लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
जनवरी 02, 2011
मीठी शक्कर का कड़वा होता बाजार
मीठी शक्कर का बाजार कड़वा होता जा रहा है। दीपावली के बाद से शक्कर में लगभग 200 रूपए प्रति क्विंटल का उछाल स्थानीय कारोबार में आ गया है। सस्ती विदेशी शक्कर को देश में आने से रोकने के लिए सरकार में शामिल षड़यंत्रकारियों ने शक्कर आयात नीति पर कर की दर में 60 % की बढ़ोतरी कर दी है । ऐसा करने से विदेशी यहाँ शक्कर मंहगी होगी और कारोबारी देशी शक्कर लॉबी के चक्कर से बाहर नहीं जा पायेंगे , शक्कर लॉबी मनमाने दाम वसूलने में फ़िर एक बार सफ़ल होगी । बीते वर्ष का अनुभव काम आयेगा ।
बाजार में माल की आवक हो रही है और डिमांड धीरे-धीरे बढ़ रही है। माह के शुरू में भाव 2900 से 2940 रूपए प्रति क्विंटल चल रहे थे, जो बढ़कर 3110 रूपए स्थानीय कारोबार में हो गए। शनिवार को बाजार कुछ नीचे उतरकर 3000-3050 पर आ गए। आगे सरकार की पॉलिसी पर बाजार निर्भर रहेगा। कारोबारी जानकारों का कहना है कि विश्व स्तर पर शक्कर के दाम चढ़ने की खबरें हैं। दूसरा कारोबारियों को शक्कर का निर्यात खुलने की भी उम्मीद है। इससे कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है और हमारे यहाँ इस कारोबार से जुड़े कुछ बड़े लोग जो राजनीति और सरकार से सीधे जुड़े हैं इस अवसर का फ़ायदा उठाने की फ़िराख में हैं। शक्कर के भाव ऊपर-नीचे होने में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जानकारों का कहना है कि सरकार की इच्छा है कि शक्कर मिलें समय से चालू हो और गन्ना किसानों को ऊंचे भाव पर गन्ने का रेट मिले। लेकिन मिले किसानों को 230 रूपए के आसपास भाव देना चाहती है । यह भी सरकार की एक बड़ी चाल है । 45 रुपये किलो की शक्कर बेच चुके लोगों को मानो खून लग चुका है ऊचें दाम का मुनाफ़ा खाने-कमाने का सो शादी-ब्याह के सीजन के बहाने फ़िर एक बार कोशिश करेंगे तगड़ा मुनाफ़ा कमाने की । सच पूछो तो शक्कर के दाम से ज्यादा खतरनाक हैं हमारे नेताओं के इरादे । इनके बेईमान इरादों से कैसे बचेंगे हम !
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Climatic & Geopolitical conditions/factors around the world affect commoditiy prices. Alongwith these, SHARAD PAWAR factor is the most important in the Indian context. Forward Trading is also fuelling commodity prices.
जवाब देंहटाएंMrs. Sonia Gandhi should immediately check the SHARAD PAWAR FACTOR and other things will follow suit.
Good Post ! Happy New Year to you and your Family !
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
भारत मे शक्कर क्या हर चीज के भाव युरोप से भी मंहगे हे, यह कमी की वजह से नही जमा खोरी ओर इन नेतओ की हराम खोरी से हे, वर्ना देश मे खाने की क्या कमी हे. धन्यवाद इस लेख के लिये
जवाब देंहटाएंभाटिया जी आपने बिलकुल सही कहा है । हम भारतीय भी यही कारण मानते और समझते हैं । अभी यहाँ समय मानो अतिवादियों का ही चल रहा है । हमारा नया राज्य अभी नया चारागाह है । देर है - अंधेर नहीं , ये सभी अतिवादी बहुत बुरा भुगतेंगे ।
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
चिंता में डाल दिया आपने तो....
चीनी ख़त्म होने वाली है!!!
हा हा हा...
और नेता.... ना ही कहूं तो सही!
आशीष
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हमहूँ छोड़के सारी दुनिया पागल!!!
हर समस्या का निदान है , महंगाई का भी । लेकिन अफ़सोस हमारे नेता निदान नहीं चाहते , वो तो मुश्किलों को बढ़ाना चाहते हैं। निसंदेह आयात इसका बेहतरीन हल है , लेकिन कर बढ़ाकर वो विकल्प भी बंद कर दिया।
जवाब देंहटाएंभैया, जनता पार्टी के शासन में शक्कर 2 रुपया 10 पैसा किलो थी। देखिए मंहगाई ने कहां पर ला पटका है। जब बच्चों को बताते हैं उस समय का चीनी का मुल्य तो वे समझते हैं कि "पापा मजाक कर रहे हैं"
जवाब देंहटाएंगाजियाबाद से एक यलो एक्सप्रेस चल रही है जो आपके ब्लाग को चौपट कर सकती है, जरा सावधान रहे।
जवाब देंहटाएंमहात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !
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