लगी खेलने लेखनी, सुख-सुविधा के खेल। फिर सत्ता की नाक में, डाले कौन नकेल।। खबरें वो जो आप जानना चाह्ते हैं । जो आप जानना चाह्ते थे ।खबरें वो जो कहीं छिपाई गई हों । खबरें जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो । ऐसी खबरों को आप पायेंगे " खबरों की दुनियाँ " में । पढ़ें और अपनी राय जरूर भेजें । धन्यवाद् । - आशुतोष मिश्र , रायपुर
मेरा अपना संबल
अगस्त 02, 2010
फ़्रेंडशिप डे पर पिटाई - हंगामा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कल शाम बूढ़ा तालाब स्थित विवेकानंद उद्यान में बजरंगियों ने एक प्रेमी युगल के मुंह पर न केवल कालिख पोती वरन युवक और युवती दोनो को पीटा भी , हमेशा की ही तरह यहाँ तैनात पुलिस मुक दर्शक बनी रही ।यह मामला आज विधान सभा में भी गूंजा , जिस पर गृह मंत्री ननकी राम कंवर ने पाँच आरोपियों को गिरफ़्तार किये जाने की बात कही विधान सभा में विपक्ष ने इस विषय पर जम कर हंगामा मचाया । जन प्रतिनिधियों और आम लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश था कि बजरंगियों ने सरेआम युवती के साथ मारपीट की , उसके मुंह पर भी कालिख पोती ।यह सच है कि राजधानी की पुलिस सख्ती के नाम पर केवल और केवल सड़कों पर अवरोधक बेरिकैट्स लगा कर मोटर सायकलों - कारों , भारी वाहनों से चालान के नाम वसूली करती ही दिखती है । शहरी गुण्डों - बदमाशों से याराना है । बड़े बिल्डरों के सामने मानो दुम हिलाती है । रही बात प्रेमी युगलों की ,यह किसी भी बढ़ते शहर में जहाँ बाहर से पढ़ने - नौकरी करने युवक युवती आतें ,वहाँ की एक बडी समस्या है ही । रायपुर में हर बड़े होटलों , रिसॉर्ट्स , गार्ड्न में शाम होते ही ऐसे मनचले रोज देखे जा सकते हैं । यहाँ इन्हें देख कर भी अनदेखी की जाती है । पुलिस केवल पैसा पहचानती है ,यहीं की नहीं सभी जगह की । समाज सुधरना नहीं चाहता है ।इसे समय की मांग बताते हैं ,ऐसी घटनाओं के पक्षधर । सर्वाधिक दुर्भाग्य जनक बात तो यह है कि ऐसे मनचलों का सबसे बडा जमावड़ा राज भवन के सामने वाली सड़क पर बने एक गार्डन, मुख्यमंत्री निवास से लगे शहर के सबसे बड़े गार्डन और कलेक्ट्रेट गार्डन में रोज होता है । यह तीनों ही गार्डन पुलिस मुख्यालय के भी निकट है , क्या करती है पुलिस ? इन उद्यानों में आज भी सम्भ्रांत जन सपरिवार आने में कतराते हैं । कहाँ हैं जनता के रखवाले ? केवल फ़्रेंडशिप डे या फ़िर वेलेन्टाईन डे पर हल्ला बोलना ही कर्तव्यों की इति श्री है ? क्यों जरूरी है मारपीट करना ? या कालिख पोतना ? बहुत से सवाल हैं जो सिर्फ़ इसलिए उत्तर विहीन हैं क्यों कि रक्षकों की ही नीयत साफ़ नहीं है । उनके इरादे जगजाहिर हैं । उनका लक्ष्य "कहीं पे निगाहें - कहीं पे निशाना" जैसा छल - कपट भरा है । प्रदेश में अब बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा जैसा माहौल है ,कांग्रेस को बैठे बिठाये मिल गया मुद्दा और वह तो इस मुद्दे पर प्रदेश की "बेचारी सी" - "निर्दोष सी" भा ज पा सरकार से गद्दी छोड्ने की मांग करने लगी है । मतलब, बहुत कर लिया तुमने, अब हमको मौका दो । यह सब तो चलता ही रहेगा । तुम तो गद्दी छोडो ।
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Nindniya kritya hai.
जवाब देंहटाएंयही तो विडंबना है...बेहतरीन पोस्ट.
जवाब देंहटाएंकभी शब्द-शिखर पर भी आयें...
यही तो दिन दोस्ती का था, उस पर भी बवाल....पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआप सभी को कोटिशः धन्यवाद । - आशुतोष मिश्र
जवाब देंहटाएंइस मामले ने तो नया मोड ले ही लिया है...ये मान कर चलिए कि शहर में दोबारा ऐसा होने वाला नहीं....दोनों संगठनों का तो सुपड़ा साफ हो गया है...बहरहाल अच्छी पोस्ट...
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