|
नक्सली प्रशिक्षण -आंदोलन वनांचलों में |
नक्सली कसडोल के जंगलों में अपना नया अड्डा बना चुके हैं , यहाँ से वनांचल के युवकों को अपने साथ जोड़ने का सफ़ल प्रयास भी कर रहे हैं और 100किलोमीटर दूर बैठी सरकार कहती है वह नजर रखे हुए है । क्या होगा ऐसी नजर रखने से ? सच्चाई तो यह है कि सरकार और उसका पुलिस महकमा बुरी कदर डरा बैठा है इसका फ़ायदा नक्सली आराम से उठा रहे हैं । सरकारी मीडिया और विज्ञापन दे-देकर खरीदा गया मीडिया भी सच्चाई बयान करने से डरता है , धंधा जो बैठ जायेगा उनका , दूसरे प्रदेशों में बैठा उनका मालिक लात मार कर निकाल देगा मैनेजरों को । यहाँ विज्ञापन की लालच ने चापलूस बना कर रख छोड़ा है मीडिया को। राजधानी रायपुर को नक्सलियों ने चारो तरफ़ से घेर रखा है । बगैर किसी ठोस सामरिक नीति बनाये खाना पूर्ति करने चंद पुलिस कर्मियों की टुकडियाँ भेज दी जातीं हैं कुछ दिन बाद खबर आती है ,इतने पुलिस कर्मी शहीद हुए फ़िर सरकारी बयान - कि यह नक्सलियों की कायराना हरकत है । हमारे जवान मुकाबला करेंगें । आपात बैठकें होतीं हैं , कैबिनेट बुलाई जाती है , बडे अधिकारी फ़िल्ड में निकलने की बजाय एक बंद कमरे में घण्टों बैठक करते हैं और नतीजा क्या , बस फ़िर सब टाँय -टाँय फ़िस्स । चंद बड़े अधिकारियों-मंत्रियों की , उनके परिजनों की सुरक्षा तगड़ी कर दी गई है । स्वयं पुलिस के छोटे अफ़सर - कर्मचारी अपने आप को असहाय - असुरक्षित महसूस कर रहे हैं , मारे जा रहे हैं । एस पी स्तर का अधिकारी भी डरा हुआ है । आम आदमी मारा जा रहा है । इस प्रदेश का मूल आदिवासी मारा जा रहा है ।इन्हें दोहरी मार का शिकार होना पड़ रहा है । साथ न देने -मुखबिरी करने का आरोप लगा कर एक ओर जहाँ नक्सली इन आदिवासियों को मौत की घाट उतार रहें हैं तो वहीं दूसरी ओर सरकार इनके जानोमाल की रक्षा का करने का दावा कर इनके हिस्से के पैसे खाने-पचाने और इन्हें सरकारी संरक्षण में होने का दिखावा कर नक्सलियों का सीधा शिकार बना कर ठीक वैसा ही खुला छोड़ दे रही है जैसे कि शेर के सामने बकरी छोड़ी जाती है । लगातार मारे जा रहे हैं निर्दोष लोग । मजे में है सरकार और उसके चंद पैरोकार जो विदेशों में जा- जाकर इन्वेस्टमेंट की जगह तलाश करते नजर आ रहे हैं ,तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष उसमें भी अपनी हिस्सेदारी की सम्भावना तलाशता दिखता है , मौन है । कैसे भला होगा छत्तीसगढ़ का , जहाँ सब लूटने-खाने में ही लगे दिखते हैं । विकास के नाम पर केवल बिल्डर का काम करने बडे लोगों को लाभान्वित करने की नीयत से मंहगे आवास -मॉल कॉम्प्लेक्स बनाने में लगे हैं सरकरी उपक्रम - निगम । , अब सरकार भी सब काम धाम छोड़ केवल इसी काम को विकास का पर्याय बनाने में व्यस्त देखी जा सकती है । लोग हतप्रभ हैं - हैरान हैं सरकार के कामकाज के तरीकों से ,और सरकार है कि मदमस्त है अपनी चाल पर , उसे कुछ भी गलत लगता ही नहीं ,क्योंकि चंहु ओर व्यवसायियों से घिरी सरकार के प्रसंशक भी ये व्यवसायी ही हैं , जिनकी सुनियोजित - फ़्रिकवेंट मुलाकात मुख्यमंत्री से कराई जाती है जिससे कि मुख्यमंत्री का हौसला बना रहे और यह भी लगता रहे कि राज्य में सब कुछ बिलकुल ठीक ठाक चल रहा है , राष्ट्रीय अध्यक्ष जी भी आपकी कार्यशैली की तारीफ़ करते हैं ,साहब खुश तो बताईये कैसे होगा इस प्रदेश का भला ???
|
शहीदों को श्रद्धांजलि देते प्रदेश के राज्यपाल - मुख्यमंत्री , अन्य मंत्रीगण-अधिकारी |
ईश्वर भला करे.
जवाब देंहटाएंshabash,patrakarita jindabad
जवाब देंहटाएंSheron ki tarah Ran Mae Dahade jao,
जवाब देंहटाएंBhrte hue Maidan Mae Tarare Jao,
Dushman Tumse mare Na koi Sahi,
Itna to karo Ki DING hi mare jao.
Bas bhaisaheb isse zyada kuch bhi bolna apne shabdo ko gali dena hoga. Dhanyawad
नक्सलवाद कहां से शुरु हुआ और कहां पहुंचा। हर संदर्भ में।
जवाब देंहटाएंआपके कथन से तो सहमति है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी के कारण ही इसे फलने फूलने का मौका मिला और अभी भी यही हो रहा है। पिछले तीन दशक में ही इसने पश्चिम बंगाल के अलावा अन्य राज्य में पैर पसारे हैं। कारण वही कि राजनीति और प्रशासन का इतना भ्रष्टाचार कि इन्हे न केवल पनपने बल्कि खरपतवार की तरह बढ़ने का मौका मिला। एक बात जो खासतौर से उल्लेख करना चाहूंगा वो यह कि आज जो हम देख रहे हैं उसे नक्सलवाद कहना सिरे से गलत है। नक्सलवाद जो आंदोलन के रुप में शुरु हुआ था वह आज कहीं नहीं है, आज जो है बस माओवाद है।
अंत में आपकी कही गई बात पर इतना ही कहूंगा कि सरकारें कोई भी हो, कार्यप्रणाली करीब करीब एक सी हो जाती हैं। प्रदेश के भले की सोच कौन सा जनप्रतिनिधि रहा है यहां छत्तीसगढ़ में………