गुरूर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात परमब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
जिस देश में गुरू की महिमा का बखान सदियों से कुछ ऐसा किया जाता रहा हो उसी देश मे सरकारी स्कूल के गुरू जनों को शनैः शनैः अध्ययन - अध्यापन के कार्य से विमुख करते जाना और उनके आत्म सम्मान - स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ करना कहां तक उचित होगा ?
अब देखिए स्कूल खुले अभी चार दिन भी नहीं हुए हैं सरकारी स्कूल के गुरूजनों को राशन कार्ड की जांच में लगा दिया गया है । अब गुरू जी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना छोड़ कर गली-गली घूम कर , घर-घर जा कर लोगों का राशन कार्ड चेक करेंगे । राशन कार्ड , चूल्हा-चौका , परिवार के सदस्यों की संख्या आदि चेक करेंगे । गर्मी की छुट्टियों में इन्हीं गुरू जनों ने जनगणना का काम पूरा किया है । इससे पहले पल्स पोलियो की अनिवार्य सी ड्युटी तो करते ही आ रहे हैं । इसके अलावा पशु गणना , टीका करण कराना । मतदाता सूची सुधारना , लोगों की आपत्तियाँ सुनना , दावा प्रपत्र भरवाना । इस तरह के ढ़ेर सारे काम इन गुरू जनों को बारहों महीनें करना पडता है । जिला मुख्यालय मे कलेक्ट्रेट और नगर पालिका निगम , निचले स्तर पर अनुविभागीय अधिकारी , तहसीलदार , नायाब तहसीलदार छोटे-छोटे गांवों में कोट्वार स्तर के लोग भी गुरू जनों की ड्युटी लगाते रहते हैं । क्या ऐसे ही सम्मान - स्वाभिमान के साथ जीने की तमन्ना संजोए लोग गुरू जी की नौकरी करने की चाहत रख कर इस फ़ील्ड में आए होंगें ?
भला कैसे होगी इन गुरु जनों के सम्मान की रक्षा ? किस पर होगा इसका जिम्मा ? कैसे पढ़ाई होगी सरकारी स्कूलों में ? गुरू जन अपने स्कूलों में ध्यान केन्द्रित करें या फ़िर नौकरी बचाने के लिए स्कूल छोड़ कर गली-गली घूमें , सर्वे करें ? नेता अपने भाषणों में यह कहते नहीं थकते कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है । देश की 80 % आबादी आज भी भारत के गावों में रहती है । और इन्हीं गावों में स्कूल भवनों की कमी है , अधिकांश जगह तो है ही नहीं । इन्हीं गांवों में गुरू जनों की कमी है । ये कैसी राजनीति कर रहे हैं आजाद भारत के नेता ?
क्या होगा उस बड़ी आबादी का जो गावों में ही इस विश्वास के साथ बसती है कि उसके अगुआ , उसके नेता उसके गांवों का कल्याण करेंगे । उनके नौनिहालों का भविष्य संवरेगा । लेकिन जमीनी सच्चाई लोगों के इस विश्वास पर घात की तरह प्रतीत होती है । क्या हो रहा है सरकारी स्कूलों पर विश्वास रखने वाली देश की 80 % आबादी के इस विश्वास के साथ ? ? ? कोई देगा जवाब देश को ?
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
जून 23, 2010
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बहुत अच्छा लगा .अशोक बजाज
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