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रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा   :  मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।

अप्रैल 19, 2011

क्या होगा कांग्रेस का यहाँ … ?

छ्त्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष नंद कुमार पटेल



क्या होगा कांग्रेस का यहाँ … ?

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के हालात किसी से छिपे नहीं हैं , इन्हीं हालातों के बीच पार्टी आलाकमान ने पूर्वमंत्री नंद कुमार पटेल को प्रदेश कांग्रेस का नया अध्यक्ष नियुक्त किया है । अब दौर है कहीं खुशी - कहीं गम का क्योंकि यही खासियत है इस पार्टी कि जितने सर उतने धड़े , गुटीय राजनीति ने सर्वाधिक नुकसान किया है कांग्रेस का , यह बात सभी कांग्रेसी और गैरकांग्रेसी बखूबी जानते - समझते हैं , पर कांग्रेस को बचाने के लिए शायद समझना ही नहीं चाहते ।

प्रदेश में कांग्रेस की इस दुर्गति के जिस एक अतिजिम्मेदार नेता का नाम लिया जाता है , उसका उल्लेख करना अब यहाँ जरूरी नहीं समझता हूँ , समूचा प्रदेश ही नहीं बल्कि देश जानता है उस नेता तो , शुक्र है उस नीली छतरी वाले का जिसने छत्तीसगढ़ को दूसरा बिहार बनने से बचा लिया । यहाँ वर्ग संघर्ष के जनक को पदच्युत कर दिया और शायद प्रभावहीन भी । इन नये अध्यक्ष महोदय पर उन नेता की छवि - उनका आशीर्वाद , उनका वरदहस्त होना बताया जाता है , सच्चाई तो ऊपर वाला और वे दोनो नेता ही समझ सकते हैं , पर जो हल्ला है उससे इंकार नहीं किया जा सकता । अब सवाल यहाँ यह है कि कैसे सुधरेगी प्रदेश  में कांग्रेस की दशा-दिशा ? क्या उन पुराने कांग्रेसियों को वापस कांग्रेस में सम्मान के साथ काम करने का अवसर मिल पायेगा जैसा कि वे वर्षों से करते आ रहे थे और इस प्रदेश को दशकों तक कांग्रेस का गढ़ बना कर रखा था । यहाँ इस बात का उल्लेख करना बेहद जरूरी हो जाता है कि नया राज्य बनने और नई राजनीतिक शुरुआत ने यहां प्रदेश के गाँव - गाँव , शहर - शहर से ऐसे निष्टावान कांग्रेसियों को एक मुश्त उखाड़ फ़ेंकने का काम एक बहुत ही सोची समझी साजिश के चलते किया था , जिसे नया राज्य बनने के बाद , आज तक 11 वर्षों बाद तक भी किसी कांग्रेसी नेता ने सुधारना नहीं चाहा और परिणाम सामने है । क्या नये अध्यक्ष  इस दिशा में भी सोचेंगे ? या फ़िर इशारों में चलेगी यहाँ कांग्रेस जैसा कि बीते एक दशक से चलती आ रही है । शर्म आती है जब  सार्वजनिक तौर पर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि अमुख कांग्रेस नेता तो अमुख बी जे पी के नेता - मंत्री से सेट है , कांग्रेस प्रत्याशी को अमुख जगह चुनाव हराने में उसकी बड़ी भूमिका थी , उसने तो "इतना सूटकेस" या "खोखा" लेकर अपनी ही पार्टी को वहाँ हराने का काम बड़ी सक्रियता से किया । क्या नये अध्यक्ष इस चुनौती को स्वीकार कर कुछ कर दिखायेंगे यहाँ जिसकी कि आम कांग्रेस कार्यकर्ता उनसे अपेक्षा करता है ! छत्तीसगढ़ का आम कार्यकर्ता यह भी भलीभाँति जानता है कि उसके किस अतिजिम्मेदार नेता ने सन 2003 के पहले और 2008 के दूसरे विधान सभा चुनावों में अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव हराने के लिए क्या क्या नहीं किया था । तब से आज तक यहाँ कांग्रेस की स्थिति सुधरती नहीं दिखती है । क्या करेंगे नये अध्यक्ष महोदय इस दिशा में ? शायद उन्हें इसकी जानकारी होगी ।
एक आम कार्यकर्ता यह नहीं समझ पाता है कि जो भी - जहाँ भी कांग्रेस अध्यक्ष बनता है सबको (सभी गुटों को) साथ में लेकर चलने की बात क्यों करता है , वह कांग्रेस के साथ चलने और सबको कांग्रेस के साथ चलाने की बात क्यों नहीं करता ???    

अप्रैल 13, 2011

अनुकंपा नियुक्ति की माँग करता परिवार : चार हो गये आत्महत्या के शिकार

साहु परिवार : माँ और पीछे खड़ी बेटियाँ  , भाई सुनील जहर  दिखाता हुआ । यह  फ़ोटो उन दिनों की है जब तंग आकर इस परिवार खुद को अपने ही घर में कैद कर लिया था और सल्फ़ास खाकर मर जाने की धमकी भी दे डाली थी , मगर दुर्भाग्य कि शासन-प्रशासन सोया रहा। 



छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड के भिलाई इस्पात संयंत्र में अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे परिवार के पाँच सदस्यों ने 12 अप्रैल2011 को जहर खा लिया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई तथा एक सदस्य को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
 राज्य के मुख्य विपक्षी दल काँग्रेस ने इस मामले की न्यायिक जाँच कराने की माँग की है।
भिलाई निवासी 39 वर्षीय सुनील साहू संयंत्र की कालोनी में अपनी माँ मोहिनी साहू [65], तथा तीन बहने रेखा [40], शीला [32] और शोभा [28] के साथ रहता था। सात अप्रैल को साहू परिवार ने भिलाई इस्पात संयंत्र में अनुकंपा नियुक्ति की माँग को लेकर स्वयं को घर में बंद कर लिया था।
इस घटना के बाद जब भिलाई इस्पात संयंत्र के अधिकारियों तथा जिला प्रशासन के अधिकारियों ने परिवार से लगातार बात की तो कल को परिवार ने घर से बाहर आने की बात मान ली थी, लेकिन आज सुबह परिवार के सदस्यों ने जहर खा लिया।
कुमार ने बताया कि परिवार के जहर खाने के बाद सुनील ने इसकी जानकारी जब अपने पड़ोसियों को दी तो उन्होंने पुलिस की मदद ली। पुलिस ने परिवार के सदस्यों को अस्पताल पहुंचाया लेकिन तब तक साहू की माँ मोहिनी साहू तथा तीनों बहनें रेखा, शीला और शोभा की मृत्यु हो गई थी। साहू अस्पताल में भर्ती है, जहाँ उसकी हालत स्थिर है। कुमार ने बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि जानकारी मिली है कि सुनील के पिता एमएल साहू भिलाई इस्पात संयंत्र में अधिकारी थे तथा दिसंबर 1994 में एक रेल दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। इसके बाद से वह संयंत्र में अनुकंपा नियुक्ति की माँग की थी। मृत मोहिनीदेवी के पति एम.एल. साहू बीएसपी के औद्योगिक सम्बंध (आईआर) विभाग में डिप्टी मैनेजर थे। उनका शव 4 दिसम्बर 1994 को रेलवे पटरी पर संदिग्ध हालत में पाया गया था। परिजनों ने घटना में बीएसपी के ही कुछ कर्मियों पर उनकी हत्या करने का आरोप लगाया था। साथ ही उन्होंने अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की थी। पुलिस ने घटना में आत्महत्या का मामला दर्ज किया था। इस आधार पर प्रबंधन ने अनुकम्पा नियुक्ति देने से इनकार कर दिया था। एम.एल. साहू की मौत के बाद भी परिवार बीएसपी क्वार्टर में रह रहा था। गुरूवार 7 अप्रैल को कब्जा खाली कराने के लिए चल रहे अभियान के दौरान उनके घर की बिजली सप्लाई रोक दी गई। अनुकम्पा नियुक्ति व आवास आवंटन की मांग को लेकर शुक्रवार को परिवार ने खुद को मकान में बंधक बनाकर आंदोलन शुरू कर दिया था।
इस दौरान सुनील का परिवार संयंत्र की कालोनी में ही रह रहा था। गत दिनों जब संयंत्र प्रबंधन ने मकान खाली करने के लिए सुनील को नोटिस दिया तो उसके परिवार ने अनशन शुरू कर दिया और स्वयं को मकान में बंद कर लिया। ।
इस मामले में भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन ने  अब इस घटना के बाद इसे दुखद बताते हुए कहा कि प्रबंधन ने सुनील के प्रकरण पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने का भरोसा दिलाया था।
सवाल यह है कि यदि भरोसा दिलाने में प्रबंधन कामयाब रहता तो साहू परिवार सल्फ़ास जैसा जहर खा कर आत्म हत्या क्यों करता ???
भिलाई इस्पात संयत्र के उपमहाप्रबंधक जनसंपर्क एसपीएस जग्गी ने बताया कि कल सोमवार को बीएसपी प्रबंधन के उप महाप्रबंधक [औद्योगिक संबंध] एके कायल, एसडीएम सिद्धार्थ दास तथा सीएसपी राकेश भट्ट ने सुनील से उनके निवास पर मिलकर चर्चा की थी।
चर्चा के दौरान सुनील को बताया गया था कि उनके प्रकरण में मानवीय आधार पर सहानुभूतिपूर्वक पुन: विचार किया जाएगा। इससे पहले समय समय पर विभिन्न जनप्रतिनिधियों ने उससे चर्चा कर उसे पूरी सहायता करने का आश्वासन दिया था। कल प्रबंधन के कुछ अधिकारियों से चर्चा के बाद सुनील ने कहा था कि आज 12 अप्रैल को सुबह 11 बजे बाहर आकर सामान्य स्थिति बहाल करेगा ।
यह सारा नाटक आत्महत्या की इस बड़ी घटना के बाद महज अखबार बाजी करने की औपचारिता मात्र प्रतीत होती है ।सच्चाई यह है कि प्रबंधन से विगत 17वर्षों से प्रताड़ित साहू परिवार सामूहिक आत्महत्या करने को मजबूर हो गया और इस घटना को नया मोड़ देने भिलाई का प्रबंधन अब एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है , जिसमें उसके "पेड" लोग काफ़ी सक्रिय गेखे जा रहे हैं ।
इधर, इस घटना के बाद राज्य के मुख्य विपक्षी दल काँग्रेस ने इसके लिए रमन सरकार और भिलाई इस्पात संयंत्र को आड़े हाथों लेते हुए इस मामले की न्यायिक जाँच की माँग की है।
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कहा है कि सुनील का परिवार पिछले 17 सालों से अनुकंपा नियुक्ति के लिए लड़ रहा है। यदि इस मामले की न्यायिक जाँच कराई जाएगी तो ही इस घटना के दोषियों के बारे में जानकारी मिल सकेगी।
जोगी ने कहा है कि राज्य में युवक नौकरी को लेकर आत्महत्या कर रहे हैं और सरकार इस मामले में असंवेदनशील है। सरकार इस मामले की न्यायिक जाँच की घोषणा करे तथा दोषियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई करे।                                                                                                   भिलाई स्टील प्लांट में छोटे कर्मचारियों - अधिकारियों को , उनके परिजनों को , प्रबंधन के द्वारा सताये जाने के तमाम मामले वर्षों से देखे - सुने जा रहे हैं , जो बाद में स्थिति बिगड़ने के बाद मीड़िया और चंद नेताओं के जेबें गरम होते ही शांत कर दिये जाते हैं , इसमें भी यही होना है ।
राज्यपाल-मुख्यमंत्री ने जताया शोक
राज्यपाल शेखर दत्त ने इस घटना को स्तब्ध कर देने वाली त्रासदपूर्ण बताते हुए गहरा शोक प्रकट किया और उन्होंने परिवार के एकमात्र बचे सदस्य के शीघ्र स्वस्थ्य होने की कामना ईश्वर से की है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी घटना को अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यजनक बताया है और पीड़ित परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना और सहानुभूति प्रकट की है। उन्होंने मामले को गंभीरता से लिया है और दुर्ग कलेक्टर को जांच करने तथा जल्द अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा है। मुख्यमंत्री ने परिवार के बेरोजगार युवा सदस्य द्वारा भिलाई इस्पात संयंत्र से अनुकम्पा नियुक्ति की मांग किए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय इस्पात प्राधिकरण और संयंत्र प्रबंधन को इस पर मानवीय दृष्टिकोण से विचार करते हुए गंभीरता और तत्परता से ध्यान देना चाहिए था।

अप्रैल 12, 2011

जलियांवाला बाग और शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह





जलियांवाला बाग अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास का एक बगीचा है जहाँ 13 अप्रैल 1919 को ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला के निहत्थे, शांत बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था और हज़ारों लोगों को घायल कर दिया था। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जधन्य हत्याकाण्ड ही था। इस हत्याकांड ने तब 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से १२ मील पैदल चलकर जालियावाला बाग पहुंच गए थे।बैसाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।
बाद को उस कुएं में से 120 लाशें निकाली गईं। शहर में क‌र्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।मुख्यालय वापस पहुँच कर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम किया कि उस पर भारतीयों की एक फ़ौज ने हमला किया था जिससे बचने के लिए उसको गोलियाँ चलानी पड़ी। ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने इसके उत्तर में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम किया कि तुमने सही कदम उठाया। मैं तुम्हारे निर्णय को अनुमोदित करता हूँ। फिर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने अमृतसर और अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की माँग की जिसे वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड नें स्वीकृत कर दिया।इस हत्याकाण्ड की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 के अंत में इसकी जाँच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया। कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर वहाँ गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थीं। हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने पर 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को पदावनत कर के कर्नल बना दिया गया और अक्रिय सूचि में रख दिया गया। उसे भारत में पोस्ट न देने का निर्णय लिया गया और उसे स्वास्थ्य कारणों से ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया परंतु हाउस ऑफ़ लॉर्ड ने इस हत्याकाण्ड की प्रशंसा करते हुये उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। विश्वव्यापी निंदा के दबाव में बाद को ब्रिटिश सरकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया और 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
1927 में प्राकृतिक कारणों से उसकी मृत्यु हुई।
स्मारक : शहीदों की स्मृति को संजोकर रखने के लिए

शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह .... शहीद राम मोहम्मद सिंह आजाद 

भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह का नाम अमर है। आम धारणा है कि उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्होंने माइकल ओडवायर को मारा था, जो जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर थे। ओडवायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा।

जीवन वृत्त


उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।
अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे । उधमसिंह 13 अप्रैल, 1919 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके ।बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा
नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के
इतिहास में अमर हो गया। 1974 में ब्रिटेन ने उनका अस्थि कलश भारत को सौंप दिया।
शहीद उधम सिंह को कोटि कोटि नमन …।

अप्रैल 09, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ़ पहली जीत हुई दर्ज … बधाई

नन्ही बच्ची के हाँथों नींबू का रस पीकर अन्ना ने तोड़ा अनशन
भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अन्‍ना हजारे का 97 घंटे से अधिक का उपवास खत्‍म हो गया है। जन लोकपाल बिल को लेकर सरकार की ओर से सभी मांगें माने जाने के बाद अन्‍ना ने शनिवार को आमरण अनशन खत्‍म कर दिया।

सुबह साढ़े दस बजे जंतर मंतर स्थित मंच पर पहुंचे अन्‍ना ने सबसे पहले 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगाए। वहां मौजूद बड़ी संख्‍या में लोगों ने भी अन्‍ना के सुर में सुर मिलाए। अन्‍ना ने वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा, 'आज हमारी जो जीत हुई, आपके चलते हुई। हमारी लड़ाई अभी खत्‍म नहीं हुई। हम मिलते रहेंगे।' अन्‍ना और उनके समर्थकों ने इसे जनता की जीत करार दिया है।

अन्‍ना ने धरना स्‍थल पर अनशन पर बैठे अन्‍य लोगों को पहले जूस पिलाया, इसके बाद खुद एक बच्‍ची के हाथों जूस पीकर अपना उपवास तोड़ा। अन्‍ना के उपवास तोड़ने के साथ ही धरना स्‍थल पर जश्‍न का माहौल है। बीच-बीच में ‘अन्‍ना हजारे जिंदाबाद’ , ‘अन्‍ना तुम संघर्ष करो हम तुम्‍हारे साथ हैं’ के नारे सुनाई दे रहे हैं। मंच पर मौजूद कई कलाकारों ने गीत-संगीत के रंगारंग कार्यक्रम पेश किए।
इससे पहले सरकार ने आज सुबह साढे नौ बजे के करीब जन लोकपाल बिल से जुड़े सरकारी आदेश की कॉपी स्‍वामी अग्निवेश को सौंप दी। अग्निवेश इस कॉपी को लेकर जंतर मंतर पहुंचे और वहां मंच से इसकी कॉपी की प्रति पूरे देश को दिखाई गई। किरण बेदी ने इसे 'आत्‍म सम्‍मान' की जीत करार दिया है।

हजारे ने जन लोकपाल बिल के लिए गत मंगलवार को आमरण अनशन शुरू किया था। उसके बाद लगातार उनके साथ लोग जुड़ते गए। धीरे-धीरे भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लोगों में गुस्‍सा भी बढ़ रहा था। इसे देखते हुए शुकवार रात सरकार ने घुटने टेक दिए। सरकार बिल के मसौदा प्रस्ताव के लिए 10 सदस्यीय समिति बनाने पर राजी हो गई। इसके बाद अन्‍ना ने ऐलान किया कि जनता की जीत हुई है और अब वह अनशन तोड़ देंगे।

दोनों पक्षों में बातचीत के बाद शुक्रवार देर रात समझौता हुआ। सरकार के प्रमुख वार्ताकार कपिल सिब्बल ने कहा कि हम लोकपाल बिल पर तुरंत काम शुरू करेंगे। हमें हर हाल में 30 जून से पहले ड्राफ्ट तैयार कर लेना है। इससे इसे मानसून सत्र में संसद में पेश करना मुमकिन होगा। हजारे ने इस कामयाबी को पूरे देश की जीत बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने हमारी सभी मांगें मान ली हैं।

सरकार झुकी

हजारे समर्थक किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश ने साफ किया था कि जब तक सरकार बिल की मसौदा समिति के गठन का औपचारिक आदेश जारी नहीं करेगी तब तक अनशन खत्म नहीं किया जाएगा। इसके बाद सिब्‍बल को कहना पड़ा कि सरकार आदेश जारी करने पर भी राजी है।

मसौदा समिति के सदस्य
सरकार की ओर से : प्रणब मुखर्जी (अध्यक्ष), सदस्य- केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली, कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम तथा सलमान खुर्शीद।

सिविल सोसाइटी की ओर से : शांति भूषण (सह-अध्यक्ष), सदस्य- प्रशांत भूषण, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज संतोष हेगड़े, आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल तथा अन्ना हजारे।

आगे क्या?

- बिल बनने और संसद में पेश करने की राह खुलेगी।

प्रधानमंत्री, सोनिया को पत्र

- हजारे ने अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि जारी होने वाली अधिसूचना में इसके अध्यक्ष व सदस्यों के नाम, समय-सीमा तथा शर्तो का जिक्र हो।

- हजारे ने याद दिलाया कि सरकार संयुक्त मसौदा समिति पर राजी हुई है जिसमें 50 फीसदी सदस्य गैर-सरकारी होंगे।

- सोनिया ने हजारे से अनशन खत्म करने की अपील की थी। इस पर हजारे ने सोनिया को लिखे पत्र में याद दिलाई है कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की उप समिति जन लोकपाल बिल के व्यापक मसौदे पर राजी थी।

- उन्होंने सोनिया से परिषद की पूर्ण बैठक में चर्चा का आश्वासन भी मांगा।

ये मांगें मानीं

समिति में सामाजिक संगठनों और सरकार के पांच-पांच प्रतिनिधि हों। बिल बनाने का काम तुरंत शुरू हो। संसद के मानसून सत्र में इसे पेश किया जाए।

दो मुद्दों पर गतिरोध

लेकिन समिति के अध्यक्ष पद पर सरकार वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को रखने पर अड़ी दिखी। लेकिन हजारे इस पर किसी रिटायर्ड जज की नियुक्ति चाहते थे। फिर हजारे ने समिति के गठन संबंधी अधिसूचना जारी करने की भी मांग रखी। लेकिन सरकार ने इससे इनकार कर दिया।

ऐसे बनी रजामंदी

बाद में हजारे ने अपने रुख में नरमी दिखाते हुए कहा कि सरकार भले ही समिति के अध्यक्ष का पद अपने पास रख ले। लेकिन सह-अध्यक्ष हमारा होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि समिति में कोई दागी मंत्री नहीं होना चाहिए।

बीच का रास्ता निकाला

हजारे ने कहा, यदि अध्यक्ष हमारा होगा तो सरकार को कठिनाई होगी। लेकिन यदि कोई मंत्री अध्यक्ष बनेगा तो कैबिनेट को उसकी सिफारिशें मंजूर करनी होंगी। अध्यक्ष और सह-अध्यक्ष के अधिकारों में कोई अंतर नहीं होगा।

अप्रैल 05, 2011

जानिए क्या है "जन लोकपाल बिल"



कुछ अवगत नागरिकों द्वारा शुरू की गई एक पहल का नाम है जन लोकपाल बिल। इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तक् का गठन होगा। जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविन्द केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों के द्वारा वेबसाइट पर दी गयी प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया गया है। यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी आधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पायेगा। इस बिल को भारी समर्थन प्राप्त हुआ है। शांति भूषण, जे. एम. लिंगदोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि इसके समर्थन में हैं।
लोकपाल बिल की मांग है कि भ्रष्टाचारियों  के खिलाफ कोई भी मामले की जांच एक साल के भीतर पूरी की जाये। प्ररिक्षण एक साल के अन्दर पूरा होगा और दो साल के अन्दर अन्दर भ्रष्ट नेता व आधिकारियो को सजा सुनाई जायेगी । इसी के साथ ही भ्रष्टाचारियों का अपराध सिद्ध होते ही सरकार को हुए घाटे की वसूली की जाये। यह बिल एक आम नागरिक के लिए मददगार साबित होगा, क्योंकि यदि किसी नागरिक का काम तयशुदा समय सीमा में नहीं होता है तो लोकपाल बिल की मदद से दोषी अफसर पर जुर्माना लागायेगा और वह जुर्माना
शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा। इसी के साथ अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती है तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते है।  आप किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते है जैसे की सरकारी राशन में काली बाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी  या पंचायत निधि का  दुरूपयोग। और इसी तरह के जन हित के तमाम अन्य मामले ।लोकपाल के  सदस्यों  का चयन जजों, नागरिको और संवैधानिक संस्थायों द्वारा किया जायेगा। इसमें कोई भी नेता की कोई भागे दारी नहीं होगी।  इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से, जनता की भागीदारी से होगी। सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सी.बी.आई.का भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (ऐन्टी करप्शन डिपार्ट्मन्ट) का लोकपाल में विलय कर दिया जायेगा। लोकपाल को किसी जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था होगी।इस बिल के प्रति प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियो को 01 दिसम्बर 2010 को भेजा
गया था, जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. इस मुहीम के बारे  में आप ज्यादा जानकारी  के लिए www.indiaagainstcorruption.org पर जा सकते है. इस तरह की पहल से समाज में ना सिर्फ एक उम्दा सन्देश जाएगा बल्कि, एक आम नागरिक का समाज के नियमों पर विश्वास भी बढेगा। हर सरकार जनता को जवाबदेह है और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना हर नागरिक का हक है।
बीते 40 सालों से यह बिल देश के नेताओं ने रोक रखा है , डरते हैं कि कहीं जनता का बनाया यह बिल उन भ्रष्ट नेताओं को सलाखों के पीछे न भेज दे ।
 इसी जन लोकपाल बिल को देश में लागू करने की मांग को लेकर जनप्रिय समाजसेवक अन्ना हजारे  नईदिल्ली में जंतर- मंतर के सामने आज  05 अप्रैल 2011 से आमरण अनशन पर बैठ गये हैं । इसे भष्टाचार के खिलाफ़ अब तक की सबसे बड़ी जंग माना जा रहा है ।   अन्ना हजारे चाहते हैं कि सरकार लोकपाल बिल तुरंत लाए, लोकपाल की सिफारिशें अनिवार्य तौर पर लागू हों और लोकपाल को जजों, सांसदों, विधायकों आदि पर भी मुकदमा चलाने का अधिकार हो। लेकिन सरकार इन खास मुद्दों बहस और चर्चा की जरूरत मान रही है। 

सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में हजारे ने आमरण अनशन पर बैठने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था, 'चूंकि प्रधानमंत्री ने लोकपाल बिल का स्वरूप तय करने के लिए नागरिक समाज के लोगों के साथ एक संयुक्त समिति गठित किए जाने की मांग को अस्वीकार कर दिया है, इसलिए पूर्व में की गई घोषणा के अनुसार मैं आमरण अनशन पर बैठूंगा। यदि इस दौरान मेरी जिंदगी भी कुर्बान हो जाए तो मुझे इसका अफसोस नहीं होगा। मेरा जीवन राष्ट्र को समर्पित है।'
हजारे मंगलवार सुबह नौ बजे राजघाट गए और उसके बाद उन्होंने इंडिया गेट से जंतर-मंतर का रुख किया। जंतर-मंतर पर उन्होंने अपना उपवास शुरू किया।
अन्ना हजारे, स्वामी रामदेव, स्वामी अग्निवेश, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल आदि ने दिसंबर में प्राइम मिनिस्टर को पत्र लिखा था। पिछले महीने हजारे अपने साथियों के साथ पीएम, कानून मंत्री और कई बड़े अफसरों से मिले भी थे। पीएम ने उन्हें लोकपाल बिल पर समुचित कदम उठाने का भरोसा दिया था। एक कमेटी बनाने की बात भी की थी।
हजारे चाहते हैं कि उन्होंने लोकपाल बिल का जो ड्राफ्ट सरकार को दिया है, उसे उसी रूप में स्वीकार कर लिया जाए। लेकिन कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े, वकील प्रशांत भूषण और एक्टिविस्ट अरविंद केजरीवाल द्वारा तैयार इस ड्राफ्ट को मानने से पहले सरकार इस पर विचार-विमर्श करना चाहती है ।



                                    आजादी की दूसरी लड़ाई… तैयार हो भाई !!!  


अजादी की दूसरी लड़ाई लड़ी जा रही है । यह लड़ाई अब उन अपनों से है जिन्हें हमने भरोसे के साथ सत्ता पर बिठाया । इस भरोसे के साथ कि भारत को सोने की चिड़िया माना गया , तुम सब इसकी हिफ़ाजत करना , इसे स्वस्थ - तंदरुस्त - मजबूत रखना और आगे बढ़ाते रहना । लेकिन हमारे अपनों ने हमसे ही बेईमानी की , सोने की चिड़िया को सम्हालना छोड़ उसके सारे पंख ही भ्रष्टाचार की हमलावर - आक्रामक ऊंगलियों से नोच डाले । बेहद शर्मनाक काम किया , इतना ही नहीं इससे भी ज्यादा शर्मनाक काम तो वह किया कि देश की जनता को "बाहरी लोग" कह डाला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने । अर्थात सत्ता और उस बैठे नेता-अफ़सर अंदर के शेष देश बाहरी हो गया , ऐसी घिनौनी सोच तो अंग्रेजों की भी नहीं थी , जो विशुद्ध रूप से लूटने ही आये थे भारत को ! समय है एक जुट हो कर हम सब को , सारे देश को सड़क पर उतर कर भ्रट आचरण करने वालों को नेस्तनाबूत करने की । अपने देश को बचाने की । अन्ना हजारे एक ऐसे अखण्ड दीप क नाम है जो एक पवित्र उद्देश्य के लिए प्रज्जवलित हुआ है  एक - एक दीप हमें भी बनना होगा तभी मिटेगा हमारे घर का अंधियारा , और तभी जगमगा उठेगा हमारा घर । लेकिन हमें अपने अपने घरों - दफ़्तरों - दुकानों से निकल कर सड़क पर आना होगा - आंदोलन में अपनी जीवंत भूमिका का निर्वाह कर होगा । यह ज्यादा जरूरी है । जय हिन्द - जय भारत ।

- आशुतोष मिश्र , रायपुर , छत्तीसगढ़ । संपर्क - 094242 02729.                                                                                


कौन हैं अन्ना हजारे …

अन्‍ना हजारे का वास्‍तविक नाम किसन बाबूराव हजारे है। 15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना हजारे का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे, दादा फौज में थे। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। अन्ना के पुश्‍तैनी गांव अहमद नगर जिले में स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया. अन्ना के 6 भाई हैं।
परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए. उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई. यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक पुस्‍तक 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा।
  


अप्रैल 04, 2011

सार्थक बनाएं माँ की आराधना

नवरात्रि के परम पावन अवसर पर हम सभी माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना में सतत लीन रहते हैं , प्रार्थना है माँ सभी की मंगल कामनाएं पूर्ण करें । साथ बेटी स्वरूप में माँ सबके घर पधारें । कोख में आए माँ के आशीर्वाद स्वरूप रत्न  " कन्या " की कोई माँ - बाप या सास - ससुर , जेठ - जेठानी , देवर - देवरानी , नंद - नंदोई  कोई भी हत्या न कर पाए  बल्कि ऐसी पापी सोच ही किसी के दिमाग में विकसित न हो पाए  तब सार्थक होगी माँ की आराधना ।                                                                                                                                                                                       प्यार की घनी छाँव हैं ये बेटियाँ  - उर्मि कृष्ण
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प्यार की घनी छाँव हैं ये बेटियाँ


भर देती जिंदगी के अभाव ये बेटियाँ


बापू की आन में


पति की शान में


चाचा, ताऊ और जेठ, देवर


के भार में


मन के गुबार को, सद्‍भावना के नीचे


दफना रही हैं ये बेटियाँ


कुल की लाज में


सपूतों के निर्माण में






अपने अरमान को


मौन में


पी रही हैं ये बेटियाँ


कला की आड़ में


सौंदर्य के गुमान में


रंगमंच हो या टीवी


बेटी हो या बीवी


अखबार हो या पत्रिका


उघाड़ी जा रही हैं ये बेटियाँ


आग की आँच पर


चौपड़ की बिसात पर


सीता सावित्री के नाम पर


हर युग में दाँव पर


लगी हैं ये बेटियाँ






तुम कुछ भी कहो


कुछ भी करो


हर युग में मिटती आई है बेटियाँ


घर को सँवारती


जग को सुधारती


कभी न हारती


नया जन्म फिर फिर


लेती हैं बेटियाँ


नया जन्म फिर फिर


देती हैं बेटियाँ ।
                                                      

अप्रैल 03, 2011

आईसीसी क्रिकेट वर्ल्डकप 2011 - हम फ़िर बने विश्व विजेता



हम फ़िर बन गये विश्व विजेता । भारत ने आईसीसी क्रिकेट वर्ल्डकप 2011 जीत कर विश्व पटल पर देश का सिर गर्व से  ऊँचा किया ।  यह क्रम , यह जोश और यही एकता यदि हर क्षेत्र में बन जाए तो क्या कहना है "इंडिया" का  !!!   बधाई टीम इंडिया को  , बधाई क्रिकेट के दिवानों को  , बधाई आप सभी क्रिकेट प्रेमियों को  ।  




गौतम गंभीर (97 रन) और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की नाबाद अर्धशतकीय कप्तानी पारी के दम पर टीम इंडिया ने 28 साल बाद मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में एक नया इतिहास रच दिया है। आईसीसी क्रिकेट वर्ल्डकप 2011 के खिताबी मुकाबले में भारत ने श्रीलंका को 6 विकेट से हराने के साथ वर्ल्डकप खिताब पर भी कब्जा जमा लिया।

ये टीम इंडिया का दूसरा वर्ल्डकप है। धोनी के धुरंधरों ने 28 साल बाद वो कर दिखाया जो 1983 में कपिल देव एंड कंपनी ने इंग्लैंड में किया था। कप्तान धोनी ने शानदार पारी खेलते हुए नाबाद 91 रन बनाए। मैच के 48.2 ओवर में धोनी ने छक्का जमाकर भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई।

इस जीत के साथ ही टीम इंडिया का वनडे रैंकिंग में नंबर 1 बनना पक्का हो गया है।
भारत की इस ऐतिहासिक जीत के हीरो गौतम गम्भीर रहे जिन्होंने 97 रनों की साहसिक पारी खेली। विराट कोहली (35) के साथ तीसरे विकेट के लिए 83 रन जोड़कर भारत को वीरेंद्र सहवाग (0) और सचिन तेंदुलकर (18) के आउट होने से झटके से उबारने वाले गम्भीर ने कप्तान धौनी के साथ चौथे विकेट के लिए 109 रन जोड़कर टीम को जीत की दहलीज तक पहुंचा दिया। गम्भीर और धौनी ने विश्व कप फाइनल के इतिहास में भारत की ओर से अब तक की सबसे बड़ी साझेदारी को अंजाम दिया।

गम्भीर, धौनी और कोहली की शानदार पारियों की बदौलत भारत ने 275 रनों के लक्ष्य को 48.2 ओवरों में चार विकेट खोकर हासिल कर लिया। गम्भीर ने अपनी 122 गेंदों की पारी में नौ चौके लगाए। वह जब आउट हुए थे तब भारत को जीत के लिए 53 रनों की जरूरत थी। दूसरी ओर, धौनी 91 रन बनाकर विश्व कप में एक बल्लेबाज के तौर पर अपनी अब तक की नाकामी को धो दिया। उनके साथ युवराज सिंह 21 रनों पर नाबाद रहे।

फ़िल्म दिल्ली 6 का गाना 'सास गारी देवे' - ओरिजनल गाना यहाँ सुनिए…

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