गलत पता और गारंटी देकर रायपुर के सदर बाजार स्थित इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक से 18 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का एक और घोटाला सामने आया है। रिजर्व बैंक के निर्देश पर जब 28 बड़े कर्जदारों से पैसा वसूलने की कोशिश हुई, तो एक को छोड़ सभी के नाम - पते और सब कुछ फर्जी पाया गया। इनमें से आधा दर्जन से ज्यादा कर्जदार छत्तीसगढ़ से बाहर दूसरे प्रदेशों के हैं। प्रशासन को अंदेशा है कि बैंक के कतिपय डायरेक्टर और अधिकारियों की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया है। मामले की जांच-पड़ताल नए सिरे से की जा रही है। इस सहकारी बैंक में सात साल पहले घोटाला सामने आया था। रिजर्व बैंक ने एक लाख से कम डिपाजिट वाले करीब पांच हजार लोगों को तो भुगतान करवा दिया। यह तय किया गया कि बड़े - छोटे कर्जदारों से लोन की राशि वसूल कर बड़े खातेदारों को भी उनकी जमा राशि लौटाई जा सके। नियमों को ताक पर रखकर अपने करीबियों को कर्ज दिया गया। खुलासे के बाद विवाद बढ़ा और अगस्त 2006 में बैंक बंद हो गया । 6500 खातेदारों के करोड़ों रुपए बैंक में फंसे थे। उपपंजीयक सहकारी संस्था की अदालत ने बकायादारों से पैसा वसूलने के आदेश जारी किए। रायपुर कलेक्टर को पंजीयक ने करीब आठ महीने पहले 28 बड़े कर्जदारों की सूची दी थी। तहसीलदार पलक भट्टाचार्य और उनकी टीम ने जब वसूली का काम शुरू किया तो पता चला कि 27 कर्जदार बोगस हैं। बताए गए पते पर न तो उस नाम का कोई व्यक्ति मिला, न फर्म। कर्ज वसूली के लिए जारी हुए तामीली आदेश फर्जी नाम-पतों की वजह से तहसीलदार के पास वापस आ रहे हैं। सात कर्जदार कोलकाता, मुंबई और अन्य शहरों के हैं। इन सातों को कलेक्टर के माध्यम से नोटिस भेजी जा रही है।
एक का ही पता मिला । लोन की वसूली के दौरान अर्चना चौबे का ही पता राजस्व अधिकारी को मिला है। चौबे ने 12 लाख 27 हजार 52 रुपए का लोन मंजूर कराया था। ये तो बात हुई एक ऐसे बैंक की जिसका भ्रष्टाचार उजागर हो गया था और जिसे बैंक के खातेदारों ने ही उजागर किया था । लेकिन यह बात यहीं खतम हो ऐसा नहीं है ,रायपुर शहर ही नहीं बल्कि समुचे छत्तीसगढ़ में मारवाड़ और उड़ीसा से आये तमाम लोगों ने, पाकिस्तान से आये तमाम लोगों ने बड़े-बड़े लोन इसी तरह ले रखे हैं और गायब हैं । तमाम राष्ट्रीयकृत बैंक इनके शिकार हैं , बैंक के अधिकारी खुद भी मुसीबत में न फ़ंस जाएं इस डर से इन प्रकरणों को दबाए बैठे हैं , तैयारी है डूबत खाता में ऐसे नामों के समायोजन की । यहाँ से करोड़ों रुपये हजम करने वालों की लम्बी फ़ेहरिस्मत है । समय आने पर इसका भी भांडा फ़ूटेगा । बड़े बैंकों यह खेल बदस्तूर जारी है।
इस देश के सभी बैंकों का यही हाल है ,यहाँ तक की अगर इस देश के वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय की ईमानदारी से जाँच की जाय तो कई शर्मनाक खुलासा सामने आ सकता है ,जाँच करें तो कौन..? इस देश में असल जरूरत मंद और इमानदार लोगों को तो बैंक लोन देती ही नहीं है ....
जवाब देंहटाएंहर साख पे उल्लू बैठा है , अंजाम-ए-गुलिश्तां क्या होगा ।
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