आईये साहबान विकास के नाम काँक्रिट के जंगलों में करें एक और नायाब काम । जी हाँ , राज ठाकरे की मुम्बई में अब सामत आई है धोबियों की । मुम्बई के धोबी घाट पर अब नजर है वहां के बिल्डरों की ,इन्होने बी एम सी को आगे किया है । बी एम सी का कहना है - जिस जगह पर धोबी कपडे धोते हैं - सुखाते हैं ,वह जगह बी एम सी की है और अब उसे वापस चाहिए । वहां वह विकास की नई गंगा बहाएगी । सदियों से यहां काम करते आ रहे धोबी जाएं तेल लेने । कुछ को कपडा सुखाने की मशीनें दे दी जायेंगी ,उनसे उनकी जगह छीनने के बाद । याने विरासत का मिटना तय है । बिल्डर्स ने नेताओंको अपना सपना मनी-मनी जो दिखा दिया है । अब जनता को दिखाने - भरमाने के लिए ये लालची बंदर आपस में दिखावटी-राजनीतिक उठा पटक का खेल करके दिखायेंगे , मीडिया अपनी प्लांड भूमिका का निर्वाह करता दिखेगा और इन सब के बाद पूर्व निर्धारित बिल्डर्स को उनकी चिन्हित जमीनें दे दी जायेंगी । इस विकास की कीमत चुकायेंगे दस हजार धोबी परिवार , जिनकी पीढ़ियों ने मुंम्बई के लोगों के कपडों मे चमक - दमक लाने का काम पूरी निष्ठा से किया था ,बगैर यह सोचे कि ऐसा भी एक दिन आयेगा। हद कर दी है लालच ने , अमानवीय - असंवेदनशील शासन-प्रशासन ने । ऐसे कृत्यों को समय रहते रोका जाना चाहिए , ह्तोत्साहित किया जाना चाहिए ।
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
अगस्त 20, 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ठीकरा जिसके सिर फूटे, कभी जल्दी कभी देर से यह तो होता आ रहा है, होता रहेगा, मूलतः यह द्वंद प्रक़ति और सभ्यता फिर सभ्यता और उन्नत सभ्यता का है. बहरहाल, आपके सोच की संवेदनाशीलता कम महत्वपूर्ण नहीं है.
जवाब देंहटाएं