देश में पांच राज्य नक्सली हिंसा से बुरी कदर प्रभावित हैं । सर्वाधिक खराब हालात छत्तीसागढ़ में देखे जा सकते हैं ।क्या इस खराब हालात के लिए अकेले नक्सली दोषी हैं ? क्या वे लोग भी दोषी नहीं हैं , जिन पर जिम्मेदारी थी समय रहते इस समस्या पर काबू पा लेने की ? जो लोग जनता के पैसों पर सिर्फ़ इसलिए एशोआराम के साथ जीवन गुजार देते हैं कि वे इसके बदले जनता को स्वच्छ प्रशासन देंगे । प्रगतिशील-निर्भय जीवन जीने देने में सहायकहोंगे । कानून-व्यवस्था ठीक रर्खेंगे। लेकिन स्थिती ठीक उलट है । आम लोगों को इन दोनो ही वर्गों ने बराबर परेशान किया है ।
कलुसित राजनीति और अधिकारियों में इच्छाशक्ति की कमी - मक्कारी की अधिकता का सीधा सा नतीजा है ,अशांत और पिछड़ा छत्तीसगढ़ , जो आज लाल आतंक के साये में जीने को मजबूर है । देश-दुनियाँ इसे इसी वजह से जानती है ।और दुखद पहलू तो यह भी कि अब इस समस्या पर भी यहां राजनीति जोरों से की जा रही है ।कौन कर रहा है यह राजनीति ? कथित नेता लोग या फ़िर परदे के पीछे से राज्य के चंद नकारा सिद्ध अधिकारी ,जो शासन को इधर उलझा कर आराम पसंद जिंदगी जीने में कामयाब दिखते हैं ? ये दोनों वर्ग यह मानने को तैयार क्यों नहीं है कि आम लोग की नजर इन दोनों की करतूतों पर है ।
शर्म तो माओवादियों को भी आना चाहिए जो खून खराबे की राजनीति कर रहे हैं । आखिर क्या संदेश देना चाहते हैं ये विश्व को ?इनसे ज्यादा शर्मसार तो उन्हे होना चाहिए जो इस आतंक की आड़ लेकर अपनी-अपनी जेबें भरने की फ़िराख में लगे दिखते हैं , अपना फ़र्ज पूरा करना छोड़ कर मदद की गुहार लगाने , बड़ा पैकेज हासिल करने में ही सारा समय लगे दिखते हैं । कथित राज नेताओं के इन हथकण्ड़ों ने यहां प्रदेश के लोगों को बेहद परेशान किया है । संवेदना का यहां यह हाल है कि रोज ही ग्रामीण जन नक्सलियों के हत्थे चढ़ रहे हैं , पर सरकारी अमला मौन है ।
खुद को भी लाचार पाता है । जिनकी पद्स्थापना नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में की जा रही है , खौफ़ जदा वे लोग वहां रहना नहीं चाहते । वरिष्ठ अधिकारी रायपुर छोड़ कर जाना नहीं चाहते हैं , यहीं ऐसे - ऐसे प्रभार ले कर बैठे रहना चाहते हैं कि मानो ज्यादा जरूरी प्रभार वाले काम हैं , मूल काम से । भला कैसे हो मुकाबला नक्सलियों से ?जिला पुलिस अधीक्षक वी के चौबे की शहादत को मानों दूसरे अर्थों में मौजुदा महकमें ने सबक सीखने - सिखाने के लिए मौन संदेश बना कर रखा है , इस मामले से "शौर्य" न सीख कर मानो कुछ और ही सीखा है ।
जमीन पर नीति बनाने वालों में नेता बयानबाजी में उलझे हैं , तो वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी सी आर पी एफ़ की तैनात टुकडी के साथ समन्वय बनाना छोड़ उनके खिलाफ़ बयान देना अपनी बहादुरी समझते हैं । उन्हें रास्ता बताने से कतराते हैं , ये भला क्या बात हुई ? कोई तुम्हारे लिए तुम्हारे घर में आकरतुम्हारे ही दुश्मन से लड़े और अपनी जान भी न्यौछावर करे और तुम हो कि उसे अपने उस घर जहां केवल आतंक ही आतंक है वहां का रास्ता भी न बताना चाहो ? कैसे लड़ोगे तुम ? खुद तो वहां जाने से डरते हो , जो गया है उसे मरने के लिए दिशा हीन बना कर छोड़ देते हो । अपने ऐसे कृत्यों पर क्या तुम्हे शर्म भी नहीं आती ? या फ़िर इसे भी अपनी बहादुरी के लिए कोई पुरुस्कार पाना चाहते हो ?
कब तक , आखिर कब तक लोगों की आंखों में यूं ही धूल झोंकी जाएगी ?
जिस बात के लिए ,जिस जस्बात के लिए तुम्हारी सेवाओं का ये सारा राष्ट्र सम्मान करता है तुम क्यों उस बात-जस्बात के लिए अपना काम नहीं करते यार ? सीधे-सीधे कोई बात क्यों नहीं समझना चाहते ? हर बात का अन्यथा अर्थ ही क्यों निकालना जानते हो ? क्या होगा तुम्हारे ऐसा कर लेने से ? है दम तो जगाओ अपनी इच्छा शक्ति , जावो जाकर साफ़ करो अपना घर जिसे नामुराद किस्म के हैवान लगातार और तुम्हारी लापरवाही के चलते गंदा कर चुके हैं ।
जावो जाकर वहां दिखाओ अपनी मर्दान्गी , अपना कैलिबर , अपना शौर्य - पराक्रम । यहां एयर कंडीशन ऑफ़िस में समय गुजारने से , बेनतीजन बैठ्कें लेते रहने से, चाय-पानी पी कर सिगरेट फ़ूंकने से नहीं होगी यह समस्या हल ,समझे । घर तुम्हारा है , मैदान मे जाकर लड़ो , नायक बन कर दिखाओ , झोंक दो पूरी ताकत और जीत कर आओ । फ़िरभले ही कुछ समय धूंए के छ्ल्ले उड़ाओ ,हम कुछ नही कहेंगे । फ़र्ज तो निभाओ वीरों !!!
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
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