इस देश में मंहगाई की वजह से आम आदमी रोजमर्रा के जरूरी सामान जुटाने में ही मरा जा रहा है , खुद को तबाह होता , बर्बाद होता पा रहा है । मंहगाई और लूट का आलम यह कि शिक्षा - चिकित्सा - रोटी - पानी , मकान - दुकान सब कुछ धीरे धीरे आम आदमी के हाँथ से मानो फ़िसलता जा रहा है। जीवन में उसके लिए अब कुछ आसान नहीं रह गया है । मन मानो अधीर सा होता जा रहा है । इसी मर्म को महसूस कर आगे आए अन्ना हजारे और बाबा रामदेव का गला दबाने की कोशिश सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए की जाने लगी क्योंकि ये किसी राजनीतिक दल सीधे सीधे कहें तो सत्तासीन कांग्रेस के नहीं हैं ! आरोप मढ़ने का प्रयास किया गया कि येRSS और BJP समर्थित हैं और देश का ध्यान मुख्य बात से हटाने का सुनियोजित और असफ़ल प्रयास भी किया गया । इसमें कहीं कोई शक नहीं कि कांग्रेस के इन गंदे प्रयासों के चलते आम जनता उससे नाराज है , यहां तक की स्वयं कांग्रेस में भी तमाम वरिष्ठ जन अपनी पार्टी की हरकतों से नाराज बैठे हैं , एक्का-दुक्का बयान भी आ रहे हैं । इस देश के असंखय लोग जो चाहकर भी धरना - प्रदर्शन या आन्दोलन के लिए समय नहीं निकाल सकते वे सभी अपनी ताकत अन्ना और बाबा रामदेव को दे रहे थे तन नहीं तो मन और धन से , जो बात कांग्रेस को बहुत जोर से खटकने लगी और उसने अपने चिरपरिचित अंदाज में दांव खेला जिसमें उसका बच्चा - बच्चा माहिर है । अब दौर शुरु हो गया है अपने अपने काले - पीले धन को मैनेज करने का , यहाँ - वहाँ शिफ़्ट करने का , जिसके चलते हर बड़ा कहा जाने वाला आदमी - नेता विदेशों के फ़ेरे ले रहा है , अपने-अपने विश्वस्थों - रिश्तेदारों को इसी काम से भेज रहा है । जब यह काम पूरा हो जायेगा तब होगी घोषणा कालेधन को लेकर । तब तक दमनचक्र चलता रहेगा । केन्द्र हो या फ़िर कोई भी राज्य सभी जगह सता पक्ष मनमानी कर रहा है और वहाँ का विपक्ष उसमें जगह देख कर अपनी - अपनी रोटियाँ भी सेंक ले रहा है । जनता यह सब कुछ देख भी रही है और समझ भी रही है । व्यवस्था में सुधार और समस्याओं के समाधान के लिए केन्द्र सरकार ने तमाम समितियों का एक ऐसा घना सा जाल बुना जिसमें तेजतर्रार समझे जाने वाले विपक्षी नेता भी उलझे हुए हैं । केन्द्र सरकार शयाद इस भ्रम में है कि मौजुदा व्यवस्था में किसी भी तरह का बदलाव या बड़े सुधार की तो नौबत ही नहीं आयेगी । केन्द्र को न तो मंहगाई का मुद्दा दिखता है और न ही कहीं भ्रष्टाचार या कालेधन का कोई मुद्दा दिखता है , दिखे भी कैसे आखिर यह सब उपज भी तो उसी के लोगों के प्रयासों का नतीजा है ! सरकार यह समझने की भूल कर बैठी है कि रामलीला मैदान में बैठे 50 - 60 हजार की भीड़ क्या है भला , उसके साथ तो देश की सवा अरब जनता है , उसे भला किस बात की चिंता ! अन्ना या बाबा तो नाम हैं उन करोड़ों लोगों का जो इस देश में चोतरफ़ा मची लूट से राहत चाहते हैं , यह भी सही है कि अब लोगों को नेताओं और उनकी पार्टियों पर भी भरोसा नहीं रह गया है । यही कारण है कि हम सभी किसी सर्वमान्य गैरराजनीतिक नैतृत्व की तलाश में अब भी भटक रहे हैं ।
![]() |
हे राम… |