लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
दिसंबर 04, 2010
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बिलकुल सही कहा आपने दोस्त क्युकी जिनके पास पहले से हैं उनके पास और जाते हैं ये और जिनके पास कुच्छ नहीं उनसे दूर भागते हैं ये..................... कोई करे भी तो क्या कहते हैं न पैसा ही पेसे को खींचता है !
जवाब देंहटाएंबधाई दोस्त !
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जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र, पहले तो आपके इस शानदार ब्लाग के लिये बधाई, लेख आकर्षक हैं, rajjyotish.blogspot.com पर आपकी टिप्प्णी और रूचि के लिये धन्यवाद, आपका सहयोग अपेक्षित रहेगा।
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति। बधाई।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा ...
जवाब देंहटाएंवैसे खुशी के पैमाने अलग-अलग होते हैं.
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