मेरा अपना संबल

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस

रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा   :  मो. नं. 9717630982 पर करें एसएमएस
रेलवे की एस.एम.एस. शिकायत सुविधा : मो. नं. 9717630982 पर करें एस.एम.एस. -- -- -- ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ट्रेन में आने वाली दिक्कतों संबंधी यात्रियों की शिकायत के लिए रेलवे ने एसएमएस शिकायत सुविधा शुरू की थी। इसके जरिए कोई भी यात्री इस मोबाइल नंबर 9717630982 पर एसएमएस भेजकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नंबर के साथ लगे सर्वर से शिकायत कंट्रोल के जरिए संबंधित डिवीजन के अधिकारी के पास पहुंच जाती है। जिस कारण चंद ही मिनटों पर शिकायत पर कार्रवाई भी शुरू हो जाती है।

अक्तूबर 02, 2010

यह भी पढ़िए , अच्छा लगेगा …

श्री राम पटवा जी 
प्रसंगवश एक उमदा किस्म की लघुकथा बड़े भाई श्री राम पटवा जी की , श्री राहुल सिंह जी के ब्लॉग  की तरोताजा पोस्ट  "राम के नाम पर"  से  चुरा लाया हूँ , अपने सुधि पाठकों के लिए। पूरी कथा के लिए कृपया हेड लाईन पर क्लिक कीजिएगा , उससे पहले यहाँ ट्रेलर तो देख लीजिए । पूरी पिक्चर के लिए आप श्री राहुल सिंह के ब्लॉग "सिंहावलोकन" पर भी क्लिक कर सकते हैं  -                                                                                                      श्री विष्णु प्रभाकर जी  जगह-जगह, राम पटवा जी की लघु कथा 'अतिथि कबूतर' सुनाते हुए कहते कि 'शब्द मेरे हैं पर कथा श्री राम पटवा की है और वह किसी टिप्पणी की मोहताज नहीं है।' आइये देखें उस लघु कथा को-

रोज सुबह एक छत पर दो कबूतर मिला करते थे। दोनों में घनिष्ठ मित्रता हो गई थी। एक दिन दूर खेत में दोनों कबूतर दाना चुग रहे थे, उसी समय एक तीसरा कबूतर उनके पास आया और बोला, ''मैं अपने साथियों से बिछड़ गया हूं। कृपया आप मेरी मदद करें।''
दोनों कबूतरों ने आपस में गुटर-गूं किया, ''भटका हुआ अतिथि है.. अतिथि देवो भवः,'' लेकिन प्रश्न खड़ा हुआ कि यह अतिथि रूकेगा किसके यहां? दोनों कबूतर अलग-अलग जगह रहते थे, एक मस्जिद की मीनार पर तो दूसरा मंदिर के कंगूरे पर।
अंततः यह तय हुआ कि अतिथि कबूतर को दोनों कबूतरों के साथ एक-एक दिन रूकना पड़ेगा।
तीसरे दिन 'अतिथि' की भावभीनी विदाई हुई। दोनों मित्र अतिथि कबूतर को दूर तक छोड़ने गए। शाम को जब वे लौटे तो देखा - मंदिर और मस्जिद के कबूतरों में 'अकल्पनीय' लड़ाई हो रही है। इस दृश्‍य से दोनों स्तब्ध रह गए। बाद में पता चला कि अतिथि कबूतर संसद की गुंबद से आया था।

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट! कबूतर का चित्र बहुत ही प्यारा लगा!

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार लघुकथा । पटवा जी को साधुवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सामयिक - शिक्षाप्रद कथा ,धन्यवाद । सावधान रहना ही चाहिए ऐसे कबूतरों से देश को ।

    जवाब देंहटाएं
  4. भई वाह क्या पते की बात है ,सबको समझ लेना चाहिए ।

    जवाब देंहटाएं
  5. अगर यह चोरी है, जैसा आपने लिखा है, तो इसकी सजा निर्धारित करने के लिए प्रकाण किसी विशेष न्‍यायालय में ही विचारित हो सकता है, लेकिन फिलहाल मेरी ओर से तो धन्‍यवाद स्‍वीकार कर ही लीजिए.

    जवाब देंहटाएं

आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिए कोटिशः धन्यवाद ।

फ़िल्म दिल्ली 6 का गाना 'सास गारी देवे' - ओरिजनल गाना यहाँ सुनिए…

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...