लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
जून 23, 2010
तबादला बड़े साहबों का - ये क्या हुआ , कैसे हुआ , क्यों हुआ ?
छत्तीसगढ़ शासन ने आई जी , डी आई जी और एस पी साहबानों के तबादला कर दिया है । मुख्यमंत्री की सूझबूझ से ये अधिकारी तो भौंचक हैं , राजनीतिक गलियारे के चक्कर लगाने वाले भी चकराए घूम रहे हैं । कुछ अधिकारियों के तो मानों चारो खाने चित्त हो गये हैं । किसी ने सोचा भी नहीं था उसे यह मिलेगा । एक साहब पिछ्ले सात सालों से मानों सी एम साहब की नाक के बाल की तरह काम कर रहे थे । हर गोपनीय काम उन्हीं के जिम्में था । अक्सर कानों में जा कर ही अपनी बात कहा करते थे । ये साहब चाहते थे यदि इन्हें हटाया जाता है तो पूरी तरह से ,स्वतंत्र रूप से परिवहन विभाग ही दिया जाए , उनके सिर पर किसी को भी न बिठाया जाए । मलाई को लेकर कोई अन्य दावेदारी न हो , लेकिन उनका दुर्भाग्य कि ऐसा इसलिए ना हो सका क्योंकि यह प्रस्ताव उन्हें कतई भी मंजूर नहीं था जिनकी कम्पनी अंग्रेजों के जमाने से सही मायने में राज करती आ रही है । भारत का प्रशासन चला रही है । अपने अलावा शेष सारी दुनियाँ को दोयम दर्जे का मानती आ रही है । और इस झगड़े के बाद उन साहब को मिला है लूप लाईन जैसा विभाग । बड़ी निराशा हांथ लगी । इतने लम्बे समय की वफ़ादारी का उन्हें यह सिला मिला । वहीं दूसरी ओर जोगी जी के जमाने में खूब नाम कमाने वाले साहब ने मानो अपनी योग्यता फ़िर साबित की है और हथिया लिया है एक ऐसा विभाग जिससे वह अब मुख्यमंत्री के और भी करीब हो गये हैं । तमाम लोगों की परेशानी की एक बड़ी वजह यह भी है । मैदानी रणबांकुरों को मुख्यालय बैठने के आदेश मानों सजा के तौर पर मिले हैं । जिनसे किसी भी तरह का खतरा नहीं हो सकता है उनको गाड़ी-मोटर का काम देखने को कहा गया है । मुख्यालय में इस विभाग के तमाम दावेदारों के चेहरे तो उतरे हुये देखे जा सकते हैं । चर्चा भी सुनी जा सकती कि भी आखिर क्या कमी थी हममें ? हम भी वह सब करते जो ये करेंगे । वैसे लोगों को अब भी अपने अपने उचित माध्यमों पर भरोसा है , जिनके जरिए वो अभी भी अपना - अपना प्रयास जारी रखे हुए हैं । देखना है आगे होता है क्या ?
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जिसकी चली उसको मिली ॰॰॰॰॰ ट्रांसफर - पोस्टिंग उद्योग का तो ये टेलर था ॰॰॰॰॰॰ इस सरकार को उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिये जो सेटिंग के धरातल पर तो पिछड़ जाते हैं ॰॰॰॰॰ अगर इस व्यवस्था का निलामीकरण कर दे सरकार तो फायदे में तो रहेगी ही साथ ही लूट की संपदा से अपने दामनो को सुशोभित कर रहे अवसरवादियों को भी मौका मिल सकेगा ॰॰॰॰॰॰ खैर ॰॰॰॰॰॰
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