क्रिकेट के मशहूर खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी की शादी में मीडिया का प्रवेश वर्जित था । मीडिया परेशान - हलाकान था । मगर मीडिया वालों ने उतावलेपन का प्रदर्शन करना नहीं भूला । विवाह स्थल के बाहर खड़े रह कर अंदर से
निकलने वाले हर एक को पकड़-पकड़ कर पूछा भाई अंदर क्या हो रहा है ? हद तो तब हो गई जब घोड़ी वाले को लौटता देख उसे रोका और लगे पुछने कि धोनी ने क्या पहन रखा है ? कैसा दिख रहा है ? अंदर और कौन-कौन है ? खाने-पीने का इंतेजाम कैसा है ? प्रश्नों की बौछार से चकरा गया घोड़ी वाला । एक - दो सवाल का जवाब देकर उसने भी अपनी जान पत्रकारों से छुड़ाई और मानो भाग खड़ा हुआ । बिन बुलाए पत्रकार फ़िर भी वहां से जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे । ऐसा नहीं की धोनी की पत्रकारों से कोई जातिय दुश्मनी हो , उसकी शादी में कुछ पत्रकार मित्र भी शरीक थे । कुल मिला कर अंदर शादी निर्विघ्न रूप से चल रही थी और बाहर खड़े पत्रकार खबरों के लिये मानो मचल रहे थे । बात यहीं खत्म हो जाए ऐसा नहीं है। शादी के बाद से लगातार आज तक इन पत्रकारों ने धोनी का पीछा करना नहीं छोड़ा है । एक टेलीविजन चैनल ने तो बाकायदा दूरी नापी है कि एक हफ़्ते में धोनी ने 5565 किलोमीटर की यात्रा की है । बाकायदा ब्यौर दिया है कि धोनी राँची से देहरादून पहुंचे फ़िर देहरादून से वापस गाजियाबाद गये यहां से नई दिल्ली आये ,राहुल गांधी से मिले फ़िर राँची पहुंच कर नये घर में प्रवेश किया । गृह प्रवेश की पूजा की । उनके घर के बाहर हजारों लोग उन्हें देखने खड़े रहे । अब राँची से कोलकाता जायेंगे, कोलकाता से चेन्नई जायेंगे । और चेन्नई से इंड़िया टीम के साथ श्रीलंका के लिए रवाना होंगे । इन चैनल वालों ने हद तो तब कर दी जब बगैर धोनी से मिले ही टेलीविजन पर ही धोनी को सलाह दे डाली कि- धोनी भाई इतना लम्बा दौरा करके आप और आपकी बीवी दोनो थक जायेंगे भला फ़िर क्या 'खेलेंगे' ? ऐसा मौका जीवन में एक बार आता है , बार-बार नहीं । साथ ही यह भी कह डाला कि - न सगाई में बुलाया और ना ही शादी में बुलाया । देखना होगा कि श्रीलंका में जाकर पार्टी देते हैं या नहीं ? मेरा तो एक छोटा सा सवाल है कि आखिर क्यों लोग मीडिया को इतना अवाइड करते हैं ? शादी व्याह जैसे निजी कार्यक्रमों में कव्हरेज के लिए क्यों उतावलापन दिखाते हैं ये भाई लोग ? क्यों किसी को उसका निजी जीवन उसके हिसाब से जीने देना नहीं चाहते ये लोग? कहाँ मर जाता है इनका स्वाभिमान ? कहाँ चले जाते हैं इनके प्रोफ़ेशनल एथिक्स ? क्यों इतना हल्कापन दिखाते हैं ? प्रोफ़ेशन को क्यों बदनाम करते हैं ?इससे सीखना चाहिए पत्रकरों को , खासकर माईक लेकर घुमने वालों को ।
लाजवाब विचार है .बधाई
जवाब देंहटाएं-अशोक बजाज, रायपुर , छत्तीसगढ़
अच्छा है कि अशोक बजाज जी ने लाजवाव ही कहा लज़ीज़ नहीं. भई, शादी का मौका है जबान फिसल भी सकती थी. और नेताओं के साथ तो यह आम है.
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