गांवों में आज भी ऐसा होता है कि बारिश कि बूंदें टपकी नहीं कि बिजली गुल । लेकिन अब यह बात गांवों तक ही सीमित नहीं रहीं । यह बीमारी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी आ पंहुची है । मानसून की पहली बारिश कल पन्द्रह जून की शाम हुई । राजधानी में सभी खुश थे कि चलो अब गर्मी से कुछ राहत मिलेगी । लेकिन शायद यह बिजली के बेजान तारों को मंजूर नहीं था , शहर का आधे से ज्यादा हिस्सा अंधेरे में ड़ूब गया और आधी रात तक डूबा रहा । क्या आप जानना चाहेंगे कि ऐसा क्यों हुआ और क्या आगे भी ऐसा ही होगा ? तो जानिये -
नया राज्य बनने के बाद हमारे नेताओं ने विकास का संकल्प लिया । छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मण्डल में बिहार से आये राजीब रंजन जी अध्यक्ष नियुक्त किये गये । इस विभाग में "विकास" का जिम्मा अब उनके पास आ गया , जिसमें उन्हें किसी का भी हस्तक्षेप पसंद नहीं था । वो साहब अपनी मर्जी के इकलौते मालिक थे । एक छत्र राज्य करते हुए आप साहबान ने विकास का काम शुरु किया और प्रदेश मे 400 से भी ज्यादा सब स्टेशन बनवाए ,यह उनका एक उत्कृष्ट उपक्रम था जो औसत खर्चे से लगभग दो-ढ़ाई गुना ज्यादा खर्चे में बन कर तैयार हुआ । इनमें लगे उपकरण इतने नाजुक और उमदा कि बारिश की बूंदें भी नहीं सह पाते हैं बेचारे और बारिश - तेज हवा के आते ही अपनी पहचान बताना नहीं भूल पाते । ये तो हुई उपकरणों की बात । इससे भी बदतर हाल है मरम्मत की व्यवस्था का । आपको लगता होगा इतने सारे सब स्टेशन बनाये गये हैं तो इनके लिये इतने ही सब इंजीनियर्स भी होंगें , अन्य टेक्निकल स्टॉफ़ भी होगा । नहीं जनाब ऐसा कुछ भी नहीं है । ये सारा काम ठेकेदारों के हवाले है हर काम के पीछे पैसा है और इस पैसे के पीछे कौन है ? इतना तो आपको समझदार होना ही होगा , यह मजबूरी है आपकी । विकास की राह पर चलते हुए प्रदेश के बेरोजगार इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों को रोजगार दिया जाना-सब स्टेशनों को सुव्यवस्थित बनाये रखने की मंशा नहीं थी ,शायद या भूल गये होंगे । ठेके का भूत सवार था ।राजधानी का जब यह हाल है तो सोचिए राज्य के दूसरे शहरों - कस्बों - गांवों में बिजली का क्या हाल होगा । हर जगह लोगों की नाराजगी शिकायत केन्द्रों में तोड़फ़ोड़ के रूप में दिखाई दे जाती है , जिससे विभागीय वरिष्ठ अधिकारी जन जरा भी सबक लेना नहीं चाहते ।
हे सरप्लस बिजली वाले राज्य के प्राणियों क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे विकास के पीछे की मंशा कुछ और ही रही होगी ? क्या आपको नहीं समझ आ रहा होगा कि " विकास " आखिर किसका हुआ होगा ? मगर आप कर भी क्या सकते हैं सिवाय सब कुछ सहने के ? आदत जो पड गई है , तो सहते रहिये , क्योंकि बरसात तो अभी शुरु ही हुई है । बारिश का होना और बिजली का गुल होते रहना जारी रहेगा । आप तो मोम-माचिस और हाथ पंखा लेकर अपनी तैयारी कर लीजिए , जागने-सोने का समय तय कर लीजिए । और आप कर भी क्या सकते हैं ? अध्यक्ष रहे राजीब जी से मिल भी तो नहीं सकते क्योंकि अब साहब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नहीं , देश की राजधानी दिल्ली में रहते हैं । आज भी वो हमारे उर्जा विभाग में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी ( ओ एस डी ) हैं । आपके ही खर्चे में ( छत्तीसगढ़ शासन के) पर वहां आराम से हैं । अपने घर-दफ़्तर में ।
चैन से तो वो सो रहे होंगे जिन्होंने आपके विकास की कल्पना की थी आपके सरप्लस पावर के लिये कुछ सोचा- किया था । जय छ्त्तीसगढ़
इस प्रकार की बिजली व्यवस्था तो करीब,करीब हर शहर में है ।
जवाब देंहटाएंthis is the real nature of our vilaages
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंस्वागत है ब्लाग जगत में,
आपके सार्थक लेखन से ब्लागजगत समृद्ध होगा।
इसी आशा के साथ
ढेर सारी शुभकामनाए॥
स्वागत है!
जवाब देंहटाएंस्वागत है आशु भैय्या..ब्लाग जगत में...देर से आए पर दुरूस्त आए...एक नंबर का मनमोहक ब्लाग है आपका, बेहद खुशी हुई..गाढ़ा-गाढ़ा बधाई ....
जवाब देंहटाएंकलम की धार और शब्द की मार से परिपूर्ण खबरों को पढ़कर हृदय को ठंडक मिली. पोस्टों का इंतजार रहेगा..
जवाब देंहटाएंKaishan karbe ga. lawn tennis ke mafik bijli bala bibhag bhi to raman ke darbari ke paas girbi hai.
जवाब देंहटाएंaapne sach hi kaha
जवाब देंहटाएंarganikbhagyoday.blogspot.com