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मेरा अपना संबल
जून 29, 2010
अच्छा होगा यदि ऐसे बच्चों के प्रति स्कूल प्रशासन संवेदनशील रहे ,
अंतर्राष्ट्रीय डायबिटिक फेडेरेशन (आई.डी.ऍफ़.) के अनुसार ‘मधुमेह एक जानलेवा बीमारी (डिसॉर्डर) है जिसके घातक प्रभावोंके कारण प्रति वर्ष लगभग ४० लाख व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अनेक बच्चों का जीवन भी इस रोग के कारण खतरे में पड़ जाता है , विशेषकर उन देशों में जहाँ मधुमेह से बचाव हेतु साधनों की कमी है। आई.डी.ऍफ़. के २०० सदस्य संगठन हैं जो १६० देशों में फैले हैं।
मधुमेह बच्चों में लंबे समय तक चलने वाली एक आम बीमारी( डिसॉर्डर) है। प्रतिदिन २०० से अधिक बच्चों में टाइप मधुमेह की पहचान की जाती है, जिसके चलते उन्हें रोज़ इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं तथा रक्त में शर्करा की मात्रा को भी नियंत्रित करना पड़ता है। बच्चों में यह रोग ३% वार्षिक की दर से बढ़ रहा है तथा बहुत छोटे बच्चों में यह दर ५% है। आई.डी.ऍफ़. के अनुसार विश्व भर में १५ वर्ष से कम आयु के ५००,००० बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं। निम्न एवं निम्न-मध्यमवर्गीय आय के देशों के लगभग ७५,००० बच्चे मधुमेह से पीड़ित होने के साथ साथ इस रोग की उचित देखभाल से भी वंचित हैं। वे अत्यन्त शोचनीय स्थितियों में जी रहे हैं। उन्हें इंसुलिन की आवश्यकता है, नियंत्रण उपकरणों की आवश्यकता है एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है । ताकि वे मधुमेह की बीमारी को काबू में रख सकें और इस रोग की गंभीर जटिलताओं से मुक्त हो सकें।
ऐसे बच्चों को जिन्हें बार बार पेशाब के जाना पड़ता हो ,उनके प्रति स्कूल प्रशासन को भी सजग रहना चाहिए , बच्चों के अभिभावकों से इस विषय में चर्चा करनी चाहिए । बच्चों को टायलेट जाने से मना नहीं करना चाहिए । टीचर्स को ऐसे मामलों में आवश्यक रूप से अति संवेदन शील होना ही चाहिए । देखा गया है बहुत जगहों पर अनावश्यक का डिसिप्लीन ,बच्चों को शारीरिक - मानसिक यातना देता है , जो अक्षम्य अपराध करने जैसा है ।
मधुमेह ( डायबिटीज ) होने के कई लक्षण रोगी को स्वयं अनुभव होते हैं। इनमें बार-बार पेशाब आते रहना (रात के समय भी), त्वचा में खुजली होना, धुंधला दिखना, थकान और कमजोरी महसूस करना, पैरों का सुन्न होना, प्यास अधिक लगना, कटान/घाव भरने में समय लगना, हमेशा भूख महसूस करना, वजन कम होना और त्वचा में संक्रमण होना आदि प्रमुख हैं। उपरोक्त लक्षणों के साथ-साथ यदि त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन दिखे, कोई चोट या फफोले ठीक होने मं सामान्य से अधिक समय लगे, कीटाणु संक्रमण के प्रारंभिक चिह्न जैसे कि लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो, उरुमूल, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता है या कोई न भरने वाला घाव हो तो रोगी को चाहिये कि चिकित्सक से शीघ्र संपर्क करे।
मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है । यह बीमारी में हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है । रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं । धमनियों में बदलाव होते हैं। इन मरीजों में आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है । मधुमेह होने पर शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सामान्य प्रक्रिया तथा होने वाले अन्य परिवर्तनों का विवरण इस प्रकार से है । किया गया भोजन पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है। अग्नाशय ( पेंक्रीयास ) वह अंग है जो रसायन उत्पन्न करता है और इस रसायन को इंसुलिन कहते हैं। इनसुलिन भी रक्तधारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है। ग्लूकोज से मिलकर ही यह कोशिकाओं तक जा सकता है। शरीर को ऊर्जा देने के लिए कोशिकाएं ग्लूकोज को उपापचित (जलाती) करती है। ये प्रक्रिया सामान्य शरीर में होती हैं।
मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण - इंसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।
इंसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।
पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।
अधिकांश ग्लूकोज रक्तधारा में ही बना रहता है। यही हायपर ग्लाईसीमिया (उच्च रक्त ग्लूकोज या उच्च रक्त शर्करा) कहलाती है। कोशिकाओं में पर्याप्त ग्लूकोज न होने के कारण कोशिकाएं उतनी ऊर्जा नहीं बना पाती जिससे शरीर सुचारू रूप से चल सके।
आग्रह है स्कूल प्रशासन ऐसे बच्चों को पहचाने उन्हें उनके इस डिसॉर्डर की वजह से उनमें उपजी सुस्ती या बहुमुत्र की शिकायत की वजह से प्रताडित न करे । अभिभावकों को भी बच्चों के ऐसे लक्षण पर नजर रखनी चाहिए और ईलाज के साथ-साथ स्कूल प्रसाशन को भी अपने बच्चे के इस डिसॉर्डर की जानकारी देना चाहिए ।
राजधानी के कुछ स्कूलों में ऐसी शिकायतें सुनने में आईं हैं कि वहां बच्चों को बारबार पेशाब करने जाने नहीं दिया जाता । बच्चों में इस रोग के बढ़ने के लिए ऐसी स्थिती ओर भी खतरनाक साबित होगी , अतः सचेत रहें , बच्चों को पेशाब के लिए जाने से न रोकें।
स्कूल शिक्षा विभाग और राज्य मानवाधिकार आयोग को भी स्कूलों को इस संबंध में दिशा- निर्देश देने का काम स्वस्फ़ुर्त ही करना चाहिए और इस आशय को अखबारों के माध्यम से प्रसारित - प्रचारित करते रहना चाहिए । यह करना जन आकांक्षाओं के अनुरूप होगा ।
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सुन्दर लेखन।
जवाब देंहटाएंआपकी संवेदना की दाद देता हूँ यदि शासन आपके ब्लॉग को सभी स्कूलों में निर्देश के रूप में जारी कर दे तो अति उत्तम होगा सादुवाद
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