने वाली खबर प्रकाशित की है , यह खबर शर्मनाक और चिंताजनक भी है । पत्रिका बताता है कि महिलाओं की तस्करी करने वालों के लिए छत्तीसगढ़ एक बड़ा बाजार बन चुका है। प्रदेश की बालाओं को बहला-फुसलाकर देश के अन्य राज्यों में ले जाकर बेच देने की कई घटनाएं सामने आई हैं।

आंकड़ों पर गौर करने पर पता चलता है कि बीते तीन साल में करीब साढ़े छह हजार महिलाएं गायब हो चुकी हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें लगभग आधी संख्या नाबालिग लड़कियों की है। पुलिस गुमशुदगी का मामला दर्ज कर अपना कर्तव्य पूरा कर रही है। इन लड़कियों का आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है।
राज्य में मानव तस्करी की सबसे ज्यादा घटनाएं आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर में सामने आ रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2007 से 2009 के बीच राज्य से करीब 18664 लोगों के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज की गई।
इनमें सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं और बालिकाओं की है। इन तीन सालों में लगभग 4500 से अधिक नाबालिग लड़के भी गायब हुए हैं। पुलिस अफसरों के अनुसार पिछले कुछ सालों के दौरान राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में भी गुमशुदगी के मामले बढ़े हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर मामले थानों तक नहीं पहुंचते। इस वजह से वहां के सही आंकड़े नहीं मिल पाते।
-शिकायत ही नहीं पहुंचती
राज्य के आदिवासी क्षेत्रों से भी बड़े पैमाने पर महिलाओं और युवतियों के गुम होने की घटनाएं हो रही हैं। जानकारी का अभाव सहित अन्य कारणों से इनमें से ज्यादातर मामलों की शिकायत पुलिस तक नहीं पहुंच पाती।
-पकड़ी जा चुकी है मानव तस्करी
करीब दो साल पहले रायपुर पुलिस ने एक कंटेनर पकड़ा था। उसमें 50 से अधिक लोगों को चोरी-छिपे दूसरे राज्य ले जाया जा रहा था। जम्मू व उत्तरप्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में यहां के लोगों को बंधक बनाए जाने की भी लगातार सूचनाएं आती रहती हैं।
सरकार स्वीकार चुकी है मानव तस्करी
पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल के अनुसार राज्य की बालिकाओं और मासूम बच्चियों की तस्करी की जा रही है। उन्हें दूसरे राज्यों में ले जाकर बेचा जा रहा है। वर्तमान सरकार भी इस बात को विधानसभा में स्वीकार कर चुकी है। इसके बावजूद इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है।
-महानगरों में सप्लाई
करीब ढाई साल पहले बस्तर की एक लड़की को दिल्ली पुलिस ने कुछ लोगों की चंगुल से मुक्त कराया था। युवती को अच्छा काम दिलाने के बहाने दिल्ली ले जाकर बेच दिया गया था। पुलिस अफसरों के अनुसार सरगुजा क्षेत्र की कई लड़कियों को दिल्ली, मुम्बई व पुणे आदि शहरों से मुक्त करा कर लाया गया है।
-नहीं देते सूचना
पुलिस अफसरों के अनुसार कई बार गुम इंसान कुछ समय बाद लौट आता है, लेकिन परिवार के लोग इसकी सूचना थाने में नहीं देते। इस वजह से भी आंकड़े बढ़ जाते हैं।
गुम इंसानों की तलाश के लिए हरसंभव प्रयास करने के निर्देश सभी थानों को दिए गए हैं। इसके तहत समय-समय पर थाना स्तर पर गुम इंसानों का पॉम्पलेट और पोस्टर भी चस्पा किया जाता है। दूसरे थानों, जिलों और प्रदेशों को भी सूचना दी जाती है। इसकी मॉनिटरिंग के लिए पुलिस मुख्यालय में सीआईडी शाखा के अधीन राज्यस्तरीय एक सेल भी बनाया गया है।
-राजेश मिश्रा, प्रवक्ता, छत्तीसगढ़ पुलिस
साभार : पत्रिका रायपुर , संजीत कुमार

दिसंबर 04, 2010

वे बड़े खुश नसीब होते हैं …


 हे गांधी जी , आज हर कोई आपको अपने कलेजे से लगा कर रखता है । शायद आपने कभी सपने भी नहीं सोचा होगा कि आप के जाने के बाद एक छोटे से कागज के टुकड़े पर छपा आपका चित्र यहां जन जन को प्यारा होगा - सर्वाधिक न्यारा होगा ।आपके चित्र को हमारे देश में हर जगह समान रूप से सम्मान प्राप्त है , किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं है , किसी भी राजनीतिक दल , संगठन में आपको लेकर कोई मतभेद भी नहीं है , आप सबके प्यारे-दुलारे हैं । यह कागज का छोटा सा रंगीन टुकड़ा जिस पर आपका चित्र छपता है वह सभी को समान रूप से उतना ही प्यारा है ।  लेकिन नाराज न हों तो कहुंगा , सच यह भी है कि आप आज भी गरीबों से दूर हैं । पहले भी नेहरू जी आपके पास थे , आज भी उन जैसे ही तमाम लोग आपके समीप हैं ।  लोग सच ही तो कहते हैं -  "आप जिनके करीब होते हैं ,वे बड़े खुश नशीब होते हैं …"

ओछी मानसिकता


 हरियाणा के बहादुरगढ़ कसबे में पूर्व सैनिक भगवान सिंह राठी के घर जन्में मित्र रविन्द्र राठी जी बताते हैं कि -
भारत माँ को अपने अमर सपूत तरुण शहीद खुदी राम बोस की शहादत पर सदा फक्र रहेगा और इनके सम्मान में हमारा सर सदा ही झुका रहेगा। मगर मुजफ्फरपुर में जहाँ उनका अंतिम संस्कार हुआ था, वहां कुछ देशद्रोही ताकतों ने एक जन शौचालय का निर्माण करवा कर अपनी ओछी मानसिकता का ही परिचय दिया है। मैं अपने सभी मित्रों से अपील करता हूँ कि आज उस महान क्रांतिकारी की जयंती पर सभी बिहार के मुख्यमंत्री (cmbihar-bih@nic.in) को पत्र लिखकर इस मामले में तुरंत कार्रवाई की मांग करें। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जय भारत।                                                                                                                            अमर शहीद खुदीराम बोस का जन्म 3दिसम्बर,1889 को ग्राम्य हबीबपुर, जनपद-मिदनापुर ,प0बंगाल में श्री त्रिलोक्यनाथ बोस के घर हुआ था।  बताते हैं स्वदेशी आन्दोलन में भाग लेने  के लिए खुदीराम बोस ने नवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ी थी। खुदीराम बोस का जन्म भारत वर्ष में आजादी के लिए लड़ने व क्रांति मार्ग को प्रज्जवलित करने के लिए ही हुआ था।
28फरवरी,1906 को ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ परचा बांटने के जुर्म में पुलिस सिपाही ने आपको पकड़ लिया। इस समय मात्र 15 वर्षीय खुदीराम बोस ने सिपाही को एक जोरदार तमाचा मारा और उससे अपना हाथ छुड़ा कर भाग निकले। 1अप्रैल,1906 को मिदनापुर के जिलाधीश की उपस्थिति में भी खूदीराम बोस ने वन्देमातरम् का नारा लगाया और पर्चे बांटे और वहाँ से भी बच निकले । 31मई,1906 को छात्रावास में सोते समय ही ब्रिटिश पुलिस खुदीराम बोस को गिरफ़्तार कर पाई । बंग-भंग आंदोलन के समय कलकत्ता का मुख्य मजिस्टेट किंग्सफोर्ड था।इसके दमन चक्र ने सारी हदें तोड़ दी थी। 28मार्च,1908 को किंग्सफोर्ड़ का तबादला मुजफफरपुर,बिहार कर दिया गया।
खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को किंग्सफोर्ड़ को मारने का कार्य सौंपी गया। 30 अप्रैल,1908 को रात के 8बजे दोनों लोग यूरोपीयन क्लब पहुँचे। वहाँ किंग्सफोर्ड़ की गाड़ी के धोखें में कैनेड़ी परिवार की गाड़ी को बम फ़ेंक कर  नष्ट कर दिया। फिर चाकी समस्तीपुर स्टेशन की तरफ तथा खुदीराम बोस बेनीपुर स्टेशन की तरफ भागे। चाकी ने 1मई,1908 को पुलिस द्वारा पकड़े जाने अपनी ही गोली से खुद को शहीद कर लिया । उधर 20-25 किमी पैदल चनने के बाद पुलिस के दो सिपाहियों ने खुदीराम बोस को दो रिवाल्वर,37कारतूस व नक्शों के साथ हिरासत में लिया । खुदीराम बोस को 21मई,1908 को मुजफफरपुर के मजिस्टेट के सामने पेश किया गया। वहाँ से अपराध स्वीकृति के बाद 25 मई,1908 को सेशन्स कोर्ट भेजा गया तथा 8जून,1908 को सेशन्स कोर्ट में सुनवाई हुई। जज ने खुदीराम बोस को फाँसी की सजा दी। 6जुलाई,1908 को हाईकोर्ट में अपील की गई। जिसकी सुनवाई 13 जुलाई,1908 को हुई। अभी खुदीराम की उम्र 18 वर्ष की भी नहीं थी लेकिन फाँसी की सजा हाईकोर्ट ने बरकरार रखी।
फाँसी के दिन 11अगस्त,1908 को खुदीराम बोस का वजन दो पौण्ड़ बढ़ गया था। प्रातः 6बजे उन्हें फाँसी दे दी गई । गंड़क नदी के तट पर खुदीराम बोस के वकील श्री करलीदास मुखर्जी ने उनकी पार्थिव काया अग्नि को समर्पित की ।हजारों की संख्या में युवकों का समूह एकत्रित था। अमर शहीद खुदीराम बोस चिता की आग से निकली चिंगारियां सम्पूर्ण भारत में फैली। चिता की भस्मी को लोगों ने अपने माथे पर लगाया , पुड़िया बांध कर घर ले गये। खुदीराम बोस ही प्रथम शख्स हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में आजादी के लिए फाँसी के तख्ते पर अपने प्राणों की आहुति दी थी।

फ़िल्म दिल्ली 6 का गाना 'सास गारी देवे' - ओरिजनल गाना यहाँ सुनिए…

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