ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हमने हजारों फैक्ट पढे, पर्यावरण प्रदूषण की बातें रोजाना सुनते हैं। हम यह भी जानते हैं कि भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है, लेकिन फिर भी हमनें हमारी पृथ्वी को शुद्ध रखने और बचाने के लिए क्या कदम उठाएं हैं ? पूरी गारंटी के साथ हम कुछ नहीं कह पाएंगे। कुछ ऎसा ही संकल्प लें कि इस धरती की सुंदरता को हम आने वाली पीढ़ियों के लिए उसी स्वरूप में छोड़ जाएंगे,जैसा कि हमारे पूर्वजों ने हमें सौंपा । इसके लिए प्रयास हमें ही शुरू करना होगा।हम सब को यह समझना ही होगा कि हम रोजमर्रा में कहां - कहां , क्या-क्या गलतियाँ करते जा रहे हैं , जिसके दुष्परिणाम हमारे बच्चे और उनके बच्चे भुगतेंगे ।खुली हवा में साँस लेने को तरस जायेंगे । हम बड़ी ही सहजता से अपने आसपास कभी न खत्म होने वाला जहर फ़ैला रहे हैं । इस जहर को हम बड़े गर्व से अंग्रेजी में पॉलीथिन बैग , कैरी बैग्स कहते हैं ,उपयोग करते नहीं शर्माते हैं । अब तो इसकी छपाई भी इतनी आकर्षक होने लगी है कि बड़ा से बड़ा आदमी भी इसे दिखावे के रूप में
भी उपयोग करने में नहीं झिझकता ।
पॉलिथिन बैग जिस चीज़ से बनते हैं वे बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नहीं हैं। यानी वे नष्ट नहीं
होते, रिसायकल नहीं होते और प्रकृति में अपनी उपस्थिति बनाए रखते हैं।
इससे बहुत सारे नुकसान होते हैं। पर्यावरण से जुड़े लोग इसीलिए इनके इस्तेमाल का
विरोध करते हैं। इसी तर्क पर दिल्ली ही नहीं कई दूसरे राज्यों में भी पॉलिथिन को
प्रतिबंधित कर दिया गया है। इससे उन राज्यों को प्रदूषण और गंदगी से बचाने में
मदद भी मिली है। इसके अलावा पॉलिथिन खाने से होने वाली पशुओं की मौतों में
भी कमी आई है। लेकिन हमारे छत्तीसगढ़ में बेरोकटोक , बेधड़क - बेहिसाब
पॉलीथिन का उपयोग किया जा रहा है ।
कुदरत खुद जो भी पैदा करती है तो उसके सृजन से लेकर विसर्जन तक की जिम्मेदारी
भी खुद ही निभाती है। मगर मानव अपने कारखानों में जो भी बनाता है और उस बने
हुए कृत्रिम सामान का उपयोग करता है परन्तु उसके विसर्जन की जिम्मेदारी न उत्पादन
कर्ता लेता है और न उपभोक्ता लेता है । चूंकि जो मानव ने कृत्रिम तरीके से बनाया है
उसके अपव्यय को धरती भी स्वीकार नही करती। अर्थात् समस्त संसार में प्रदूषण रूपी
राक्षस संसार से जीवन खत्म करने के लिए अपनी प्रदूषण रूपी सेना बढ़ा रहा है।
हमारे वेदों में राक्षस उसी को कहते हैं जिसका क्षय नहीं होता है।
यह कुदरत का नियम है जो समाप्त नहीं होता वह समाप्त कर देता है।
पॉलिथिन के कारण पर्यावरण प्रदूषण जल मल की निकासी में व्यवधान उत्पन्न
होता है । आज हर गली - मोहल्लों में बारिश का पानी क्यों जमा हो जाता है ?
लोग अपने घरों में पानी घुसने के लिए शासन-प्रशासन को दोषी मानते हैं ,
लेकिन क्या यह सच नहीं कि वे खुद भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं इसके लिए ?
पहले जब कभी पॉलीथिन का उपयोग नही होता था तब तो ऐसी समस्या नहीं थी ।
आज हर शहरी क्षेत्रों में नाले-नालियाँ पॉलीथिन से पटे पड़े हैं । कहाँ से निकलेगा
बारिश का पानी ? कैसे होगा आपके आसपास का वातावरण पर्यावरण शुद्ध ?
कैसे बचेगा , कैसे शुद्ध रह पायेगा आपके लिये पीने वाला पानी ? ऐसी
विषम स्थितियों में कैसे न हो नई-नई बीमारियों का जन्म ? आदमी तो
आदमी बड़ी संख्या में बेजुबान पशुओं की असामयिक मृत्यु के लिये भी पॉलिथिन जिम्मेदार है।
सही मायने में इस पुरे विषाक्त वातावरण के निर्माण के हम सब दोषी हैं ,हमें
सोचना समझना चाहिए और कुछ अच्छा करने की हिम्मत का परिचय देना
चाहिए , तभी हम अपने और आने वाली पीढ़ी के साथ न्याय कर पायेंगे ।
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
जुलाई 08, 2010
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पोलीथीन को अब त्याग ही देना होगा.
जवाब देंहटाएं......... वो दिन याद आते हैं जब कागज के छोटे छोटे थैलियों में सामन मिलते थे.