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छ्त्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष नंद कुमार पटेल |
क्या होगा कांग्रेस का यहाँ … ?
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के हालात किसी से छिपे नहीं हैं , इन्हीं हालातों के बीच पार्टी आलाकमान ने पूर्वमंत्री नंद कुमार पटेल को प्रदेश कांग्रेस का नया अध्यक्ष नियुक्त किया है । अब दौर है कहीं खुशी - कहीं गम का क्योंकि यही खासियत है इस पार्टी कि जितने सर उतने धड़े , गुटीय राजनीति ने सर्वाधिक नुकसान किया है कांग्रेस का , यह बात सभी कांग्रेसी और गैरकांग्रेसी बखूबी जानते - समझते हैं , पर कांग्रेस को बचाने के लिए शायद समझना ही नहीं चाहते ।
प्रदेश में कांग्रेस की इस दुर्गति के जिस एक अतिजिम्मेदार नेता का नाम लिया जाता है , उसका उल्लेख करना अब यहाँ जरूरी नहीं समझता हूँ , समूचा प्रदेश ही नहीं बल्कि देश जानता है उस नेता तो , शुक्र है उस नीली छतरी वाले का जिसने छत्तीसगढ़ को दूसरा बिहार बनने से बचा लिया । यहाँ वर्ग संघर्ष के जनक को पदच्युत कर दिया और शायद प्रभावहीन भी । इन नये अध्यक्ष महोदय पर उन नेता की छवि - उनका आशीर्वाद , उनका वरदहस्त होना बताया जाता है , सच्चाई तो ऊपर वाला और वे दोनो नेता ही समझ सकते हैं , पर जो हल्ला है उससे इंकार नहीं किया जा सकता । अब सवाल यहाँ यह है कि कैसे सुधरेगी प्रदेश में कांग्रेस की दशा-दिशा ? क्या उन पुराने कांग्रेसियों को वापस कांग्रेस में सम्मान के साथ काम करने का अवसर मिल पायेगा जैसा कि वे वर्षों से करते आ रहे थे और इस प्रदेश को दशकों तक कांग्रेस का गढ़ बना कर रखा था । यहाँ इस बात का उल्लेख करना बेहद जरूरी हो जाता है कि नया राज्य बनने और नई राजनीतिक शुरुआत ने यहां प्रदेश के गाँव - गाँव , शहर - शहर से ऐसे निष्टावान कांग्रेसियों को एक मुश्त उखाड़ फ़ेंकने का काम एक बहुत ही सोची समझी साजिश के चलते किया था , जिसे नया राज्य बनने के बाद , आज तक 11 वर्षों बाद तक भी किसी कांग्रेसी नेता ने सुधारना नहीं चाहा और परिणाम सामने है । क्या नये अध्यक्ष इस दिशा में भी सोचेंगे ? या फ़िर इशारों में चलेगी यहाँ कांग्रेस जैसा कि बीते एक दशक से चलती आ रही है । शर्म आती है जब सार्वजनिक तौर पर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि अमुख कांग्रेस नेता तो अमुख बी जे पी के नेता - मंत्री से सेट है , कांग्रेस प्रत्याशी को अमुख जगह चुनाव हराने में उसकी बड़ी भूमिका थी , उसने तो "इतना सूटकेस" या "खोखा" लेकर अपनी ही पार्टी को वहाँ हराने का काम बड़ी सक्रियता से किया । क्या नये अध्यक्ष इस चुनौती को स्वीकार कर कुछ कर दिखायेंगे यहाँ जिसकी कि आम कांग्रेस कार्यकर्ता उनसे अपेक्षा करता है ! छत्तीसगढ़ का आम कार्यकर्ता यह भी भलीभाँति जानता है कि उसके किस अतिजिम्मेदार नेता ने सन 2003 के पहले और 2008 के दूसरे विधान सभा चुनावों में अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव हराने के लिए क्या क्या नहीं किया था । तब से आज तक यहाँ कांग्रेस की स्थिति सुधरती नहीं दिखती है । क्या करेंगे नये अध्यक्ष महोदय इस दिशा में ? शायद उन्हें इसकी जानकारी होगी ।
एक आम कार्यकर्ता यह नहीं समझ पाता है कि जो भी - जहाँ भी कांग्रेस अध्यक्ष बनता है सबको (सभी गुटों को) साथ में लेकर चलने की बात क्यों करता है , वह कांग्रेस के साथ चलने और सबको कांग्रेस के साथ चलाने की बात क्यों नहीं करता ???