मंहगाई की मार ने किसी को भी नहीं छोड़ा है । रोटी , दाल और सब्जी की जद्दोजहद इस दशा में दोहरा सरदर्द बन गया है । हमारे देश में अभी मंहगाई दर 17.7% है । आम आदमी का बजट शक्कर , प्याज , टमाटर और आलू जैसी रोजमर्रा की चीजों ने बिगाड़ रहा है । मंहगाई और मनमोहन सरकार का मानो चोली दामन का साथ हो गया है । दु:खद है विश्व के एक जानेमाने अर्थ शास्त्री के प्रधान मंत्री रहते हुए अर्थ से जुड़े मुद्दे में उसका अपने ही देश के सामने असफ़ल सिद्ध होना ।
इससे भी कहीं ज्यादा दु:खद है बेकाबू मंहगाई पर देश के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का बेतुका बयान - यह कहना कि " मंहगाई को कम करने के उनके पास कोई जादू की छड़ी या अलादीन का चिराग नहीं है । " मैं इसे सरकार की नाकामी ही नहीं बल्कि बेशर्मी भरा कथन मानता हूँ । किसने कहा है कि आपके पास जादू की छड़ी है , या आपको जादू की छड़ी हाँथ में ले कर शासन चलाना है , किसने कहा है या आपसे ऐसा बेतुका सवाल किया है , जो आप समूचे देश के सामने ऐसा सीना तानकर कह रहे हैं ? आपको सत्ता क्या केवल सुख भोगने और भौंकने के लिए दी गई है क्या ? अरे समूचे देश के सामने बोलने का सहूर तो होना चाहिए । क्यों भूलते हो कि तुम कहीं के राजा या फ़िर तानाशाह नहीं हो , फ़िर ऐसी भाषा कैसे बोलने का साहस कर गुजरते हो ? अच्छे - अच्छे राजा और तानाशाह तो धूल चाट गये और चाट रहें है । मिश्र की राजधानी काहिरा का ही हाल देख लो । तमाम तानाशाहों और उनके अरबी मुल्कों का हाल देख कर भी नहीं सीखना चाहते , प्रजातंत्र के हिमायती बनते हो , शर्म करो - जनता से डरो , अपने देश की माटी से डरो , जमीन में ही रहो और मर्यादित रहो वर्ना यहाँ भी वह दिन दूर नहीं जब घर- दफ़्तर में घुस कर जनमानस तुमको कुर्सी से उठा बाहर फ़ेंक देगा , धरा का धरा रह जाएगा तुम्हारा सारा धन और घमण्ड । बेकारी - बेबसी में वर्षों से जीती आ रही जनता और कितने दिन क्या-क्या सहेगी ? तुम बैठे हो समस्या सुलझाने की जगह पर समस्या सुलझाने की वजाय उलझाने और भड़काने वाली बातें करते हो अपने बयानों में क्या यही है तुम्हारी राजनीतिक दूर दर्शिता- दक्षता ? यही है देश का भविष्य संवारने वाला बयान ? अरे नहीं सम्हलती है कुर्सी तो छोड़ो - हटो । 70-70 वर्ष के हो रहे हो , चलते फ़िरते नहीं बन रहा है , बोलते नहीं बन रहा है , अपने पैरों पर चल नहीं पा रहे हो , व्हील चेयर चाहिए सबको वह भी जनता के पैसों से , कोई मौलिक सोच नहीं है साहस नहीं है फ़िर भ्रष्टाचार करना है करके बने हुए हो पूरी बेशर्मी के साथ , क्या है यह सब ? है कोई जवाब ?
इतनी ही बेशर्म हैं तमाम राज्य सरकारें मंहगाई की बेकाबू चाल पर ये बेशर्म सरकारें खुश हैं , जनता को बताना चाहती हैं मंहगाई तो केन्द्र सरकार की गलत नीतियों की वजह से बढ़ रही है । ये राज्य सरकारें यदि अपने ही प्रदेश की जनता की हिमायती हैं तो क्यों नहीं ये अपने अपने राज्यों में मंहगाई पर काबू पाने - अपनी जनता को राहत देने ये मंडी टैक्स , तमाम तरह के अन्य स्थानीय (Local) टैक्स , ऑक्ट्रॉय कम या माफ़ कर देतीं ? ऐसा करने से उन प्रदेशों में तो मंहगाई कम होगी । केन्द्र हो या राज्य की सरकारें सब केवल जनता को ही बेवकूफ़ समझें और उसी से बेतुकी - बदमिजाजी की बातें करती रहें कब तक चलेग यह सब ? अखिर कब तक ??? आखिर कब तक भारत का बेरोजगार - किसान - आम आदमी - बेबस महिलाएं , नेताओं की हवस का शिकार महिलाएं - बच्चियाँ आत्महत्या का , हत्या का शिकार होती रहें ? कब तक आम जनता चूड़ी पहनी बैठी रहे ???
अजी इन के पास इस लिये इस महंगाई का इलाज नही क्यो कि यह महंगाई इन होने ही ही पेदा की हे, इस के बेंक बेलेंस दिन दुनी रात चॊन्नी तरक्की कर रहे हे, अब तो नफ़रत होती हे इन के नाम से भी
जवाब देंहटाएंअगर जनता स्त्रीलिंग है तो चूड़ी तो पहनना जरूरी है!
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अगर नपुंसक है तो भी चूड़ी पहनना मजबूरी है!
Sabhi Political Parties ko EK SAATH FEEL GOOD ka ehsas ho raha hai. Ye DESH ke liye khatarnak hai. Congress aur BJP dono ke HIGHCOMMAND Nirnay lene ki sthithi me nahi hai. MEHANGAI aur BHRASTAACHAAR pe to sab mil ke JANTA ko kewal aur kewal bewakuf bana rahe hai. samay aa gaya hai, hum NAVJAWANON ko derect intervene karna padega.
जवाब देंहटाएंमहंगाई डायन खाए जात है........
जवाब देंहटाएंललित जी मंहगाई डायन खाए जात है , बात यहीं तक नहीं है न ये राजनीति के प्रेत - पिशाच , ड्रैकुला आम लोगों का खून चूस रहे हैं , आदी हो रहे हैं । सुना है डायन भी एक घर छोड़ती है , पर ये दम पिशाच - शैतान तो कुछ भी नहीं छोड़ रहे हैं न ।
जवाब देंहटाएंआग्रह पर ही सही पर बोले तो नेता जी , आभार आपका । कोटिशः आभार । नेता जी नाराज न हों तो कहना चाहुंगा बगैर भाजपा को कोसे आप कांग्रेस की छोटी-बड़ी कोई भी गलती स्वीकार क्यों नहीं कर पाते ??? दोनो अपनी - अपनी जगह अलग - अलग हैं , पर आप हैं कि बिना समेटे कुछ कह ही नहीं पाते ।
जवाब देंहटाएंयक़ीनन सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर एक क्रांति की आवश्यकता है..... हर विषय पर चुप्पी साधने से कुछ नहीं हो सकता ...... आपकी सार्थक पोस्ट के विचारों से सहमत
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ . मोनिका जी का कहना सही है ...आपका आभार
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