लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
जून 23, 2010
गटर अच्छा है "लापतागंज" का
लचर व्यवस्था और तंत्र पर करारा व्यंग्य है " लापतागंज " । "सब" टी वी पर देखा जा सकता है । बारिश के मौसम में आम आदमी कैसे- कैसे परेशान रहता है । नेता और नगरीय प्रशासन क्या करता है , ऐसी मुसीबतों में । इस पर बुधवार 23 जून 2010 को दिखाया गया एपीसोड यह बताता है कि मौजूदा प्रशासन और नेताओं से कहीं बेहतर है लापतागंज का " गटर " । क्योंकि वहां नरक निगम के अधिकारी और नेतागिरी करने वाले दोनों ही नहीं पाए जाते । तेज बारिश में गुम हुए लापतागंज वासियों का तो यही अनुभव है । गटर से बाहर निकले लोगों ने बताया कि गटर कहीं ज्यादा साफ़ है बाहर की दुनियाँ से क्योंकि वहां नेता जो नहीं हैं । शरद जोशी जी की कहानियों पर आधारित यह सीरियल सचमुच घर-परिवार के साथ बैठ कर देखने लायक है । दरअसल,लापतागंज सिर्फ एक कॉमेडी सीरियल नहीं है,ये उससे कहीं आगे का धारावाहिक है। आखिर,व्यंग्य को सामाजिक आक्रोश की परीणिति कहा गया है, और इस सीरियल के बहाने शरद जोशी की कलम से निकले कटाक्ष एक बार फिर दर्शकों को सोचने को मजबूर करेंगे कि कुछ भी तो नहीं बदला।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिए कोटिशः धन्यवाद ।