लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
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रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।
नवंबर 10, 2011
बड़ा कौन …?
प्रबोधिनी एकादशी (रविवार 06 नवंबर 2011) की पूजा के फ़ल-फ़ूल लेने बाज़ार
गया , यहाँ कमल के फ़ूल भी बिकते देख खरीदने गया , करीब 35 - 40 फ़ूल और पूजा
में लगने वाले बेर , शकरकंद , अमरूद , सीताफ़ल , कुछ भाजी आदिपूजन सामग्री
लेकर बेचने बैठी फ़ूल बेचने वाली वृद्ध महिला ने तीन फ़ूल के दाम 10/- (दस
रुपये) बताए , जब मैं चुप था उसे लगा मैं नहीं खरीदुंगा तभी उसने कहा - ले
बाबू चार ले जा , चल पाँच ले ले । मैं
हत्प्रभ और खुश था उसकी इस सरलता पर , आर्थिक रूप से मुझसे मुझ जैसे करोड़ों
- अरबों लोगों से कम सक्षम वह महिला सचमुच कितनी बड़ी और विशाल हृदय की धनी
थी । कमल का फ़ूल रायपुर जैसे बड़े शहर में दुर्लभ है , वह चाहती तो दस
रूपये में एक भी बोल सकती थी और लेने वाले लेते । उस सरल - सहज , भोले
स्वभाव में उसका देवतुल्य बड़प्पन दिखा । किसी भी बड़े व्यापारी से ज्यादा
बड़प्पन मिला । समझ आया कौन है सचमुच " बड़ा " ।
लेबल:
शुभ कामनाएं
माँ..
माँ...
तू ही तू है मेरी जिन्दगी ।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी ।।
मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,
इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।
तू ही तू है मेरी जिन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?
तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।
कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,
और सिखाया कला जी सकूँ मैं यहाँ।
प्यार की झिरकियाँ और कभी दिल्लगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में।
वही ममता बिलखती अभी गाँव में।
काटकर के कलेजा वो माँ का गिरा,
आह निकली उधर, क्या लगी पाँव में?
तेरी गहराइयों में मिली सादगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
गोद तेरी मिले है ये चाहत मेरी।
दूर तुमसे हूँ शायद ये किस्मत मेरी।
है सुमन का नमन माँ हृदय से तुझे,
सदा सुमिरूँ तुझे हो ये आदत मेरी।
बढ़े अच्छाईयाँ दूर हो गन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
- श्यामल सुमन
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