साभार : नवभारत |
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लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
ग़रीबी , बीमारी और बेकारी तो भाईसाहब बढ़ती ही जाती है .
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहेव भईया, मोला एक ठन शेर याद आवत हे 'होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है'
जवाब देंहटाएंइस देश की राजनीति और यहाँ होने वाले बेशुमार भ्रष्टाचार का सुत्रधार है ,बेचारा गरीब । भारत में सदियों से गरीबों के नाम पर राजनीति होती आ रही है , गरीब कम हो गये तो क्या होगा , ये सोच कर घबराते हैं नेता ।
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