साथी और भाई संजीत त्रिपाठी की सलाह है कि मैं,पत्रकारिता के अपने अनुभव "खबरों की दुनियाँ" में शेयर करुं । कोशिश होगी कि वर्तमान समय जो बदलाव आया या आ रहा है उसे दृष्टिगत कर अपने अनुभव आप तक इस माध्यम से पहुंचा सकूं ।पिछ्ड़ा कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ , पत्रकारिता के क्षेत्र में समृद्ध रहा है । ज्यादा पुरानी बात नहीं करता 1985 से आज तक की बातें करें तो इस क्षेत्र में "मूल्यों" का बड़ा परिवर्तन आया है ।यहाँ मेरे कहने का यह मतलब कतई न निकाला जाए कि अब कहीं मूल्यवान पत्रकारिता नहीं हो रही है या फ़िर आज के साथी यह समझने की भूल कर बैठें कि वे मूल्यवान पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं और पुराने लोग बड़े आदर्शवादी थे । यहाँ मैं उन हालातों की चर्चा करने की चेष्टा करुंगा जिन्होंने पत्रकारिता के मूल्य बदले हैं और आज जिन वजहों से पत्रकारिता से जुड़े कलम के सच्चे सिपाही भी जन सामान्य को पत्रकारिता पर सरेराह टिप्पणी करते , कुछ भी कहते-बोलते सुनते रहते हैं ।
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।
मार्च 17, 2011
"गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा…"
साथी और भाई संजीत त्रिपाठी की सलाह है कि मैं,पत्रकारिता के अपने अनुभव "खबरों की दुनियाँ" में शेयर करुं । कोशिश होगी कि वर्तमान समय जो बदलाव आया या आ रहा है उसे दृष्टिगत कर अपने अनुभव आप तक इस माध्यम से पहुंचा सकूं ।पिछ्ड़ा कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ , पत्रकारिता के क्षेत्र में समृद्ध रहा है । ज्यादा पुरानी बात नहीं करता 1985 से आज तक की बातें करें तो इस क्षेत्र में "मूल्यों" का बड़ा परिवर्तन आया है ।यहाँ मेरे कहने का यह मतलब कतई न निकाला जाए कि अब कहीं मूल्यवान पत्रकारिता नहीं हो रही है या फ़िर आज के साथी यह समझने की भूल कर बैठें कि वे मूल्यवान पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं और पुराने लोग बड़े आदर्शवादी थे । यहाँ मैं उन हालातों की चर्चा करने की चेष्टा करुंगा जिन्होंने पत्रकारिता के मूल्य बदले हैं और आज जिन वजहों से पत्रकारिता से जुड़े कलम के सच्चे सिपाही भी जन सामान्य को पत्रकारिता पर सरेराह टिप्पणी करते , कुछ भी कहते-बोलते सुनते रहते हैं ।
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खरी खरी सटीक बात कही आशुतोष भाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा। अब पत्रकारिता के मायने बदल गए हैं।
आपके आगमन एवम विचार संप्रेषण के लिए आभार ललित भैया जी । कोटिशः धन्यवाद । होली की बधाई - शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंजब सब कुछ बदल रहा है तो प्त्रकारिता कैसे अछूती रहेगी? जीवन के मायने ही बदल गये हैं। होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआशुतोष जी बच्चन की मधुशाला की इन लाइनों पर गौर फरमाइए
जवाब देंहटाएंअपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुआ अपना प्याला
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला
फिर भी वृद्वों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया
अब न रहे वो पीने वाले अब न रही वो मधुशाला
आपकी ईमानदारी की जान कर बेहद खुशी हुयी.आप सब को होली की हार्दिक मुबारकवाद.
जवाब देंहटाएंसराहनीय .......कोटि-कोटि बधाई।
जवाब देंहटाएंआपका होली के अवसर पर विशेष ध्यानाकर्षण हेतु.....
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देश को नेता लोग करते हैं प्यार बहुत?
अथवा वे वाक़ई, हैं रंगे सियार बहुत?
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होली मुबारक़ हो। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
यही और इसीलिए ही मैं आपसे कहता आ रहा था कि अपने तब के अनुभवों को शब्दों में ढालिए, शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंदर- असल देशकाल का असर सब पर पड़ता है और प्रेस लाइन पर भी, अर्थात पत्रकारिता पर भी,
मुझे मेरे प्रबंध संपादक के भाई ने एक मीटिंग में कहा विज्ञापन के लिए, तब मैंने सीधा जवाब दे दिया कि "मैं ज्यादा से ज्यादा मार्केटिंग वाले बन्दे की मदद के लिए फोन पर कह सकता हूँ पार्टी को, और आप अगर यह अपेक्षा रखते हैं कि मैं खुद जाकर विज्ञापन की बात करूँ तो यह मुझसे नहीं होगा". बस उसी दिन से मैं अपने प्रबंध संपादक की बैड बुक में आ गया. और मेरे प्रबंध संपादक को आपसे बेहतर कौन जानता है.
खैर, आप अपने अनुभवों की यह श्रंखला जारी रखें ताकि हम जैसे बालक कुछ जानें, कुछ सीखें