स्कूल का नया सत्र आरंभ हुए दो माह होने को आए हैं । बड़ी विड्म्बना ही है कि जितना जरूरी स्कूल जाना है , उतना ही जरूरी हो गया है "ट्यूशन" जाना । पढ़ाई पर हावी हो गया है ट्यूशन। कभी आप सोच भी पाते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है ? पहले कभी तो नहीं होता था ऐसा । अब क्यों ? मैं तो कहता हूं पढ़े लिखे ऐसे अभिभावक जो अपनी सामाजिक-पारिवारिक जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं ,प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से वे ही ट्यूशन के गोरख धंधे को बढ़ावा देते हैं । कम पढ़े लिखे अभिभावकों की मजबूरी समझ आती है ।
आप शायद सहमत होगें की स्कूल-कॉलेज में उनकी क्षमता से कहीं अधिक संख्या में बच्चों को प्रवेश दिया जाता है । जिसकी वजह से प्रबंधन पैसा कमाता और बच्चा तकलीफ़ें पाता देखा जाता है । क्वालिटी ऑफ़ एजुकेशन की कमी ,कोर्स की अधिकता , समय प्रबंधन की कमी , कोर्स और किताबों के चयन में क्वालिटी की बजाय कमीशन पर ज्यादा ध्यान दिया जाना । क्लासेस में बैठने की समुचित व्यवस्था न होना ,प्रकाश और हवादार बड़ी खिड़कियों की व्यवस्था का न होना , या कहीं-कहीं घर का वातावरण कलह भरा - तनाव पूर्ण होना ऐसे तमाम दोष हैं जो ट्यूशन को जन्म ही नहीं वरन सतत प्रोत्साहन देते हैं ।
ट्यूशन सफ़लता की कोई कुंजी हो ऐसा कतई भी नहीं है । आज तो इसका विकृत स्वरूप मानो एक फ़ैशन या सोशल स्टेटस का रूप धारण करता हुआ देखा जा सकता है । कुछ न समझ आ रहा हो ,और उस विषय पर मार्ग दर्शन चाहें ,अच्छे से पूछ्ने- बताने की सहुलियत हो तो क्लास रूम ही बहुत होगा ,लेकिन फ़िर इस बीच कमाई का रुपया न होगा ,इसलिए भी बहुत जरूरी हो जाता है ट्यूशन । बिखरा और डरा हुआ अभिभावक अपनी बात समझा नहीं पाता स्कूल - कॉलेज प्रबंधन को , और प्रबंधन समझना भी नहीं चाहता ,शायद इसलिए भी बहुत जरूरी हो जाता है ट्यूशन । वरना सबसे अच्छा है टीचर्स के द्वारा स्कूल - कॉलेज में दिया गया मार्ग दर्शन , बच्चों की सेल्फ़ स्टडी ,घर में माँ की या पिता की देखरेख में की गई पढ़ाई, टाईम टेबल बना कर की जाने वाली पढ़ाई , जब पढ़ाया जा रहा हो उस वक्त ध्यान केवल पढ़ाई पर ही केन्द्रित हो । न समझ आने वाली बातों को तुरंत ही पूछ लिया जाए और शिक्षकवृंद ऐसा माहौल अपनी-अपनी कक्षाओं में बनाएं कि बच्चा कुछ पूछने में डर या झिझक न महसूस करे । शिक्षा विभाग में पदस्थ बड़े अधिकारी इसकी प्रॉपर मॉनिट्रिंग करें । पर ऐसा होता नहीं है ,क्यों ? कौन देगा जवाब ? अधिकांश शैक्षणिक संस्थाओं में अप्रशिक्षित , कम पढ़े-लिखे , कम वेतन पर काम करने वाले शिक्षक हैं ।जो स्वयं शोषित-पीडित हैं ,इनसे आप क्या और कैसी उम्मीद करेंगे ? जरूरत है शैक्षणिक संस्थाओं में उनके प्रबंधन पर शासन-प्रशासन की ईमानदार मजबूत पकड़ -पहल की , सतत निगरानी की तभी कुछ अच्छे नतीजे आने की उम्मीद करना उचित होगा वरना जो जैसा चल रहा है चलता रहेगा । ट्यूशन एक सफ़ल व्यवसाय बन चुका है ,बना ही रहेगा । विशिष्ट वर्ग को छोड़ कर शेष सारा सामान्य वर्ग ऐसा ही त्रस्त रहेगा । समाज में एक नया फ़्रस्टेशन बढ़ेगा ।
लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
अगस्त 07, 2010
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शैक्षणिक आपा-धापी में ट्युशन जरुरी हो गया है,
जवाब देंहटाएंऐसा विद्यार्थी समझने लगता है।
हमारे यहां ही बच्चे सुबह 6 बजे उठकर ट्युशन जाते हैं
और फ़िर स्कूल से आने के बाद6बजे ट्युशन।
क्या किया जा सकता है। व्यवस्था और पाठ्यक्रम ही कुछ ऐसे बना दिए गए हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षक नहीं है,जो मैथ्स,फ़िजिक्स,कैमेस्ट्री,बायो इत्यादि पढाएं।
और इन विषयों के शि्क्षक नेतागिरी जमाकर राजधानी के स्कूलों में पडे हैं। एक एक विषय के तीन-तीन शिक्षक, जिनका ट्रांसफ़र सरकार के बस की बात नहीं है। नेता गिरी के चलते।
बस सब भगवान भरोसे चल रहा है। आजादी है और प्रजातंत्र है।