लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
जून 25, 2010
जमीन ही नहीं जिंदगियाँ बेंच दी इन दलालों ने
दोस्त बन - बन के मिले हमको मिटाने वाले
हाँ कुछ ऐसा ही हाल है समुचे रायपुर जिले का । शहरी क्षेत्रों में तो बाहर से चले आए हैं इसे मिटाने वाले । शहर के चारो तरफ़ 20 किलो मीटर व्यास से हरियाली खतम कर इन्होने यहां कांक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया है विकास के नाम पर । लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वहीं के चंद लोगों ने मानो अपने-अपने इलाके को मिटा देने की कसमें खा रखीं हैं और कसमें पूरी निभाते भी दिख रहे हैं। बलौदा बाज़ार बेल्ट इसका जीता जागता उदाहरण है।
मैं बात कर रहा उस क्षेत्र की जहां अभी अम्बूजा , ग्रासिम , एल एण्ड टी , लाफ़ार्ज जैसे सीमेंट प्लांट लगे हुए हैं । इन्हीं प्लांट्स के आसपास अभी 7 (सात) और सीमेंट प्लांट्स लगने हैं । इन सभी को हजारों एकड़ जमीन चाहिए । सरकार के पास इतनी खाली जमीन नहीं है। जिन इलाकों में ये सीमेंट प्लांट्स लगने हैं उनके आसपास लोग रहते हैं , दर्जनों गांव बसे हुए हैं । इन्हीं ग्राम वासियों की खेतिहर जमीनों को खरीद कर बनाए जायेंगे ये कारखाने । देखते ही देखते यहां से किसानों के घर - खेत ,बाग - बगीचे , खेतों मे खड़े हजारों पेड़ सब कुछ गायब हो जायेंगे । नामो निशान भी नहीं रह जायेगा ,किसी चीज का । किसानों को हर हाल में अपनी जमीनें बेचनी ही होगी । इन्हें कोई बाहरी व्यक्ति यहां आकर मजबूर नहीं करेगा , जमीन बेचने को मजबूर करेगा वो जो निहायत ही अपना लगता - दिखता है ; जिससे गांव वाले दुःख - सुख में साथ की उम्मीद रखते हैं । कोई कहानी नहीं कड़वी सच्चाई है यह सब ।
संयंत्र लगाने वालों ने स्थानीय स्तर पर अच्छा प्रभाव रखने वालों को जमीन खरीदी में अच्छा मुनाफ़ा देने का प्रलोभन देकर इन्हें अपना दलाल बनाया है ।
बलौदा बाजार में , भाटापारा मे , अर्जुनी में , रवान में , और ना जानें कहां-कहां बैठे धनाड्य लोग विशुद्ध रूप से द्लाल की भुमिका निभाएगें बडी शान से और मिट्टी के मोल किसानों की खेतिहर जमीनों को खुद खरीद-खरीद कर सम्बंधित कम्पनियों को अपने मनचाहे दामों में बेच देंगे । उस क्षेत्र में ऐसा होता आया है , और ऐसा ही होगा , किसी माई के लाल में इतनी ताकत नहीं है कि इसे रोक ले ,शासन - प्रशासन चाहे किसी का भी , सब माया के सामने नतमस्तक दिखाई देते हैं । पिछले दो वर्षों से ऐसे कामों का बोलबाला उन क्षेत्रों मे बहुत बढ़ भी गया है । बढ़े-बढ़े नामी गिरामी लोग इस धन्धे में बड़ी सक्रीयता से लगे हुये हैं । दिन-रात एक कर बस इसी काम में लगे रहते हैं । लोगों उनकी जमीनें बेचने में भलाई समझा रहे हैं । खुद को जनहित के काम में लगा बता रहे हैं । बयाना देकर जमीनों को कब्जे में ले लेने की होड़ सी लगी है। खबर है कि हजारों एकड़ जमीनों का सौदा , हस्तांतरण हो चुका है , दलाल लालम लाल हो चुके हैं । अब बारी है खाली हो चुके ग्रामीण जनों की जो प्लांट शुरु हो जाने के कुछ ही महीनों बाद उसकी धूल और गर्द से लाल हो जायेंगे , बचे-खुचे खेतों की फ़सलें लाल हो जाया करेंगी ,फ़िर थक हार कर ये किसान भी गरजू हो कर जितना भी , जो भी मिलेगा उस दाम पर अपनी जमीनें इन प्लांट वालों को ही बेच कर इधर-उधर जीवकोपार्जन के लिए चले जाऐंगे ।
आने वाले कुछ ही सालों में बलौदा बाजार - भाटापारा के आसपास के गांवों में दर्जन भर से भी अधिक सीमेंट प्लांट्स बेखौफ़ धूल उड़ाएंगे । आदमी और फ़सलों मे भरपूर बीमारियाँ फ़ैलायेंगे तब शायद लोगों को आज के ये भगवान जैसे लगने वाले मातृभूमि के दलाल इलाके की बरबादी के
बदनियत सौदागर नजर आयेंगे । लेकिन तब होगा क्या ? तब तक तो गधे सारा खेत ही चर जायेंगे । क्या किसान और क्या स्थानीय वासी सभी पछ्तायेंगे । शायद तब समझ भी पायें कि अपने - अपने बच्चों के कैसे किया था इस विषैले वातावरण का इंतेजाम ?
नये रोजगार और विकास के जामे इस आपराधिक कृत्य को ढ़कने - मूंदने के लिये किये जायेंगे जिसमें फ़िर एक बार माया के दम पर कुछ अपने - अपनों के बच्चे जरूर रोजगार पा जायेंगे । लेकिन इतना सब करने के बाद भी हम खेती के लिए और जमीन शायद दोबारा नहीं ला पायेंगे , जितना अन्न आज अपने क्षेत्र में उगा रहे हैं ,शायद फ़िर कभी भी ना उगा पायेंगे । कितना मंहगा है यह सौदा क्या कभी हम इसे समझ भी पायेंगे ? यदि समय रहते समझे तो शायद ठीक , वरना आने वाली पीढ़ी को सैसे मुंह दिखा पायेंगे ? कैसी - क्या विरासत दी है ,यह बच्चों को उनके बड़े हो जाने के बाद भला कैसे समझा पायेंगे ? मगर अफ़्सोस यह सब कुछ हम लोग खुद ही कर रहे हैं , कोई सरकारी अधिकारी या बाहरी आदमी नहीं करवा रहा है , लालच जो तात्कालिक है बस उसके वशीभूत हो कर अपनी जमीन - जमीर बेचे जा रहे हैं हम लोग ।
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सत्य कह रहे हैं भाई साहब आप. पीढि़यों को जवाब देना होगा पर .. यह संभव भी नहीं रहा, अपने लोगों के द्वारा ही लुट रही है हमारी धरती.
जवाब देंहटाएंजमीन और जमीर बेंचने के इस गोरखधंधे के मौन साक्षी हैं हम भी.
खबरों को शब्दों की लयबद्धता में प्रस्तुत करने का आपका यह अंदाज निराला है आशुतोष भईया जैसे कविता में लेरिक.
धन्यवाद.
...सार्थक पोस्ट!!!
जवाब देंहटाएंमुझे भी ब्लॉग सूही में जोड़े , बहुत ही संवेदन शील मामलों पर निर्भीकता से लिख रहे है साधुवाद एक अपना फोरम www .yuvasandesh .com जेसा बनाये ये भविष्य आपका होगा
जवाब देंहटाएंvikash ke nam par vinash ko amantran deti vyavastha chintajanak hai .............
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