लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
जुलाई 20, 2010
ये क्या हुआ … ?
ये क्या हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? कब हुआ ?
जी हाँ किसी के समझ ना सका है , आज तलक । यहाँ तक की मनमोहन सिंह भी नहीं समझ पाये हैं । दरअसल हमें एक परिचित ने समझाने का प्रयास किया - " क्या प्रेस वाले हो यार ? देश दुनियाँ की तुम्हें कुछ खबर भी है या नहीं ? हमनें उनकी नाराजगी शांत होने के बाद पूछने की हिम्मत की , कि भला अब आप बता भी दीजिये कि कहना क्या चाहते थे आप ? उन्होनें कहा - कुछ जानते भी हो , क्या हो रह है ? मेरे घर का वही किराना जो मैं आज से दो - ढ़ाई बरस पहले तक मात्र हजार - बारह सौ रुपयों में ले आया करता था , आज उतना ही बल्कि उससे भी कुछ कम ही बत्तीस सौ रुपये में ले कर आया हूँ । समझे कुछ की नहीं ? मैने कहा हाँ मंहगाई बहुत बढ़ गई है । वो सज्जन तुरंत बोल पड़े तो कुछ करो यार , तुम पेपर वाले रोज क्यों नहीं लिखते । रोज ही तो बढ़ रही है न ये मंहगाई । बिक गये हो क्या तुम भी मंहगे दाम में ? कुछ तो करो यार । जीना दूभर हुआ जा रहा है हम आम लोगों का । हाँ तुम तो डॉ. रमन सिंह से मिलते होगे उसको क्यों नहीं बोलते कि आम मिडिल क्लास लोगों की हालत बहुत खराब है । शायद किसी की बात उसको समझ आ जाये । " हम पूरे समय हाँ-हाँ करते रहें । हमें तो यह अच्छी तरह मालूम है न कि कौन किसकी - कितनी सुनेगा । सोचा ब्लॉग में तो लिख ही सकते हैं ,सो लिख मारा ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिए कोटिशः धन्यवाद ।