पर्यावरण संरक्षण को लेकर हर जागरुक नागरिक चिंतित नजर आता है । अपने-अपने स्तर पर प्रयास करता भी देखा जा सकता है । बच्चों में भी जागृति लाने के प्रयास किये जा रहे हैं ।
पर्यावरण संरक्षण के लिए लम्बे समय से शहर के वरिष्ठ पत्रकार सनत चतुर्वेदी जी भी सार्थक सुझाव देते रहे हैं । श्री चतुर्वेदी ने उनके द्वारा सम्पादित अखबारों में इस आशय के अनेक प्रेरक लेख भी छापे हैं । इस बार तो उन्होनें बाकायदा मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि पर्यावरण संरक्षण वरणको लेकर जागरुकता के " नदी महोत्सव " मनाने और नदियों के किनारे हरियाली के लिए वृक्षारोपण करने का कार्यक्रम प्रदेश के नदी क्षेत्रों में शुरु किया जाना जनहितकारी होगा. इससे आने वाली पीढ़ी जागरुक और सजग होगी ।पर्यावरण सुधरने लगेगा।नई पीढ़ी पेड़-पानी-पर्यावरण के महत्व से परिचित होगी । यद्यपि श्री चतुर्वेदी ने उनके द्वारा लिखे पत्र को सार्वजनिक नहीं किया है,सीधे मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को पत्र भेज दिया है । खबर है कि श्री चतुर्वेदी के सुझावों को मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने गंभीरतापूर्वक लिया है,फोन पर पत्रकार सनत चतुर्वेदी से चर्चा कर उन्हें यह बताया भी है कि वे इस दिशा में जल्दी ही काम करने भी जा रहे हैं । मगर हम तो इस बात को लेकर भी डरते हैं कि एक पत्रकार के सुझाव को मान कर मुख्यमंत्री कुछ करें यह हमारे लालफ़ीताशाहों को शायद ही मान्य होगा । मान्य केवल उन्हें जरूर हो सकता है जिन्हें वर्षों से वृक्षारोपण का गहरा अनुभव हैं ,जिन्होनें यहाँ-वहाँ न जाने कहाँ-कहाँ लाखों - करोंडों वृक्ष हर वर्ष रोपे हैं ,आगे भी रोपते रहने की उम्मीदें लिये जी रहे हैं । ये लोग हर बरस किसी मेले की ही तरह नदियों के किनारे - किनारे वृक्षारोपण कर को फ़िर साल दर साल नदियों के तेज बहाव में बहा देने को जरूर तैयार बैठे हैं । हर साल रोपे जाने वाले पौधों का हाल तो आपसे छुपा नहीं है , हाँ उनके आंकड़े जरूर फ़ाईलों को हरा-भरा रखे हुए हैं ।इस साल भी एक ही दिन में एक लाख पौधे रोपकर वृक्षारोपण की शुरुवात की गई है ,नई राजधानी से । बताईयेगा कितने बचे ? विभाग तो सागौन-शीशम-सरई के हिसाब किताब में पूरे समय मस्त रहता है उसके पास कहाँ है इतना फ़ालतू समय कि वह इन पिद्दी पौधों को बचाता घूमें । पत्रकार सनत चतुर्वेदी जी और मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह दोनो आम लोगों में से ही हैं , उनकी सोच अच्छी है मगर इस अच्छी सोच को सफ़लीभूत होने दिया जाय तब ना ? देखिए क्या होता है ? प्रदेश शासन की इच्छा यदि इस क्षेत्र में बलवती हो , नदी के किनारों को हरा-भरा बनाना सरल हो सकता है ।शासन चाहे तो इस काम में उन बड़े औद्योगिक घरानों की मदद लेकर किया जा सकता है ,जो यहाँ आ रहे हैं । बड़े उद्योगों के यह अनिवार्य किया जाए कि वे अमुख नदी का एक सुनिश्चित भूभाग हरा-भरा करके दें । मेरा मानना है ऐसा अनिवार्य किया जाना उन्हें भी खराब नहीं लगेगा बशर्ते हमारे वरिष्ठ अधिकारियों को मंजूर हो , वरना इस प्रदेश में उनकी मर्जी के खिलाफ़ कुछ भी हो पाना सरल नहीं है , शायद संम्भव भी नहीं । डॉ रमन सिंह जी दृढ़ इच्छा शक्ति प्रदर्शित कर पाएँ , प्रदेश हित में होगा । जंगल और नदी के इन मगरमच्छों की करतूतों को ,उनकी मंशा को पहले समझना होगा ।
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