लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
अगस्त 01, 2010
दर्द जब दोहरा हुआ…
एक समय ऐसा भी था जब समुचे मध्य प्रदेश में एक ही समय पर अखबारों के माध्यम से लोगों को खबरें मिल जाया करतीं थीं । लेकिन आज ऐसा नहीं होता । हर जिले की खबर के लिए अब आपको उस जिले का संस्करण पढ़ना होगा जो एक ही जगह से आम आदमी को तो उपलब्ध नहीं हो पायेगा । इसीलिए अब आपको यह भी पता नहीं चल पाता है कि पड़ोसी जिले में क्या हो रहा है ? अखबार मालिकों ने भी डॉक्टरों की ही तरह मानो बिना कहे ही यह कह दिया है कि यह उनका धंधा है कोई मिशन नहीं , रहा होगा कभी मिशन । आज तो यह प्रोफ़ेशन है अच्छी खासी कमाई का जरिया है ऐसे में इसे संवेदनशील भला कैसे बनाया जा सकता है , आप ही बताईये ? इसी अंधी दौड़ में - धन पिशाचों से यह उम्मीद करना कि ये निधन की सूचना या सामाजिक जनचेतना से जुड़ी खबरें पूरे प्रदेश में देंगे ,बेईमानी होगी , अपने को धोखा देने जैसा काम करना होगा । मेरे एक मित्र इंजीनियर हैं उनकी भतीजी गीतांजली हफ़्ते भर पहले ही दहेज की बली चढ़ गई , मित्र की इच्छा थी कि खबर रायपुर के अखबारों मे भी छपे ताकि दोषी जनों पर प्रभावी कार्यवाही हो सके , वरिष्ठ अधिकारी जनों की नजर से यह मामला गुजरे । लेकिन दुर्भाग्य आम लोगों का कि ऐसा काम रायपुर से प्रकाशित होने वाले अखबारों ने आमलोगों के लिये बंद कर दिया है । किसी बड़े विज्ञापनदाता या बिल्डर की सिफ़ारिश पर छापा जा सकता है कुछ भी , पर आम आदमी का … सॉरी । "ये उनके फ़ॉर्मेट में फ़िट नहीं है । "
खबर छपनी थी रायपुर और बिलासपुर के बीच के एक गाँव की , तो बिलासपुर संस्करण में छ्प कर इतिश्री कर दी गई ,जहाँ लोग इस घटना को जानते थे उन्हीं को पढ़ाया भी गया । जो नहीं जानते थे ,वो क्यों जानें ? उन्हें क्यों पढ़ाया जाए ? कुछ ऐसा हो गया है अखबारों का रवैया आम लोगों के लिए । लेकिन खास लोग जो खबरों को छापने के बदले विज्ञापन देते-दिलाते हैं उनकी सर्दी-खाँसी , पैदल चलने-फ़िरने ,चना-मुर्रा खाने की खबरें भी अपने सभी संस्करणों में छाप कर दुनियाँ को बताने से नहीं हिचकिचाते आज के अखबार । कितनी गैर जिम्मेदाराना और शर्मनाक है ये बात हम सब की नजरों में । इसे सुधारना तो होगा । कौन - कब सुधारेगा यह अभी नहीं मालूम , देर-सबेर होगा जरूर ,अखबारों की संकीर्ण मानसिकता भी दूर होगी ।
बहरहाल खबर यह है कि ग्राम खम्हरिया निवासी शशीकांत पांडेय पिता रामकृष्ण पांडेय की पुत्र वधु गीतांजली की दहेज प्रताड़ना के बाद जलने से मौत हो गई ,उसका दो साल का एक बच्चा आज भी अपनी माँ के अस्पताल से लौटने का इंतजार कर रहा है । सन 2007 में अपनी बेटी के हाँथ पीले करने वाले बूढ़े बाप का कलेजा दहल उठा है , परिजनों के आंसू थम नहीं रहे हैं , गीतांजली की माँ को जो बीमार है उन्हें कुछ भी बताया नहीं गया है ,वह घर के लोगों को रोता देखकर और भी अधिक परेशान है । गीतांजली की मौत के बाद उसके मायके वालों को बताया जाना कि वह चिमनी की लौ से जल कर मर गई । संदेह को जन्म ही नहीं देता वरन पुख्ता करता है । मायके वाले चाहते हैं इस मामले में दोषी दामाद को सजा हो । उनके उन अन्य परिजनों को भी सजा हो जिन्होंने शादी से पूर्व शशीकांत पांडेय को इंजीनियर हैं , बताया था । दामाद ने अपने ससुर से अपनी टेक्नीशियन की नौकरी परमानेंट कराने के लिए डेढ़ लाख रुपये लिये थे , रायपुर में मकान खरीदने के और रुपयों की माँग करते हुए नवम्बर 2009 में ससुर कन्हैयाधर दीवान से साथ उन्हीं के घर में मारपीट भी की थी , वह चाहता था कि ससुर गांव की सम्पत्ति को बेचकर उसके साथ रायपुर चल कर उसे एक घर खरीदने के लिए मदद करे और उसी के साथ रहे । इन्हीं बातों को लेकर विवाद हुआ करता था । इस लालच की बली चढ़ी बेटी गीतांजली । दोनो परिवारों का दुख कम होने की बजाय कई गुना बढ़ गया है । गीतांजली के पिता कन्हैयाधर दीवान पुलिस अधिकारियों से इंसाफ़ की गुहार लगा रहे हैं ,क्योंकि इस धरती के प्रथम भगवान बन बैठे "पुलिस वाले" यदि रिपोर्ट ही सही-सही लिख कर उसकी विवेचना सही समय पर कर दें तो यह इंसाफ़ पाने की पहली सीढ़ी साबित होगी । बाकि फ़िर इंसाफ़ तो वही करता है और करेगा भी जिसका यह जिम्मा है सही मायने में । हम इस घटना में अपनी गहन संवेदना प्रकट करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं उसके अपने घर में यह दरिंदगी - वहशीपन न होने दें । साथ ही अखबार वालों को , पुलिस वालों को अच्छा करने की ताकत - बुद्धि दें ।
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... saarthak va prasanshaneey abhivyakti !!!
जवाब देंहटाएंबेहद खौफ़नाक …………यही तो आम इंसान की मजबूरी है कि उसके लिये कहीं कोई सुनवाई नही है।
जवाब देंहटाएंकल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
स्चमुच पैसे की हवस बहुत ही खतरनाक साबित होती है । मुझे तो यहाँ आपकी पोस्ट पढ़ कर लड़की के ससुर और अखबार वाले दोनो ही हवसी नजर आते हैं । बेहद ही संवेदनशील पोस्ट है , आपको साधुवाद बेबाक बातें जो की हैं आपने ।
जवाब देंहटाएंवह अख़बार खूब चलेगा जो पूरे प्रदेश का प्रतिबिंब होगा , वरना आज तो हालत यह है कि रायपुर और कुम्हारी ( दुर्ग ) की दूरी बढ़ गई है .
जवाब देंहटाएंमूल्यवान टिप्पणीयों के लिए आप सभी को धन्यवाद । -आशुतोष मिश्र
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